दोहा के जिन २३ प्रकारों की चर्चा अब तक की गयी है उन पर गजाधर कवि ने 'छंद मंजरी' में निम्न छंद दिया है_
भ्रमर१ सुभ्रामर२ शरभ३ श्येन४ मंडूक५ बखानहु।
मरकत६ करभ७ सु और नरहि८ हंसहि९ परमानहु।
गनहु गयंद१०सु और पयोधर११ बल१२ अवरेखहु
वानर१३ त्रिकल१४ प्रतच्छ कच्छ्पहु१५ मच्छ१६ विसेखहु
शार्दूल१७ अहिबरहु१८ व्याल१९युत वर विडाल२० अरु
अश्व२१ गनि उद्दाम उदर२२ अरु सर्प२३ शुभ तेइस विधि दोहा करनि।
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वर्जित है चंडालिनी, दोहा रचना मीत.
विषम चरण-आरम्भ में, जगण न रखिये रीत..
आज हम चंडालिनी दोहा की चर्चा करेंगे.
दोहा के मानक नियमों में विषम चरण (पहला, तीसरा) के आदि (प्रारंभ) में 'जगण' ( जभान = १+२+१) का प्रयोग एक चरण में वर्जित है. चंडालिनी दोहा इस नियम को तोड़ता है इसलिए इसका लिखना ही मना किया गया है.
अनेक कवियों ने विषम चरण के आरम्भ में दो शब्दों में 'जगण' वाले दोहे रचे हैं और उन्हें सही कहा गया है.
उदाहरण:
१. महाकवि बिहारी
जु ज्यों उझकि झंपति वदन, झुकति विहँसि सतरात.
तुल्यो गुलाल झुठी-मुठी, झझकावत पिय जात..
२. वृन्द
भले-बुरे सब एक संग, जों लौ बोलत नाहि.
जान पडत हैं काक-पिक, ऋतु वसंत के मांहि.
३. डॉ. अनंतराम मिश्र 'अनंत'
भीतर तो अवसन्न है, बाहर दिखे प्रसन्न.
सुखी नहीं हैं आजकल, लोग मात्र संपन्न..
वर्जित चंडालिनी दोहा निम्न है:
१. ॐप्रकाश बरसैंया 'ओमकार'
बिना विचारे जो स्वबल, बढ़के उछले दूर.
अशक्ति से अरमान सब, होते चकनाचूर.
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19 कविताप्रेमियों का कहना है :
आप पाठको को भिन्न भिन्न प्रकार के दोहो का ज्ञान करा रहे हैं. बधाई.
अनेक प्रकार के दोहो के बारे में अच्छी जानकारी दे रहे है, धन्याद
विमल कुमार हेडा
दोहा रचना के बारे मे आप जो ज्ञान उपलब्ध करा रहे है..
हम उसके लिए तहे दिल से आभारी हैं..
गुरु जी
नमस्ते .
आप के द्वारा दोहे के ३३ प्रकार पता लगे .समय मिलते ही गृह कार्य करूंगी , आभार .
मंजू जी!
दोहा के प्रकार ३३ नहीं २३ हैं. दोहा गाथा सनातन की यह ३३वी श्रृंखला है.
गुरु जी,प्रणाम
कब भागे चंडालिनी, मैं जाती हूँ काँप
डर लागे बहुतय मुझे, आँखें ली हैं ढाँप.
aur Guru ji,
Woh sonnet ke kaam wali ...e-mail...uska..kya?
आचार्य जी आपने दोहों के बारे में जो जानकारी उपलब्ध कराई है, वह शायद किसी महाविद्यालय में भी प्राप्त नहीं होती। हम सब आपके आभारी हैं। अब अन्य छन्दों के बारे में भी बताएं तो सभी पाठक लाभान्वित होंगे।
शन्नो जी!
ब्युटीपार्लर भेजिए, चंडालिनी को आप.
विश्व सुन्दरी बन सके, सकल जगत में व्याप..
पूजा जी!
संचालक जी से करें, आप अगर अनुरोध.
अन्य छंद आ जाल पर, हमको सकें प्रबोध.
शामिख विनय विनोद जी, मंजु मृदुल यह छंद.
भाव ह्रदय-बाहर करे, जो वर्षों से बंद..
गुरु जी
राम-राम
चंडालिनी को लाकर, दिया जाल पर थोप
अब कितने दिन देखिये, सहना पड़े प्रकोप.
जादू - वादू कुछ करें, या कुछ करें फरेब
ब्यूटीपार्लर जाये, खाली करिये जेब.
चंडालिनी भयभीत है, पढ़ शन्नो का नाम.
कक्षानायिका है जहाँ, अन्यों का क्या काम?
भले-बुरे सब एक संग, जों लौ बोलत नाहि.
जान पडत हैं काक-पिक, ऋतु वसंत के मांहि
bachpan me ise padha tha ki yah doha hai ,par usme bhi aur aage prakaar hain ,soch kar hi dar lag gayaa .tab hi maatarayen lagaate lagaate dukhi ho jaate the .in doho ko padhte hue anayaas hi bachpan ke wo din yaad aa gaye ,bhmulay gyaan ke liye aabhar .
shanno ji ki chandalini aapko baht baht mubaarak ,shanno ji lagta hai hindygm ki hasi ki phuhaar fir se waapas aanewaali hai .
हाय राम! गुरुदेव जी, होता मुझे प्रतीत
डांट रहा चोर मुझे, यह कैसी है रीत.
सच बोलूँ तो यह बला, खुद लाये हो आप
पास न कोई आ रहा, ली है रस्ता नाप.
घूरे है चंडालिनी, कैसा हुआ प्रताप
उसका है सत्कार अब, मुझको है संताप.
छिप जाती हूँ मैं कहीं, ना मुझको दें दोष
फिर नाचे चंडालिनी, सबको हो संतोष.
नीलम जी, न्याय करें, यह ना कोई बात
गुरु जी दोष लगा रहे, मन पर हो आघात.
विकट रूप धारण करे, हा-हा करती हास
दहाड़ कर चंडालिनी, हमें बुलाये पास.
गुरु आज्ञा शिरोधार्य , भगवत बोल समान,
शीश रख गुरु चरणों में, जग में बढ़ता मान.
करें विनय कर जोड़ हम, छंद सीखन की चाह,
संचालक दें हरी बत्ती, शुभ प्रशस्त हो राह.
अजित हुई चंडालिनी, पा नीलम का साथ.
शन्नो की पूजा करे, दोहा जोड़े हाथ..
अब रचिए चंडालिनी, हो सबको अभ्यास.
क्यों वर्जित करिए तनिक, इसका भी आभास..
विषम चरण-आरंभ में, वर्जित जगण हमेश.
मत रख लघु गुरु लघु 'सलिल', एक शब्द में लेश.
एक शब्द में जगण से, होती है लय भंग.
इसीलिये चंडालिनी, वर्जित करें न जंग..
( यह चंडालिनी दोहा है. 'इसीलिए' बोलते समय 'इसी' और 'लिए' का उच्चारण एक शब्द में एक साथ करें तो लय भंग होती है.)
एक शब्द में जगण से, होती है लय भंग.
इसी लिये चंडालिनी, वर्जित करें न जंग..
अब तीसरे चरण में 'इसी' और 'लिए' को अलग-अलग बोलें तो लय भंग नहीं होती इसीलिये तृतीय चरण के आरम्भ में एस शब्द में जगण वर्जित है.
अनाप - शनाप बक रही, गुरु जी बैठे कूल
चंडालिनी से बचिये, फेंक रही है धूल.
हेलो ! क्या कक्षा में कोई है?
मौन लगा गये गुरु जी, करें न कोई बात
कक्षा में नहीं हो रहा, अब कोई उत्पात.
bachho ki muskaan me maine dekha tujko
Aye sari duniya ke malik baccha kar de mujko
-shahjahan ''SHAD''
Kripiya bataye is dohe me kya kami hai.
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