प्रतियोगिता की तेरहवीं कविता के रचनाकार आकर्षण कुमार गिरि हैं। 15 फ़रवरी 1978 को जन्मे आकर्षण ने भारतीय जनसंचार संस्थान से अंग्रेजी पत्रकारिता मे स्नातकोत्तर डिप्लोमा प्राप्त किया है और वर्तमान मे ई टी वी बिहार/झारखंड के लिये कार्य कर रहे हैं। पटना के रहने वाले आकर्षण की यह हिंद-युग्म पर पहली प्रकाशित कविता है।
पता: वाया वी पी गिरि
शेओपुरी, अनीसाबाद
पटना-800002
दूरभाष: 09703204340
कविता: खामोश मिलन
आज
जबकि ये तय है
कि हमें बिछड़ जाना है
हमारे और तुम्हारे रास्ते
अलग अलग हो चुके हैं
तो
ये सोचना जरूरी है
कि हम गलत थे
या तुम?
मैं सोचता हूँ
और सोचता चला जाता हूँ...
कहीं मैं तो गलत नहीं था
शायद !
क्योंकि तुम तो गलत हो नहीं सकते
मुझे लगता है
मैं ही गलत था
मैं ये भी जानता हूँ
कि
तुम भी यही सोच रही हो
कि कहीं तुम तो गलत नहीं थी?
सच मानो-
रास्ते आज भले ही अलग-अलग हो गए हों
पर
न मैं गलत था
और न ही तुम।
फिर ये जुदाई क्यों?
ये प्रश्न बार बार कौंध जाता है
मेरे जेहन में .
मैं सोचने लगता हूँ...
जमीं आसमां नहीं मिलते
( विज्ञान में यही पढ़ा है
पर विज्ञान कुछ भी कहे )
जमीं आसमां मिलते हैं
एक छोर से मिलते हुए
वे जुदा होते हैं
और
फिर मिल जाते हैं
सच्चाई यही है कि
चारो दिशाओं में
वे एक हैं.
बीच में हम जैसे लोग हैं
जो ये समझते हैं कि
जमीं आसमां एक नहीं हैं.
करोड़ों तारों की तपिश
अपने कलेजे में रखने वाला आसमां
और
अरबों लातों की मार सहने वाली धरती
एक हैं।
फिर हम तुम जुदा कैसे?
हम मिलकर चले थे,
आज जुदा हैं..
पर आगे फिर मिलेंगे।
हाँ !
उसके बाद जुदाई नहीं होगी
क्योंकि
जितना दर्द तुमने अपने कलेजे में छुपा कर रखा है
उतना ही शायद मैंने भी।
और दर्द सीने में दबाये रखने वाले
एक होकर रहते हैं
वो भी ऐसे
जैसे दूर क्षितिज पर
जमीं और आसमां
जहाँ से वे अलग नहीं होते।
मैं तुम्हें रुकने को नहीं कहूँगा
और न ही मिलने को कहूँगा
पर हम फिर मिलेंगे
उसी ख़ामोशी से जैसे पहले मिले थे।
हाँ !
ये मिलन खामोश होगा
क्योंकि
जिनके कलेजे में दर्द होता है
उनकी जुबां नहीं हिलती
बिलकुल मेरी तरह....
बिलकुल तुम्हारी तरह.....
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10 कविताप्रेमियों का कहना है :
विरह का दर्द , बहुत मार्मिक शब्दों मे लिखी है भावमय कविता। शुभकामनायें।
सुन्दर रचना है...बधाई एवं शुभकामनाएं!
कविता आप सबों को पसंद आई, धन्यवाद. हिंदयुग्म को भी शुक्रिया.
KHAMOSH MILAN KO PADHKAR KEY BOARD PAR MERE HAATH THARTHARA RAHE HAIN... BILKUL TUMHARI TARAH... TUMHARI TARAH. GOOD.. VERY GOOD.. EXCELLENT.
दर्द जब शिद्दत को पहुंचती है तो दवा बन जाती है। प्यार जब चरम पर जाता है मूक बन जाता है मौन की टीस घनी होती है और दिल सब सोच-समझकर भी सिर्फ दर्शक की मुद्रा में जा बैठता है। कभी-कभी तो ऐसा भी होता है, हम जिससे प्यार करते हैं,उसे ये बताने में ही ज़िन्दगी कम पड़ जाती है और हम ताज़िन्दगी उसको बता या जता देने की कोशिश और उधेड़बुन में ही लगे रह जाते हैं। प्यार तो है। कभी भी दोनों जान समझकर भी चुप रहते हैं। ठीक नदिया के प्यार की नायक-नायिका की तरह-- जो दिल में है वो बताने से क्या फायदा... खामोश मिलन कविता की लयबद्ध गति कहां से कहां ले गई और मैं प्यार के फलसफे में जा उलझा। क़ायदे से कहूं तो खामोश मिलन प्लूटोनिक लव है। जहां शरीर नहीं.., गहरे तक पानी से भरी फिर भी प्यासी आत्मा की रुदाद है। जिसमें विरह का दर्द तो है लेकिन उससे ज्यादा प्रेम की वो गर्मी है.., जो कभी चिंगारी से भड़की थी.., लेकिन कभी बुझ नहीं पाई.., समय के साथ बढ़ती गई.., बढ़ती गई और अब सुबह का सूरज बन... फिर फिर मन को वहीं लौट आने का अनकहा आमंत्रण दे रही है.. जहां से जीवन शुरू हुआ था...।
Kavita pure lay me likhi gayi hai, main Aakarshan jee se esi tarah ki aur kavita ki aasha karta hu.
--Rakesh Pandey
jab milan khamosh ho jay to fir labo se kahan awaj aati hai
सुन्दर शब्दों के साथ बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
“ये मिलन खामोश होगा
क्योंकि
जिनके कलेजे में दर्द होता है
उनकी जुबां नहीं हिलती
बिलकुल मेरी तरह....
बिलकुल तुम्हारी तरह.....” सुन्दर अभिव्यक्ति. बहुत बहुत साधुवाद! अश्विनी रॉय
दोस्तों, कविता आपलोगों को पसंद आयी, बहुत बहुत धन्यवाद. दुआ कीजिये कि आगे भी मैं अच्छी रचनाओं को आप सबों के सामने पेश कर सकूं. मेरी कुछ कवितायें और ग़ज़लें मेरी ब्लॉग पर प्रकाशित हैं. आप इन्हें aakarshangiri.blogspot.com पर पढ़ सकते हैं....
धन्यवाद
आकर्षण
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