उदास था दर्द
मैने पूछा तो कहने लगा
शाम को चलेंगे कहीं..
अफिस से सीधा ले गया
मुझे घने जंगल में
मैनें कहा..
भाई! जम जाऊँगा
जनवरी की सर्दी में
हंस पड़ा
फिर चुन लाया
यादों की दो-चार लकड़ियाँ
खूब तापी हमने आग..
भूख लगी तो निकाला उसने
नाकामियों का गुड़..
जो रात गहराई
तो वर्तमान की जेब से
बाहर आई अतीत की बोतल
फिर अधूरी हसरतों की शराब पीकर
रात भर नाचें हम!
कौआ उड़,तोता उड़ खेलते हुए
खूब मारा मैने दर्द को
वो हंसते हुए पिटता रहा
बड़ा खुश था अब दर्द..
अचानक कराह उठा
दर्द की दाढ में दर्द था!
कहने लगा
कोई पुरानी मुस्कान
फँस गयी है दाँतों में!
फिर जेब से निकाली
यथार्थ की तीली
और कुरेदता हुआ
सो गया चुपचाप..
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13 कविताप्रेमियों का कहना है :
बहुत मंथन कराने वाली कविता है .......... कई जगह सोचने पर मजबूर किया............. अर्थ समझने के लिए प्रयास करना पड़ा
जब हम इस तरह के प्रतीक कविता में जोड़ते हैं तो काफी सावधान रहना पड़ता है
कई जगह बहुत ही अच्छा लगा अब कविता या अकविता की बात नहीं करूंगा .......... लोग नाराज़ हो जाते हैं
विपुल जी आपने जो विषय चुना है और जिस तरह से घटना क्रम को बाँधा है मुझे अच्छा लगा विशेष रूप से ये पंक्तियाँ :
अचानक कराह उठा
दर्द की दाढ में दर्द था!
कहने लगा
कोई पुरानी मुस्कान
फँस गयी है दाँतों में!
फिर जेब से निकाली
यथार्थ की तीली
और कुरेदता हुआ
सो गया चुपचाप..
अरुण मित्तल अद्भुत
कहने लगा
कोई पुरानी मुस्कान
फँस गयी है दाँतों में!
फिर जेब से निकाली
यथार्थ की तीली
और कुरेदता हुआ
सो गया चुपचाप..
वाह बहुत सुन्दर।
कोई पुरानी मुस्कान
फँस गयी है दाँतों में!
फिर जेब से निकाली
यथार्थ की तीली
और कुरेदता हुआ
सो गया चुपचाप॥
सुंदर पंक्तियाँ। आपकी कविता बहुत अच्छी लगी।
वाह,
दर्द को पीटना और उसका हँसी के साथ पिटना
बहुत बढिया , ऐसी कविताए बहुत ही बढिया होती है, पाठक एक बार पढना शुरु कर दे तो पूरी पढे बिना नही रह पाता
दर्द की कोख से निकली एक बेहतरीन नज़्म...
दिल को छूने वाली मार्मिक अभिव्यक्ति......
क्या विपुल भाई ,,,अच्छा भला कमेन्ट लिखा था...के वो आवाज की प्रतियोगिता वाला गाना याद आ गया,,,,,जल्दी के चक्कर में कमेन्ट ही डिलीट हो गया,,,,, अब उतनी मेहनत नहीं करूंगा ,,,बहुत अछि लिखी है,,बस इतना ही कहूंगा,,,,,
इन्हें koi कुछ भी कहे अरुण जी,,,,पर इनका लिखा मुझे हमेशा ही भाता है,,,,
मनु जी,
ये क्या किया आपने मेरा नाम अपने कमेन्ट में प्रयोग कर लिया ............ भाई अब आप पर भी ये आरोप लग सकता है की आपने मेरे कंधे पर रखकर बन्दूक चलाई है ......
हा .........हा.... हा.... हा.... हा.... हा ......
मजाक कर रहा हूँ ......
दरअसल इस प्रकार के प्रतीक लेकर एक सार्थक कविता लिखना बहुत मश्किल काम है जो विपुल जी ने बखूबी किया है ..........
अब मैं विनम्र होने की कोशिश कर रहा हूँ ........ क्योंकि आजकल तो एक शेर हैं ना बड़ा फिट होता है :
"आईने को सामने क्या कर लिया
एक दुश्मन और पैदा कर लिया"
इसलिए बकार में आइना बनने की कोशिश नहीं करता .............
कोई पुरानी मुस्कान
फँस गयी है दाँतों में!
फिर जेब से निकाली
यथार्थ की तीली
और कुरेदता हुआ
सो गया चुपचाप..
भई वाह विपुल जी! दर्द से कुछ हमने भी
गुफ़्तगू इस तरह की : ( न० २ )
http://www.kritya.in/06/hn/poetry_at_our_time5.html
दर्द की कहानी,
दर्द की जुबानी!
भई विपुल,
अभी तक तुमने "बुधिया" और "चाँद" श्रृंखला में हीं कमाल किया था अब तो दर्द को भी पूरे दर्द से जीने लगे हो और वो टीस, वो चुभन हमें भी महसूस होती है।
इस सफलता के लिए बधाई स्वीकारो।
-विश्व दीपक
"वेदना मैं वो शक्ति होती है जो दृष्टि देती है -अगेय (शेखर एक जीवनी से )
सच ही भैया ... बहुत देख लिया दिखा दिया अपनी पंक्तियों से आपने ...बधाई
सादर
दिव्य प्रकाश दुबे
mun udas ho yeh suna tha, durd udas ho gaya yeh tumne bata diya, log dil se kaam karte hain, aur tum mun se, kya shandaar soch hain apki. Kauva Ud, Tota Ud, bhais ud, yeh shub sunkar bachpan lauta diya, esa hum vaki main apna khali samay baantne ke liye khelte they, ab apki kavitaon main jamin judi hain, apse esi hi aur adhik kavitaon ki asha rakhta hoon
apka
Hanfee Sir IPSwale Bhaijaan
Assistant Registrar, 9926804161
shaaaaaaaaaandaaaaaaaaaaaaaaaarrr
bahut khub vipul ji dard ko apna dost bena liya app na.............per attit ke khushnuma yado se vertman muskurata bhi hia.
shreya..............
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