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Wednesday, October 14, 2009

ऐसा अक्सर होता है


युवा कवि प्रदीप वर्मा की 4 कविताएँ हिन्द-युग्म पर प्रकाशित हो चुकी हैं। आज हम इनकी पाँचवीं कविता प्रकाशित कर रहे हैं, जो सितम्बर माह की प्रतियोगिता में सातवाँ स्थान बना चुकी है।

पुरस्कृत कविता- ऐसा अक्सर होता है

ऐसा अक्सर होता है न
जब बहुत कुछ कहना होता है
तब कुछ कहा नहीं जाता
घुमड़-घुमड़ कर बातें
आती हैं मन में कहने को
उड़ जाती है वही बातें
जाती हुई हवाओं के संग
रह जाती है मन में
कसक न कह पाने की
और दिन भार सताती है
ऐसा अक्सर होता है न
जब बहुत कुछ कहना होता है

और ऐसा भी होता है न
किसी दिन
न कुछ कहने की चाह हो
न कुछ सुनने का इरादा
न चिड़चिढ़ाहट कि
अभी तक
कोई बात
न सुनी
न कही
न कोई उत्साह कि
ये कह लो
वह सुन लो

जब कुछ कहने सुनने की
चाह नहीं हो
तब ऐसा भी होता है न
कोई बात
कानों में ऐसे उतर आती है
मुँह में रखी मिश्री की डली
घुल रही हो हल्के हल्के से


पुरस्कार- डॉ॰ श्याम सखा की ओर सेरु 200 मूल्य की पुस्तकें।

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3 कविताप्रेमियों का कहना है :

मनोज कुमार का कहना है कि -

इस रचना में न बोलने और चुप रहने दोनो के मायने बड़े गहरे हैं। बढ़िया।

संजय भास्‍कर का कहना है कि -

आपको हार्दिक आभार्। आनन्द आ गया

Shamikh Faraz का कहना है कि -

कविता में शब्दों का चुनाव बढ़िया लगा.
ऐसा अक्सर होता है न
जब बहुत कुछ कहना होता है
तब कुछ कहा नहीं जाता
घुमड़-घुमड़ कर बातें
आती हैं मन में कहने को
उड़ जाती है वही बातें
जाती हुई हवाओं के संग
रह जाती है मन में
कसक न कह पाने की
और दिन भार सताती है
ऐसा अक्सर होता है न
जब बहुत कुछ कहना होता है

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