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ओ मरियम तुम्हीं बताओ....


कवि पृथ्वीपाल रावत जो अकेला मुसाफिर के नाम से भी कविताएँ लिखते हैं, की एक कविता ने सितम्बर 2009 की यूनिकवि प्रतियोगिता में 13वाँ स्थान बनाया है। इससे पहले इनकी एक कविता ने जुलाई 2009 की प्रतियोगिता में शीर्ष 10 में स्थान बनाया था।

पुरस्कृत कविता- मरियम तुम्ही बताओ

ओ मरियम!
मेरे परमेश्वर की माँ!
तुम्हीं बताओ
मैं क्या करूँ?
तुम्हीं बताओ
मैं कैसे उठाऊं
अपने परमेश्वर के कृत्यों का अनचाहा बोझ
जो अनजाने ही हो रहा है पोषित मेरे गर्भ मैं?
ओ मरियम तुम्हीं बताओ....!
ओ मरियम!
क्या तुमने भी भोगा था यह अभिशाप
जो मुझे मिला है
एक 'कुवारी माँ' बनकर,
शायद नहीं!
क्योंकि तब वासना की भूख
इतनी भड़की नहीं रही होगी
ना ही मानव इतना कुटिल रहा होगा
जितना कि आज है
तुम्हारे पुत्र को
जो निशानी था तुम्हारे परमेश्वर की
उसे उन भोले मासूम लोगों ने
मान लिया दाता
अपना भाग्य विधाता
मगर.......
मेरे परमेश्वर की निशानी
इन्सां नहीं
जानवर की औलाद होगी....!
ओ मरियम!
तुम जान सकती हो मेरे जैसी लाखों मरियामों का दर्द
जो आज भी
छोड़ देती हैं,
अपने परमेश्वर की निशानी
किसी अनाथालय, वाचनालय,
मंदिर या गिरजाघर के
किसी सुनसान कोने में.
या फिर समय से पहले
कालकलवित हो जाती है
नन्ही रूह
ओ मरियम,
तुम जान सकती हो मेरा दर्द
तुम्हीं बताओ
क्या करूँ मैं................!

वह अपने कुरते का सीवन नहीं छुपा पाई


प्रतियोगिता के चौथे स्थान की कविता के रचयिता पृथ्वीपाल रावत को अपने बारे में बस इतना पता है कि ये दर्द जीते हैं और दर्द पीते हैं। और जब इनकी पीर हद से गुजर जाती है तो होंठों पर आकर कविता बन जाती है। 15 अक्टूबर 1980 को अल्मोड़ा, उत्तराखंड में जन्मे पृथ्वीपाल रावत अकेला मुसाफिर नाम से कविताएँ लिखते हैं। फिलहाल गुड़गाँव में अध्यापन कर रहे हैं।

पुरस्कृत कविता- सीवन

उसके कुरते की सीवन
जो उधड़ चुकी थी उसके यौवन से
जिसे वह उँगलियों से छुपाती थी
आज और उधड़ चुकी है!
उसने जोड़ना चाहा था
एक-एक भेला
उसे सीने के लिए
पर हर बार
पेट की आग
खा जाती थी
उसकी सिलाई के पैसे
और हमेशा की तरह
वह छुपाती थी उस उधड़न को
अपनी उँगलियों से!!
पर आज
उँगलियाँ बहुत लचर हैं
बेबस हैं
उसकी उधड़न छुपाने को
उसके पेट की तरह
क्योंकि
सीवन उधड़ चुकी है
उसकी अपनी ही उँगलियों से!!

*भेला- टुकड़ा-टुकड़ा, पैसा-पैसा


प्रथम चरण मिला स्थान- चौथा


द्वितीय चरण मिला स्थान- चौथा


पुरस्कार और सम्मान- सुशील कुमार की ओर से इनके पहले कविता-संग्रह 'कितनी रात उन घावों को सहा है' की एक प्रति।