उमेश पंत पिछले महीने ही हिन्द-युग्म से जुड़े हैं। इनकी एक रचना हमने पिछले महीने में प्रकाशित की थी। इस बार इनकी एक कविता शीर्ष १० में भी शुभार है। आज उसी को पढ़ते हैं।
पुरस्कृत कविता
कैसे हो मुखर
सम्वेदना का स्वर
समस्या है यही।
बसन्ती लहर भी
तूफान भी मैं हूं।
कतर दूं पर असम्भव के
मौत पर छाई हुई
मुस्कान भी मैं हूं।
मैं ही हूं ललाट पर
बिखरी हुई आभा
होंठ पर बैठी हुई
धारदार मयान भी मैं हूं।
कैसे हो बसर मुझमें समाया
विषमता का घर
समस्या है यही।
मैं तूर्य हूं, मैं सूर्य हूं
चन्द्रमा का शील हूं
मैं हूँ अपरिमित
बादलों से भरा गगन नील हूँ।
र्मैं जानता हूँ कौन हूँ
पर मौन हूँ।
मौन भी ऐसा न हो जो भंग
देखकर हर आदमी का तंग
यह जो रोशनी है
कर रही हर हादसे पर व्यंग्य।
सोख लेता हूं सभी कुछ शान्त सा
मैं भयाक्रत आक्रान्त सा।
चुप हूं सिमटकर एक कोने मैं
किसी मुरझे, मुरदे या क्लान्त सा।
नहीं जाता मर
जड़वत बनाता ज्वर
समस्या है यही।
प्रथम चरण मिला स्थान- ग्यारहवाँ
द्वितीय चरण मिला स्थान- नौवाँ
पुरस्कार- कवयित्री निर्मला कपिला के कविता-संग्रह 'सुबह से पहले' की एक प्रति
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2 कविताप्रेमियों का कहना है :
chhand n hone ke baad bhee man ko chhootee rachna.
मैं तूर्य हूं, मैं सूर्य हूं
चन्द्रमा का शील हूं
मैं हूँ अपरिमित
बादलों से भरा गगन नील हूँ।
र्मैं जानता हूँ कौन हूँ
पर मौन हूँ।
कविता के भाव अच्छे लगे
कृपया तूर्य शब्द का अर्थ बताईए
सुमित भारद्वाज
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