यूनिकवि प्रतियोगिता के जनवरी 2010 अंक की दसवीं कविता की रचनाकारा अनुपम अनुपम अपूर्व, अनुपम मोंगा और अनुपम मेहता नामों में से किसी एक नाम को इस्तेमाल करती हैं। सिरसा(हरियाणा) में जन्मीं 35 वर्षीय अनुपम ने कुरुक्षेत्र यूनीवर्सिटी से 1996 में अंग्रेजी में स्नातकोतर, हिमाचल प्रदेश यूनिवर्सिटी से बी.एड. और चौ. देवीलाल युनिवर्सिटी से एम .फिल॰ कर चुकी हैं। एम एल एस एम कॉलेज सुंदरनगर (हिमाचल प्रदेश), मुम्बई के सी.एम.के. कॉलेज व चौ. देवी लाल यूनिवर्सिटी सिरसा में बतौर प्रवक्ता अध्यापन कर चुकीं अनुपम इन दिनों पूर्ण कालिक लेखन व गृहसंचालन कर रही हैं। लिखने पढने का शौक हमेशा से ही रहा। प्रकाशित करवाने में अधिक रुचि नहीं रही। बीच-बीच में स्थानीय पत्र-पत्रिकाओं में कविताएँ और गजलें प्रकाशित हुईं तो सिरसा के मशहूर ग़ज़लकारों यथा डॉ. जी. डी. चौधरी व डॉ. राज कुमार निजात आदि का प्रोत्साहन व सहयोग मिला। पहला कविता संग्रह प्रकाशित करवाने के लिए तैयार है "ग़ज़ल के साथ साथ"(ग़ज़ल संग्रह), शब्द शब्द आक्रोश"(कविता संग्रह), जर्जर कश्ती(पत्रिका)आदि में कविताएँ प्रकाशित। कभी-कभी पत्रिका "चम्पक" में भी बाल कविताएँ प्रकाशित। सी.ए.पति की व्यस्तता व तबादले, बच्चों की जिम्मेदारियों के चलते कैरिएर को प्राथमिकता नहीं दी। अब मुंबई में रिहाइश है व स्थानीय स्कूल में अध्यापिका बनने की कोशिश में हैं।
पुरस्कृत कविता: नयी सदी की औरत
अब मैं वो पेड़ नहीं बन सकती
कि तुम पत्थर मारो
और मैं फल दूँ तुमको
मैं वो नाव नहीं बन सकती
कि तुम जिधर को खेओ
मैं खिचती चली जाऊँ
मैं वो फूल नहीं बन सकती
कि तुम पत्ती-पत्ती करके मसलो
और मैं बेशर्मी से महकती रहूँ
नहीं मैं वो काँटा भी नहीं हूँ
कि बिना तुम्हारे छेड़े
चुभ जाऊँ हाथों में
पर वो बादल भी नहीं हूँ
कि किसी को प्यासा देख इतना बरसूँ
कि खुद खाली हो जाऊँ
तुम्हें छाया चाहिए
फल चाहिए
तो मुझे भी खाद पानी देना होगा
तुम्हें पार लगाने का दायित्व मेरा सही
पर मुझे लहरों की दिशा में तो खेना होगा
मेरा रंग, गंध, स्पर्श तुम ले लो
पर मुझे डाली के साथ तो लगे रहने देना होगा
स्वीकार सको तो स्वीकारो
मुझे मेरे समस्त गुणों-अवगुणों
और तमाम शर्तों के साथ
वरना मैं खुश हूँ
सिर्फ मैं होने में ही
पुरस्कार- विचार और संस्कृति की मासिक पत्रिका 'समयांतर' की ओर से पुस्तक/पुस्तकें।
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10 कविताप्रेमियों का कहना है :
वक्त की यही पुकार है जैसे को तैसा - शानदार रचना के लिए कवयित्री को हार्दिक बधाई, हिन्दयुग्म और सभी पाठकों को होली की हार्दिक शुभकामनाएं
hamaare paas shabd nahi hain ji.....
और नहीं हैं तो नहीं हैं..
मुझे मेरे समस्त गुणों-अवगुणों
और तमाम शर्तों के साथ
वरना मैं खुश हूँ
सिर्फ मैं होने में ही
बहुत सुन्दर रचना है। कवियत्री को बधाई व हिन्द युग्म परिवार को होली की हार्दिक शुभकामनायें
अनुपम जी ,
बहुत सशक्त शब्द हैं आपके .
नयी सताब्दी की तीक्ष्ण शब्द -शर संधान की हुयी स्वलाम्बिता स्त्री सभी नारों की नाड़ियाँ ठंढी कर देगी .
कमल किशोर सिंह , न्यू योर्क .
वाह वाह। अति सुन्दर।
सुन्दर रचना के लिए बहुत बहुत बधाई
धन्यवाद
विमल कुमार हेडा
मेरा रंग, गंध, स्पर्श तुम ले लो
पर मुझे डाली के साथ तो लगे रहने देना होगा
स्वीकार सको तो स्वीकारो
मुझे मेरे समस्त गुणों-अवगुणों
और तमाम शर्तों के साथ
वरना मैं खुश हूँ
सिर्फ मैं होने में ही
bahut sunder badhai amita
पुरुष के साथ बराबर का हिस्सेदारी रखने वाली औरत कुछ भी ऐसी नही करेंगी जिससे उनके स्वाभिमान को ठेस पहुँचे और यहीं होना भी चाहिए औरतों के प्रति दोहरी नीति रखने वाले समाज को यह समझना ही होगा..अब समय बदल रहा है और नई सदी के औरत के स्वरूप भी बदल चुके है....बेहतरीन रचना...इस सुंदर प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
anupamji,bahut sundar bhav.Kaash her ladki khud ko is roop me sweekare.smita mishra
wow nice poem and great concept i like it...well sail please continue it's very important for us..
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