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Wednesday, December 30, 2009

दोहा गाथा सनातन: ४९ दोहे अमृत-धार संजीव 'सलिल'


दोहा गाथा सनातन: ४९

दोहे अमृत-धार

 
संजीव 'सलिल'
*
मंत्र ऋचा श्रुति श्लोक हैं, दोहे अमृत-धार.
राग-विराग सिंगार हैं, प्रेम-भक्ति पतवार.

दोहा गाथा की इस समापन कड़ी में दोहा गीतिका की चर्चा अप्रासंगिक न होगी. ऐसे दोहे जिनके सम पदों की तुक सामान हो, एक साथ प्रस्तुत किये जाएँ तो वे दोहा गीतिका बनाते हैं. दोहे के समपदों में पदांत तथा तुकांत समय होने पर भाव सौंदर्य तथा नाद सौंदर्य का संगम रस तथा शिल्प को हृद्ग्राही बनाता है. दोहा गीतिका के दोहे किसी विषय विशेष पर केन्द्रित भी हो सकते हैं और अलग-अलग विषयों से सम्बंधित भी हो सकते हैं.

दोहा रचना उर्दू ग़ज़ल की बहर के अनुरूप हो तो उसे दोहा ग़ज़ल कहा जायेगा.

माटी ने शत-शत दिए, माटी को आकार.
यह माटी सुरभित सुमन, वह माटी है खार..

माटी में सीकर मिले, निराकार-साकार.
अविनाशी माटी कहे, हे नश्वर आभार.

कनकाभित कुंदन हुआ, जग-वन्दित हर बार.
बिना जले निज आभ से, देता जग उजियार..

जो अच्छे इंसान हैं, जो काबिल फनकार.
ऊपरवाले तुझे क्यों है उनकी दरकार?

कुंदन देता संदेसा, दिल को दिल का प्यार.
गले मिले हँस पूछता, कैसे हैं सरकार?

निराकार को लगन श्रम' कौशल दे आकर.
स्वप्न तभी सार्थक 'सलिल', जब हों वे साकार..

****************

तुमको मालूम ही नहीं, शोलों की तासीर.
तुम क्या जानो ख्वाब की, कैसे हो ताबीर?.

बहरे मिलकर सुन रहे, गूंगों की तक़रीर.
बिलख रही जम्हूरियत, सिसक रही है पीर..

फेंक द्रौपदी ही रही, फाड़-फाड़ निज चीर.
भीष्म द्रोण कृप कृष्ण संग, घूरें पांडव वीर..

सपनों को साकार कर, धरकर मन में धीर.
हर बाधा-संकट बने, पानी की प्राचीर..

दहशतगार्डों की हुई, है जब से तकसीर.
वतन परस्ती हो गयी, खतरनाक तकसीर..

हिम्मत मत हारें करें, सब मिलकर तदबीर.
प्यार-मुहब्बत ही रहे, मजहब की तफसीर..

हिंद और हिन्दी करें, दुनिया को तनवीर.
बेहतर से बेहतर बने, दुनिया की तस्वीर..

हाय सियासत रह गयी, सिर्फ दगा-तज्वीर.
खिदमत भूली कौम की, बातों की तब्जीर..

तरस रहा मन दे 'सलिल', वक़्त एक तब्शीर.
शब्दों के आगे झुके, ज़ालिम की शमशीर..

******************

दोहा गाथा सनातन की यह लेख माला ४९ पाठों तथा १६ गोष्ठियों कुल ६५ कड़ियों में विश्व की किसी भी भाषा के काव्य शास्त्र की सर्वाधिक लम्बी लेखमाला होने का रिकोर्ड बना चुकी है. आप सब पाठकों और सहभागियों को ही इसका श्रेय है.

इस लेखमाला के माध्यम से अंतर्जाल (इंटरनेट) पर पहली बार कई छंदों के रचना-विधान का उल्लेख हुआ. छंदहीन काव्य की बाढ़ के इस दौर में भावी पीढी को अंतर्जाल पर हिंदी गीति काव्य से परिचित करने का यह सारस्वत अनुष्ठान हिंद युग्म के संचालक मंडल विशेषकर श्री शैलेश भारतवासी के सहयोग के बिना सम्भव नहीं था. इसका पूरा श्रेय युग्म के संचालकों और सहभागियों को है. इसमें जो भी कमियाँ और त्रुटियाँ रही हों उनके लिए मैं आप सबसे क्षमाप्रार्थी हूँ.

नव वर्ष पर आप सबका अभिनन्दन -

शुभकामनायें सभी को, आगत नवोदित साल की,
शुभ की करें सब साधना, चाहत समय खुशहाल की।

शुभ 'सत्य' होता स्मरण कर, आत्म अवलोकन करें,
शुभ प्राप्य तब जब स्वेद-सीकर राष्ट्र को अर्पण करें।

शुभ 'शिव' बना, हमको गरल के पान की सामर्थ्य दे,
शुभ सृजन कर, कंकर से शंकर, भारती को अर्घ्य दें।

शुभ वही 'सुन्दर' जो जनगण को मृदुल मुस्कान दे,
शुभ वही स्वर, कंठ हर अवरुद्ध को जो ज्ञान दे।

शुभ तंत्र 'जन' का तभी जब हर आँख को अपना मिले,
शुभ तंत्र 'गण' का तभी जब साकार हर सपना मिले।

शुभ तंत्र वह जिसमें, 'प्रजा' राजा बने, चाकर नहीं,
शुभ तंत्र रच दे 'लोक' नव, मिलकर- मदद पाकर नहीं।

शुभ चेतना की वंदना, दायित्व को पहचान लें,
शुभ जागृति की प्रार्थना, कर्त्तव्य को सम्मान दें।

शुभ अर्चना अधिकार की, होकर विनत दे प्यार लें,
शुभ भावना बलिदान की, दुश्मन को फिर ललकार दें।

शुभ वर्ष नव आओ! मिली निर्माण की आशा नयी,
शुभ काल की जयकार हो, पुष्पा सके भाषा नयी।

शुभ किरण की सुषमा, बने 'मावस भी पूनम अब 'सलिल',
शुभ वरण राजिव-चरण धर, क्षिप्रा बने जनमत विमल।

शुभ मंजुला आभा उषा, विधि भारती की आरती,
शुभ कीर्ति मोहिनी दीप्तिमय, संध्या-निशा उतारती।

शुभ नर्मदा है नेह की, अवगाह देह विदेह हो,
शुभ वर्मदा कर गेह की, किंचित नहीं संदेह हो।

शुभ 'सत-चित-आनंद' है, शुभ नाद लय स्वर छंद है,
शुभ साम-ऋग-यजु-अथर्वद, वैराग-राग अमंद है।

शुभ करें अंकित काल के इस पृष्ट पर, मिलकर सभी,
शुभ रहे वन्दित कल न कल, पर आज इस पल औ' अभी।

शुभ मन्त्र का गायन- अजर अक्षर अमर कविता करे,
शुभ यंत्र यह स्वाधीनता का, 'सलिल' जन-मंगल वरे।

*


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5 कविताप्रेमियों का कहना है :

kavi kulwant का कहना है कि -

aacharya ji.. bahut khoob... aap ne bahut mehanat ki..aap ko mera naman.. happy new year to all my dear friends..

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

सभी को नव वर्ष की शुभकामनाएं |

दोहा , गीतिका और ग़ज़ल को एक ही विधा में जोड़ने वाला प्रयोग बहुत ही रोचक लगा |

दोहा रचना उर्दू ग़ज़ल की बहर के अनुरूप हो तो उसे दोहा ग़ज़ल कहा जायेगा. - मेरी एक विशेष शंका का उत्तर है |

संजीवजी और युग्म को अनेक धन्यवाद |

अवनीश तिवारी

Manju Gupta का कहना है कि -

गुरु जी का आभार
आदरणीय गुरु जी ,
सादर नमस्ते ।
शुभकामना हैं गुरुजी ,नवागंतुक नवसाल ।
दे दोहा गाथा ज्ञान , नतमस्तक हुई साँस ॥
सभी को आगांतु "नववर्ष २०१० " की हार्दिक शुभ कामनाएं
प्रेम -शांति के साथ-
मंजू गुप्ता

अजित गुप्ता का कोना का कहना है कि -

आचार्य जी
नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं। विगत कुछ कक्षाओं में अनुपस्थित रही हूँ इस कारण आपके ज्ञान का पूरा लाभ नहीं मिल सका। लेकिन आपकी कक्षाओं के द्वारा मिला ज्ञान हमेशा हमें प्रेरणा देता रहेगा। आशा है आप इसी प्रकार हम सबपर स्‍नेह बनाए रखेंगे।

Unknown का कहना है कि -

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