मानव मन बना है प्रस्तर .
मानव क्या लेकर जाएगा,
मिटटी में खुद मिल जाएगा,
इस जग में फिर कैसे कैसे, ढ़ो रहा आडंबर .
मानव मन बना है प्रस्तर .
पैसा पापों का मूल बना,
हर रिश्ता लगता शूल बना,
अपने हाथ अपनों को मार, नाच रहा दिगंबर .
मानव मन बना है प्रस्तर .
छल, कपट, झूठ पहचान बनी,
सच बात लगे अब झूठ सनी,
लहू पीने को बेताब है, ले हाथ में खंजर .
मानव मन बना है प्रस्तर .
कवि कुलवंत सिंह
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15 कविताप्रेमियों का कहना है :
मानव क्या लेकर जाएगा,
मिटटी में खुद मिल जाएगा,
Sachcha Bhav..Sachchi Kavita..
badhayi..
वाह.
मानव क्या लेकर जाएगा,
मिटटी में खुद मिल जाएगा,
बहुत सुन्दर रचना है बधाई
सही लिखा है .. सुदर अभिव्यक्ति !!
bahut hi sundar rachana
sundar rachna.sampadak ji mai gaurav solanki ji ki sari kavitayen padhna chahta hoon,kripya link deejiye
sundar rachna.sampadak ji mai gaurav solanki ji ki sari kavitayen padhna chahta hoon,kripya link deejiye
मानव के स्वार्थ की भावभूमि पर लिखी कविता जीवन के अंतिम सच को दर्शाती है .
बल्ले बल्ले
kya koi bata sakta hai k yunikavi pratiyogita k parinam kab ghoshit honge.
kya koi bata sakta hai k yunikavi pratiyogita k parinam kab ghoshit honge.
छल, कपट, झूठ पहचान बनी,
सच बात लगे अब झूठ सनी,
अच्छी रचना, बहुत बहुत बधाई, धन्याद
विमल कुमार हेडा
मानव मन बना है प्रस्तर .
मानव क्या लेकर जाएगा,
मिटटी में खुद मिल जाएगा,
इस बार तो मज़ा आ गया. जीवन के यथार्थ को खोल कर रख दिया.
सुन्दर गीत है |
बधाई |
अवनीश तिवारी
लहू पीने को बेताब है, ले हाथ में खंजर .
मानव मन बना है प्रस्तर
bahoot sarthak panktiyaan hain
उम्दा गीत...
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