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Sunday, April 25, 2010

नदी कभी नहीं आएगी


2010 माह की यूनिकवि प्रतियोगिता की सातवीं कविता के रचनाकार गोपाल दत्त देवतल्ला उत्तराखंड के रहवासी हैं। मूलतः एक कवि हैं। प्रकृति प्रेमी गोपाल ये मानते हैं कि मनुष्य स्वयं प्रकृति की एक बहुत सुन्दर रचना है। ये प्रकृति को पढ़ते हैं, बार-बार पढ़ते हैं और हर बार कुछ नया पाते हैं। इनका मानना है कि सदियों के लिखे ग्रंथों में भी यह रचना अधूरी है। आज कुछ नया मिलता तो कल कुछ और नया। लिखने का एक अंतहीन सिलसिला चलता रहता है। प्रकृति का हर पल सृजन की प्रेरणा देता है कि एक बेहतर समाज के निर्माण के लिए साहित्य सृजन आवश्यक है।


पुरस्कृत कविताः आँचल में नदी

नदी की चाह में
पहाड़ों से उतरते हुए
लोग आएंगे नदी तक

नदी होती जायगी दूर
लोगों की पकड़ से बाहर
धरती के आँचल में

लोग यूँ ही सदियाँ
गुजार देंगे
नदी की प्रतीक्षा में
तपस्वी की तरह
एक पैर पर खड़े-खड़े

नदी कभी नहीं आएगी
धरती के आँचल से

नदी के बदले में सबकुछ
देने को तैयार है धरती

प्रेमिका/पत्नी
पुत्र
धन/बैभव
स्वर्ग की अप्सराएँ

लेकिन कहती है
नहीं मिलेगी नदी


पुरस्कार- विचार और संस्कृति की मासिक पत्रिका 'समयांतर' की ओर से पुस्तक/पुस्तकें।

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6 कविताप्रेमियों का कहना है :

M VERMA का कहना है कि -

नदी के बदले में सबकुछ
देने को तैयार है धरती
जीवन भी भला कोई देता है
सुन्दर रचना

अपूर्व का कहना है कि -

वाह, जितनी अच्छी लगी कविता उतनी ही अच्छी लगीं भूमिका की पंक्तियाँ..
’प्रकृति का हर पल सृजन की प्रेरणा देता है कि एक बेहतर समाज के निर्माण के लिए साहित्य सृजन आवश्यक है।’

कितनी शाश्वत बात!..सच कुछ नया सीखने-समझने को मिला..

Asha Joglekar का कहना है कि -

बहुत ही सुंदर । यदि नदी को इन्सान लील जायेगा तो धरती नही देगी नदी फिर कितनी ही तपस्या करे ।

दीपक 'मशाल' का कहना है कि -

प्रकृति ईश्वर के सबसे खूबसूरत उपहारों में से एक.. और उस पर लिखी गई ये खूबसूरत कविता वाह..

Unknown का कहना है कि -

प्रकृति पर सुन्दर रचना, बहुत बहुत बधाई
हम सभी को मिल कर प्रकृति , नदी नालों , बन, उपवन , झील, सागर, पेड़, पौधों आदि को बचाने का मन से सकारात्मक प्रयास करना चाहिए
धन्यवाद
विमल कुमार हेडा

स्वप्निल तिवारी का कहना है कि -

nadiyon ke sath yahi hota raha jo aaj kal ho raha hai to sachmuch nadi nahi aayegi ..

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