देवेश पाण्डेय हिन्द-युग्म से जुड़े ऐसे कम लोगों में से हैं जो चीन में रहकर हिन्दी रचनाकर्म में सक्रिय हैं। देवेश पाण्डेय की एक कविता जनवरी 2010 में प्रकाशित हुई है। आज हम इनकी दूसरी कविता प्रकाशित कर रहे हैं, जिसने मार्च 2009 माह की प्रतियोगिता में 13वाँ स्थान बनाया है।
पुरस्कृत कविताः मनगढ़ का मन
पैसठ लोग एक पुण्यतिथि के उपलक्ष में
आयोजित एक भंडारे में
दीवाल गिरने से हुई भाग-दौड़ में
कुचलकर दबकर, मर गए,
मंदिर प्रबंधन ने कहा है कि
दुर्घटना परिसर से बाहर हुई है
लिहाजा मंदिर जिम्मेदार नहीं है
समय जिम्मेदार है, काल जिम्मेदार है
और जिसे इस घटना की नैतिक जिम्मेदारी लेनी थी
वो दानवीर “कृपालु्“ मोह माया से दूर
किसी कोने में बैठा, भजन पद गा रहा था
मथुरा में भंडारे की योजना बना रहा था
इस घटना से
मनगढ का मन बहुत व्यथित है
और सोच रहा है
शायद कृपालुओं के पास
आध्यात्मिक शक्ति हो होती है
पर आत्मिक शक्ति और नैतिक साहस नहीं
तभी तो–
दिल्ली के इच्छाधारी बाबा
लड़कियों की इच्छा से "धंधा" करवाते हैं
कौन, कब, किसके साथ सोयेगी
इसका शेडडूल बनाते है
मीठी वाणी में रविशंकर
आर्ट आफ लिविंग का पाठ पढाते हैं।
और, देश के सारे श्री श्री, ज्ञानी, ध्यानी
संगम में पहले नहाने के लिए लड़ जाते है
और "अखाड़ा" कहलाते हैं।
"सम्भोग से समाधि की ओर"
लिखने वाले रजनीश
समाधि से सम्भोग की ओर जाते हैं
दुनिया पर आध्यात्म का नशा
चढ़ाने से पहले
अपने उपर थैलियम आजमाते हैं
और दिन भर ब्रह्मचर्य पर प्रवचन देने वाले
नित-आनंद , नित्यानंद
शिष्या को शैया तक ले आते हैं
और अपनी अनैतिकता को
प्राइवेशी का जामा पहनाते है।
हे! आध्यात्म का क्रेश-कोर्स चलने वाले संतो
एक बात कहूँ–
तुमने "आस्था" के जरिये
बहुतों की आस्था डगमगाई है
भक्ति विश्वास और प्रेम बेचकर
करोड़ों की सम्पति बनाई है
चाहो तो करोड़ों, अरबों और ले लो
पर कृपा करके अब
ये आनाचार बंद करो
हमारी आत्मा का दुराचार बंद करो
दुराचार बंद करो।
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12 कविताप्रेमियों का कहना है :
चाहो तो करोड़ों, अरबों और ले लो
पर कृपा करके अब
ये आनाचार बंद करो
हमारी आत्मा का दुराचार बंद करो
दुराचार बंद करो।
तुमने "आस्था" के जरिये
बहुतों की आस्था डगमगाई है
आस्था थी ही कब इनसब में ये तो अनास्था के पुतले है हमी हैं जो इन्हें आस्थावान मान बैठे हैं
सुन्दर रचना
ravishanker aur rajnish jaise vichar darshiyo ko usi chasni mein paka dena jisme nityanand jaise dhongi pak rahe hai, muh kadwa ler deta hai.
yeh neer cheer ko alag kerne jaisa nahi hai , anter saaf dikta hai.
kavi ne vishay sahi utaya par nyay nahi hua.. ravishanker aur rajnish mein ik vichaar hai jis per ik poora yug ik poora jeevan jee sakta hai.
vishay achha hai ,rachana bahut sarthak hai per rajneesh or ravishanker ji ko is pankti me nahi khada ker na chahiye wo ek shawach vichar dhara se pavahit hai...
ये विरोध के स्वर मुझे अच्छे लगे
Dear Devesh,
Tumhari Kavita yahan dekh kar behadd khushi huye...Im Proud of u.Meri Dua hai ki tumhari sabhi rachnayen esi tarah Puraskrit hoti rahen...! God Bless You...!
Di
भक्ति विश्वास और प्रेम बेचकर
करोड़ों की सम्पति बनाई है
चाहो तो करोड़ों, अरबों और ले लो
पर कृपा करके अब
ये आनाचार बंद करो
धर्म के नाम पर जनता को गुमराह करने वालों पर सार्थक कविता, बहुत बहुत बधाई , धन्यवाद
विमल कुमार हेडा
विद्रोही स्वर अच्छा है पर सभी संतो को एक ही झाड़ू से बुहारा गया है ।
topic accha uthaya hai aapne, latest hai.. Par kuch logo ke karan aap sabhi santo ko bura nahi keh sakte.. Khair.. Ek aur khaas baat, aap is rachna ko kavita nahi keh sakte..
heeyy achha likha hai ..par yanha do nazariye hai ki
1. sahi hai ki gadabad hai
2. kuch nahi se kuch to sahi hai
abhi tumhe aur gahra sochane ki zaroorat hai dost
ravi shankar ji aur rajneessh ji kaa naam line ke pahle tumhe unhe jaan lena chaiye dost
Baki sab sahi hai Devesh ji.............. ham apki bhavnaon ka samman karte hain .....lekin RAJNEESH JI aur RAVI SHANKAR JI ko kuch kahne se pehle, unko samajhna jaruri hai....... Hindu Yugm ke saathiyon se anurodh hai ki kripya in lines ko delete karein.
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