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Saturday, November 03, 2007

इस बार का काव्य-पल्लवन 'मुखौटे' पर


काव्य-पल्लवन के नवम्बर अंक में हिन्द-युग्म 'मुखौटे' विषय पर आप सभी से कविताएँ आमंत्रित करता है।

इस विषय पर कविता लिखकर २५ नवम्बर २००७ तक kavyapallavan@gmail.com पर भेजें।

आपकी कविता विषय केंद्रित होनी चाहिए। कविता का अप्रकाशित होना भी अनिवार्य शर्त है।

काव्य-पल्लवन का यह अंक २९ नवम्बर को मोहिंदर कुमार प्रकाशित करेंगे।

नवम्बर माह के काव्य-पल्लवन के लिए २९ अक्टूबर को विषय आमंत्रित किए गये थे। समय कम था इसलिए मात्र ७ विषय प्राप्त हुए, जिसमें से श्रवण सिंह का विषय 'मुखौटे' को अच्छा और विस्तृत रचनाक्षेत्र मानकर काव्य-पल्लवन करवाना निश्चित हुआ।

नये पाठकों को बता दें कि 'काव्य-पल्लवन' हिन्द-युग्म फ़रवरी २००७ से हर माह किसी एक विषय पर आयोजित करता है।

पूरी जानकारी यहाँ उपलब्ध है।

श्रवण सिंह के अतिरिक्त हमें कुमार मुकुल, प्रतिष्ठा शर्मा, अवनीश तिवारी, कवि कुलवंत सिंह और निखिल आनंद गिरि से विषय प्राप्त हुए।

सभी का आभार।

चित्र साभार- वीरेन्द्र बंसल

काव्य-पल्लवन क्या है?

अंक-१
अंक-२
अंक-३
अंक-४
अंक-५
अंक-६
अंक-७
अंक-८

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8 कविताप्रेमियों का कहना है :

सुनीता शानू का कहना है कि -

अच्छा विषय चुना गया है....

काकेश का कहना है कि -

विषय अच्छा है. क्या हम जैसे नालायक भी लिख सकते हैं.

http://kakesh.com

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

काकेश जी!
आप जैसे नालायक हमारे हिन्द-युग्म पर लिखें तो क्या बात हो! स्वागत.......

RAVI KANT का कहना है कि -

’मुखौटे’....एक ऐसा विषय जिस पर अधिकाधिक लेखनी प्रयोग कर सकती है।

आलोक साहिल का कहना है कि -

kya bat hai KAKESH JI aur SHAILESH JI apka hasy-vinodi swbhav achha laga.khair, Shailesh Ji aap ki Sanstuti ke bad ab meri bhi himmat kuchh likhane ki ban padi hai.Vaise vishay bhi kuchh aisa hai ki apne ander ke vastvik chehare ko ubharane ka mauka milega

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

आलोक जी,

सच में अपने-अपने मुखौटों में छुपे असली इंसान को आईना दिखाने का यही अवसर है। चूकिएगा मत।

Anonymous का कहना है कि -

ऐ मुखौटे वाले मुझको ऐसे-इतने मुखौटे तू दे दे |
जिन्हें पहनने के बाद कोई हिंदू-सिख या मुसलमान न रहे |
ताकि कहीं-कोई मजहबी झगड़ा-फसाद या जेहाद न रहे |
क्योंकि मुखोटे वाले;मैं उस शहर की कल्पना में हूँ,
जहाँ हर कोई खुश है - सानंद है और
चारों ओर रंगे - अमन है और खुशहाली ही खुशहाली है |
सब के चेहरे हैं चमकते हुए - मानों सितारे दमकते हुए |
झोली में सब सुख ही सुख, ग़मों की ख़ुद बदहाली है|
ऐ मुखौटे वाले मुझको ऐसे-इतने मुखौटे तू दे दे |
कि जिन्हें पहनने के बाद कोई हिंदू-सिख या मुसलमान न रहे ||

Anonymous का कहना है कि -

कविता का विषय बहुत ही अच्छा है |
Anant, NGP

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