दोहा गाथा सनातन: ३८
अमृतध्वनि मन मोहती
दोहा परिवार के छंदों में सोरठा, रोला, कुंडली, दोही, बरवै, उल्लाला तथा सरसी से साक्षात् के पश्चात् आज मिलते हैं 'अमृतध्वनि' से.
अमृतध्वनि भी कुंडली की तरह षटपदी (६ पंक्तियों का) छंद है. इसकी प्रथम दो पंक्तियाँ दोहा तथा शेष ४ पंक्तियों में ८-८ मात्राओं के ३ समूह होते हैं जिनमें यमक और अनुप्रास के प्रयोग से एक विशिष्ट ध्वनि उत्पन्न होती प्रतीत होती हैं. अमृत ध्वनि का प्रथम और अंतिम शब्द एक सा होता है किन्तु आधुनिक कवि इसका पालन कम ही करते हैं.
उदाहरण:
१.
झुक-झूमकर वृक्ष सब, रहे लताएँ चूम.
ऊँची हो-होकर सभी, रही लताएँ लूम.
लूम लताएँ, शोर मचाएँ, पेड़ हिलाएँ.
आगे आएँ, पीछे जाएँ, ना शर्माएँ.
आनेवाले-जानेवाले घूम-घूमकर-
दृश्य निहारें, खुद को वारें, झूम-झूमकर.
-गिरिमोहन गिरि
२.
पावस है वरदान सम, देती नीर अपार.
हर्षित होते हैं कृषक, फसलों की भरमार.
झर-झर पानी, करत किसानी, कीचड़-सानी.
वारिद गर्जनि, चपला चमकनि, टप-टप पानी.
दान निरावैं, कजरी गावैं, बीती 'मावस.
हर्षित मन-मन पुलकित तन-तन, आयी पावस.
- मनोहर शर्मा 'माया'
३.
जूता-चप्पल चलत हैं, संसद में भी आज.
गाली घूँसा लात सब, नेतन छोडी लाज.
नेतन छोडी लाज आज तो किसकी मानें.
रार मचाते, नित इठलाते, का सब थाने.
'हरकिंकर' कब डरहैं ये सब, हैं यमदूता.
जनता मरवै, देश बिखरवै, तजें न जूता.
-रामसेवक पाठक 'हरिकिंकर'
४.
पिता बिदा होकर बसे, क्या तारों के बीच.
हर दिन मैं खोजूँ उन्हें, अंसुअन धरती सींच.
अंसुअन धरती सींच उगाऊँ फसल स्नेह की.
मातृभूमि हित कुर्बानी दी विहँस देह की.
पूजी तीरथ कहकर वीर शहीद की चिता.
धरती को मैया कह नभ को कहा है पिता..
- सलिल
५.
जलकर भी तम हर रहे, चुप रह मृतिका-दीप.
मोती पाले गर्भ में, बिना कुछ कहे सीप.
सीप-दीप से हम मनुज तनिक न लेते सीख.
इसीलिए तो स्वार्थ में लीन पड़ रहे दीख.
दीप पर्व पर हों संकल्पित रह हिल-मिलकर.
दें उजियारा आत्म-दीप बन निश-दिन जलकर.
- सलिल
*************************************
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
12 कविताप्रेमियों का कहना है :
ज्ञानवर्धक जानकारी मिली .दिवाली की हार्दिक शुभ कामनाएं .
आदरणीय गुरुदेव,
प्रणाम!
एक कोशिश की है मैंने 'अमृतध्वनि' छंद लिखने की. अपनी प्रतिक्रिया दें कृपया.
आ गयी फिर दीवाली, ख़ुशी का त्यौहार
घर बाहर हो रोशनी, छाई अजब बहार
धूमधाम से, इसे मनाएँ, मिल साथ साथ
लक्ष्मी माँ के, आगे झुकते, सभी के माथ
बाँटें लड्डू, आज सभी को, फिर गले मिलें
प्रेम-भावना, भरे ह्रदय को, जब दीप जलें.
एक दोहा भी:
अर्पित है शुभकामना, सभी को साथ-साथ
और झुकाऊँ आपके, आगे अपना माथ.
नए विषय से अवगत कराने के लिए शुक्रिया। यह हम जैसे उन हिन्दी प्रेमियों के लिए निश्चित ही काफी लाभप्रद है जिन्होंने अन्य विषयों से शिक्षा ग्रहण की है।
मीत गीत के
जलो दीप बन.
तिमिर पान कर
अमर रहो..
अमृतध्वनि मेरे लिए भी सर्वथा नई है. सलिल जी ज्ञानवर्धन कराने के लिए धन्यवाद् और रचनाओं के लिए बधाई.
आचार्य जी
अमृतध्वनी और कुण्डली में क्या अन्तर है। शायद अमृतध्वनी में 8 मात्राओं के तीन चरण है और कुण्डली में नहीं। लेकिन ये दोनों एक से लगते हैं। शीघ्र ही यह छंद बनाकर प्रस्तुत करूंगी। दीवाली की सभी को शुभकामनाएं।
आचार्य को प्रणाम,,,
सभी छात्रों को एवं आचार्य को मेरी और से दिवाली की हार्दिक शुभकामनाएं....
साथ ही इश्वेर से प्रार्थना है के आचार्य अपने अतुलित ज्ञान से सदैव ज्ञान की gangaa jamunaa bahaate rahein..
और हाँ,,,
ये shanno जी की vishesh खबर ijiyega..
दो दो kament deleat कर दिए...
FREE के आते हैं क्या coments ...?
मनु जी,
बहुत अच्छा लगा आपका कमेन्ट पढ़कर और सोचा की चलो किसी बहाने आपने कक्षा में झाँका तो. हाँ जी, हिन्दयुग्म पर कमेन्ट फ्री ही आते हैं और हटाने का भी कोई चार्ज नहीं करता ना ही कोई दंड की व्यवस्था की गयी है अब तक. सो अब तक तो स्वतंत्रता है इस मामले में. इसीलिये तो बेखटक अपने कमेंट्स हटा लिये थे. असल में कुछ गड़बड़ दिखी तो उन्हें आपकी नज़र पड़ने के पहले ही गायब कर दिया. खैर, आपने नोटिस करने की जो तकलीफ की उसका बेहद शुक्रिया. और आपको भी सपरिवार दीवाली की तमाम शुभकामनाएँ. हमेशा खुश रहिये और अपने कमेंट्स के पटाखे छोड़ते रहिये.
सभी लोगों को दीवाली की हार्दिक शुभकामनायें.
सलिल जी नमस्कार|
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)