अब हम शीर्ष 10 कविताओं के बाद की कविताओं की बात करते हैं। 11वीं कवि दिगम्बर नासवा की है। फरीदाबाद, हरयाणा के रहने वाले 48 वर्षीय दिगम्बर नासवा पिछले 10 वर्षों से संयुक्त अरब अमीरात में कार्यरत हैं। बचपन से गीत, संगीत, लिखने का शौक था, जो कॉलेज आते-आते जुनून में बदल गया। पिछले कुछ वर्षों से अपने ब्लॉग पर लिखते हैं।
पुरस्कृत कविताः शब्द कथा
शब्दकोश से निकले
कुछ शब्द
बूढ़े बरगद के नीचे
बतियाने लगे
इक-दूजे को अपना
दुखड़ा सुनाने लगे
इंसानियत बोली
मैं तो बस
किस्से कहानियों में ही पलती हूँ
हाँ कभी-कभी
नेताओं के भाषणों में भी मिलती हूँ
लोगों से अब नही मेरा संबंध
दुर्लभ प्रजाति की तरह
मैं भी लुप्त हो जाऊँगी
शब्दकोश के पन्नों में
हमेशा के लिए सो जाऊँगी
तभी करुणा के रोने की आवाज़ आई
सिसकते-सिसकते उसने ये बात बताई
पहले तो हर दिल पर मैं करती थी राज
क्या कहूँ
बच्चों के दिल में भी नहीं रही आज
इतने में दया, सम्मान और लज्जा भी बोले
जबसे जमाने की बदली है चाल
हमारा भी है यही हाल
धीरे-धीरे चाहत ने भी दिल खोला
प्रेम, प्रीत, प्रणय स्नेह
ऐसे कई शब्दों की तरफ से बोला
यूँ तो हर दिल में हम रहते हैं
मतलब नज़र आए तो
झरने से बहते हैं
स्वार्थ की आड़ में
अक्सर हमारा प्रयोग होता है
ऐसे हालात देख कर
दिल बहुत रोता है
तभी चुपचाप बैठे स्वाभिमान ने हुंकारा
पौरुष, हिम्मत और जोश को पुकारा
सब की आँखों में आ गये आँसू
मिल कर अपने अस्तित्व को धितकारा
तभी कायरता ने दी सलाह
बोली काट दो अपने-अपने पंख
नही तो देर-सवेर सब मर जाओगे
शब्दकोश की वीथियों में
नज़र भी नही आओगे
इतने में गुंडागर्दी और मक्कारी मुस्कुराए
शोरशराबे के साथ बीच सभा में आए
बोले हमारे देव झूठ का है ज़माना
तुम शब्दकोश से बाहर मत आना
इंसानों के बीच हमारा है बोलबाला
वो देखो सत्य का मुँह काला
ये सुनते ही इंसानियत घबराई
करुणा के दिल में दहशत छाई
चाहत ने गुहार लगाई
स्वाभिमान ने टाँग उठाई
सब की आत्मा
शब्दकोश में जा समाई
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
8 कविताप्रेमियों का कहना है :
वैसे तो टिप्पणियों में नासवा साहब से बतियाते ही रहते है, मगर यह अलग सी उनसे सम्बंधित पोस्ट पढ़कर अच्छा लगा !
इंसानियत बोली
मैं तो बस
किस्से कहानियों में ही पलती हूँ
सही है इंसानियत अब अतीत हो गयी है
बहुत सुन्दर और अलग मिज़ाज़ की रचना
पहले तो हर दिल पर मैं करती थी राज
क्या कहूँ
बच्चों के दिल में भी नहीं रही आज ....
क्या बात कह डाली है आपने....!!
ये सुनते ही इंसानियत घबराई
करुणा के दिल में दहशत छाई
चाहत ने गुहार लगाई
स्वाभिमान ने टाँग उठाई
सब की आत्मा
शब्दकोश में जा समाई
................
बहुत मार्मिक..
पहले तो हर दिल पर मैं करती थी राज
क्या कहूँ
बच्चों के दिल में भी नहीं रही आज
ye aap ne sach likha hai .
मतलब नज़र आए तो
झरने से बहते हैं
स्वार्थ की आड़ में
अक्सर हमारा प्रयोग होता है
sahi kaha aap ne
aap ko badhai ho
saader
rachana
इंसानियत बोली
मैं तो बस
किस्से कहानियों में ही पलती हूँ
हाँ कभी-कभी
नेताओं के भाषणों में भी मिलती
पहले तो हर दिल पर मैं करती थी राज
क्या कहूँ
बच्चों के दिल में भी नहीं रही आज
मतलब नज़र आए तो
झरने से बहते हैं
स्वार्थ की आड़ में
अक्सर हमारा प्रयोग होता है
बहुत सुंदर रचना है
बोले हमारे देव झूठ का है ज़माना
तुम शब्दकोश से बाहर मत आना
इंसानों के बीच हमारा है बोलबाला
वो देखो सत्य का मुँह काला
ये सुनते ही इंसानियत घबराई
बहुत ही सुन्दर कविता है नासवा जी बहुत-बहुत बधाई!
नासवा जी को हिंद-युग्म पर पढ़ना सुखद रहा..शब्दों की भावनाओं को पकड़ने मे तो आप उस्ताद ही हैं..शब्दकोश मे करीने से सजाये गये शब्द कुछ अक्षरों के संघटन मात्र नही होते..हर शब्द के साथ उसको पहचान देने वाली भावनाएं जुड़ी होती हैं..अक्सर जिनका सम्मान करने मे हम चूक जाते हैं..भावप्रवण कविता!
भलीभाँति परिचित है नासवा जी से इनकी ग़ज़ल या गीत सब कुछ बेजोड़ सामाजिक सरोकार की बातें लिए दिल को छू कर निकलती है...नासवा जी बहुत बहुत बधाई ...यह रचना भी बस पहले की ही तरह....लाज़वाब..
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