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Wednesday, December 29, 2010

कैसा मधुर सुप्रभात था!


प्रतियोगिता की ग्यारहवीं कविता के रचनाकार सुधांशु शेखर पांडेय ’प्रफ़ुल्ल’ की हिंद-युग्म पर यह प्रथम कविता है। सुधांशु जी का जन्म २ जून १९७३ में उत्तर प्रदेश के आज़मगढ़ जनपद के ग्राम बाबु की खजुरी में हुआ। आरंभिक शिक्षा आज़मगढ़ में प्राप्त की। १९९४ में राष्ट्रीय औद्योगिकी संस्थान दुर्गापुर से यांत्रिक अभियांत्रिकी में स्नातक की उपाधि प्राप्त की।तत्पश्चात कोलकाता, दिल्ली तथा गुडगाँव में विभिन्न कंपनियों में सेवा की। पिछले २ वर्षों से नॉर्वे में कार्यरत हैं। इन्हे कविता लिखने का शौक बचपन से ही रहा। कालेज की वार्षिक पत्रिका के हिंदी विभाग का ३ वर्षों तक संपादन किया।
प्रस्तुत कविता हमारे रोजमर्रा के जीवन के बिडम्बनापूर्ण यथार्थ को तीखे कटाक्ष के साथ पेश करती है।

कविता: कैसा मधुर सुप्रभात था!

कैसा मधुर सुप्रभात था!

गांव का लाला अभी था उनींदा,
हाथ बांधें सेवकों की टोलियाँ
कल न हरखू आ सका था काम पर,
लाठियां थी अब बनी हमजोलियां
चीख कर बीमार हरखू गिर पड़ा,
देखकर हँस पड़ा उन्माद था।
कैसा मधुर सुप्रभात था!

पास के पुल पर खिलाती बंदरों को
एक अधुना रोटियाँ थी चाव से
पास में था क्षुधित बालक रो रहा
रिस गया था खून मन के घाव से
एक टुकड़ा दे दिया दुत्कार कर
और फेरा श्वान का लघु गात था।
कैसा मधुर सुप्रभात था!

वस्तुओं के दाम महँगे हो रहे,
तर्क नेता ने दिया हड़ताल का,
बंद में रिक्शा न रामू चला पाया
ताप से बालक उधर बेहाल था;
कर गया बालक पलायन लोक से
फटा लावा सम कलेजा मात का।
कैसा मधुर सुप्रभात था!

धन चर रहा था कल तृषित के खेत को,
फटकार कुछ शायद वहाँ उसको पड़ी.
खून बुधवा का चुकाता आज ऋण,
नग्न रधिया विवश चौरस्ते खड़ी.
मनु स्वयं क्रंदन कर रहे,
हा! चीरहरण बलात् था!
कैसा मधुर सुप्रभात था!

घुमाते सेवक बने हर क्लांत के,
हर एक दुःख पर आँख आँसू रो पड़ी,
नारी रक्षा पर दिया भाषण सुबह
रात में विधवा सुहागन हो गई।
हा ! सभ्यता के दर्प पर
कैसा कुठाराघात था !
कैसा मधुर सुप्रभात था!


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10 कविताप्रेमियों का कहना है :

प्रवीण पाण्डेय का कहना है कि -

प्रभात का पहला विचार दिन की दिशा निर्धारित कर देता है। पर क्या हो जब रात का भार प्रभात बदल दे। बहुत सुन्दर कविता।

गीता पंडित का कहना है कि -

घुमाते सेवक बने हर क्लांत के,
हर एक दुःख पर आँख आँसू रो पड़ी,
नारी रक्षा पर दिया भाषण सुबह
रात में विधवा सुहागन हो गई।
हा ! सभ्यता के दर्प पर
कैसा कुठाराघात था !
कैसा मधुर सुप्रभात था!


संवेदनाएं प्रस्फुटित करती एक सुंदर भावपूर्ण रचना....बधाई कवि को...


शुभ कामनाएँ...
गीता पंडित

अजय कुमार झा का कहना है कि -

प्रभात का पहला विचार ..सच में न सिर्फ़ दिन को बल्कि जीवन की दिशा को बदल देता है ।

मेरा नया ठिकाना

www.navincchaturvedi.blogspot.com का कहना है कि -

भाई सुधांशु शेखर पांडेय ’प्रफ़ुल्ल’ बधाई स्वीकार करें|

Yesjee79 का कहना है कि -

sachmuch tarif k kabil hain apki rachnain... kuchh kah kar inhe chhota nahi karunga...

rachana का कहना है कि -

वस्तुओं के दाम महँगे हो रहे,
तर्क नेता ने दिया हड़ताल का,
बंद में रिक्शा न रामू चला पाया
ताप से बालक उधर बेहाल था;
कर गया बालक पलायन लोक से
फटा लावा सम कलेजा मात का।
कैसा मधुर सुप्रभात था!
bahut sahi likha hai aapne .
badhai
rachana

सदा का कहना है कि -

बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति ।

matajisharma का कहना है कि -
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matajisharma का कहना है कि -
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matajisharma का कहना है कि -

भारत कि विभिन्न दशाओ का बहुत उचित शब्दो में आपने समावेश किया है........बहुत सुंदर

राहुल शर्मा

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