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Tuesday, December 15, 2009

दोहा गाथा सनातन: ४७ यति दस-आठ, आठ-छः पर है त्रिभंगी में --आचार्य संजीव 'सलिल'


दोहा गाथा सनातन: ४७

यति दस-आठ, आठ-छः पर है त्रिभंगी में

आचार्य संजीव 'सलिल'

यति दस-आठ, आठ-छः पर है त्रिभंगी में,

चरणान्त गुरु औ' जगण वर्जित है.

चार चरणों का छंद, मोहे मन रसिकों का,

पाई न उधार करी कीर्ति अर्जित है.

छन्द लय रस बिम्ब भाव कथ्य भाषा को,

साधना-सँवारना 'सलिल' न सहज है.

शब्द-ब्रम्ह की कृपा से सिद्ध होता है छंद,

शारदा के चरणों की छंद पग-रज है..

त्रिभंगी एक मात्रिक छंद है.

इस छंद में दस-आठ तथा आठ-छः पर यति होती है.

बत्तीस मात्रा के हर चरण के अंत में गुरु आवश्यक है.

यह छंद चार चरणों का होता है तथा इसमें जगण (ज भा न = लघु गुरु लघु) वर्जित होता है.

उदाहरण:

१.
रसराज-रसायन, तुलसी-गायन,

श्री रामायण मंजु लसी.

शारद शुचि-सेवक, हंस बने बक-

जन-कर-मन हुलसी हुलसी..

रघुवर-रस-सागर, भर लघु गागर,

पाप-सनी मति गई धुल सी.

कुंजी रामायण के परायण,

से गयी मुक्ति-राह खुल सी..

२.
रस-सागर पाकर, कवि ने आकर,

अंजलि भर रस-पान किया.

ज्यों-ज्यों रस पाया, मन भरमाया,

तन हर्षाया, मस्त हिया..

कविता सविता सी, ले नवता सी,

प्रगटी जैसे जला दिया.

सारस्वत पूजा, करे न दूजा,

करे 'सलिल' ज्यों अमिय पिया..

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कविताप्रेमी का कहना है :

विनोद कुमार पांडेय का कहना है कि -

प्रस्तुत उदाहरण बहुत ही बढ़िया लगे...सुंदर भाव साथ ही साथ बढ़िया ज्ञानवर्धक जानकारी..आभार सलिल जी

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