प्रतियोगिता की 8वीं कविता के रचनाकार हिन्द-युग्म के लिए नये हैं। पूरी तरह से नये नहीं हैं क्योंकि इनकी कविताएँ काव्य-पल्लवन में प्रकाशित होती रही हैं, लेकिन प्रतियोगिता के माध्यम से प्रकाशित होने का इनका यह पहला अवसर है।
नाम: मयंक सिंह सचान
पिता का नाम: श्री धर्मेन्द्र सिंह
माता का नाम: श्रीमती किशोरी सचान
जन्म-स्थान: जिला कानपुर (देहात) में ग्राम धरमंगदपुर
शिक्षा: प्रारंभिक शिक्षा राजस्थान के शहर कोटा से। मोतीलाल नेहरू क्षेत्रीय अभियांत्रिकी महाविद्यालय (अब MNIT), इलाहाबाद से सन् 1983 में B.E.(Electrical) में स्नातक डिग्री। फ़िर IIT-Delhi से M.Tech. (Power Generation Tech) में स्नातकोत्तर उपाधि।
कार्य अनुभव: 6 वर्ष J.K.Synthetics Ltd., Kota में
तदोपरान्त 16 वर्ष से लगातार देश की अग्रणी विद्युत कं. NTPC Ltd. में सेवारत। वर्तमान में नोएडा स्थित Corporate Office में वरिष्ठ प्रबंधक के पद पर कार्य कर रहा हूँ।
लेखन अनुभव: कोई उल्लेखनीय प्रकाशन नहीं। कॉलेज व कम्पनी स्तर की छोटी-मोटी पत्रिकाओं में ही जगह बना पाया। हालाँकि लिखने का शौक बचपन से ही रहा। कक्षा 12 में स्कूल से विदाई समारोह में एक पैरोडी कव्वाली बनाई थी। जिसको सराहना मिली तो लिखने का उत्साह बढ़ता गया। इलाहाबाद में पहली कविता लिखी।
पुरस्कृत कविता- बूढ़ी नानी की कहानी
मेरी बूढ़ी नानी
बचपन में सुनाती थी एक कहानी
कहानी- जिसमें था एक महल
महल के आंगन में बरगद की छाँव सुहानी
बरगद पर बैठी कोयल की सुरीली तान
महल के पास बहते झरने का मीठा पानी
और इन सबके बीच रहती थी
एक परियों की रानी
बढ़ती उम्र के साथ मैंने
महल तो देखे
बरगद की छाँव का आनन्द भी लिया
कोयल की सुरीली तान सुनी
तो झरने का मीठा पानी भी पिया
लेकिन बहुत खोजने पर भी ना मिली
वो परियों की रानी
तो क्या परियों की रानी थी
सिर्फ़ एक कहानी?
मैं अक्सर सोचता हूँ कि
क्या मेरी नानी ने झूठ बोला?
या फिर मेरी ही बुद्धि ने ज्ञान का वो द्वार
अभी तक नहीं खोला?
अब ये जो इस साईबर-युग के बच्चे हैं
ये 'एसी' की हवा में पलते हैं
होम थियेटर और म्यूजिक स्टेशन पर जीते हैं
और बोतल-बंद मिनरल वाटर पीते हैं।
ये बच्चे-
बरगद की सुहानी छाँव,
कोयल की सुरीली तान और
झरने के मीठे पानी को
क्या जान पाएँगे?
ये बेचारे भी
मुझ अज्ञानी की तरह
उस परियों की रानी की तरह
बरगद, कोयल और झरने को भी
बूढ़ी नानी की कहानी ही बताएँगे।
मेरी नानी कभी झूठ नहीं बोलती थी
परियों की वो रानी वास्तव में होती थी
पर कुछ तो वो विज्ञान के तर्कों-कुतर्कों में
विलीन हो गई
और कुछ मानव विकास की अंधी दौड़ में
अस्तित्व-विहीन हो गई।
प्रकृति से मानव के सम्बन्ध,
जो यूँ ही बिगड़ते जाएँगे
तो वो दिन दूर नहीं जब
बूढ़ी नानी की कहानी तरह
उस परियों की रानी की तरह
बरगद, कोयल और झरने भी
अस्तित्व-विहीन हो जाएँगे
सब विलीन हो जाएँगे॥
पुरस्कार- डॉ॰ श्याम सखा की ओर सेरु 200 मूल्य की पुस्तकें।
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9 कविताप्रेमियों का कहना है :
आधुनिकता को निशाना बनाकर यथार्थ व भारतीयता के धरातल पर लिखित यह रचना बहुत अच्छी लगी।
सच में........कोई कहानी झूठी नहीं थी......नानी के माध्यम से बहुत ही गहन बातों को सामने रखा है
अति सुंदर मन को है. छूने वाली और शिक्षाप्रद रचना है. मयंक जी बधाई!
"प्रकृति से मानव के सम्बन्ध,
जो यूँ ही बिगड़ते जाएँगे
तो वो दिन दूर नहीं जब
बूढ़ी नानी की कहानी तरह
उस परियों की रानी की तरह
बरगद, कोयल और झरने भी
अस्तित्व-विहीन हो जाएँगे
सब विलीन हो जाएँगे॥"
मेरी तरफ से दो पंक्दियाँ:
संभल जाओ ये दुनियांवालो हुई न अब भी देर.
फिर मत कहना क्या होगा अब चिडिया चुग गई खेत.
बड़े बुजुर्ग के सपनों के देश का शैर करा देते थे कहानियों के माध्यम से..आपने बड़े उम्दा तरीके से उन यादों को पिरोया है..सुंदर भाव भरी कविता..बधाई.
bahut sundar rchna .jaise GANDHIJI ko aaj ki pidhi kalpna smjhti hai vaise hi nani ki khani ko bhi kalpna hi manegi smy ki gti nyari .
कहानिया बिलकुल झूठी नहीं थी ...बच्चों को अगर सुनायी जाये तो आज भी चाव से सुनते है ...पर किसी को उन्हें सुनाने की फुर्सत तो हो ...!!
मयंक जी, कबीले तारीफ़ रचना है, आप जैसे कवि कहाँ छुपे हुए रह जाते हैं जो की इतने सरल शब्दों द्वारा इतनी गहरी बातें कह देते हैं! शुभकामना!
bahut sunder sooch
badhai
saader
rachana
mujhe nani ki kahaniya bahut pasand hai. mujhe jab bhi mauka milta hai main kahaniya padta hoo.
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