एक टुकड़ा
दर्द का
दिल से उखड़ा
कहां गया
एक टुकड़ा
दर्द का
रूह से लिपटा
दिल में समा गया
एक टुकड़ा
दर्द का
मेरे साथ साथ
भटका-
पगला गया
एक टुकड़ा
दर्द का
बड़ा मलूक था
सबको
भा गया
एक टुकड़ा
दर्द का
आसमान से
उतरा
जहन पर छा गया
एक टुकड़ा
दर्द का
जिन्दगी के
कई रंग दिखा गया
एक टुकड़ा
दर्द का
टीसता रहा
जहां गया
एक टुकड़ा
दर्द का
ढूंढता फिरता हूं
भला
कहां गया?
12 नंवम्बर1993
11 बजने में तीन मिनट दिवाली से पहले की रात
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5 कविताप्रेमियों का कहना है :
वेदना, करुणा और दुःखानुभूति का अच्छा चित्रऩ।
एक टुकड़ा
दर्द का
आसमान से
उतरा
जहन पर छा गया
गहरी अनुभूति !
एक टुकड़ा
bahut hi sunder
11 बजने में तीन मिनट दिवाली से पहले की रात को आपने बहुत अच्छा लिखा है साब...!
सुंदर कविता..
श्याम जी बताइए किस चीज़ की तारीफ करूँ.
कविता के शब्दों की या आपकी सोच की. कहने अंदाज़ की. हर चीज़ लाजवाब है.
एक टुकड़ा
दर्द का
जिन्दगी के
कई रंग दिखा गया
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