प्रतियोगिता की चौदहवीं कविता डॉ॰ मीना अग्रवाल की है, जिनका परिचय हमारे पास उपलब्ध नहीं है।
कविता- अजन्मी बिटिया के मन की पुकार
सपने में आई
ठुमकती-ठुमकती
रुनझुन करती
शरमाई,सकुचाई
नन्ही-सी परी
धीरे से बोली
माँ के कान में
माँ! तू मुझे जनम तो देती
मैं धरती पर आती
मुझे देख तू मुस्कुराती
तेरी पीड़ा हरती
दादी की गोद में
खेलती-मचलती
घुटवन चलती
खुशियों से बाबुल की
झोली मैं भरती
पर जनम तो देती
माँ! तू जनम तो देती!
मैयाँ-मैयाँ चलती
बाबुल के अँगना में
डगमग डग धरती
घर के हर कोने में
फूलों-सी महकती
घर की अँगनाइयों में
रिमझिम बरसती
माँ-बापू की
दुलारी मैं बनती
पर जनम तो देती
माँ! तू जनम तो देती!
तोतली बोली में
चिड़ियों को बुलाती
दाना चुगाती
उनके संग-संग
मैं भी चहकती
दादी का भी
मन बहलाती
बाबा की मैं
लाडली कहाती
पर जनम तो देती
माँ! तू जनम तो देती!
आँगन बुहारती
गुड़ियों का ब्याह रचाती
बाबुल के खेत पर
रोटी पहुँचाती
सबकी आँखों का
सितारा मैं बनती
पर जनम तो लेती
माँ! मैं जनम तो लेती!
ऊँचाइयों पर चढ़ती
धारा के साथ-साथ
आगे को बढ़ती
तेरे कष्टों को
मैं दूर करती
तेरे तन-मन में
दूर तक उतरती
जीवन के अभावों को
भावों से भरती
तेरे जीवन की
आशा मैं बनती
पर जनम तो देती
माँ! तू जनम तो देती!
ओढ़ चुनरिया
बनती दुल्हनियाँ
अपने भैया की
नटखट बहनियाँ
ससुराल जाती तो
दोनों कुलों की
लाज मैं रखती
देहरी दीपक बन
घर को
जगमग मैं करती
सावन में मेह बन
मन-आँगन भिगोती
भैया की कलाई की
राखी मैं बनती
बाबुल के
तपते तन-मन को
छाया मैं देती
पर जनम तो देती
माँ! जनम तो देती!
माँ बनती तो
तेरे आँगन को
खुशियों से भरती
बापू की आँखों की
दृष्टि बनकर
रोशनी लुटाती
तेरे आँगन का
बिरवा बनकर
तेरी बिटिया बनकर
माटी को मैं
चन्दन बनाती
दुख दूर करती
सुख के गीत गाती
माँ-बापू के बुढ़ापे की
लकड़ी बनकर
डगमग जीवन का
सहारा मैं बनती
उदास मन को
दिलासा मैं देती
पर जनम तो लेती
मैं जनम तो लेती
माँ! जनम तो देती
तू मुझे जनम तो देती
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9 कविताप्रेमियों का कहना है :
अच्छी सोच और भाव को दर्शाती एक लम्बी कविता, मीना जी को शुभकामनाएं.
सुझाव: कविता की लम्बाई कम की जा सकती थी.
बहुत सुन्दर भ्रूण हत्या की कसक अजन्मी बेटी के मुख से । मीना जी को बधाई
अच्छी और मार्मिक रचना।
सामाजिक चेतना जगाती हुई बेहतरीन रचना..आज के समाज में कुछ वर्ग समुदाय का विचार लड़कियों के प्रति लड़को की तुलना में अलग रहता है..यह एक बहुत बड़ी अफ़सोस की बात है..समाज को कलंकित करती एक निम्न विचारधारा..
आप की यह मार्मिक रचना संवेदनाओं से भरपूर है ..बढ़िया लगी..धन्यवाद
बहुत भावुक शब्दों के माध्यम से अजन्मी इच्छाएं, सपने, खुशी और अजन्मे जीवन को अभिव्यक्त किया है..एक अलिखित ऑटोबायोग्राफी !!
..हाँ कविता कुछ लम्बी लगती है..मगर एक प्रवाह है जो बाँधे रखता है..
kavita ki pravah achhi hai aur samaj pe achhi chhot hai, lambi hone ke babjud bhi kavita ne pakad bana ke rakhi hai aur aapne jo chhoti chhoti bhawnao ko darshaya hai wo kabile taarif hai.
jai hind
मार्मिक पुकार अजन्मी बेटी की ...
ओ नन्ही परी...तू मुझ तक आती ..तुझे कही जाने ना देती ...!!
ह्रदयस्पर्शी कविता...........
अच्छी तो है पर ब्च्चों पर कविता भी उनकी लम्बाई के माफ़िक ही होनी चाहिये
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