बुधिया और चाँद के बाद अब दर्द पर नयी श्रंखला की शुरुआत कर रहा हूँ पहले सा स्नेह अपेक्षित है...
दर्द-1
मेरा दर्द जब भला चंगा था
तो मैं नाकारा था
कुछ नहीं करने देता था मुझे !
देखो..
समय की धूल से
अस्थमा हो गया है दर्द को
अब दर्द जब खांसता है..
तो उसे देता हूं मैं
यादों की इनहेलर!
और बदले में
मांग लेता हूं उससे
एक प्यारी सी कविता..
दर्द-2
सुबह सोकर उठा
तो सिरहाने
कुर्सी पर बैठा
काफी पीता मिला दर्द
बोला- गुड मार्निंग !
शिष्टाचारवश मुझे भी करनी पडी
उसके अच्छे दिन की कामना
फिर पूछ लिया-कैसे हो?
तो ज़ोर से हंस पडा वो
फिर गम्भीर हो गया
और मेरा हाथ
अपने हाथों में लेकर
बडी कृतज्ञता से बोला-
अच्छा हूं...
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14 कविताप्रेमियों का कहना है :
आपके दर्द से दो चार हुआ .... ...साथ ही साथ अच्छा लेख पढने को मिला ...
अनिल कान्त
मेरा अपना जहान
दर्द पीडा पर आपकी छोटी छोटी कवितायें मन को छु गयी
और महादेवी जी की पंक्तियाँ याद आ रही है
तुमको पीडा में ढूंढा
तुममे ढूंढूंगी पीडा
पीडा मेरे मानस से भीगे पट सी लिपटी है
बधाई
तो ज़ोर से हंस पडा वो
फिर गम्भीर हो गया
और मेरा हाथ
अपने हाथों में लेकर
बडी कृतज्ञता से बोला-
अच्छा हूं...
in paktiyon k sath jo vyang k tour pr dard ki pida hai wahi kavita ki utkristta hai....
वाह!
दोनों लघुकविताएँ एक से बढकर एक हैं। दूसरी तुमने पहले हीं पढा दी थी इसलिए पहली ने मुझपर ज्यादा असर किया। वैसे दूसरी की अंतिम पंक्तियों में बहुत गहराई है।
तुम सफल हुए हो। बधाई स्वीकारो।
-विश्व दीपक
अब दर्द जब खांसता है..
तो उसे देता हूं मैं
यादों की इनहेलर!
और बदले में
मांग लेता हूं उससे
एक प्यारी सी कविता
यादें ,दर्द और कविता का एक
अनोखा साथ और संसार है
उम्दा रचना !!
दर्द और प्यारी सी कविता ...:)
बहुत अच्छी पंक्तियाँ ..:)
दूसरी कविता अच्छी लगी
दोनों कवितायें शानदार ....
दर्द कितने अपने की तरह मिल रहा है....है ना...?
दर्द जब हद से बढ जाता है तो पी लेते हैँ....
बहुत ही बढिया....
अस्थमा हो गया है दर्द को
अब दर्द जब खांसता है..
तो उसे देता हूं मैं
यादों की इनहेलर!
पता नही कैसे यादों के इन्हेलर से दर्द ठीक हो सकता है
शायद एक नई कविता में उतर आता है
कविता बहुत ही उम्दा है
काफी पीता मिला दर्द
बोला- गुड मार्निंग !
शिष्टाचारवश मुझे भी करनी पडी
उसके अच्छे दिन की कामना
फिर पूछ लिया-कैसे हो?
तो ज़ोर से हंस पडा वो
फिर गम्भीर हो गया
और मेरा हाथ
अपने हाथों में लेकर
बडी कृतज्ञता से बोला-
अच्छा हूं...
ajab itefaak hai ,aapke dard ko bhi coffe pasand hai coffee to hume bhi ................
baat kavita ki ho rahi hai ,naamuraad dard to hameshaa achchaa hi hota hai
ahahaahahhaahahahhahhhhhh
behad sambedansheel sabhi ke dilo ko choo rahi hai aapki kavita
dard ko bhi aub dard hone laga he..
kuch isi tarah ka ehsaas karati he tumahari ye kavita Vipul.Isi tarah likhte raho....bahut saari SHUBH KAAMNAAYE..
RUCHITA
भाई, तुमने तो जाने-अनजाने मेरा ही ज़िक्र कर दिया.
खेर, ख्याल अच्छे हैं. जताने की ज़रुरत कि कविता दिल से और जिंदगी के तजुर्बों से लिखी है.
दिनेश "दर्द",
उज्जैन
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