फटाफट (25 नई पोस्ट):

कृपया निम्नलिखित लिंक देखें- Please see the following links

प्रथम हिन्द-युग्म धूमिल सम्मान के लिए प्रविष्टियाँ आमंत्रित


सुदाम पांडेय 'धूमिल'
धूमिल का जन्म वाराणसी के पास खेवली गांव में हुआ था| उनका मूल नाम सुदामा पांडेय था| धूमिल नाम से वे जीवन भर कवितायें लिखते रहे| सन् १९५८ मे आई टी आई (वाराणसी) से वेदयत डिप्लोमा लेकर वे वहीं विदयुत अनुदेशक बन गये| ३८ वर्ष की अल्पायु मे ही ब्रेन ट्यूमर से उनकी मृत्यु हो गई|
सन १९६० के बाद की हिंदी कविता में जिस मोहभंग की शुरूआत हुई थी, धूमिल उसकी अभिव्यक्ति करने वाले अंत्यत प्रभावशाली कवि है| उनकी कविता में परंपरा, सभ्यता, सुरुचि, शालीनता और भद्रता का विरोध है, क्योंकि इन सबकी आड् मे जो ह्र्दय पलता है, उसे धूमिल पहचानते हैं| कवि धूमिल यह भी जानते हैं कि व्यवस्था अपनी रक्षा के लिये इन सबका उपयोग करती है, इसलिये वे इन सबका विरोध करते हैं| इस विरोध के कारण उनकी कविता में एक प्रकार की आक्रामकता मिलती है| किंतु उससे उनकी उनकी कविता की प्रभावशीलता बढती है| धूमिल अकविता आन्दोलन के प्रमुक कवियों में से एक हैं| धूमिल अपनी कविता के माध्यम से एक ऐसी काव्य भाषा विकसित करते है जो नई कविता के दौर की काव्य- भाषा की रुमानियत, अतिशय कल्पनाशीलता और जटिल बिंबधर्मिता से मुक्त है। उनकी भाषा काव्य-सत्य को जीवन सत्य के अधिकाधिक निकट लाती है।
धूमिल के तीन काव्य-संग्रह प्रकाशित हैं – संसद से सड़क तक, कल सुनना मुझे और सुदामा पांडे का प्रजातंत्र। उन्हें मरणोपरांत १९७९ में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
हिन्द-युग्म की यूनिकवि एवं यूनिपाठक प्रतियोगिता ने फरवरी 2011 में 50 महीने पूरे कर लिए हैं। किसी अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता का 50 बार से अबाध गति से चलना एक बड़ी उपलब्धि है, और हमने इस उपलब्धि को खास तरह से मनाने का निश्चय किया है। हिन्द-युग्म की इस प्रतियोगिता में लगभग हर आयु-वर्ग के हज़ारों कवियों और पाठकों ने भाग लिया है।

प्रतियोगिता के आयोजन के बिलकुल शुरूआत में इसका एकमात्र उद्देश्य कम्प्यूटर और इंटरनेट पर यूनिकोड (हिन्दी) के प्रयोग को प्रोत्साहित करना था। धीरे-धीरे जब इससे गंभीर और समकालीन लोग जुड़ने लगे, तो इसका रंग-रूप एक स्तरीय कविता प्रतियोगिता का हो गया। पिछले वर्ष से हिन्द-युग्म ने अपने यूनिकवियों को सामूहिक समारोह में सम्मानित करना शुरू किया, इससे इसकी गरिमा और भी अधिक मुखरित हुई।

निःसंदेह अब यह तो कहा ही जा सकता है कि यूनिकवि प्रतियोगिता ने बहुत से सम्भावनाशील कवियों की पहचान की और उनके लेखनकर्म को अपने सामर्थ्यानुसार प्रोत्साहित किया। लेकिन अपनी यूनियात्रा के 50वें पायदान पर आवश्यकता थोड़ा ठहरकर यह विचारने की है, कि हमने जिन रचनकारों में कभी सम्भावनाएँ देखी, वे अब कैसा लिख रहे हैं। हिन्दी-कविता में उनके समग्र योगदान को कितना आँका जा सकता है। मतलब यह समय पुनर्समीक्षा का है।

अतः 50वीं यूनिप्रतियोगिता को हम विशेष तरीके से मना रहे हैं। इसके माध्यम से हम कविता का एक नया सम्मान शुरू कर रहे हैं, जिसे हमने हिन्द-युग्म धूमिल सम्मान नाम दिया है।

इस प्रतियोगिता में कौन भाग ले सकेगा-

1) यूनिप्रतियोगिता के पहले से 49वें अंक तक वे शीर्ष 10 में चुने गये कवि। मतलब जिन कवियों की कविताओं को पहली से 49वीं युनिप्रतियोगिता के शीर्ष 10 कविताओं में कम से कम एक बार स्थान मिला हो।

शर्तेः-

1) प्रत्येक प्रतिभागी को अपनी श्रेष्ठतम 10 कविताएँ ईमेल करनी होगी। कोई कवि 10 से कम कविताएँ तो भेज सकता है, लेकिन 10 से अधिक कविताएँ नहीं भेज सकेगा। कवि स्वयं तय करे कि अब तक उसने कितनी अच्छी कविताएँ लिखी हैं।
2) कविता का अप्रकाशित होना अनिवार्य नहीं है।
3) कवि को अपनी कविताएँ ईमेल से ही भेजनी होगी। अपनी कविताएँ unikavita@hindyugm.com पर भेजें।
4) कविताएँ भेजने की अंतिम तिथि 30 जून 2011 है।
5) कविताओं के साथ अपना संक्षिप्त परिचय, चित्र, पता और फोन नं. इत्यादि भी भेजें।

चयन की विधिः

हमारे आकलन के अनुसार लगभग 200 कवियों द्वारा हमें 2000 कविताएँ प्राप्त होंगी। इन कविताओं का प्राथमिक आकलन हमारे निर्णायकों द्वारा किया जायेगा।

अंतिम चरण के निर्णायकों में कम से कम 200 कविताओं को देश के ख्यातिलब्ध कवियों/आलोचकों को शामिल किया जायेगा। अंतिम चरण के निर्णायकों के नाम जल्द ही तय कर लिये जायेंगे।

सम्मानः

1) किसी एक कवि को सर्वसम्मति से धूमिल सम्मान दिया जायेगा।

2) सम्मान स्वरूप प्रशस्ति-पत्र, सम्मान-प्रतीक और रु 11,000 की नगद राशि प्रदान की जायेगी।

3) इस सम्मानित होने वाले कवि के पास यदि एक कविता संग्रह के बराबर की स्तरीय कविताएँ होंगी तो उसका संकलन भी हिन्द-युग्म प्रकाशन से प्रकाशित होगा। यदि एक कवि की बजाय एक से अधिक कवियों की कविताओं में हमें अधिक स्तरीयता दिखती हैं तो एक सामूहिक कविता संकलन का प्रकाशन हिन्द-युग्म करेगा।

4) यह सम्मान अगस्त-सितम्बर 2011 में एक समारोह आयोजित करके प्रदान किया जायेगा। समारोह लखनऊ में आयोजित करने की योजना है।


अपीलः

सम्मान की राशि हिन्द-युग्म आपसी सहयोग से एकत्रित कर रहा है। यदि आप इस सम्मान को ज़ारी रखने में यकीन करते हैं तो कृपया हमें आर्थिक सहयोग दें। अधिक जानकारी के लिए hindyugm@gmail.com या 9873734046 पर संपर्क करें।

महत्त्वपूर्णः

जो कवि अभी तक हिन्द-युग्म की यूनिकवि प्रतियोगिता में शीर्ष 10 में नहीं आ सके हैं, वे कृपया इसमें भाग लेते रहें, यदि वे शीर्ष 10 में स्थान बनाने में सफल हो पाते हैं तो अगले हिन्द-युग्म धूमिल सम्मान में भाग लेने के योग्य होंगे।

नोटः-
पहले यह सम्मान पाण्डेय बेचन शर्मा 'उग्र' के नाम से आयोजित करने की सूचना प्रकाशित की गई थी, लेकिन कविता के लिए यह पुरस्कार एक कहानीकार (कुछ छिटपुट कविताएँ भी लिखीं) के नाम पर दिया जाना ज्यादा श्रेयस्कर नहीं है। इसलिए हमलोगों ने उस सूचना को तुरंत प्रभाव से हटा लिया। ऐसे प्रतिभागी जिनके पास पुरानी सूचना है, उसे कृपया इस विज्ञप्ति से अपडेट कर लें।

धूमिल मात्र अनुभूति के नहीं, विचार के भी कवि हैं। उनके यहाँ अनुभूतिपरकता और विचारशीलता, इतिहास और समझ, एक-दूसरे से घुले-मिले हैं और उनकी कविता केवल भावात्मक स्तर पर नहीं बल्कि बौद्धिक स्तर पर भी सक्रिय होती है।

धूमिल ऐसे युवा कवि हैं जो उत्तरदायी ढंग से अपनी भाषा और फॉर्म को संयोजित करते हैं।

धूमिल की दायित्व भावना का एक और पक्ष उनका स्त्री की भयावह लेकिन समकालीन रूढ़ि से मुक्त रहना है। मसलन, स्त्री को लेकर लिखी गई उनकी कविता उस औरत की बगल में लेट कर में किसी तरह का आत्मप्रदर्शन, जो इस ढंग से युवा कविताओं की लगभग एकमात्र चारित्रिक विशेषता है, नहीं है बल्कि एक ठोस मानव स्थिति की जटिल गहराइयों में खोज और टटोल है जिसमें दिखाऊ आत्महीनता के बजाय अपनी ऐसी पहचान है जिसे आत्म-साक्षात्कार कहा जा सकता है।

उत्तरदायी होने के साथ धूमिल में गहरा आत्मविश्वास भी है जो रचनात्मक उत्तेजना और समझ के घुले-मिले रहने से आता है और जिसके रहते वे रचनात्मक सामग्री का स्फूर्त लेकिन सार्थक नियंत्रण कर पाते हैं।

यह आत्मविश्वास उन अछूते विषयों के चुनाव में भी प्रकट होता है जो धूमिल अपनी कविताओं के लिए चुनते हैं। मोचीराम, राजकमल चौधरी के लिए, अकाल-दर्शन, गाँव, प्रौढ़ शिक्षा आदि कविताएँ, जैसा कि शीर्षकों से भी आभास मिलता है, युवा कविता के संदर्भ में एकदम ताजा बल्कि कभी-कभी तो अप्रत्याशित भी लगती है। इन विषयों में धूमिल जो काव्य-संसार बसाते हैं वह हाशिए की दुनिया नहीं बीच की दुनिया है। यह दुनिया जीवित और पहचाने जा सकनेवाले समकालीन मानव-चरित्रों की दुनिया है जो अपने ठोस रूप-रंगों और अपने चारित्रिक मुहावरों में धूमिल के यहाँ उजागर होती है।

-अशोक वाजपेयी

प्रचार-प्रसार में मदद की अपील

हम अपने पाठकों से इस सम्मान की विज्ञप्ति को अपने ब्लॉग, वेबसाइट पर लगाने का निवेदन करते हैं। नीचे से कोड कॉपी करें-

बैनर-1

इस बैनर का कोडः


बैनर-2

इस बैनर का कोडः



फेसबुक पर इस सम्मान-पृष्ठ को पसंद करें

गवाक्ष में इस बार अनामिका, धूमिल और राजेश तिवारी


मित्रो ,
नव वर्ष की ढेर सारी शुभकामनाएँ। मैं आशा करता हूँ कि इस वर्ष आप हिंद युग्म पर ढेरों अच्छी कविताएँ पढ़ पाएंगे। इस बार गवाक्ष में तीन कवियों की कविताएँ हैं। अनामिका स्त्री विमर्श में एक जाना माना नाम हैं। इनकी प्रमुख कृतियाँ हैं- गलत पते की चिट्ठी (कविता), बीजाक्षर (कविता), अनुष्टुप (कविता), अब भी वसंत को तुम्हारी जरूरत है (कविता)(2004), दूब-धान (कविता)(2007)। दूसरे हैं धूमिल जो किसी परिचय के मोहताज नहीं है संसद से सड़क तक और सुदामा पाण्डेय का प्रजातंत्र इनकी चर्चित पुस्तके हैं। राकेश तिवारी एकदम नए कवि हैं, नए कलेवर के साथ। 'माँ' इनकी एक ऐसी कविता है जो पुराने बिम्ब तोड़ती है और एक नया शिल्प रचती है।

नए साल में आपसे मुलाकात होगी कविता की नयी जमीन पर। आपकी प्रतिक्रिया हमारे लिए साहस का कार्य करेगी।

--मनीष मिश्र



मौसिया

वे बारिश में धूप की तरह आती हैं–
थोड़े समय के लिए और अचानक
हाथ के बुने स्वेटर, इंद्रधनुष, तिल के लड्डू
और सधोर की साड़ी लेकर
वे आती हैं झूला झुलाने
पहली मितली की ख़बर पाकर
और गर्भ सहलाकर
लेती हैं अन्तरिम रपट
गृहचक्र, बिस्तर और खुदरा उदासियों की।

झाड़ती हैं जाले, संभालती हैं बक्से
मेहनत से सुलझाती हैं भीतर तक उलझे बाल
कर देती हैं चोटी-पाटी
और डाँटती भी जाती हैं कि री पगली तू
किस धुन में रहती है
कि बालों की गाँठें भी तुझसे
ठीक से निकलती नहीं।

बालों के बहाने
वे गाँठें सुलझाती हैं जीवन की
करती हैं परिहास, सुनाती हैं किस्से
और फिर हँसती-हँसाती
दबी-सधी आवाज़ में बताती जाती हैं–
चटनी-अचार-मूंगबड़ियाँ और बेस्वाद संबंध
चटपटा बनाने के गुप्त मसाले और नुस्खे–
सारी उन तकलीफ़ों के जिन पर
ध्यान भी नहीं जाता औरों का।

आँखों के नीचे धीरे-धीरे
जिसके पसर जाते हैं साये
और गर्भ से रिसते हैं महीनों चुपचाप–
ख़ून के आँसू-से
चालीस के आसपास के अकेलेपन के उन
काले-कत्थई चकत्तों का
मौसियों के वैद्यक में
एक ही इलाज है–
हँसी और कालीपूजा
और पूरे मोहल्ले की अम्मागिरी।

बीसवीं शती की कूड़ागाड़ी
लेती गई खेत से कोड़कर अपने
जीवन की कुछ ज़रूरी चीजें–
जैसे मौसीपन, बुआपन, चाचीपंथी,
अम्मागिरी मग्न सारे भुवन की।

------अनामिका



धूमिल की चमचमाती कविताएँ

जब सडको में होता हूँ
बहसों में होता हूँ
रह रह चहकता हूँ

लेकिन हर बार वापस घर लौट कर
कमरे के अपने एकांत में
जूते से निकाले गए पावँ सा
महकता हूँ!
-----------------------------------------
क्या आजादी सिर्फ
तीन थके हुए रंगों का नाम है
जिसे एक पहिया ढोता है
या इसका कोई ख़ास मतलब होता है!
-----------------------------------------------
हम अपने सम्बन्धो में
इस तरह पिट चुके है
जैसे एक गलत मात्रा ने
शब्द को पीट दिया!
------------------------------------
घनी आबादी वाली
बस्तियों में
मकान की तलाश है
प्रेम।

धूमिल


माँ

घोसले में आई चिड़िया से
पूछा चूजो ने
माँ आकाश कितना बड़ा है ?
चूजो को अपने पंखो से ढकती
बोली चिड़िया
सो जाओ -इन पंखो से बड़ा नहीं है।

राजेश तिवारी