सुधीर गुप्ता ’चक्र’ भी पिछले कुछ माहों से यूनिप्रतियोगिता से जुड़े हैं और इनकी पिछली कविता अक्टूबर माह मे पांचवें पायदान पर रही थी। दिसंबर माह मे इनकी प्रस्तुत कविता ग्यारहवें स्थान पर रही है।
सच
तुम्हें
सच को स्वीकारना ही होगा
किसी के प्रति
आँख फेर कर
तुम
क्या साबित करना चाहते हो
सच का केंद्रीयकरण
अकारण
उछाल नहीं लेता
हर बार
हिले होंठ अर्थहीन हों
जरूरी नहीं
सच अल्पसंख्यक हो सकता है
पर हरिजन नहीं
सच वाचाल तो हो सकता है
पर मूक नहीं
हठी भी हो सकता है पर
झूठ की तरह अडियल नहीं
सच सूक्ष्म हो सकता है पर
झूठ के फेन सा
विस्तार नहीं ले सकता
सच केवल दृष्टि पर विश्वास नहीं करता
तुम्हारे धर्म और जाति से भी
उसे कोई मतलब नहीं
तुम्हारी निर्धनता से क्या लेना-देना उसे
तुम्हारी आशिक मिजाजी भी पसंद नहीं करता वह
वो तो आकर्षण की परिभाषा भी नहीं जानता
इन सबसे हटकर
सच केवल
राजा हरिश्चंद्र और
धर्मराज युधिष्ठर का अनुयायी है
सच गुलामी नहीं करता झूठ की
क्योंकि
जानता है वह
यदि झूठ का विस्तार होगा तो
बहस होगी
बहस होगी तो
दूरियाँ बढेगी
दूरियाँ बढेगी तो
संधि-विच्छेद होगा
इसलिए
सच की मौलिकता सच ही है
सच रामायण सा सरल है
सच संस्कारी भी है
चंद्रशेखर आजाद से
आजाद सच को
कभी कैनवास पर उतारो तो जानें
वैभवशाली सच
कभी मुरझा नहीं सकता
यातना से मोड़ लोगे झूठ को अपनी ओर
लेकिन सद्दाम हुसैन सा जिद्दी सच
झुक नहीं सकता
सच एकदम नंगा होता है
इसलिए
आदमी को भी नंगा करता है
कहते हैं
नंगों से तो
खुदा भी डरता है
कितना भी बुरा हो सच
पर खूनी नहीं हो सकता
कोई तो समर्थक होगा
सच का
तभी तो
इतिहास के सच की
आन-बान और शान वाली गाथाएँ
उकेरी हुई हैं आज भी भित्ति चित्रों में
सच प्रेयसी का आलिंगन है
सच तरूणी की अँगड़ाई है
सच तो सच है
आखिर
कितना दबाओगे सच को
शीत सा उभर ही आएगा
सच केवल वर्तमान ही नहीं
भूतकाल और भविष्यकाल में भी विजयी है
सच
झूठ की तरह दोहराया नहीं जाता
बस एक बार ही
सच कहा जाता है और
निर्णय हो जाता है
झूठ को मिटाने के लिए
तमाम एन्टी वायरस
प्रयोग किए जाते हैं
पर सच
वायरस रहित है
अनगिनत अंकों वाली
संख्याओं से घिरा दशमलव
सच ही तो है
क्योंकि
बढती जाती हैं
संख्या दर संख्या
फिर भी
अडिग है अपने स्थान पर
दशमलव वाला सच और
कितने सच जानोगे
तब मानोगे सच को
अच्छा हो यदि
अपनी सोच को बदलो तुम और
सच को
जेब में डालकर घूमने की जगह
अपने संस्कारों के साथ
मस्तिष्क में
करीने से सजाकर रखो
और सच
केवल सच कहो।
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5 कविताप्रेमियों का कहना है :
प्रेरणामय उद्बोधन।
"सच को/ जेब में डालकर घूमने की जगह/ अपने संस्कारों के साथ/ मस्तिष्क में/ करीने से सजाकर रखो/ केवल सच कहो। " आपकी यह बात सोचने को विवश करती है. बधाई स्वीकारें - अवनीश सिंह चौहान
सुंदर रचना, बधाई
सत्यम शिवम् सुन्दरम ...
बेहतरीन प्रस्तुति ।
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