हिंद-युग्म के पाठकों के लिये सुधीर गुप्ता ’चक्र’ का नाम नया नही है। उनकी एक कविता पिछले माह ग्यारहवें पायदान पर रही थी। बदलती जरूरतों के बीच पुनर्परिभाषित होते मानवीय संबंधों पर तंज कसती उनकी प्रस्तुत कविता जनवरी माह मे नवें स्थान पर रही है।
पुरस्कृत कविता: वसीयत
जिंदगी भर
पिता ने
कवच बनकर
बेटे को सहेजा
लेकिन पुत्र
बस यही सोचता रहा
कि कब लिखी जाएगी
वसीयत मेरे नाम
और कोसता रहा
जन्मदाता पिता को
पुत्र ने
युवावस्था में जिद की
और बालहठ को दोहरा कर
फैल गया धुँए सा
लेकिन
संयमी पिता ने
गौतम बुद्ध की तरह शांत रहकर
अस्वीकृति व्यक्त की
और
कुछ देर शांत रहने के बाद
हाथ से रेत की तरह फिसलते
बेटे को देखकर
पिता ने कहा
मेरी वसीयत के लिए
अभी तुम्हें करना होगा
अंतहीन इंतजार
कहते हुए
पिता की आँखों में था
भविष्य के प्रति डर
और
पुत्र की आँखों का मर चुका था पानी
भूल गया था वह
पिता द्वारा दिए गए
संस्कारों की लम्बी श्रृंखला
यह जानते हुए भी
कि यूरिया खाद और
परमाणु युगों की संतानों का भविष्य
अनिश्चित है
फिर भी
वसीयत का लालची पुत्र राजू
नहीं जानना चाहता
अच्छे आचार-विचार, व्यवहार
और संस्कारों को मर्यादा में रखना
राजू
क्यों नालायक हो गए हो तुम
भूल गए
पिता ने तुम्हारे आँसुओं को
हर बार ओक में लिया है
और जमीन पर नहीं गिरने दिया
अनमोल समझकर
पिता के भविष्य हो तुम
तुम्हारी वसीयती दृष्टि ने
पिता की सम्भावनाओं को
पंगु बना दिया है
तुमने
मर्यादित दीवार हटाकर
पिता को कोष्ठक में बंद कर दिया
तुम्हारी संकरी सोच से
कई-कई रात
आँसुओं से मुँह धोया है उसने
तुम्हारी वस्त्रहीन इच्छाओं के आगे
लाचार पिता
संख्याओं के बीच घिरे
दशमलव की तरह
घिर जाता है
और महसूस करता है स्वयं को
बंद आयताकार में
बिंदु सा अकेला
जहाँ बंद है रास्ता निकास का
चेहरे के भाव से
देखी जा सकती है पिता के अंदर
मीलों लम्बी उदासी
और आँखों में धुंधलापन
तुम्हारी हर अपेक्षा
उसके गले में कफ सी अटक चुकी है
तुम पिता के लिए
एक हसीन सपना थे
जिसकी उंगली पकड़कर
जिंदगी को
जीतना चाहता था वह
पर
तुम्हारी असमय ढेरों इच्छाओं से
छलनी हो चुका है वह
और रिस रहा है लगातार
नल के नीचे रखी
छेद वाली बाल्टी की तरह
आज तुम
बहुत खुश हो
मैं समझ गया
तुम्हारी इच्छाओं की बेडियों से
जकड़ा पिता
आज हार गया तुमसे
और
लिख दी वसीयत तुम्हारे नाम
अब तुम
निश्चिंत होकर
देख सकते हो बेहिसाब हसीन सपने।
_______________________________________
पुरस्कार: हिंद-युग्म की ओर से पुस्तकें।
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
9 कविताप्रेमियों का कहना है :
'राजू' को लक्षित कर के बहुत ही संवेदन शील मुद्दे पर बहुत ही गहरे चोट करती हुई मार्मिक प्रस्तुति है सुधीर जी की| एक ऐसी कविता जिसे लंबे समय तक याद किया जा सके|
बहुत सुंदर कविता है पिता पुत्र के संबंधों में बढ़ते स्वार्थ को बहुत ही सुंदर ढंग से दर्शाया है आपने। पर लंबाई इतनी ज्यादा हो गई कि पढ़ते पढ़ते ऊब सी होने लगी। पर सुंदर कविता के लिए बधाई
bahut khoob
बहुत खूब कहा है आपने ...।
राजू भूल जाता है कि उसे भी एक दिन वसीयत लिखने को बाध्य होना पड़ेगा...
छीजते संबंधों मर्यादाओं का प्रभावी चित्रांकन किया है आपने शब्दों द्वारा...
प्रभावशाली व मार्मिक रचना...
bahot sundar rachna.
Youre so cool! I dont suppose Ive read anything like this before. So nice to find somebody with some original thoughts on this subject. realy thank you for starting this up. this website is something that is needed on the web, someone with a little originality. useful job for bringing something new to the internet!
Vrcollector.com
Information
Click Here
I was very pleased to find this web-site. I wanted to thanks for your time for this wonderful read!! I definitely enjoying every little bit of it and I have you bookmarked to check out new stuff you blog post.
110designs.com
Information
Click Here
Visit Web
There are some interesting points in time in this article but I don’t know if I see all of them center to heart. There is some validity but I will take hold opinion until I look into it further. Good article, thanks and we want more! Added to FeedBurner as well
Soundcloud.com
Information
Click Here
Visit Web
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)