परिचय और चित्र के अभाव में हम फरवरी माह की यूनिकवि प्रतियोगिता की तीसरी कविता प्रकाशित नहीं कर सके थे। इस कविता के रचयिता आशुतोष कुमार आशुतोष माधव के नाम से कविताएँ लिखते हैं। 1 अप्रैल 1983 को वाराणसी में जन्मे आशुतोष वाराणसी हिन्दू विश्वविद्यालय से 'आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र के प्रदेय का अनुशीलन' विषय पर पीएचडी कर रहे हैं। कवि की छोटी कक्षाओं से ही हिन्दी में विशेष रुचि रही। कवि ने 2006 में स्नाकोत्तर में सर्वोच्च अंक (83॰1 प्रतिशत) लाकर बीएचयू से स्वर्ण-पदक प्राप्त किया। अखिल भारतीय नवोदित साहित्यकार परिषद् की पत्रिका- ‘हिन्दी नवसृजन’ का सम्पादन एवं प्रकाशन के अतिरिक्त आशुतोष बहुत से शोधकार्यों और लेखन में सक्रिय हैं।
पुरस्कृत कविताः अथातो स्नोवा
बलवान समय
आज उस समाज को जी रहा है
जहाँ,
जीवन की सम्भावनाएँ/स्पृहाएँ
नाश्ते की तश्तरी में उतर रही हैं
सजाती हैं खाने के थाल,
जहाँ,
मोतियाबिन्द के मरीज- एक आत्मीय बुजुर्ग को
जन्मदिन पर
छोटे फाण्ट की किताबें
गिफ़्ट करने का रिवाज है.
जहाँ,
भाषा, विवेक, करुणा वगैरह
कला की कापी में इस्तेमाल किए जा सकने वाली
कोई चीज हैं और
बीएसपी*, अभी भी बुनियादी मुद्दा है.
जहाँ,
अध्यापक, प्रश्नाकुलता की पौध को
रौंदने वाला उद्भ्रांत जीव है और पाठशालाएँ दुःस्वप्न
(हाँ मिड-डे-मील की बात दीगर है).
जहाँ,
प्रोफेसर को लिखते-पढ़ते देख
होती है ठीक वैसी ही हैरानी जैसे
मीडियाकर के लिए एक घटनाविहीन दिन, जैसे
एक पोस्टकार्ड का मिलना.
जहाँ,
बूढ़े स्त्रीचिन्तक-इंटलेक्चुअल्स के गटर से निकली
नारीवादी बहसों का महाविस्तार
पहुँचता है-माला डी या फिर आई-पिल तक.
और जहाँ,
आदमी को सूँघकर
तौली जाती है उसकी सृजनधर्मिता
चमड़ी का गोरा होना रखता है मायने
बनता है छप सकने की वजह.
ऐसे जन्तु-जगत में
स्नोवा बार्नो की पर्देदारी;
अस्ति-नास्ति, उसका आदि-मध्य-अवसान!
जैसे हो इस सरल व्याकरण का कोई असहज अपवाद!!
आखिर क्यों मचती है इतनी
ऊभ-चूभ
आसन्नप्रसवा के अन्तर्मन की सी.
चिन्ता मत करो आस्तिको!
मुझे पता है कि
बलवान समय दर्ज कर लेता है
ऐसी हलचलें भी
चुपचाप.
लेकिन,
स्नोवा आई लव यू का विरहगीत गाने वालो
जवाब दो
कि तुम पर मोनालिसा हँस क्यों रही है
लगातार.
(* बिजली, सड़क, पानी)
पुरस्कार- विचार और संस्कृति की मासिक पत्रिका 'समयांतर' की ओर से पुस्तक/पुस्तकें।
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10 कविताप्रेमियों का कहना है :
प्रिये आशुतोष ,
आपकी कविता आज के समाज की सोच और दीवालियेपन को झकझोर कर रख देगी , ऐसा मेरा विश्वास है .
शुभकामनाएं . आपकी लेखनी और सशक्त हो .
बलवान समय.. आह! क्या शब्द प्रयोग किया है!
जैसे कोई हिंसक पशु -झिंझोड़ कर रख देता है अपने शिकार को... फाड़ देता है टुकडों में... वैसे ही आक्रोश में डूबे इस कलम ने आज के भौतिकावादी समाज की सोंच को झिंझोड़ कर रख दिया है।
..आखिर क्यों मचती है इतनी
ऊभ-चूभ
आसन्नप्रसवा के अन्तर्मन की सी-
--लेखन शैली का यह कसाव मंत्रमुग्ध कर देता है।
--बधाई।
मोतियाबिन्द के मरीज- एक आत्मीय बुजुर्ग को
जन्मदिन पर
छोटे फाण्ट की किताबें
गिफ़्ट करने का रिवाज है.
बूढ़े स्त्रीचिन्तक-इंटलेक्चुअल्स के गटर से निकली
नारीवादी बहसों का महाविस्तार
पहुँचता है-माला डी या फिर आई-पिल तक.
वाह...कविता में कुछ नया पढ़ाने के लिए बधाई....
मोतियाबिन्द के मरीज- एक आत्मीय बुजुर्ग को
जन्मदिन पर
छोटे फाण्ट की किताबें
गिफ़्ट करने का रिवाज है.
बूढ़े स्त्रीचिन्तक-इंटलेक्चुअल्स के गटर से निकली
नारीवादी बहसों का महाविस्तार
पहुँचता है-माला डी या फिर आई-पिल तक.
वाह...कविता में कुछ नया पढ़ाने के लिए बधाई....
एक समाज के तौर पर हम अक्सर ऐसे रहस्यों की खोज मे रहते हैं..जो हमें हमारे रोजमर्रा के जीवन की बोरियत भरी मुश्किलों और परेशानियों से कुछ वक्त को दूर कर सके..हमारा मीडिया हमारी इस सस्ते थ्रिल की अशमनीय प्यास अच्छे से जानता और भुनाता है..आपकी यह कविता मिस्ट्री क्रियेट करने और फिर उसको हल करने की हमारी इसी प्रवृत्ति पर निशाना साधती है..और बताती है कि साहित्यिक-वर्ग भी उससे अछूता नही है..
अच्छे व निरंतर लेखन के लिये हमारी शुभकामना..हिंद-युग्म पर आपको और पढ़ने की आकांक्षा के साथ..
आशुतोष जी कुछ कहती है आपकी यह बेहतरीन रचनाएँ..समाज के कई चेहरे के दर्शन करती हुई इस रचना और रचना कार को नमन करता हूँ...आप में दम है ज़रूर अपनी लेखनी से हिन्दी साहित्य को रोशन करेंगे....शुभकामनाएँ..
स्नोवा बार्नो हिन्दी साहित्य में एक अप्रिय प्रसंग है.माधव की कविता हिन्दी कविता संसार के मठाधीशों को बेनकाब करती है.वास्तव में नारीवादी बहसों का खोखला महाविस्तार दो टांगों के बीच सिमट कर रह गया है.बूढ़े संपादकाचार्य चमड़ी के रंग को छपने की लायकियत मान रहे हैं.कुल मिलाकर आशुतोष के कवि मन ने इसे बखूबी समझा और अभिव्यक्त किया है.कविता पढ़कर मुझे ऐसा लगा जैसे जो कुछ मैं कभी सोचा करती थी बस उसी को किसी की कलम ने बयान कर दिया है.
मेरी बधाई.
bhai..meri trf se bahoot sari hardik badhaiyna,apki kavita ne to dil loot liya mera.apne apni kavita k dwara samaj aur sahitya k bich k dwand ko jis trh se pradarsit kiya hai,wah nischit roop se prasansniy hai.....asha krta hoon aage hamme aur bhi acchi kavitaye apke k dwara, padane ko milengi....
ashutosh tiwari
Ashutosh
Aapke liye aur apki is shandaarkavita keliye jo kai staron pe nayi hai sirf ek shabd
ADBHUT
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