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Monday, August 10, 2009

शह‍र का कोना-कोना सिसकता मिला


राह में चाँद उस रोज चलता मिला
दिल का मौसम चमकता, दमकता मिला

देखना छुप के जो देख इक दिन लिया
फिर वो जब भी मिला तो झिझकता मिला

जाने कैसी तपिश है तेरे जिस्म में
जो भी नजदीक आया पिघलता मिला

रूठ कर तुम गये छोड़ जब से मुझे
शह‍र का कोना-कोना सिसकता मिला

किस अदा से ये कातिल ने खंजर लिया
कत्ल होने को दिल खुद मचलता मिला

चोट मुझको लगी थी मगर जाने क्यों
रात भर करवटें वो बदलता मिला

टूटती बारिशें उस पे यादें तेरी
छू के देखा तो हर दर्द रिसता मिला

बहर- 4 X फ़ायलुन

ग़ज़लगो- मेजर गौतम राजरिशी

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13 कविताप्रेमियों का कहना है :

अमिताभ मीत का कहना है कि -

बेहतरीन ग़ज़ल. क्या बात है मेजर साहब.

देखना छुप के जो देख इक दिन लिया
फिर वो जब भी मिला तो झिझकता मिला

ये शेर तो रह गया .....

Anonymous का कहना है कि -

wahi urdu gazal ke ghise pite latke jhatke

Anonymous का कहना है कि -

wahi qatil, wahi khanjar, wahi qatl, wahi baarish, wahi yaad, wahi chot, wahi tapish..., wahi sab 100001 baar ka dohraaya hua. gazal in ghise pite pratibimbon ke bojh se mari jaa rahi hai.
arre bhaai koi nayi baat bhi kabhi kaho. bas baher fit ho gayi, baki sab wahi.

Harihar का कहना है कि -

देखना छुप के जो देख इक दिन लिया
फिर वो जब भी मिला तो झिझकता मिला

वाह क्या बात है ! मेजर साहब !

manu का कहना है कि -

aur wahi anonymous....
hind yugm par...
पर अब के रोमन में....
राह में चाँद उस रोज चलता मिला
दिल का मौसम चमकता, दमकता मिला

लगा था जैसे गौतम का मतला हो.....मगर आप आम तौर पर हिंद-युग्म पर भेजते नहीं हैं ना अपनी गजल, इसलिए कन्फर्म नाम देख के ही हुआ...
सातों शे'र खूबसूरत बन पड़े हैं....
और जो आपको जानते हैं..उनके लिए एक एक शे'र एक अलग ही खलिश पैदा करता है..

चाहे,,,देखना छुप के जो देख इक दिन लिया
फिर वो जब भी मिला तो झिझकता मिला
या फिर,,,

चोट मुझको लगी थी मगर जाने क्यों
रात भर करवटें वो बदलता मिला

टूटती बारिशें उस पे यादें तेरी
छू के देखा तो हर दर्द रिसता मिला

और हाँ,
हमेशा आपके मकते को देख के एक बात सोचता हूँ...
के हम से ज्यादा "बे-तखल्लुस" तो आप हो...
:::)
सैल्यूट आपको....

neelam का कहना है कि -

चोट मुझको लगी थी मगर जाने क्यों
रात भर करवटें वो बदलता मिला

major saahb ,aap logon ke liye to sar waise hi sijde me jhuka rahta hai
aap log to hum sab ki hifajat me sadaiv mustaid ar ab naayab shaayri bhi.

neeti sagar का कहना है कि -

mujhe to ek-ek sher bahut achchha laga kha kar-चोट मुझको लगी थी मगर जाने क्यों
रात भर करवटें वो बदलता मिला
--bahut khoob!

Pritishi का कहना है कि -

Gazab !! Too good!

God bless
RC

Manju Gupta का कहना है कि -

सिसकते रहे हो तभी जानदार -शानदार गज़ल बनी है , बधाई .

manu का कहना है कि -

मेजर साब,
आते ही दो अलग अलग धुनों पे देखा है...
पता नहीं आपको क्या खटक रहा है इसमें....अगर एक प्रतिशत भी खटका होता तो शायद पोस्ट-मार्टम भी करके देख लेता,,,
मगर इस तकलीफदेह प्रक्रिया की जरूरत किसी भी तरह से महसूस नहीं हो रही..अब आप ही बताएं..
या यहाँ भी मजे ले रहे हैं हमसे...
होहोहोहोहोहोहोहोह

सदा का कहना है कि -

चोट मुझको लगी थी मगर जाने क्यों
रात भर करवटें वो बदलता मिला

बहुत ही सुन्‍दर अभिव्‍यक्ति ।

Shamikh Faraz का कहना है कि -

आपको इससे पहले भी मैंने कई बार पढ़ा है. मुबारकबाद.

किस अदा से ये कातिल ने खंजर लिया
कत्ल होने को दिल खुद मचलता मिला

दिपाली "आब" का कहना है कि -

shaandar gazal kahi hai

रूठ कर तुम गये छोड़ जब से मुझे
शह‍र का कोना-कोना सिसकता मिला

टूटती बारिशें उस पे यादें तेरी
छू के देखा तो हर दर्द रिसता मिला

yeh do sher khaas pasand aaye.
badhai

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