अखिलेश श्रीवास्तव हिंद-युग्म के ऐसे कवि हैं जिनकी कविताओं ने हिंदी के प्रखर आलोचकों का भी आकृष्ट किया है. इन्होंने जब भी यूनिकवि प्रतियोगिता में भाग लिया शीर्ष १० में स्थान बनाया है. जनवरी माह की प्रतियोगिता में भी इनकी कविता ने तीसरा स्थान बनाया है.
पुरस्कृत कविता: महंगाई- चीनी / दाल / चावल / गेहूँ
चीनी:
पिता जी चिल्लाकर
कर रहे हैं रामायण का पाठ
बेटा बिना खाए गया है स्कूल
छुटकी को दी गयी है नाम कटा
घर बिठाने की धमकी
माँ एकादसी के मौन व्रत में
बड़बड़ाते हुए कर रही है
बेगान-स्प्रे का छिड़काव
हुआ क्या है?
कुछ नहीं ...
कल रात
चिटियाँ ढो ले गयी हैं
चीनी के तीन दाने
रसोई से।
दाल :
बीमार बेटे को
सुबह का नुख्सा और
दोपहर का काढ़ा देने के बाद
वो घोषित कर ही रहा होता है
अपने को सफल पिता
कि
वैद्य का पर्चा डपट देता है उसे
सौ रुपये की दिहाड़ी में कहाँ से लायेगा
शाम को
दाल का पानी
चावल :
आध्यात्मिक भारत बन गया है
सोने की चिड़िया
और चुग रहा है मोती
पर छोटी गौरैया की
टूटे चोच से रिस रहा है खून
जूठी पर
साफ़ से ज्यादा साफ़
थालियों में आज भी
नहीं मिल पाया चाउर खुद्दी का
इक भी दाना
बेहतर होता
अम्मा की नज़र बचा
खा लेती
नाली के किनारे के
दो चार कीड़े।
गेहूँ:
तैतीस करोड़ देवताओ में
अधिकांश को मिल गए हैं
कमल व गुलाब के आसन
पर लक्ष्मी तो लक्ष्मी है
वो क्षीर सागर में लेटे
सृष्टिपालक विष्णु के
सिरहाने रखे
गेहूँ की बालियों पर
विराजमान हैं।
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पुरस्कार- विचार और संस्कृति की मासिक पत्रिका 'समयांतर' की ओर से पुस्तक/पुस्तकें।
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12 कविताप्रेमियों का कहना है :
महंगाई पर करारा कटाक्ष करती जन भाषा में लिखी इन कविताओं के लिए ढेर सारी बधाइयाँ.
थोडी अलग पर बहुत बढ़िया...सुंदर भाव प्रस्तुत किया आपने अखिलेश जी हार्दिक बधाई इस उपलब्धि के लिए..भावपूर्ण कविता..
महंगाई पर सुन्दर कटाक्ष, बहुत बहुत बधाई धन्यवाद
विमल कुमार हेडा
महंगाई पर करारा कटाक्ष करती जन भाषा में लिखी इन कविताओं के लिए ढेर सारी बधाइयाँ
मंहगाई पर गहरी चोट है बहुत अच्छी लगी कविता अखिलेश जी को बधाई। धन्यवाद्
सृष्टिपालक विष्णु के
सिरहाने रखे
गेहूँ की बालियों पर
विराजमान हैं।
ati sunder pnktiyan .
हुआ क्या है?
कुछ नहीं ...
कल रात
चिटियाँ ढो ले गयी हैं
चीनी के तीन दाने
रसोई से।
kya hi baat kahi
bahut bahut badhai
saader
rachana
रचना में बड़ी गहरी चोट की है आपने...
चाहे डाल का पानी हो या चीनी के ३ दाने , पढ़कर सोचना पड़ता है...
माँ एकादसी के मौन व्रत में
बड़बड़ाते हुए कर रही है
बेगान-स्प्रे का छिड़काव
हुआ क्या है?
कुछ नहीं ...
कल रात
चिटियाँ ढो ले गयी हैं
चीनी के तीन दाने
रसोई से।
bahut hi sunder rachna hai badhai.
लेखनी की यह कुशलता अखिलेश भाई के बस की ही है..लिखने को तो मंहगाई जैसे संवेदनशील विषय पर कोई तल्ख भाषा मे सरकार, समाज को गलियाते हुए मुनाफ़ाखोरों को फ़ांसी देने के फ़रमान के साथ नई क्रांति के आह्वान को भी कविता की आग मे पका सकता था..मगर बढ़ती कीमतों की चक्की मे दिनों-दिन पिसते किसी निम्न-मध्य वर्ग परिवार की परेशानियों को एक कचोटते व्यंग्य के साथ पेश करने की यह शैली होंठों पर मुस्कराहट और कलेजे मे दर्द सी उतर जाती है..
अखिलेश जी को कविता के लिये बहुत बधाई.
aap sabhi ko prayas accha laga iske liye aabhar.
aur davendra ji blog ka naam must rakha hai .. baichain aatma..
kashi mein rahker aatma parmatma ki baat na karoge to kaun karega.
apne blog par wo kavita bhi dale jo sambhavna mein chapi hai Sukha par..
my name is anrudh post karhan dist mau (u.p)
meri kavita samil kya nahi ki gai
mai bhi usi ke din ke intajar me hoo
my name is anrudh post karhan dist mau (u.p)
meri kavita samil kya nahi ki gai
mai bhi usi ke din ke intajar me hoo
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