ज़िन्दगी एक वेश्या है
मोहब्बत के बदनाम मोहल्ले में
नाउम्मीदी के कोठे पर
अतीत का तकिया लगाकर
बिस्तर पर लेटी
हर रात..
राह तकती है दर्द की!
वो आता है
मुस्कुराहट के कम्बल में
खुद को दुनिया से छिपाता...
अधूरी हसरतों के फोडों से
भरा है उसका शरीर,
पके हुये बाल,
थुलथुला बदन,
चेहरे पर
झूठी कसमों की झुर्रियां
कुछ ज्यादा ही बताती हैं
उसकी उम्र!
समय से पहले ही
बूढा हो गया है दर्द!
रात को भूखा होता है दर्द...
आकर खाता है
सपनों की कुछ रोटियां
फिर आंसुओं का पानी पीकर
पेट पर हाथ फेरता है
और चढा देता है
चाहत की कुंडी..
बन्द कर देता है किवाड..
जिससे खुशियां
परेशान ना कर सकें उसे!
दर्द को निहारकर
मुस्कुराती है
ज़िन्दगी की वेश्या...
बन्द होता है मजबूरियों का बल्ब..
फिर रात भर
नोंचता है उसे दर्द
और सुबह
जाते जाते..
चुपचाप रख जाता है टेबल पर
यादों के चन्द सिक्के !
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8 कविताप्रेमियों का कहना है :
क्या चरित्रीकरण है... वाह वाह
हर शब्द को बड़ी शिद्दत से सजाया है... कुछ ही शब्दों में उपन्यास लिख डाला...
साधुवाद...
रात को भूखा होता है दर्द...
आकर खाता है
सपनों की कुछ रोटियां
फिर आंसुओं का पानी पीकर
पेट पर हाथ फेरता है
और चढा देता है
चाहत की कुंडी..
बन्द कर देता है किवाड..
जिससे खुशियां
परेशान ना कर सकें उसे!
वाह बहुत सुन्दर।
bahut shandar chitran kiya hai .
दर्द को निहारकर
मुस्कुराती है
ज़िन्दगी की वेश्या...
बन्द होता है मजबूरियों का बल्ब..
फिर रात भर
नोंचता है उसे दर्द
और सुबह
जाते जाते..
चुपचाप रख जाता है टेबल पर
यादों के चन्द सिक्के ! budhiya k bad dard-4 padh kar k sach mein bahut achchha laga, bahut badhiyan likha hai ,isi tarah age bhi likhte rahna.
भाई , तुम हर बार इतनी सारी नई उपमाएँ लेकर आते हो कि हर बार मुझे तुम्हारी पिछली रचना नई रचना से कमतर लगने लगती है :) इसका मतलब है कि तुम्हारा ग्राफ ऊपर की ओर जा रहा है, जो बड़ा हीं शुभ संकेत है।
इस रचना की किस पंक्ति को उद्धृत करूँ, इसी सोच में हूँ। रचना की पहली पंक्ति हीं बाँध लेती है, और अंत तक पाठक को जकड़कर रखती है। दुनिया में अगर दर्द नाम की कोई मूर्त चीज होती तो निस्संदेह अभी तक तुम्हारी दुश्मन हो चुकी होती :P
बधाई स्वीकारो।
-विश्व दीपक
very gud vipul ,the language of your poems specialy this one is realy mature,and no can say that it is written by such a young poet,very nice keep it up.
shreya temle
विपुल भाई '
फिलहाल तो आप तनहा जी की टिप्पणी को मेरी भी टिप्पणी मान लें,,,,
इस से अच्छा कमेंट और क्या दूं,,,,,
tanha ke swar men mera bh swar hai.
आह....विपुल भाई, आपने तो क्या कहूँ...अलग ही बिंब उकेर डाले...
पहले पहल तो मैं समझ ही नहीं पाया की पढ़ क्या रहा हूँ...पर, पहले पैरा के बाद दिमाग़ की नसें हिलने लगी...लाजवाब भाई जी....
आलोक सिंह "साहिल"
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