प्रतियोगिता की नौवीं कविता मनोज वर्मा 'मनु' की है। मनोज पहली बार हिन्द-युग्म में शिरकत कर रहे हैं। मनोज वर्मा 'मनु' की रचनाएँ तमाम पत्र-पत्रिकाओं और कविता-संग्रहों में प्रकाशित होती रही हैं। बीएससी तक की पढ़ाई पूरी कर चुके मनु गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, दोहे, कहानी, संस्मरण इत्यादि लिखते हैं।
पुरस्कृत कविता- ग़ज़ल
आपकी याद चली आई थी कल शाम के बाद।
और फिर हो गई एक ताज़ा ग़ज़ल शाम के बाद।।
मेरी बेख़्वाब निग़ाहों की अज़ीयत मत पूछ।
अपना पहलू मेरे पहलू से बदल शाम के बाद।।
मसअला मेज पे ये सोचके छोड़ आया हूँ।
अब न निकला तो निकल आयेगा हल शाम के बाद।।
तू है सूरज तुझे मालूम कहाँ रात के गम।
तू किसी रोज मेरे घर में निकल शाम के बाद।।
छोड़ उन ख़ानाबदोशों का तज़्करा कैसा
जो तेरा शह्र ही देते हैं बदल शाम के बाद।।
कोई कांटा भी तो हो सकता है इनमें पिन्हा।
अपने पैरों से न फूलों को मसल शाम के बाद।।
पुरस्कार: विचार और संस्कृति की पत्रिका ’समयांतर’ की एक वर्ष की निःशुल्क सदस्यता।
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24 कविताप्रेमियों का कहना है :
तू है सूरज तुझे मालूम कहाँ रात के गम।
तू किसी रोज मेरे घर में निकल शाम के बाद।।
मनोज जी के इस एक शेर ने ही दीवाना बना दिया....हिंदयुग्म पर स्वागत...
तू है सूरज तुझे मालूम कहाँ रात के गम।
तू किसी रोज मेरे घर में निकल शाम के बाद।।
बहुत खूब ... शानदार शेर
सभी शेर खूबसूरत
matle mein misra e saani se aek hata dijiye
मसअला मेज पे ये सोचके छोड़
आया हूँ।
bahut shaandar misra kaha yeh
अब न निकला तो निकल आयेगा हल शाम
के बाद।।
aur ek shaandaar sher
तू है सूरज तुझे मालूम कहाँ रात के गम।
तू किसी रोज मेरे घर में निकल शाम
के बाद।।
outstanding..
Bahut khoob.
badhiya ghazal hai sahab .hind yugm par swagat ..aur badhai....bas zara sa pech ad gaya hai ..wo ye hai ki jis sher ki tareef sabse jyada ho rahi hai ..usme maien kisi aur hee ghazal me kisi aur ke nam se4 padh ahai ...
shayar ka naam ..farhat abbas shaah...
ye raha link ...
http://www.urdupoetry.com/abbas04.html
neeche se doosra sher hai ....
..
दिल तक उतर गई...आपकी लाईने क्या काम कर गईं
मसअला मेज पे ये सोचके छोड़ आया हूँ।
अब न निकला तो निकल आयेगा हल शाम के बाद।
ise main befikri to nahi kahunga..
shandaar...
badhaai
तू है सूरज तुझे मालूम कहाँ रात के गम।
तू किसी रोज मेरे घर में निकल शाम के बाद।।
Bahut khubsurat sher...bahut shandaar gazal hai !
आतिश जी का शुक्रिया...मनोज जी, जवाब दीजिए, ये शेर किसका है...
फरहत साहब की प्रोफाइल देखी है मैंने.....पुराने शायर मालूम पड़ते हैं....कुछ तो गड़बड़ है, नियंत्रक महोदय क्या कर रहे हैं.....हिंदयुग्म पर ऐसा पहली बार तो हुआ नहीं है....
तू किसी रोज मेरे घर में निकल शाम के बाद।।
क्या बात है ...जैसे कई कहानियां कह दी एक ही पंक्ति में
शब्दों का समां ऐसा बंधा कि एक एक लाइन ने दिल को छू लिया लेकिन जिस बारे में आतिश जी ने बात की है उसका स्पष्टीकरण देना बहुत जरुरी है।
शब्दों का समां ऐसा बंधा कि एक एक लाइन ने दिल को छू लिया लेकिन जिस बारे में आतिश जी ने बात की है उसका स्पष्टीकरण देना बहुत जरुरी है।
तू है सूरज तुझे मालूम कहाँ रात के गम।
तू किसी रोज मेरे घर में निकल शाम के बाद।।
बहुत ही सुन्दर शब्द रचना ।
bhut hi accha likha ha
itefaaq lag rahaa hai hamein...
do she'r ek jaise honaa.....
मसअला मेज पे ये सोचके छोड़ आया हूँ
अब न निकला तो निकल आयेगा हल शाम के बाद
ऐसे शे'र का रचियता हमें नहीं लगता कि जान बूझकर कहीं से कोई शे'र उठाएगा...
मनोज वर्मा 'मनु' को अब तक जवाब दे देना चाहिए था , बल्कि स्वप्निल के लिखने के तुरंत बाद आ जाना चाहिए था ।
नेट पर साहित्यिक सामग्री को चौराहे पर पड़ी लावारिस वस्तु मानते हुए हथियाने के कई मा'मले अभी सामने आए हैं ।
- राजेन्द्र स्वर्णकार
Dear,
Atish JI , thanks to introduse me about Mr. Abbas, I had read those lines and I was realy very surpraised ,
And feel that unforchunetly that particular sher is same,
(ye such h ki mene abbas sahab ko abhi tak nhi pada tha, lekinis she`r ka ilham unhe phele hua islye is she`r pr unka huk hota h.)
kintu meri Is molik gajal me kai matle or kai she`r or bhi hn.
jese:-
"kr to aae hn mrasim ki pahal sham ke bad, dekhna ye h ki kya hal sham ke bad.
" tu nahi h to baharon me kasis keya ma'ne, kon dekhega ye ronak be'mahal sham ke bad.
" ek lamha bhi mira gham jo tu mehsus kare, ho na paegi tujhe rat sehel sham ke bad.
" tu h suraj teri fitrat se m bakif hu magar, tu bhi jata h behral pighal sham ke bad........ etc.
jabab me deri ka karan bhai ke navjat bete ka 4-5 dino se delhi me hospitalized hona raha.
aapi ki mohabbaton ka sukriya,
Dear,
Atish JI , thanks to introduse me about Mr. Abbas, I had read those lines and I was realy very surpraised ,
And feel that unforchunetly that particular sher is same,
(ye such h ki mene abbas sahab ko abhi tak nhi pada tha, lekinis she`r ka ilham unhe phele hua islye is she`r pr unka huk hota h.)
kintu meri Is molik gajal me kai matle or kai she`r or bhi hn.
jese:-
"kr to aae hn mrasim ki pahal sham ke bad, dekhna ye h ki niklega kya hal sham ke bad.
" tu nahi h to baharon me kasis keya ma'ne, kon dekhega ye ronak be'mahal sham ke bad.
" ek lamha bhi mira gham jo tu mehsus kare, ho na paegi tujhe rat sehel sham ke bad.
" tu h suraj teri fitrat se m bakif hu magar, tu bhi jata h behrhal pighal sham ke bad........ etc.
jabab me deri ka karan bhai ke navjat bete ka 4-5 dino se delhi me hospitalized hona raha.
aapi ki mohabbaton ka sukriya,
दिल तक उतर गई...आपकी लाईने
बहुत ही सुन्दर शब्द रचना
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badhiya ghazal hai sahab .hind yugm par swagat ..aur badhai....bas zara sa pech ad gaya hai ..wo ye hai ki jis sher ki tareef sabse jyada ho rahi hai ..usme maien kisi aur hee ghazal me kisi aur ke nam se4 padh ahai ...
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