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Tuesday, September 28, 2010

ये ग़ज़ल तेरे जैसी नहीं है


प्रतियोगिता की आठवीं कविता के रचनाकार विनीत अग्रवाल की यह हिंद-युग्म पर प्रथम कविता है। विधि में स्नातक विनीत जी अपने बारे मे कहते हैं- "उत्तरप्रदेश के एक छोटे से कसबे चंदौसी में पला-बढ़ा और शिक्षित हुआ...जहाँ कुछ और था या नहीं पर साहित्यिक अभिरुचि जरुर थी। कुंवर बेचैन और सुरेन्द्र मोहन मिश्र, रवि उप्रेती जैसे कवि इसी कस्बे की गलियों से निकल कर हिंदी साहित्य में छा गये। उन्ही को पढ़ते सुनते हुए लिखने तो लगा पर सिर्फ डायरी और मित्र मंडली तक सीमित रहा। इन्टरनेट के प्रचलन से दायरा थोड़ा विस्तृत हो गया। कुछ सीखने, कुछ कहने की जो कसक थी वो फिर जाग्रत हो गयी। तकनीक का अधिक ज्ञान नहीं है बस मन की भावनाओं को शब्द भर दे देता हूँ। मित्रों के उकसाने पर पहली बार अपनी ग़ज़ल को हिंद-युग्म जैसे किसी मंच तक लाने का साहस कर दिया।
पता: विनोद काम्प्लेक्स
१, डिस्पेंसरी रोड
चंदौसी, मुरादाबाद
उत्तर प्रदेश
दूरभाष: 9319330281

पुरस्कृत गज़ल: ये ग़ज़ल तेरे जैसी नहीं है

क्यूँ ये लगता है, मेरी नहीं है
ये ग़ज़ल तेरे जैसी नहीं है ।

हाँ ! नहीं है, नहीं है, नहीं है
अब तो तेरी कमी भी नहीं है।

दे दिए हैं खुदा ने कई गम
दिल को फिर भी तसल्ली नहीं है।

हो ना हो तू खुदा ही है शायद
तेरी भी हमसे बनती नहीं है।

चख के देखी थी सच्चाई हमने
बू है ऐसी कि जाती नहीं है ।

सांप में भी जहर है बराबर
बस शकल ही हमारी नहीं है ।

फुरसतों को भी फुरसत कहाँ है
कौन है, जिसको जल्दी नहीं है ।

देखने ज़ख़्मी सूरज को अब तो
धूप भी घर पे आती नहीं है।

लायी होगी दवा आज माँ की
उसके कानों में बाली नहीं है ।

ना करे वो मुहब्बत किसी से
बेबसी जिस के बस की नहीं है ।

ऐ खुदा ! तू खुदा क्यूँ बना है
जब तेरी कुछ भी चलती नहीं है।

पेट ना भर सकेगी, पता है
ये ग़ज़ल ऐसी वैसी नहीं है।
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पुरस्कार -  विचार और संस्कृति की चर्चित पत्रिका समयांतर की एक वर्ष की निःशुल्क सदस्यता |

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16 कविताप्रेमियों का कहना है :

निर्मला कपिला का कहना है कि -

दिल तो कहता है कि पूरी गज़ल कोट करूँ कि मुझे कौन से अशार बहुत अच्छे लगे क्यों कि हर शे नायाब लाजवाब है फिर भी ये शेर कुछ नया पन ,कुछ खास लिये हुये हैं

चख के देखी थी सच्चाई हमने
बू है ऐसी कि जाती नहीं है ।

सांप में भी जहर है बराबर
बस शकल ही हमारी नहीं है ।

फुरसतों को भी फुरसत कहाँ है
कौन है, जिसको जल्दी नहीं है ।


लायी होगी दवा आज माँ की
उसके कानों में बाली नहीं है ।
नवीन अह्ग्रवाल जी को बधाई। आपका धन्यवाद इस खूबसूरत गज़ल को पढवाने के लिये।

M VERMA का कहना है कि -

फुरसतों को भी फुरसत कहाँ है
कौन है, जिसको जल्दी नहीं है ।
भागमभाग की जिन्दगी में फुर्सत किसे है. बहुत सुन्दर गज़ल. सभी शेर .. वाह के काबिल

rachana का कहना है कि -

लायी होगी दवा आज माँ की
उसके कानों में बाली नहीं है ।
bahut khoob
चख के देखी थी सच्चाई हमने
बू है ऐसी कि जाती नहीं है ।

सांप में भी जहर है बराबर
बस शकल ही हमारी नहीं है ।
kya kahne
badhai
rachana

महेन्‍द्र वर्मा का कहना है कि -

ऐ खुदा तू खु़दा क्यूं बना है
जब तेरी कुछ भी चलती नहीं है।
आप तो बहुत अच्छा लिखते हैं...सभी शे‘र अच्छे हैं...बधाई।

दिपाली "आब" का कहना है कि -
This comment has been removed by the author.
दिपाली "आब" का कहना है कि -

nayaab gazal kahi hai vineet ji, competition ki ab tak ki entries mein ye best lagi. Badhai

शरद कोकास का कहना है कि -

अच्छी गज़ल

उपेन्द्र नाथ का कहना है कि -

har nazm bahoot hi sunder...ekdam lazbab

vineet का कहना है कि -

hind yugm parivar va sudhi pathak gan..aap sabhi ka hrday se shukriya

दीपक 'मशाल' का कहना है कि -

निर्मला कपिला जी की टिप्पणी से सहमत हूँ उसको मेरी भी टिप्पणी माना जाए.. विनीत जी आपकी पहली रचना ने ही आपका कायल बना दिया... बहुत ही लाजवाब.. उम्मीद है अब आपकी और भी गजलों से सामना होता रहेगा..

Anonymous का कहना है कि -

लायी होगी दवा आज माँ की
उसके कानों में बाली नहीं है ।
क्या बात है बहुत ही सुन्दर गज़ल है...हर शेर का अपना ही अन्दाज है...बहुत-बहुत बधाई!!

अश्विनी कुमार रॉय Ashwani Kumar Roy का कहना है कि -

पढ़ ही ली मैंने आपकी कविता जैसे कैसे
जानता हूँ ये ग़ज़ल ऐसी वैसी नहीं है! इतनी अच्छी कविता के लिए साधुवाद. अश्विनी कुमार रॉय

Pritishi का कहना है कि -

Bahut khoob ..

क्यूँ ये लगता है, मेरी नहीं है
ये ग़ज़ल तेरे जैसी नहीं है ।

Aur bhi kayo sher pasand aaye.
Achchi prastuti.

Manjari Shukla का कहना है कि -

बेहतरीन

सदा का कहना है कि -

चख के देखी थी सच्चाई हमने
बू है ऐसी कि जाती नहीं है ।

यूं तो पूरी रचना ही बेहतरीन है, यह पंक्तियां बहुत ही सुन्‍दर बन पड़ी हैं, बधाई के साथ शुभकामनायें ।

Anonymous का कहना है कि -

हो ना हो तू खुदा ही है शायद
तेरी भी हमसे बनती नहीं है।

waaah kya baat kahi hai

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