यूनिकवि प्रतियोगिता के अप्रैल अंक के दसवें स्थान की कविता 'एक दरार ही काफी है' की रचनाकारा है पल्लवी त्रिवेदी। जिन्होंने इस आयोजन में पहली बार भाग लिया है। इससे पूर्व कहानी-कलश पर इनके दो व्यंग्य 'आत्मा की तेरहवीं' और 'सी॰एम॰ का कुत्ता- खब्दू लाल' प्रकाशित हो चुके हैं। मूलतः मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले की रहने वाली लेखिका पल्लवी त्रिवेदी वर्तमान में उप पुलिस अधीक्षक के पद पर भोपाल में कार्यरत हैं। इन्हें पढ़ने का शौक तो बचपन से था किन्तु लिखना इन्होंने कुछ ही महीने पहले शुरू किया है। अभी लेखन के क्षेत्र में कोई उपलब्धि नहीं है। बस जब वक्त मिलता है तो जो मन में विचार उठते हैं उन्हें कविता ,कहानी या व्यंग के रूप में कागज़ पर उतार देती हैं।
पुरस्कृत कविता- एक दरार ही काफी है
एक उदास शाम
मैं बैठा समंदर किनारे
अपनी भीगी पलकें लिए
उफक पर डूबता हुआ सूरज
जैसे मेरी खुशियाँ भी
साथ लेकर डूब रहा हो
घोर निराशा,घोर अन्धकार
मैं कर रहा था सिर्फ
अपनी मौत का इंतज़ार
समंदर की लहरें
मानो हँस रहीं थीं
मेरे दर्द पर
यकीन था मुझे कि
खुशियाँ मुंह मोड़ चुकी हैं मुझसे
और रौशनी बिछड़ चुकी है
तभी एक मखमली स्पर्श ने
चौंकाया मुझे
एक नन्हा बच्चा आकर
लटक गया मुझसे
मैं भूल गया अपने ग़म
कुछ पल को
हमने रेत का घर बनाया
सीप इकट्ठी कीं
और जी भर के भीगे
उन मचलती लहरों में
और उसी पल उफक पर डूबते हुए
सूरज ने मुझसे कहा
चाहे बंद हो दरवाज़ा,लेकिन
रौशनी की तरह
ख़ुशी को भी
अन्दर आने के लिए
सिर्फ एक दरार ही काफी है...
प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक- ५, ६॰८५, ६, ४॰७
औसत अंक- ५॰६३७५
स्थान- ग्यारहवाँ
द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक- ३, ४, ४, ५॰६३७५ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ४॰१५९३७५
स्थान- दसवाँ
पुरस्कार- डॉ॰ रमा द्विवेदी की ओर से उनके काव्य-संग्रह 'दे दो आकाश' की स्वहस्ताक्षरित प्रति।
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20 कविताप्रेमियों का कहना है :
चाहे बंद हो दरवाज़ा,लेकिन
रौशनी की तरह
ख़ुशी को भी
अन्दर आने के लिए
सिर्फ एक दरार ही काफी है...
बहुत अच्छे पल्लवी जी ,बधाई
बहुत अच्छा लिखा है पल्लवी जी. बधाई. यूँ ही लिखती रहें....
चाहे बंद हो दरवाजा लेकिन
रोशनी की तरह
खुशी को भी
अंदर आने के लिए
सिर्फ एक दरार ही काफी है।
----अच्छे विचार----अख्छी कविता-------
--देवेन्द्र पाण्डेय।
कविता मैं निराशा झलकती है और आपके मन को दर्शाती है. जहाँ तक मैं सोचता हूँ ज़िंदगी मैं जब भी खुशियाँ मिले चाहे वो लम्हे भर की ही क्यों न हो हमें जी लेना चाहिए .क्योंकि ज़िंदगी मैं खुशियाँ बड़ी मुश्किल से मयस्सर होती हैं .
चाहे बंद हो दरवाज़ा,लेकिन
रौशनी की तरह
ख़ुशी को भी
अन्दर आने के लिए
सिर्फ एक दरार ही काफी है...
बधाई इन खूबसूरत पंक्तियों के लिए
पल्लवी जी बधाई
शाहिद "अजनबी"
पल्लवी जी ,
सीधे सरल भाव के साथ आपकी रचना मुझे बहुत अच्छी लगी ,जो यह संदेसा भी दे रही है कि निराश होने कि आवश्यकता नहीं है , आशा का दामन सदेव थामे रहो , सुबह होने में देर भले ही लगे पर रात को ख़त्म होना ही होता है .बहुत खूब .बधाई
^^पूजा अनिल
,
पल्लवी जी,
आशावादी रचना है। रचना आरंभ में कसी हुई न होने के बावजूद कथ्य के कारण प्रभाव छोडती है।
***राजीव रंजन प्रसाद
पल्लवी जी,आपकी उपस्थिति मन को सुकून देती है.बधाई
आलोक सिंह "साहिल"
पल्लवी जी,
आपकी रचना अच्छी लगी, लिखती रहियेगा !
धन्यवाद आप सभी मित्रों का.....आप सभी के हौसला बढाने से लिखने की प्रेरणा मिलती है.
निराशा के लड़खड़ाते कदम आशा वाद की ओर बढ़ते देख कर सुखद एहसास हुआ...
"सिर्फ एक दरार ही काफी है..." बिल्कुल सही...सिर्फ एक आशा की किरण जीवन में उजाला कर देती है... शुभकामनाएँ
चाहे बंद हो दरवाज़ा,लेकिन
रौशनी की तरह
ख़ुशी को भी
अन्दर आने के लिए
सिर्फ एक दरार ही काफी है...
kavita aur jeevan ka saar...
pallavi ji, badhaai sveekarein
कर्मठता हो तो थाने मे एक हवलदार काफी है..
चाहे बंद हो दरवाज़ा,लेकिन
रौशनी की तरह
ख़ुशी को भी
अन्दर आने के लिए
सिर्फ एक दरार ही काफी है...
खूबसूरत रचना के लिये हमारे पास
आपके लिये शुक्रिया की भुजिया के साथ
रिम-झिम बूँदों के साथ मजेदार कॉफी है..
बहुत अच्छा लगा आपको यहाँ देख के......
मैंने पहले भी कहा था अच्छा लिख रहे हो आप और आपकी पंक्तियाँ /भाव ये साबित भी कर रही हैं |
आपकी अगली कविता का इंतज़ार रहेगा ....
दिव्य प्रकाश
bahut hi khubsurat baat kahi,roushani ke liye ek darar hi kafi hai,bahut badhai
बहुत बहुत शुक्रिया आप सभी का
बहुत अच्छा लिखा है पल्लवी शुभकामनाएँ
डा. रमा द्विवेदीsaid...
पल्लवी जी,
सुन्दर अभिव्यक्ति...जीवन के प्रति आस्था जगानेवाली कविता बहुत अच्छी लगी। पुरस्कृत होने पर बधाई व शुभकामनाएं....आशा है आपकी और भी रचनाएं हमें पढ़ने को मिलेंगी...
डा. रमा द्विवेदीsaid...
पल्लवी जी,
सुन्दर अभिव्यक्ति...जीवन के प्रति आस्था जगानेवाली कविता बहुत अच्छी लगी। पुरस्कृत होने पर बधाई व शुभकामनाएं....आशा है आपकी और भी रचनाएं हमें पढ़ने को मिलेंगी...
आप अपनी शुरूआती कविताओं में ही इतना गंभीर कविताएँ लेकर आई हैं। उम्मीद है कि भविष्य में आप बहुत सी सशक्त कविताएँ देंगी।
पल्लवी जी,
आपकी कविता..एक आदर्श कविता की तरह
१) पहली कुछ पंक्तियों मै भूमिका बंधती हुई
२) अगली कुछ पंक्तियों मै समस्या के कई पहलु दिखाती हुई
३) समाधान तक पहुचती है..
४) अंत की कुछ पंक्तियों मै सारी कविता का सार समझा कर पूर्णता को प्राप्त करती है
ऐसा बहुत ही कम कविताओ मै देखने को मिलता है
-भावात्मक रूप मै आप पाठक को वश मै कर लेती है
-भाषात्मक रूप मै आप पाठक के दिल तक पहुच जाती है.. और वो अपने आप को कविता से जोड़ने लगता है
-और अंत की पंक्तियाँ तो कुछ ऐसे हैं की बस.. सूक्तियां बन सकती है..
"
चाहे बंद हो दरवाज़ा,लेकिन
रौशनी की तरह
ख़ुशी को भी
अन्दर आने के लिए
सिर्फ एक दरार ही काफी है...
"
बस आप कुछ शब्दार्थ अंत मै लिखे ..
जैसे उफक का मतलब मुझे समझ नहीं आया..
बेहतरीन पेशकश...
सादर
शैलेश
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