हर घड़ी रोने को जी करता है!
रात के तीसरे पहर में
जब चमगादड़ों की फ़ौज़
कर रही होती है कदमताल,
तभी आँख के गलियारे में
"रेटिना" के कुछ पास
घुसपैठियों-सा
उभर आता है एक चेहरा!
वह चेहरा तुम्हारा हीं है,
जानता हूँ मैं...
बरसों पहले
तुमने हीं गढा था यह देश
और मैने
दे दिया तुम्हें देशनिकाला
या यूँ कहो देहनिकाला...
अब भी उस जुर्म में
लाईन हाज़िर होता हूँ मैं
हर रात
तीसरे पहर...
आँसू उतार-उतार कर
थक चुका हूँ,
अगली बार आओ तो
ले आना कुछ तेजाब
और डुबोके
मेरे "माफ़ीनामे" में
छिड़क देना
साँसों के इर्द-गिर्द..
सोते-सोते मौत मिले
तो गम कम होगा.......है ना?
-विश्व दीपक ’तन्हा’
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11 कविताप्रेमियों का कहना है :
I know its thousand times easier said than done, but still, try to forget what happened and try to move on. You can't change the past, and you definitely can't undo the same in future. As far as right and wrong, fair and unfair, just and unjust is concerned - well you have suffered enough!
And then, there is only so much that "Tezaab" can do!
आपकी इस रचना में जो बिम्ब रचा गचा है वह संवेदन शून्य हो चुके लोगों की सचाई को ला खड़ा करता है, साथ ही जिस बेबाकी से बात कही गयी है वह आपके साहस और निर्भिक चेतना का उदाहरण ही नहीं प्रमाण भी है। और ऐसा ही लिखे, शुभेच्छा।
रात के तीसरे पहर में
जब चमगादड़ों की फ़ौज़
कर रही होती है कदमताल,
तभी आँख के गलियारे में
"रेटिना" के कुछ पास
घुसपैठियों-सा
उभर आता है एक चेहरा!
कविता बहुत बढ़िया लगी..
अच्छी कविता हैं, बंधु ......
पर "रेटिना" शब्द का प्रयोग misfit लगा...
सुंदर उपमाएं है और सोच के तो क्या कहने बहुत बहुत सुंदर कविता
आँसू उतार-उतार कर
थक चुका हूँ,
अगली बार आओ तो
ले आना कुछ तेजाब
और डुबोके
मेरे "माफ़ीनामे" में
छिड़क देना
साँसों के इर्द-गिर्द..
ये पंक्तिया तो बहुत सुंदर लगीं
सादर
रचना
आँसू उतार-उतार कर
थक चुका हूँ,
अगली बार आओ तो
ले आना कुछ तेजाब
और डुबोके
मेरे "माफ़ीनामे" में
छिड़क देना
साँसों के इर्द-गिर्द..
ये पंक्तिया तो बहुत सुंदर लगीं
नयी उपमाओं और कहीं गहरे से आहत हुयी भावनाओं का सजीव चित्रण किया है ।तन्हा जी की लेखनी सदा ही बाँध लेती है अपने शब्दों से आभार तन्हा जी को शुभकामनायें
अब भी उस जुर्म में
लाईन हाज़िर होता हूँ मैं
हर पहर...
माफ़ीनामा मांगना ही प्रायश्चित है। अक्सर प्यार में अहम के चलते प्यार दम तोड देता है। दीपक जी बहुत-बहुत आभार..आपकी रचना शायद कईयों की आंखें खोल दे।
दीपक जी,
इतना दर्द......!!! प्यार, वैसे भी तड़प और त्याग का दूसरा नाम होता है उस पर आप ऐसी दर्द भरी कवितायेँ लिखेंगे तो प्रेमी आह भरते रह जायेंगे :). कुछ तो रहम कीजिये :)
कविता बहुत अच्छी है, हंसी मज़ाक की बात और है, पर प्यार करने वाले ही इस पीड़ को समझ सकते हैं , आपने अपने ज़ज्बातों को दर्दीले शब्दों का जामा पहना कर बहुतों के दिल की बात कह दी है.
सोते-सोते मौत मिले
तो गम कम होगा.......है ना?
हमारी दुआ है कि आप हजारों बरस जीयें और मौत की बातें अभी ना करें.
उफ !
दर्द को अच्छा कहूँ तो कैसे कहूँ ?
यार जब बेवफा हो जाय
जिऊँ !
तो काहे जिऊँ?
मगर तन्हाँ जी,
अपनी कविता में
अभी भी आप दोस्त से वफाई की उम्मीद करते हैं !
तभी तो
मौत के सामान का इंतजार करते हैं !!
कम शब्दों में पूरा दर्द बिखेर दिया !बधाई !
आँसू उतार-उतार कर
थक चुका हूँ,
अगली बार आओ तो
ले आना कुछ तेजाब
और डुबोके
मेरे "माफ़ीनामे" में
छिड़क देना
साँसों के इर्द-गिर्द..
सोते-सोते मौत मिले
तो गम कम होगा.......है ना
यह पद्यांश बिकुल शायराना लगा लेकिन पहला वाला कुछ उखडा उखडा सा लगा.
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