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Wednesday, September 09, 2009

मुझको नशे से ज्यादा नशा,प्यास में रहा-shyam skha



यूं तो वो हमेशा ही दिल के पास में रहा
पर,उसका जल्वा मुस्तकिल कयास में रहा

उसको ही ढूंढते रहे,कैसे थे बेखबर
हर वक्त ही जो अपने आस-पास में रहा

खुशबू बसी हुई है जिस तरह से फूल में
ऐसे ही कुछ वो मेरी सांस-सांस में रहा


वो जिन्दगी से दूर, बहुत दूर जा बसे
ता-उम्र मुन्तजिर मैं जिनकी आस में रहा

पीने को लोग ओक से भी पी गये मगर
उलझा हुआ मैं बोतलो-गिलास में रहा

पीने के बाद भी मेरी ,मिटती नहीं तलब
मुझको नशे से ज्यादा नशा,प्यास में रहा

फ़नकार अपने बीच नहीं है तो क्या हुआ
उसका वजूद कैद कैनवास में रहा

तौबा को तोड़ पी थी जिन्होने ,वो सब थे धुत
था रिन्द ही जो होश और हवास में रहा

तल्खी में हकीकत की मिला जो मजा
यारो कहां वो झूठ की मिठास में रहा

सूरज तो जल के मर गया अपनी ही आग में
पर चांद जिन्दा,उसके ही उजास में रहा


जो चापलूस बन न सका,उम्दा किस्म का
दरबारे शाह में वो कहां खास में रहा

समझेगा किस तरह वो गरीबों के दर्द को
शाही ठाठ-बाट शाही निवास में रहा


नंगे खड़े थे दोस्त सभी तो हमाम में
तू ही अकेला किसलिये लिबास में रहा


बारीकियां अदब की कहां सीख सका वो
उलझा हुआ जो हर घड़ी छ्पास में रहा

राधा का‘श्याम’ भी था वो मीरा का‘श्याम’ भी
जो गोपियों के साथ मस्त,रास में रहा

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20 कविताप्रेमियों का कहना है :

Shamikh Faraz का कहना है कि -

कुछ शे'र दिल को छू गए श्याम जी.

उसको ही ढूंढते रहे,कैसे थे बेखबर
हर वक्त ही जो अपने आस-पास में रहा

पीने को लोग ओक से भी पी गये मगर
उलझा हुआ मैं बोतलो-गिलास में रहा

पीने के बाद भी मेरी ,मिटती नहीं तलब
मुझको नशे से ज्यादा नशा,प्यास में रहा

नंगे खड़े थे दोस्त सभी तो हमाम में
तू ही अकेला किसलिये लिबास में रहा

निर्मला कपिला का कहना है कि -

लाजवाब गज़ल है
उसको ही ढूंढते रहे,कैसे थे बेखबर
हर वक्त ही जो अपने आस-पास में रहा

खुशबू बसी हुई है जिस तरह से फूल में
ऐसे ही कुछ वो मेरी सांस-सांस में रहा
नंगे खड़े थे दोस्त सभी तो हमाम में
तू ही अकेला किसलिये लिबास में रहा
बहुत खूबसूरत अद्भुत स्गेर हैं बधाई इस सुन्दर गज़ल के लिये

नवनीत नीरव का कहना है कि -

Bahut hi khoobsoorati se aapne har bat kah di hai.Pasand aayi apki ye gazal.

Anonymous का कहना है कि -

जो चापलूस बन न सका,उम्दा किस्म का
दरबारे शाह में वो कहां खास में रहा
समझेगा किस तरह वो गरीबों के दर्द को
शाही ठाठ-बाट शाही निवास में रहा

पूरी की पूरी रचना बहुत ही सुन्दर है बार बार पढ़ने को जी चाहता है , बहुत बहुत बधाई
धन्याद

विमल कुमार हेडा

Manju Gupta का कहना है कि -

गज़ल के साथ मकता भी लाजवाब है .
बधाई

Riya Sharma का कहना है कि -

वो जिन्दगी से दूर, बहुत दूर जा बसे
ता-उम्र मुन्तजिर मैं जिनकी आस में रहा

फ़नकार अपने बीच नहीं है तो क्या हुआ
उसका वजूद कैद कैनवास में रहा

सूरज तो जल के मर गया अपनी ही आग में
पर चांद जिन्दा,उसके ही उजास में रहा
Wonderful !!!

Riya Sharma का कहना है कि -

वो जिन्दगी से दूर, बहुत दूर जा बसे
ता-उम्र मुन्तजिर मैं जिनकी आस में रहा

फ़नकार अपने बीच नहीं है तो क्या हुआ
उसका वजूद कैद कैनवास में रहा

सूरज तो जल के मर गया अपनी ही आग में
पर चांद जिन्दा,उसके ही उजास में रहा
Wonderful !!!

अमित का कहना है कि -

ग़ज़ल बहुत उम्दा है !
"दिल के पास में रहा "
"अपने आस पास में रहा " कुछ अखर सा रहा है ... " पास रहा" , "आस पास रहा" ज्यादा ठीक लग रहा है!
भाव बहुत अच्छे हैं !बधाई

दिपाली "आब" का कहना है कि -

bahut shaandar gazal kahi hai,

mera fav sher raha
सूरज तो जल के मर गया अपनी ही आग में
पर चांद जिन्दा,उसके ही उजास में रहा

amazing.. bahut khoobsurat gazal kahi hai. badhai

manu का कहना है कि -

ek ek she'r laajawaab hai shyaam ji....

majaa aa gayaa...

Nikhil का कहना है कि -

'बारीकियां अदब की कहां सीख सका वो
उलझा हुआ जो हर घड़ी छ्पास में रहा'

ये एक नया शेर लगा...बाकी शेर भी अच्छे हैं...आपकी गज़लें एकदम लय में होती हैं...

gazalkbahane का कहना है कि -

मित्रो,
एक और गज़ल अपनाने पर आप सभी का आभार.
इससे पहली उठ रहा धुआं ये और ८-१० और गज़ल मेरे गज़ल लेखन के शुरूआती दिनों की यानि ३५-४०
वर्ष पहले की गज़लें हैं ,जब यह माना जाता था कि गज़ल की भाषा केवल उर्दू और मौजूं हुस्न,शवाब,इश्क ही हो सकते हैं,इसके बाद सारिका के अंक में श्री दुष्यन्त को पढ मेरी व मेरे पीढी की यह धारणा बदली और मैने भी औरों की तरह हिन्दी या हिदोस्तानी में गज़ल कहना आरम्भ किया,और गमें दौरां का दौर चल पड़ा।लेकिन मेरा मानना है कि इश्क या प्रेम ऐसा सब्जेक्ट है जो कभी पुराना या बासी नहीं हो सकता।
श्याम सखा श्याम

neelam का कहना है कि -

तल्खी में हकीकत की मिला जो मजा
यारो कहां वो झूठ की मिठास में रहा

sabhi she'r behad umda hain

विश्व दीपक का कहना है कि -

उम्दा गज़ल।
हरेक शेर काबिल-ए-तारीफ़ है।

बधाई स्वीकारें।

-विश्व दीपक

Shanno Aggarwal का कहना है कि -

श्याम जी,
हर बार की तरह यह ग़ज़ल भी बहुत ही खूबसूरत लगी.

Unknown का कहना है कि -

उसको ही ढूंढते रहे,कैसे थे बेखबर
हर वक्त ही जो अपने आस-पास में रहा

खुशबू बसी हुई है जिस तरह से फूल में
ऐसे ही कुछ वो मेरी सांस-सांस में रहा

वो जिन्दगी से दूर, बहुत दूर जा बसे
ता-उम्र मुन्तजिर मैं जिनकी आस में रहा

पीने को लोग ओक से भी पी गये मगर
उलझा हुआ मैं बोतलो-गिलास में रहा



दर्द और शब्दों की रसमय विरल हाला प्रतीत हो रही है ये रचना ...................इस कृति के लिए बहुत बहुत धन्यवाद

देवेन्द्र पाण्डेय का कहना है कि -

सबकी तारीफ समझना है मेरे नाम से
अब और क्या कहूँ मैं अपने श्याम से।

यूँ ही पढ़ता रहा मैं आपकी गज़ल
लिखने लगुंगा मैं भी इक दिन आराम से।
--देवेन्द्र पाण्डेय।

Admin का कहना है कि -

बेहतर ग़ज़ल है लेकिन न जाने क्यों दिल में नहीं उत्तर पाई...

Anonymous का कहना है कि -

नंगे खड़े थे दोस्त सभी तो हमाम में
तू ही अकेला किसलिये लिबास में रहा


very good

romesh singh

Vivek Kumar Pathak का कहना है कि -

पीने को लोग ओक से भी पी गये मगर
उलझा हुआ मैं बोतलो-गिलास में रहा
(अाैर)
तौबा को तोड़ पी थी जिन्होने ,वो सब थे धुत
था रिन्द ही जो होश और हवास में रहा
अादरण्ााीय सखा जी
इस गजल की श्ाान में कुछ भ्ाी कहने की गुस्ताखी नहीं करना चाहता । बस वाह-वाह, वाह-वाह, वाह-वाह...........दिल खुश्ा हाे गया । लाजवाब.........
विवेक कुमार पाठक

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