यूं तो वो हमेशा ही दिल के पास में रहा
पर,उसका जल्वा मुस्तकिल कयास में रहा
उसको ही ढूंढते रहे,कैसे थे बेखबर
हर वक्त ही जो अपने आस-पास में रहा
खुशबू बसी हुई है जिस तरह से फूल में
ऐसे ही कुछ वो मेरी सांस-सांस में रहा
वो जिन्दगी से दूर, बहुत दूर जा बसे
ता-उम्र मुन्तजिर मैं जिनकी आस में रहा
पीने को लोग ओक से भी पी गये मगर
उलझा हुआ मैं बोतलो-गिलास में रहा
पीने के बाद भी मेरी ,मिटती नहीं तलब
मुझको नशे से ज्यादा नशा,प्यास में रहा
फ़नकार अपने बीच नहीं है तो क्या हुआ
उसका वजूद कैद कैनवास में रहा
तौबा को तोड़ पी थी जिन्होने ,वो सब थे धुत
था रिन्द ही जो होश और हवास में रहा
तल्खी में हकीकत की मिला जो मजा
यारो कहां वो झूठ की मिठास में रहा
सूरज तो जल के मर गया अपनी ही आग में
पर चांद जिन्दा,उसके ही उजास में रहा
जो चापलूस बन न सका,उम्दा किस्म का
दरबारे शाह में वो कहां खास में रहा
समझेगा किस तरह वो गरीबों के दर्द को
शाही ठाठ-बाट शाही निवास में रहा
नंगे खड़े थे दोस्त सभी तो हमाम में
तू ही अकेला किसलिये लिबास में रहा
बारीकियां अदब की कहां सीख सका वो
उलझा हुआ जो हर घड़ी छ्पास में रहा
राधा का‘श्याम’ भी था वो मीरा का‘श्याम’ भी
जो गोपियों के साथ मस्त,रास में रहा
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
20 कविताप्रेमियों का कहना है :
कुछ शे'र दिल को छू गए श्याम जी.
उसको ही ढूंढते रहे,कैसे थे बेखबर
हर वक्त ही जो अपने आस-पास में रहा
पीने को लोग ओक से भी पी गये मगर
उलझा हुआ मैं बोतलो-गिलास में रहा
पीने के बाद भी मेरी ,मिटती नहीं तलब
मुझको नशे से ज्यादा नशा,प्यास में रहा
नंगे खड़े थे दोस्त सभी तो हमाम में
तू ही अकेला किसलिये लिबास में रहा
लाजवाब गज़ल है
उसको ही ढूंढते रहे,कैसे थे बेखबर
हर वक्त ही जो अपने आस-पास में रहा
खुशबू बसी हुई है जिस तरह से फूल में
ऐसे ही कुछ वो मेरी सांस-सांस में रहा
नंगे खड़े थे दोस्त सभी तो हमाम में
तू ही अकेला किसलिये लिबास में रहा
बहुत खूबसूरत अद्भुत स्गेर हैं बधाई इस सुन्दर गज़ल के लिये
Bahut hi khoobsoorati se aapne har bat kah di hai.Pasand aayi apki ye gazal.
जो चापलूस बन न सका,उम्दा किस्म का
दरबारे शाह में वो कहां खास में रहा
समझेगा किस तरह वो गरीबों के दर्द को
शाही ठाठ-बाट शाही निवास में रहा
पूरी की पूरी रचना बहुत ही सुन्दर है बार बार पढ़ने को जी चाहता है , बहुत बहुत बधाई
धन्याद
विमल कुमार हेडा
गज़ल के साथ मकता भी लाजवाब है .
बधाई
वो जिन्दगी से दूर, बहुत दूर जा बसे
ता-उम्र मुन्तजिर मैं जिनकी आस में रहा
फ़नकार अपने बीच नहीं है तो क्या हुआ
उसका वजूद कैद कैनवास में रहा
सूरज तो जल के मर गया अपनी ही आग में
पर चांद जिन्दा,उसके ही उजास में रहा
Wonderful !!!
वो जिन्दगी से दूर, बहुत दूर जा बसे
ता-उम्र मुन्तजिर मैं जिनकी आस में रहा
फ़नकार अपने बीच नहीं है तो क्या हुआ
उसका वजूद कैद कैनवास में रहा
सूरज तो जल के मर गया अपनी ही आग में
पर चांद जिन्दा,उसके ही उजास में रहा
Wonderful !!!
ग़ज़ल बहुत उम्दा है !
"दिल के पास में रहा "
"अपने आस पास में रहा " कुछ अखर सा रहा है ... " पास रहा" , "आस पास रहा" ज्यादा ठीक लग रहा है!
भाव बहुत अच्छे हैं !बधाई
bahut shaandar gazal kahi hai,
mera fav sher raha
सूरज तो जल के मर गया अपनी ही आग में
पर चांद जिन्दा,उसके ही उजास में रहा
amazing.. bahut khoobsurat gazal kahi hai. badhai
ek ek she'r laajawaab hai shyaam ji....
majaa aa gayaa...
'बारीकियां अदब की कहां सीख सका वो
उलझा हुआ जो हर घड़ी छ्पास में रहा'
ये एक नया शेर लगा...बाकी शेर भी अच्छे हैं...आपकी गज़लें एकदम लय में होती हैं...
मित्रो,
एक और गज़ल अपनाने पर आप सभी का आभार.
इससे पहली उठ रहा धुआं ये और ८-१० और गज़ल मेरे गज़ल लेखन के शुरूआती दिनों की यानि ३५-४०
वर्ष पहले की गज़लें हैं ,जब यह माना जाता था कि गज़ल की भाषा केवल उर्दू और मौजूं हुस्न,शवाब,इश्क ही हो सकते हैं,इसके बाद सारिका के अंक में श्री दुष्यन्त को पढ मेरी व मेरे पीढी की यह धारणा बदली और मैने भी औरों की तरह हिन्दी या हिदोस्तानी में गज़ल कहना आरम्भ किया,और गमें दौरां का दौर चल पड़ा।लेकिन मेरा मानना है कि इश्क या प्रेम ऐसा सब्जेक्ट है जो कभी पुराना या बासी नहीं हो सकता।
श्याम सखा श्याम
तल्खी में हकीकत की मिला जो मजा
यारो कहां वो झूठ की मिठास में रहा
sabhi she'r behad umda hain
उम्दा गज़ल।
हरेक शेर काबिल-ए-तारीफ़ है।
बधाई स्वीकारें।
-विश्व दीपक
श्याम जी,
हर बार की तरह यह ग़ज़ल भी बहुत ही खूबसूरत लगी.
उसको ही ढूंढते रहे,कैसे थे बेखबर
हर वक्त ही जो अपने आस-पास में रहा
खुशबू बसी हुई है जिस तरह से फूल में
ऐसे ही कुछ वो मेरी सांस-सांस में रहा
वो जिन्दगी से दूर, बहुत दूर जा बसे
ता-उम्र मुन्तजिर मैं जिनकी आस में रहा
पीने को लोग ओक से भी पी गये मगर
उलझा हुआ मैं बोतलो-गिलास में रहा
दर्द और शब्दों की रसमय विरल हाला प्रतीत हो रही है ये रचना ...................इस कृति के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
सबकी तारीफ समझना है मेरे नाम से
अब और क्या कहूँ मैं अपने श्याम से।
यूँ ही पढ़ता रहा मैं आपकी गज़ल
लिखने लगुंगा मैं भी इक दिन आराम से।
--देवेन्द्र पाण्डेय।
बेहतर ग़ज़ल है लेकिन न जाने क्यों दिल में नहीं उत्तर पाई...
नंगे खड़े थे दोस्त सभी तो हमाम में
तू ही अकेला किसलिये लिबास में रहा
very good
romesh singh
पीने को लोग ओक से भी पी गये मगर
उलझा हुआ मैं बोतलो-गिलास में रहा
(अाैर)
तौबा को तोड़ पी थी जिन्होने ,वो सब थे धुत
था रिन्द ही जो होश और हवास में रहा
अादरण्ााीय सखा जी
इस गजल की श्ाान में कुछ भ्ाी कहने की गुस्ताखी नहीं करना चाहता । बस वाह-वाह, वाह-वाह, वाह-वाह...........दिल खुश्ा हाे गया । लाजवाब.........
विवेक कुमार पाठक
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)