तारव अमित की एक कविता हमने पिछले महीने प्रकाशित की थी। आज हम इनकी एक और कविता प्रकाशित कर रहे हैं, जो 13वें स्थान पर है।
कविता
तू कौन है
मैंने पूछा-
“ईश्वर क्या है
पुराना है या नया है
अपना है या पराया है
अवतरित हुआ या पेट का जाया है
अँधेरे में है या दिखता है
ईमानदार है या बिकता है
इसका है, उसका है या अपना है
असंभव सच है या पूरा होता सपना है
बहलाने का हमें कोई जादू किया है
या जग को बनाया है, इसका मुखिया है
झुके सर का सजदा है .. पूजा है ..वंदना है ..
या स्व का अर्पण है मन की प्रार्थना है
सरपरस्त है या रहबर है
या कठपुतलियों का जादूगर है
तू ही बता क्यों मौन है
ईश्वर; तू कौन है !
वो कहते हैं तू कण-कण में है
युग में है, पल में है, हर क्षण में है
यहाँ वहां हर जगह व्याप्त है
फिर कैसे ये दुनिया दुःख से व्याप्त है
तू ही बता फूल के साथ कांटे क्यूँ होते हैं
लोग भूख, गरीबी, जहालत से क्यूँ रोते हैं
क्यूँ यहाँ अमीरी और गरीबी है
राग, द्वेष, ईर्ष्या और रक़ीबी है
क्यूँ हिंसा, फसाद और दंगे हैं
क्यूँ चेहरे पे नकाब हाथ खून से रंगे हैं
क्यूँ छल कपट और मारामारी है
दुर्घटना, आपदा और बीमारी है
यदि सच में तू है
तो ये सब क्यूँ है?
ईश्वर उवाच-
ये सच है की मैं धरती में हूँ, अम्बर में हूँ
दुश्मन में हूँ, रहबर में हूँ
सच में हूँ, झूठ में हूँ
हरियाली में हूँ, ठूँठ में हूँ
काले में हूँ, सफ़ेद में हूँ
समानता, समरस, और भेद में हूँ
हर अच्छे बुरे में पाया जाता हूँ
क्योंकि अच्छे बुरे का भेद मैं ही बताता हूँ
अगर ऐसा ना हो तो अच्छे को अच्छा कौन कहेगा
झूठ को गंदा सच को सच्चा कौन कहेगा
अनीति, अत्याचार, दुष्टता की कैसे बुराई होगी
यदि ये द्वैत ना हो तो कैसे इनसे लड़ाई होगी
यदि सबकुछ ही ठीक है
तो फिर बंद जीवन पथ की लीक है
कहाँ जाओगे, चलोगे कैसे
जिन्दगी जिओगे कैसे
तेरा जीवन तो फिर भी वरदान है
क्योंकि तू इंसान है
तू सोच सकता है, बता सकता है
रो सकता है, गा सकता है
तुझे अपनी बात का बड़ा असर है
अरे उसे सोच जो जानवर है
जो बिन बोले बिन रोए जीने को अभिशप्त है
फिर भी मुतमईन, मौजी, मस्त है
तू भी इन सब पचड़ों में मत पड़
बहुतेरी दुनियावी बातें हैं उनसे लड़
क्यों मेरे कामों में टाँग फँसाता है
क्यों नहीं चुपचाप जीता जाता है
तुम सब में भी, जो मानता है मुझे, वो जानता है
जो नहीं जानता, वो भी मानता है
जानने और मानने का खेल अजब है
तू रब में, तू ही रब है
ये खेल तेरे भेजे में समा जाएगा
आदमी तो बन, ईश्वर को अपने आप पा जाएगा!!"
प्रथम चरण मिला स्थान- इक्कीसवाँ
द्वितीय चरण मिला स्थान- तेरहवाँ
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9 कविताप्रेमियों का कहना है :
आदमी और ईश्वर दोनो की बेहतर बहस..वास्तव मे बिल्कुल मेल ख़ाता चरित्र चित्रण ईश्वर और आदमी दोनो का..
सुंदर कविता!!!
हिन्दी युग्म - कैसी कैसी कविता छापते हो ,,,,
अगर यह कविता है तो गद्य क्या होग्ती है,,,सबसे पहले यह बताओ कि हिन्दी साहित्य को क्यों बिगाड़ रहे हो ,,, छापो लेकिन सही छापो ,,
अगर बिजनेस करना है तो करते रहो ,,,,
वैसे साहित्य के नाम पर पैसा कमाने का सलीका नया है ......
kavita much per aap ped ker sunaye to acchi lagagi .
kudh pedne main maza nahi aaya.kavita mein katya nahi hai.
अंतिम पंक्ति का संदेश आज की जरूरत है . बधाई .
आपकी कविता तो बढ़िया है लेकिन इसमें श्रोता को बाँधने जैसा को भाव नहीं है.
तू कौन है
मैंने पूछा-
“ईश्वर क्या है
पुराना है या नया है
अपना है या पराया है
अवतरित हुआ या पेट का जाया है
अँधेरे में है या दिखता है
ईमानदार है या बिकता है
इसका है, उसका है या अपना है
आपकी कविता पढ़कर एक शे'र याद आया.
ऐसा वैसा कैसा है
तुमने उसको देखा है.
Rochak.
वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाएं, राष्ट्र को उन्नति पथ पर ले जाएं।
an utterly long borish 'poem' , not worth reading. hindyugm really needs moderating,seriously.
kavita ke bhaav khoobsurat hain par naye nahi.
bahut jyada, had se jyada lambi hai, is kavita ko ek sher mein sameta ja sakta tha, ya ek chhoti kavita mein.
ya
ise kavita na keh kar agar kahani bana di jaati to behtar hota.
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति आभार्
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