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Tuesday, August 11, 2009

माँ ने छत पर मूँग का पौधा लगाया ताकि


21 दिसम्बर 1953 को ऋषिकेश (उत्तराखंड) में जन्मी मंजु गुप्ता एम ए (राजनीति शास्त्र) और बी॰एड॰ जैसी पढ़ाइयाँ की है। जयहिंद जुनियर हाई स्कूल एवं पंजाब-सिंध क्षेत्र हाई स्कूल, ऋषिकेश में अध्यापन कर चुकीं मंजु वर्तमान में जयपुरियर, हाई स्कूल, सानपाडा, नवी मुंबई में हिंदी शिक्षिका हैं। योग, खेल, जन-सम्पर्क, पेंटिग में रुचि रखने वाली मंजु की 2000 से अधिक रचनाएँ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं। प्रान्त पर्व पयोधि (काव्य), दीपक (नैतिक कहानियाँ) सॄष्टि (खंड काव्य), संगम (काव्य), अलबम (नैतिक कहानियाँ), भारत महान (बाल गीत), सार (निबंध), परिवर्तन (नैतिक कहानियाँ) इनकी पुस्तकें हैं और जज्बा (देशभक्ति के गीत) प्रेस में है। समस्त भारत की विशेषताओं को प्रांत पर्व पयोधि में समेटने वाली प्रथम महिला कवयित्री का श्रेय मंजु को प्राप्त है। मुम्बई दूरदर्शन द्वारा आयोजित साम्प्रदायिक सद्‍भाव-सौहार्द्र पर कवि सम्मेलन में सहभाग, गांधी की जीवन शैली, निबंध-स्पर्धा में तुषार गांधी द्वारा विशेष सम्मान से सम्मानित, शाम-ए-मुशायरा में सहभागिता, ट्विन सिटी व्यंजन स्पर्धा में प्रथम, मॉडर्न कॉलेज, वाशी द्वारा सावित्रीबाई फूले पुरस्कार से सम्मानित, भारतीय संस्कॄति प्रतिष्ठान द्वारा आयोजित प्रीत रंग प्रतियोगिता में पुरस्कॄत, राष्ट्रीय स्तर पर 1967 में उत्तर प्रदेश की खेल स्पर्धा में पुरस्कॄत, आकाशवाणी मुंबई से कविताएं प्रसारित, राष्ट्रभाषा महासंघ द्वारा पुरस्कृत।
सम्मान: वार्ष्णेय सभा, मुंबई द्वारा वार्ष्णेय चेरिटेबल नवी मुंबई द्वारा एकता वेलफेयर कल्चर असोसिएन मैत्रेय फाउंडेशन, विरार

पुरस्कृत कविता- कंकड़

अधिकतर बच्चों को नहीं मालूम होता
पेड़ पौधों के बारे में

आठ साल की बेटी की जानकारी के लिए
मॉँ ने छत पर बनाया बगीचा
तरह-तरह के फूल-पौधे लगाए
मूंग की दाल भी अंकुरित हुई
कुछ दिनों बाद उस हरे पौधे पर
हल्के पीले फूलों का बसंत था छाया
फिर उस पर लम्बी फलियाँ लगीं
माँ ने बेटी को दिखा कर बताया
यह है मूँग की फली
डाली से एक फली तोड़ी
हाथ से फली खोल कर
बेटी के हाथ में दाने रख कर
कहा ……
कितने सुंदर हैं ये हरे मूंग के दाने
इसी से बनती है दली मूंग की दाल
आश्चर्य से भोलेपन से बेटी ने पूछा
माँ इसमें कंकड़ कहाँ है लगता
यह भी तो बताओ………………


प्रथम चरण मिला स्थान- आठवाँ


द्वितीय चरण मिला स्थान- दूसरा


पुरस्कार और सम्मान- सुशील कुमार की ओर से इनके पहले कविता-संग्रह 'कितनी रात उन घावों को सहा है' की एक प्रति।

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13 कविताप्रेमियों का कहना है :

Arshia Ali का कहना है कि -

Bahut Bahut Badhaayee.
{ Treasurer-T & S }

विनोद कुमार पांडेय का कहना है कि -

सुंदर भाव..
भोली बच्ची ने शायद सुन रखा था की दाल मे कंकड़ होता है. अब यह दाल किस स्थिति मे उसके समक्ष आएँ उसे क्या पता.

Neeraj Kumar का कहना है कि -

अधिकतर बच्चों को नहीं मालूम होता
पेड़ पौधों के बारे में...
बहुत ही सही बात है,खासकर शहर में रहने वाले बच्चों का ज्ञान तो किताबी होता है...
इस कविता को पढ़ते ही मुझे अपने बचपन की याद आ गयी---
उस समय मैं दस साल का रहा हूँगा...और दिल्ली में ही रहता था...
मैंने सुन रखा था कि मिटटी में कोई अनाज डालने पर उससे उसके पौधे निकल आते हैं... मेरी मम्मी के पास कुछ रंगें हुए चावल थे पूजा के लिए शायद...
मैंने अपने भाई-बहन के साथ सभी चावल को ले जाकर छल पे रखी पुराणी पानी कि टंकी में दल दी...उसमे छत को बुहार कर धुल-मिटटी फैंकी जाती थी...
बहुत दिनों तक कोई पौधा नहीं निकला तो हम मायूस हो गए...बाद में मम्मी को पता चला तो उन्होंने बताया कि चावल नहीं, बुद्धू, धान डालने पर धान के पौधे निकलते हैं और धान से चावल निकट है...
तब हमने उनकी "शादी के लाल धान" कि चोरी कि और टंकी में दाल दिया...
फिर भी कोई पौधा नहीं निकला... क्योंकि...हम टंकी का मुंह ढक्कन से बंद कर दिया करते थे....
हुंह...हा-हा-हा...

neelam का कहना है कि -

मंजू जी आप की कविता सरल ,सरस व् सहज लगी ,बालमन की भोली बात का सुन्दर चित्रण दूसरे स्थान पर आने की बधाई स्वीकारें |

निर्मला कपिला का कहना है कि -

विनोद जी सही कह रहे हैं ये मिलावट करने वालों पर भी सीधी चोट है बहुत सुन्दर कविता मंजू जी को बधाई

Disha का कहना है कि -

अच्छी रचना है
संदेश भि अच्छा है

Manju Gupta का कहना है कि -

सर्वप्रथम तो हिंदयुग्म को बधाई दे रही हूं कि उन्हें कविता पसंद आई और छ साहित्य प्रेमियों को भी .जिन्होंने चुलबुली ,प्यारी -प्यारी प्रतिक्रिया दी हैं .कविता हकीकत को बयाँ करती है ,जब मेरी बेटियाँ छोटी थी तब मूंग गमले लगाई थी . तब उन्हें फली दिखाई थी . आज भी गमले में लगी है .इसकी फोटो इ-मेल करूंगी . यहीं से कविता का सर्जन हुआ . आज दोनों बेटियाँ डॉक्टर हैं , मेरी पहली श्रोता भी .आभार .

Manju Gupta का कहना है कि -

नीरज जी हा!ही!....बचपन याद करा दिया . सार्थक टिप्पणी लगी .धान लगाया क्या ...........?
बहुत-बहुत आभार .

kavi kulwant का कहना है कि -

bahut khoob..

सदा का कहना है कि -

माँ इसमें कंकड़ कहाँ है लगता
यह भी तो बताओ………………

बहुत ही सुन्‍दर, सत्‍यता के बेहद निकट बेहतरीन प्रस्‍तुति, आभार ।

Smart Indian का कहना है कि -

एक मासूम सवाल ने इतनी खूबसूरत कविता बना दी, वाह!

दिपाली "आब" का कहना है कि -

माँ इसमें कंकड़ कहाँ है लगता
यह भी तो बताओ………………

sundar rachna, samaaj ka aaina dikhati hui. badhai

Shamikh Faraz का कहना है कि -

मंजू जी अबभी तक बस आपकी टिप्पदी ही देखि थी., आज आपकी कविता से भी रूबरू हो लिया.

आश्चर्य से भोलेपन से बेटी ने पूछा
माँ इसमें कंकड़ कहाँ है लगता
यह भी तो बताओ………………

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