अनिल चड्डा की एक कविता हमने पिछले महीने भी प्रकाशित की थी। आज पढ़िए इनकी एक और कविता जो अक्टूबर महीने की प्रतियोगिता में 8वें स्थान पर है।
पुरस्कृत कविता- त्रासदी
हे ईश्वर
तुझे
देखा तो नहीं है मैंने
पर यकीनन
तेरा स्वरूप
एक आदमी सा ही होगा
इसीलिये तूने की
नारी की सृष्टि
ताकि
उस पर अपना हुक्म चला सके
और कर सके
अपनी अहं की तुष्टि
तुझे स्वयँ कुछ न करना पड़े
इसलिये
सृष्टि को
आगे बढ़ाने का बोझा भी
नारी पर ही डाल दिया
इस सबसे
नारी पर क्या गुजर रही होगी
उस सबसे बेख़बर
तू आँखें बंद किये
कहीं सोया पड़ा है
और यहाँ संसार में
नारी को ही बोझा मान
उसे गर्भ में ही
समाप्त कर दिया जाता है
कहीं-कहीं तो
जन्म के पश्चात भी
उसे बलि चढ़ा दिया जाता है
वैसे भी तो वो
पग-पग पर
बलि चढ़ती ही आई है
कभी पिता, कभी भाई
कभी पति, कभी बेटे
के हाथों
शोषित होती ही आई है
या फिर
ससुराल के लोलुपों के हाथों
जलती आई है
कब तक देनी पड़ेगी
उसको अपनी बलि
हे ईश्वर
यदि तू नारी का रचयिता है
तो तू भी तो
उसके शोषण का
पूरा-पूरा भागीदार है
क्या यही तेरा न्याय है
कि अपनी ही कृति का
सदियों से हो रहे शोषण का
मूक दृष्टा बना रहे
और बेलगाम हो रहे
अन्याय के विरुद्ध
कुछ भी न करे !
कुछ भी न कहे !!
पुरस्कार- रामदास अकेला की ओर से इनके ही कविता-संग्रह 'आईने बोलते हैं' की एक प्रति।
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9 कविताप्रेमियों का कहना है :
अनिल चड्डा ji
aap jis tarah naari man ki vyatha ko apni rachana mein maarmik dhang se prastut kiya. Bahut achha laga lekin ise ishwar ki trashadi kahana kuch achha nahi laga.
Naari ke prati bhavpurn or samvedansheel hokar likhi rachana ke liye Shubhkanaye.
एक पुरुष होकर स्त्री की मनोदशा को इतनी अच्छी तरह समझाना और उसे व्यक्त करना एक अच्छे लेखक या कवि की पहचान है!..बहुत,बहुत बधाई!
ईश्वर क्यों खामोश और अदृश्य है शायद इसका सही जवाब आपने अपनी कविता में प्रस्तुत किया है..
उम्दा प्रस्तुति...बहुत सुंदर कविता..बधाई
sachmuch ek kabita rasaswadan apne diya hai jo kisi mahila kabi ke man me aani chahiye.iswar ko bhi apne khoob kahi. badhai aur subhkamnaen
kishore kumar jain guwahati assam.
chaddha sahab
isi tarah kavitaye padhvate rahiye.
acchi koshish hai naari vyatha kahne ki.
badhayee.
Hmm..
Itneee saari mushkilein aur itnaa tanaav.
Sahinmaayane mein kavita satya ki goonj sunaati hai.
आप सबको मेरी पसन्द आई, जान कर मन को बड़ा हर्ष हुआ । प्रोत्साहन के लिये आभार ।
वर्तमान परिस्थिति में नारी की दिश दशा पर बहुत खूबसूरती से आपने मन की बात कही है। सचमुच शब्द सजीव हो उठे हैं अनिल भाई।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
“पर यकीनन तेरा स्वरूप
एक आदमी सा ही होगा
इसीलिये तूने की
नारी की सृष्टि ताकि
उस पर अपना हुक्म चला सके
और कर सके अपनी अहं की तुष्टि
तुझे स्वयँ कुछ न करना पड़े” वाह कोई जवाब नहीं आपका! यकीन मानिए अनिल जी, मैंने पहले तो आपकी कविता पढ़ी और फिर उस पर अपनी प्रतिक्रिया देनी चाही. लेकिन मेरे जेहन में जो बात एक दम आई वह थी “इस कविता का लेखक कौन है क्योंकि यह विचार आपकी पिछली कविता से एक दम मेल खाते हैं.” ये जान कर संतोष भी हुआ कि ये आप ही की कविता है. आप भले ही ईश्वर को आदमी के रूप में मानते हों परन्तु सच तो ये है कि आज नारी का शोषण शायद स्वयं ही की कमजोरी से अधिक हो रहा है. आजकल तो नारी और पुरुष दोनों बराबर समझे जाते हैं, यदि कहीं असमानता है भी तो यह अशिक्षा, गरीबी या सामाजिक कुरीतियों जैसे अनेक कारणों से हो सकती है. आपकी संपूर्ण अभिव्यक्ति सशक्त एवं प्रभावशाली है जिसके लिए आप बधाई के पात्र हैं. अश्विनी कुमार रॉय
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