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Wednesday, October 14, 2009

एक टुकड़ा दर्द का दिल से उखड़ा कहां गया



एक टुकड़ा
दर्द का
दिल से उखड़ा

कहां गया

एक टुकड़ा
दर्द का

रूह से लिपटा

दिल में समा गया


एक टुकड़ा

दर्द का

मेरे साथ साथ

भटका-
पगला गया


एक टुकड़ा

दर्द का

बड़ा मलूक था

सबको
भा गया


एक टुकड़ा

दर्द का

आसमान से
उतरा

जहन पर छा गया

एक टुकड़ा

दर्द का

जिन्दगी के

कई रंग दिखा गया


एक टुकड़ा

दर्द का

टीसता रहा

जहां गया


एक टुकड़ा

दर्द का

ढूंढता फिरता हूं

भला
कहां गया?


12 नंवम्बर1993
11 बजने में तीन मिनट दिवाली से पहले की रात

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

5 कविताप्रेमियों का कहना है :

मनोज कुमार का कहना है कि -

वेदना, करुणा और दुःखानुभूति का अच्छा चित्रऩ।

Harihar का कहना है कि -

एक टुकड़ा
दर्द का
आसमान से
उतरा
जहन पर छा गया

गहरी अनुभूति !

संजय भास्‍कर का कहना है कि -

एक टुकड़ा
bahut hi sunder

manu का कहना है कि -

11 बजने में तीन मिनट दिवाली से पहले की रात को आपने बहुत अच्छा लिखा है साब...!
सुंदर कविता..

Shamikh Faraz का कहना है कि -

श्याम जी बताइए किस चीज़ की तारीफ करूँ.
कविता के शब्दों की या आपकी सोच की. कहने अंदाज़ की. हर चीज़ लाजवाब है.

एक टुकड़ा
दर्द का
जिन्दगी के
कई रंग दिखा गया

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