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दर्द-6


सज़ा होगी..
दर्द ने खुद कबूला है
अपना ज़ुर्म !
हां.. उसी ने मारी थी
खुशी को टक्कर
तब बड़ी स्पीड में थी
यादों की कार !
दर्द नशे में था
दिल की पुलिस ने
बरामद की है
उम्मीद की खाली बोतल !
बेशरम है दर्द..
कोई अफसोस नहीं उसे
मोहब्बत के जेल में बन्द
हंसता रहता है कम्बख्त !

तक़दीर के अस्पताल में
भर्ती है खुशी..
हसरतों का गुलदस्ता लेकर
मैं पहुंचा तो पाया
कोमा में है !
लड़ रही है मौत से..
वहीं पास में
कुर्सी पर बैठी मुस्कान
उदास थी
कहने लगी..
खुशी करती थी तुम्हे याद
पर तुम्हारा नम्बर
कहीं मिस हो गया था उससे !
उस दिन..
आंसुओं की दुकान पर
पूछ ही रही थी तुम्हारी पता
कि कमीने दर्द ने
मार दी टक्कर
और मुझसे लिपटकर
रो पड़ी मुस्कान !

तभी आया
वक़्त का डॉक्टर
देने लगा हिदायत
कि मत करो शोर..
फिर जांची
खुशी की धड़कन
और
अतीत का परहेज़ बता कर
लिख दी
ज़िन्दगी के परचे पर
समझौते की दवा !

दर्द-4


ज़िन्दगी एक वेश्या है
मोहब्बत के बदनाम मोहल्ले में
नाउम्मीदी के कोठे पर
अतीत का तकिया लगाकर
बिस्तर पर लेटी
हर रात..
राह तकती है दर्द की!
वो आता है
मुस्कुराहट के कम्बल में
खुद को दुनिया से छिपाता...
अधूरी हसरतों के फोडों से
भरा है उसका शरीर,
पके हुये बाल,
थुलथुला बदन,
चेहरे पर
झूठी कसमों की झुर्रियां
कुछ ज्यादा ही बताती हैं
उसकी उम्र!
समय से पहले ही
बूढा हो गया है दर्द!


रात को भूखा होता है दर्द...
आकर खाता है
सपनों की कुछ रोटियां
फिर आंसुओं का पानी पीकर
पेट पर हाथ फेरता है
और चढा देता है
चाहत की कुंडी..
बन्द कर देता है किवाड..
जिससे खुशियां
परेशान ना कर सकें उसे!

दर्द को निहारकर
मुस्कुराती है
ज़िन्दगी की वेश्या...
बन्द होता है मजबूरियों का बल्ब..
फिर रात भर
नोंचता है उसे दर्द
और सुबह
जाते जाते..
चुपचाप रख जाता है टेबल पर
यादों के चन्द सिक्के !


दर्द-3


उदास था दर्द
मैने पूछा तो कहने लगा
शाम को चलेंगे कहीं..
अफिस से सीधा ले गया
मुझे घने जंगल में
मैनें कहा..
भाई! जम जाऊँगा
जनवरी की सर्दी में
हंस पड़ा
फिर चुन लाया
यादों की दो-चार लकड़ियाँ
खूब तापी हमने आग..
भूख लगी तो निकाला उसने
नाकामियों का गुड़..
जो रात गहराई
तो वर्तमान की जेब से
बाहर आई अतीत की बोतल
फिर अधूरी हसरतों की शराब पीकर
रात भर नाचें हम!
कौआ उड़,तोता उड़ खेलते हुए
खूब मारा मैने दर्द को
वो हंसते हुए पिटता रहा
बड़ा खुश था अब दर्द..
अचानक कराह उठा
दर्द की दाढ में दर्द था!
कहने लगा
कोई पुरानी मुस्कान
फँस गयी है दाँतों में!
फिर जेब से निकाली
यथार्थ की तीली
और कुरेदता हुआ
सो गया चुपचाप..

दर्द


बुधिया और चाँद के बाद अब दर्द पर नयी श्रंखला की शुरुआत कर रहा हूँ पहले सा स्नेह अपेक्षित है...

दर्द-1

मेरा दर्द जब भला चंगा था
तो मैं नाकारा था
कुछ नहीं करने देता था मुझे !
देखो..
समय की धूल से
अस्थमा हो गया है दर्द को
अब दर्द जब खांसता है..
तो उसे देता हूं मैं
यादों की इनहेलर!
और बदले में
मांग लेता हूं उससे
एक प्यारी सी कविता..

दर्द-2

सुबह सोकर उठा
तो सिरहाने
कुर्सी पर बैठा
काफी पीता मिला दर्द
बोला- गुड मार्निंग !
शिष्टाचारवश मुझे भी करनी पडी
उसके अच्छे दिन की कामना
फिर पूछ लिया-कैसे हो?
तो ज़ोर से हंस पडा वो
फिर गम्भीर हो गया
और मेरा हाथ
अपने हाथों में लेकर
बडी कृतज्ञता से बोला-
अच्छा हूं...