जब से है बज्म में हमराजे सुखनवर मेरा
शे'र क्या रुक्न भी होता है मुक्कमल मेरा
कुफ्र कहते हो जिसे तुम, कभी दीवानापन
कुछ नहीं और, है ये तौर-ऐ-इबादत मेरा
रश्क होता है फरिश्तों को भी आदम से तो फिर
बोल क्यों खटके मुझे रूतबा-ऐ-आदम मेरा
रात जो हर्फ़, तमन्ना में नया लगता है
सुबह मिलता है वोही हर्फ़-ऐ-मुक़र्रर मेरा
और गहराइयां अब बख्श न हसरत मुझको
कितने सागर तो समेटे है ये साग़र मेरा
आह निकली है ओ यूं दाद के बदले उसकी
कुछ तो समझा वो मेरे शे'र से मतलब मेरा
ग़ज़लगो- मनु बेतखल्लुस
इस ग़ज़ल को कनाडा निवासी संतोष शैल ने संगीतबद्ध किया और स्वप्न मंजूषा शैल ने गाया है। नीचे के प्लेयर से सुनिए। आशा है आप पसंद करेंगे।
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
101 कविताप्रेमियों का कहना है :
मुक्कमल मेरा
मतलब मेरा
मुक़र्रर मेरा
पागल लोगों की कमी नहीं हिन्दी युग्म पर......
इसे गाऊ या फिर मूवी बना डालो ,,, इसपर लेकिन जब रचना ही गलत है तो क्या फायदा.....
सादर
सुमित दिल्ल्ली
नियंत्रक महोदय....
इस पोस्ट में सुश्री स्वप्न जी का नाम नीचे मिस प्रिंटिंग की वजह से स्वप्ल छाप गया है...
कृपया आप सुधार लें...
धन्यवाद...
overall a good gazal, except a few grammatical mistakes and few banalities in some ash'aar. though not great thoughts, just the traditional gazalgoi,still it makes an agreeable reading.
congratulations.
मनु जी,
आपकी इस ग़ज़ल को गाने में मुझे जो ख़ुशी मिली और मेरे पति संतोष शैल को इसकी धुन बनाने में जो संतोष मिला हम दोनों नहीं बता पायेंगे...अपने वतन से दूर, किसी रचना को अपनी धुन में ढाल कर गुनगुनाने का सुख बहुत अलग होता है....और आज इसे हिंदी-युग्म में देख कर मन और भी आह्लादित हुआ .....आपका ह्रदय से धन्यवाद करते हैं, एक खूबसूरत सी ग़ज़ल लिखने के लिए...
Your Ghazals are always pleasure to read Manu ji ..
even the given voice is soo melodious !!
regards
Ada ji ye aapki aawaz hai???
Great aap writer ke saath -saath bahut meetha gati hain
Stay blessed !!
मनु जी नई कामयाबी मुबारक हो.
बहुत ही खुबसूरत मतला
जब से है बज्म में हमराजे सुखनवर मेरा
शे'र क्या रुक्न भी होता है मुक्कमल मेरा
मनु जी एक छोटी सी शिकायत भी रही आपसे. ग़ज़ल में रदीफ़ तो है लेकिन काफिया नहीं.
स्पप्न मंजूषा जी की आवाज़ को पहली बार सुनने का मौक़ा मिला. बहुत ही खुबसूरत.
मनु जी,
गज़ब की ग़ज़लें लिखते हैं आप तो. सोचती हूँ की हर ग़ज़ल के लिये कहां से लाऊँ इतने सारे नये-नये शब्द तारीफ़ करने के लिये. बहुत खूबसूरत! भाव चाहें वही हों कितनी ही बार लेकिन किसी में talent भी तो हो उसे हर बार एक नये अंदाज़ से लिखने के लिये. वही talent ही तो तारीफ की चीज़ है और उसे हर बार एक नये तरीके से लिखा हुआ पढने का ही तो इंतज़ार रहता है सभी को. और उन्हीं emotions को एक नये अंदाज़ में कहने से ही तो ग़ज़ल या कविता को सजकर एक नया रूप मिलता है. You just keep writing. All the best. और अब पता लगा की अदा जी ही स्वप्न मंजूषा हैं. अदा जी ने बहुत ही खूबसूरती से गाया है आपकी ग़ज़ल को. बधाई!
कुफ्र कहते हो जिसे तुम, कभी दीवानापन
कुछ नहीं और, है ये तौर-ऐ-इबादत मेरा
रश्क होता है फरिश्तों को भी आदम से तो फिर
बोल क्यों खटके मुझे रूतबा-ऐ-आदम मेरा
और गहराइयां अब बख्श न हसरत मुझको
कितने सागर तो समेटे है ये साग़र मेरा
आह निकली है ओ यूं दाद के बदले उसकी
कुछ तो समझा वो मेरे शे'र से मतलब मेरा
वाह! वाह! वाह!
इस ग़ज़ल का काफिया है अअ (यानी वर,मल, दत, दम, रर, गर, लब). इसलिए शमिख फ़राज़ गलत हैं. बहुत अच्छी ग़ज़ल है. खास कर यह शेर:
और गहराइयां अब बख्श न हसरत मुझको
कितने सागर तो समेटे है ये साग़र मेरा.
वैसे हर शेर लाजवाब है. बधाई.
शुक्रिया शामिख जी,,,,
हमने अक्सर ही कहा है के हमने ग़ज़ल कहनी नहीं सीखी है.....
पता नहीं कहाँ से आ गयी....
मैं नहीं ये नहीं कहूंगा के मैंने ये कोई नया प्रयोग किया है....
इस पर हमें भी शक था के इसमें काफिया है या नहीं.....????
या..
जिसे हम अपने दिल की आवाज पर काफिया मान रहे हैं.....वो वास्तव में होता भी है या नहीं......???????
आपके सटीक कमेंट से ये साफ़ हो गया के हम गलत थे...
हमने असल में अ की ध्वनी को काफिया लिया ( हम बजाय लिखने पढने के कहने सुनने पे ध्यान देते हैं..)
जो हमें अब भी सही लग रहा है....
ग़ज़ल की किताब में ये लिखा है या नहीं....ये हमें आपके कमेन्ट से ही पता लगा...
बस....शक सा था....आपने दूर किया.....आपका बहुत-बहुत शुक्रिया............
दोबारा ऐसा नहीं करूंगा....( ये वायदा नहीं कर सकता )
कल को फिर दिल में कभी कोई ख्याल उमड़ आया तो ये गलती फिर दोहराई जायेगी.....
और पूरी पूरी उम्मीद है के आप माफ़ भी कर देंगे.....
इस बात के अलावा और भी बहुत सी बातें हैं गजल में...जो पुराने समय से चली आ रही हैं
पर मुझे नहीं पता के क्यों चली आ रही हैं.....
जैसे न शब्द को ना में नहीं प्रयोग करना.....!!
ये बहुत ही स्वाभाविक है...पर लोग-बाग़ इसे गलत कहते हैं....
कितने लोग होंगे जो 'ना' शब्द के बजाय 'न' कहते होंगे.....???????
(गजल की किताब में नहीं लिखा होगा शायद.......)
:)
पुनः आभारी...
मनु..
are....??????
sahjwalaa ji....!!!!!!
आह निकली है ओ यूं दाद के बदले उसकी
कुछ तो समझा वो मेरे शे'र से मतलब मेरा
*
मनुजी बहुत ही बढ़िया |
शब्द,स्वर और संगीत मनभावन समन्वय
तीनों को बधाई
अदा जी ,
अरुण यह मधुमय ..... अनुपम था |
सादर,
विनय के जोशी
If you don't mind manu ji,.....हल्की सी शिकायत है मुझे.......वह यह की...की....ग़ज़ल पूरी नहीं गाई गयी है.
ऐसा क्यों ????? कई बार सुनने के बाद भी क्या मैं गलत हो सकती हूँ?
मनु जी
जितना सुंदर लिखा है उतना ही सुंदर गया गया है अदा जी आप को पहले भी सुना है बहुत प्यारी आवाज है आप की .संतोष जी को भी बधाई .जब लिखने वाला अच्छा हो संगीत इतना सुंदर दिया हो और गया भी बहुत प्यारा हो तो फिर शब्द कम हो जाते हैं तारीफ के लिए आप तीनो के बधाई .
हम तो सुन के मन्त्रमुग्ध होगये
मनु जी आप की सारी ग़ज़ल को सुर मिलजाए तो क्या ही बात हो
सादर
रचना
मनु जी आप नाराज़ न हो. शायद मैं ही गलत था और मुझे यह साफ़ तौर पर सहजवाला जी ने बता दिया. जितना मैं ग़ज़ल के बारे में जानता हूँ उससे मुझे लगा कि शायद काफिया नहीं है लेकिन मुझे नहीं पता था कि इस तरह से भी काफिया ले सकते हैं. आज मुझे भी एक नई बात सीखने को मिली है. आपसे और सहजवाला जी से. आप दोनों का शुक्रगुजार हूँ. मुझे कतई भी गलत न समझे. बल्कि इस बात को नादानी में हुई गलती समझ कर माफ़ कर दें. उम्मीद करता हूँ आप मुझे माफ़ कर देंगे.
आपको एक बार फिर से नई कामयाबी की मुबारकबाद.
साथ ही प्रेमचंद सहजवाला जी का भी आभारी जो उन्होंने मुझे एक नई जानकारी दी कि इस तरह का भी काफिया हो सकता है.
यकीनन, ग़ज़ल के अपने क़ायदे हैं, तौर-तरीके हैं
और ग़ज़ल में आज प्रयोग भी
बहुत किये जा रहे हैं
मनु "बेतखल्लुस" की ग़ज़ल से वाकफ़ियत कोई नयी बात नहीं है
वो न सिर्फ एक ग़ज़लकार है बल्कि ग़ज़ल के मिज़ाज को भी पहचानता है .
और ये बात भी सच है कि ये ग़ज़ल मनु ने जज़्बात की रौ में बहते हुए किसी नए तज्रबे से दो-चार होते हुए कही है ....
जो कि जाईज़ नहीं है
उन्होंने भी "अ" काफिया लेते हुए अश`आर कहने कि कोशिश की है (जैसा कि
आदरणीय प्रेम जी का भी मानना है )
लेकिन ye bilkul maanya nahi hai aur ऐसा 'हर्फे-रवि ' wale नज़रिए से भी उचित नहीं है
उम्मीद करता हूँ कि मनु जी
"जैसा भी कहीं पढेंगे" वैसा ही करने की कोशिश नहीं करेंगे, बल्कि अपने विवेकानुसार अपनी सलाहियत को मद्दे-नज़र रखते हुए
ऐसे "कम-सुखद" प्रयोगों से बचने कि कोशिश करेंगे
और हाँ ! मनु आप खुशनसीब हैं जो आपको पुख्ता तनकीद (आलोचना) करने वाले भले लोगों
की सोहबत हासिल है , उन्हें शुक्रिया कहना भी आपका फ़र्ज़ होना चाहिए...(halaanki lehja unka apna hi hai, never mind)
खैरख्वाह ,
---मुफलिस---
आपकी गजल ने इक मंजिल मुक्कमल की.
बधाई.
ये शेर गुनगुना रहा हूँ.
और गहराइयां अब बख्श न हसरत मुझको
कितने सागर तो समेटे है ये साग़र मेरा
shamikh,
you need not be so apologetic. Mr sahajwal has his own interpretation of kaafiya.
to all,
do not bind gazal in so many rules that it dies of suffocation. every ghazal is not for singing.
मुफलिस जी, मैं भी ग़ज़ल का मात्र एक विद्यार्थी हूँ. गलतियाँ करता हूँ और कई पंक्तियों की ठोकपीट बाद में करनी पड़ती है.
1 मुझे आप का हर्फे-रवि नहीं समझ आया.
2. यदि आप अअ के काफिये को लेना गलत मानते हैं तो कृपया ग़ालिब का यह शेर पढ़िये:
हरेक बात पे कहते हो तुम की तू क्या है
तुम्हीं कहो कि ये अंदाजे गुफ्तगू क्या है.
इस री ग़ज़ल में ऊ को काफिया माना है और तू, (गुफ्त)गू (ल)हू *जुस्त)जू आदि का उपयोग हुआ है. इसलिए अअ को काफिया बनान क्यों गलत लगा यह जानना चाहूँगा.
दुष्यंत कुमार की एक ग़ज़ल से भी लगता है कि काफिया नहीं है
भूख है तो सब्र कर रोटी नहीं तो क्या हुआ
आज कल दिल्ली में है जेरे बहस ये मुद्दआ
दोस्त अपने मुल्क की किस्मत पे रंजीदा न हो
उनके हाथों में है पिंजरा उनके पिंजरे में सुआ
इस ग़ज़ल के मतले में दुष्यंत की एक गलती को माना जा सकता है कि काफिया है ही नहीं, क्यों कि पहले मिसरे में 'हुआ' है तो दुसरे में 'दआ' है. पर जो दूसरा शेर मैं ने लिखा है उस में उ का काफिया स्पष्ट है. और मज़ेदार बात ये है कि कोई कोई कहेगा कि इस ग़ज़ल में रदीफ़ है ही नहीं. पर इस ग़ज़ल का रदीफ़ है 'आ' ! दुष्यंत इसी ग़ज़ल के एक मिसरे में 'धुआं' शब्द का भी इस्तेमाल करते हैं जिस में कि रदीफ़ आं बन जाता है. इसलिए दुष्यंत की इस ग़ज़ल को perfect नहीं माना जा सकता पर जो ग़ालिब का उदहारण है वो perfect है..
Dear manu ji, muflis ji and sahazwala ji,
manu ji bhi apne dost hai aur aap sab bhi lekin kafia darusat nahi hai aapne ghaalib ka jo she'r qoute kia hai
unmeh-
dava, vafa, khafa, adaa etc ye vowels ke kaafie hain aur kaafie ya to vowels ke hote hain ya consonant aur vowel donoN ke, urdu me vowels ke kaafie ka chalan hai lekin usme bhi jaise ke vafa, adaa meN "F" aur "Da" consonant haiN lekin AA" ke aawaaz ant me hamesha rahegee jise Ravi kah sakte haiN lekin सुखनवर aur मुक्कमल me koi samayta nahi hai agar ye kafie haiN to phir जल, कब,घर,नभ भी काफ़िए हैं लेकिन जो बात सही नहीं है उस पर बहस किस लिए
मैं सतपाल जी से शत प्रतिशत सहमत हूँ... अंत में कमेन्ट करने का ये लाभ है की आपको कम लिखना पड़ता है ..... मनु जी की गजल का भावः पक्ष हमेशा की तरह लाजवाब है परन्तु "अअ" का काफिया नहीं होता ये नियम के हिसाब से बिलकुल सही बात है ... सतपाल जी ने काफी सही ढंग से समझा भी दिया है
एक जरूरी बात बहुत ही आदर के साथ मैं एनी माउस २ जी के लिए कहना चाहूँगा उनके इस कमेन्ट पर की
to all,
do not bind gazal in so many rules that it dies of suffocation. every ghazal is not for singing.
गजल बिना नियम के हो ही नहीं सकती, गजल अस्तित्व ही नियमों के साथ है. बिना नियमों के गजल की कल्पना करना बेमानी और निरर्थक बात है.
प्रेम जी का विश्लेषण भी अच्छा है उनको भी इस चीज के लिए बधाई.
मैं कोई सलाह तो नहीं दे सकता लेकिन फिर भी सभी से यही कहूँगा की गजल कहना बहुत ही जिम्मेदारी का काम है, इसलिए इसमें हर चीज का बारीकी से ध्यान रखा जाना चाहिए. मुझे हिन्दयुग्म पर गजल में विशेष तौर से एक संपादक की कमी खलती है, नियंत्रक कृपया ध्यान दे कोई भी प्रकाशन बिना संपादन के ना हो ताकि इस प्रकार की गलतियों से बचा जा सके.
सादर
अरुण मित्तल 'अद्भुत'
बेहद उम्दा .ग़ज़ल उर्दू के सुंदर और भावपूर्ण शब्दों को बेहतरीन ढंग से पिरोया है आपने..
सुंदर ग़ज़ल के लिए बधाई..
मैंने बहत बड़ी गलती की जो हिन्दयुग्म पर इतने उल्टे सीधे कमेन्ट किये
आज इस पोस्ट पर मैं मनु जी से कान पकड़कर
और शैलेश भारतवासी जी से नाक रगड़ कर माफ़ी माँगता हूँ
सादर
सुमित दिल्ल्ली
Thank God! All is well, that ends well.
सम्माननीय सहजवाला जी ,
गलतियाँ भला कौन नहीं करता ....
कोई भी इसका अपवाद नहीं ....
मैं भी नहीं
और... यहाँ भी कोई गलतियों का झगडा नहीं है
हो सकता है...
आपसे बात करते-करते मैं hi कुछ
नया सीख जाऊं
दरअस्ल....
काफिये में या तो स्वर-साम्य हो या व्यंजन-साम्य
गालिब की ग़ज़ल में गुफ्त+ग+ऊ, त+ऊ , लह+ऊ काफिये हैं
इसमें स्वर-साम्य "ऊ" की मात्र है जो साफ़ ज़ाहिर हो रही है
स्वर की लघु मात्रा कभी काफिया नहीं हो सकती ऐसा गुरुजन का मानना है
ऐसे शब्द जब ख़त्म होते हैं तो आखिरी अक्षर पर कोई मात्र नहीं गिनी जाती क्योंकि
वो अक्षर हलंत हो जाता है
आप तो आलिम-फ़ाज़िल हैं ,,
बहुत ही वरिष्ठ और वरीय साहित्यकार हैं
मुझे पता है कि
आपको इन सब बातों का भरपूर ज्ञान है ...
मुझेतो आप अभी तिफ्ले-मक्तब ही जानिए
i am just a toddler in this field of poetry....
ummeed kartaa hooN k raabitaa banaae rakkhenge
saadar ,
---MUFLIS---
इतने सारे धुरंधरों को एक मंच पर देख कर बहुत ख़ुशी हो रही है, मनु जी, postmortam आपकी ग़ज़ल का हो रहा है और हम कितना कुछ सीख रहे हैं ....
चलिए ये भी अच्छी बात है कि 'बे-नाम' जी भी पछ्ता रहे हैं.....अब माहौल ठीक लग रहा है...नहीं तो हम भी परेशान हो गए थे....
@ANONYMOUS 2
aapne kaha ki har gazal gai nahi jaa sakti, to sir ek baat kehna chahungi
"Jo gazal gai nahi ja sakti use gazal nahi keh sakte"
gazal ki history utha kar dekhenge to apne aap samajh jayenge..
aur dusri baat
Shayar ke maayne hote hain, jaankar. jaan.ne wala..
agar shayar hi technicalities na samjhe to wo shayar nahi hai.
..
Deep
@ Manu ji
bahut bahut badhai.. bahut hi shaandar rachna hai, har ek ash'aar bahut khoobsurati se buna hai,
@ Ada ji
aapke kya kehne.. itni madhur awaaz mein aapne ise gaya hai ki hamesha sahej ke rakhne wala ek khazaana ho gaya hai.
@ Manu ji
ji bahut khoobsurat rachna hone ke baad bhi gazal mein kafiya nahi hai. upar kaafi behas ho chuki hai to main jyada nahi kahungi.
ek aur baat ki taraf dhyaan kheechna chahungi
जब से है बज्म में हमराजे सुखनवर मेरा
pehle hi misre mein aapne izafat galat li hai
hamraa e sukhanvar.. yeh izafat aap nahi le sakte.
..
SUNDAR RACHNA KE LIYE BAHUT BAHUT BADHAI.
..
Deep
जब बढिया गज़ल को सुर -ताल मिल जाए तो फन-फनकार लाजवाब होजाते हैं .बधाई .
खाब उनके नोच कर हम उनके पंखों पर उडें ?
हों बड़े शाएर मगर हम, इतने भी हैवां नहीं
अरे वाह....
प्रेम जी के बाद सतपाल जी ...मुफलिस जी ....अरुण जी और दीप जी.......!!!!!!!!!!
सब लोग गजल के इतने बड़े जानकार, एक एक बारीकी पे खुद को निचोड़ देने वाले.....!!!!!
सबको एक साथ मेरा नमन ..
तहे-दिल से शुक्रिया के हमें किसी लायक समझा .....
और इस से भी अच्छी बात ये हुई के शामिख भाई को हमसे गलत फहमी हो गई....
::)
बहुत-बहुत बहुत ही अच्छा हुआ....
:::::))))))))))
कल शामिख को ये कमेन्ट देने की सोच रहा था के मेरे प्यारे छोटे भाई...
ये बे रदीफ़ गजल भी तो कही से आई ही होगी न...? ये तो होती है..हमने भी देखि है...
तो कभी बे-काफिया काहे नहीं हो सकती....?????
और नहीं होती ...
और अब हो गई....( मेरे ज्ञान से प्रयोग से नहीं.....मेरी नादानी से ..अज्ञान से...)
अगर मैंने गजल बाकायदा सीखी होती तो ये कभी भी नहीं लिखता....
और अब मुझे मेरा गजल ना सीखना ज्यादा सही लग रहा है..
जो दिल की बात अनजाने में निकलती है वो ....?????
हालांकि मेरे पास उदाहरण ना तो बे-रदीफ़ गजल का है
और अब बे-काफिया का उदाहरण ढूँढना तो और भी मुश्किल है...सब लोग कह रहे हैं तो शायद होगा भी नहीं...
होगा तो कभी उस को गजल की श्रेणी में नहीं रखा होगा....
बे-रदीफ़ को गजल मान लिया होगा , बे-काफिया को किसी वजह से छोड़ दिया होगा....
:(
बे-काफिया गजल नहीं होती जी...( मगर अब ये हो गई तो क्या करुँ...)
अक्सर कह दिया जाता है के चलो ग़ज़ल नहीं...रचना कह दो, नज़्म कह दो, कविता कह दो...फलां नाम दे दो...
कल से खूब सोचने के बाद मेरा दिल तो इसे कोई और नाम देने को भी नहीं कर रहा...
नियंत्रक महोदय से इसे डिलीट करने की प्रार्थना भी करुँ ताकि उनके गजल का स्तर ऊंचा बना रहे,,,,,सो वो भी नहीं कर पा रहा....
कारण.....इस पे आये प्यार भरे कमेंट्स
मेरे बड़ों की आशीष...मेरे छोटों का प्यार ने कम से कम मेरे लिए तो मेरी इस गजल/अगजल को मेरे लिए तो बहुत ही बेशकीमती बना दिया है..
और कुछ नहीं कहा जा रहा फिलहाल,,,,,,,,,,
खाब उनके नोच कर हम उनके पंखों पर उडें ?
हों बड़े शाएर मगर हम, इतने भी हैवां नहीं
waah waah ,ye hui n baat .
manu ji apne jobhi rachna ki hai behad umda hai .
us par ada ji peenaaj masaani ki yaad dilaa rahin hain ,ada ji hm bhi aapse shaagirdi karna chaahte hain ,hahahahhhaahahahahahahha
रश्क होता है फरिश्तों को भी आदम से तो फिर
बोल क्यों खटके मुझे रूतबा-ऐ-आदम मेरा
और गहराइयां अब बख्श न हसरत मुझको
कितने सागर तो समेटे है ये साग़र मेरा
आह निकली है ओ यूं दाद के बदले उसकी
कुछ तो समझा वो मेरे शे'र से मतलब मेरा
walllllllllllllllah
आह निकली है ओ यूं दाद के बदले उसकी
कुछ तो समझा वो मेरे शे'र से मतलब मेरा
Manuji,Waah mazza aagaya, aapki ghazal padkar, Badhai .. Surinder Ratti
और गहराइयां अब बख्श न हसरत मुझको
कितने सागर तो समेटे है ये साग़र मेरा
बहुत ही बेहतरीन गजल, बधाई ।
deep,
i only said
"every ghazal is not for singing."
meaning thereby that dont bind poetry into too much of mathematics.
gazal kahi jaati hai, gazal guftugu ka ek andaaz hai.
this is only human ingenuity that they sing it as well.
Anymouse 2 Ji,
"गजल कही जाती है ... गजल गुफ्तगू का एक अंदाज है... "
परिभाषा के लिए धन्यवाद.. लेकिन साहित्यिक रूप से गजल एक विधा है, और इसमें नियमों का पालन करना आवश्यक है ... मनु जी भी ठीक ही कह रहे हैं ....... लेकिन मैं आदरणीय दीक्षित दनकौरी जी का एक शेर कहना चाहूँगा
"शेर अच्छा बुरा नहीं होता
या तो होता है या नहीं होता"
सीधा सा मतलब ये है कि अगर जरा सी भी भूल हो जाए तो शेर या गजल नहीं कही जा सकती इसलिए गजल में आपको नियमों के मामले में जरा सी भी गुंजाइश नहीं मिल सकती ...!
अभी तक तो मैंने तो इतना ही सीखा है, आप सभी के विचारों का सम्मान करता हूँ ...
सादर
अरुण अद्भुत
आप सभी गुणी जन बस जरा देर के लिए ये भूलकर के आप ने कहीं किसी किताब में इस तरह की गजल के बारे में पढा है,जाना है जिसमें 'अ' की मात्रा काफिया नहीं हो सकता ....या किसी कारण से ये वर्जित है.......
आपके द्वारा पढ़ी गई इस बात को बस कुछ देर के लिए भूलकर ........
उस god-gifted सेंस ....जो सबके पास होती है...
जिसका किसी किताब से कोई वास्ता नहीं होता....
सिर्फ उस ही सेंस से देखकर ...पढ़कर सुनकर मुझे बता दें के इसमें आप लोगों को क्या चीज खटकी है...?
शायद ऐसे मुझे समझ आ सके....मैं आप लोगों के अलावा कहीं और से समझना भी नहीं चाहता
मैं वाकई नहीं समझ पा रहा हूँ..... ये भी पता है के आप लोग समझा रहे हैं ....जो ना सिर्फ जानकार हैं बल्कि उससे भी कही बढ़कर मेरे सच्चे हितैषी हैं...मेरे ख़ास दोस्त हैं सभी...
तो एकदम सही ही समझा रहे हैं.....
हो सकता है के कहीं पर किसी ने कहा हो के वर..(१-१) कहा जाएगा...;
जो मिलकर २ ( गुरु) हो जाए.....??????
हो सकता है के ये २-१ होने पे खारिज मानी जाती हो,,,,
मुझे विश्वास है के दुनिया में कोई न कोई मिलेगा कभी.....जो इस को गजल होने से खारिज नहीं करेगा...
किस से मालूम करें हम ......?????????????????
स्वप्ना जी ....
आप ही बता दें के आपको गाने में क्या चीज खटकी है....?
adbhut ji,
शेर अच्छा बुरा नहीं होता
या तो होता है या नहीं होता
you had quoted this sher about 3 months back in a different context.
i think you are in habit of quoting it. any way
शेर अच्छा बुरा नहीं होता
lekin sirf mathematics bhi नहीं होता
शेर बिना mathematics के हो ही नहीं सकता ......... हाँ ये बात सही है की ये सिर्फ mathematics नहीं होता,
इसके लिए भाव पक्ष का प्रभावशाली होना आवश्यक है ..... उसमे भी कोई दोष नहीं होना चाहिए ....
जहां तक शेर का सन्दर्भ देने की बात है.......सन्दर्भ तो कितनी बार भी दिया जा सकता है .... और अगर सटीक हो तो अलग अलग परिस्थितियों में भी....
अरुण मित्तल अद्भुत
Kai baar aisa hota hai, shabd nahi milte...
kai baar shabd bhi, kuch keh nahi paate.
ghazal kya hai? sher kya? kavita kya ? urdu kya ? latin kya?
pata hi nahi....
...kabi sheekha hi nahi !!
lekin jo sheekha hai wo hai khamoshi samajhna...
...aur shabdon ke beech ke antar ko padhna...
...koi samjeh agar.
to bandhuon, na ho ye ghazal...
...na ho koi kavita.
lekin kuch to hai...
'kuch' astitvahin nahi hota...
...kuch shunya nahi hota !!
baat to vastav main shabdon ke bandhan se pare hai...
...shabd 'hetu' hai !! 'hain' nahi....
..maine ye baat isliye likhi hai ki kisi aalochan ka 'space provide' ho sake....
aur anynonymus( 1st comment) ji kis ghazal ki baat kar rahe hain aap?
Aapka pehla 'Cheap' comment dekh ke to mujhe ek sher yaad ho aaya.
"Kin shabdon main itni kadvi,itni kasili baat likhoon?
Ghazal ki main tehzeeb nibhahoon ,ya apne haalat likhoon?"
दर्शन जी,
मैं आपके बिचारों से प्रभावित हुई. जो शब्द भावों को सुन्दरता से एक लय लिए हुए व्यक्त करें और मन डूब जाए पढ़ते हुए उसी के विभिन्न रूपों को ग़ज़ल या कविता के नाम से हम enjoy करें. प्रमुख तो पढने वालों की संख्या होती है. जब उन्हें ही नहीं एतराज़ तमाम व्याकरण के rules जाने बिना पढ़ कर आनंद लेने में तो लोग बाल की खाल क्यों निकालते हैं, क्यों, क्यों, क्यों???????????
शन्नो जी,
अगर किसी बच्चे को भुने हुआ आलू खाने में अच्छा लगे या तो वो सर्वश्रेष्ठ भोजन तो नहीं हो जाता न, सर्वश्रेष्ठ आहार तो संतुलित भोजन ही होगा..... ये तो माँ को समझना है... की सही क्या है और गलत क्या ..... आप इमानदारी से बताइए की कितने पाठकों को गजल की तकनीक का ज्ञान है .... बात विधा की है ... अच्छा या बुरा लिखने की नहीं ........... अगर गजल कहनी है तो गजल के नियमों का तो पालन करना ही होगा, और अगर पालन नहीं किया गया तो वो गजल नहीं है ............
अरुण 'अद्भुत'
अरुण जी,
आपकी बात सही है....लेकिन हर विधा समय के साथ-साथ रूप नहीं बदल रही है ??
क्या ग़ज़ल का रूप वही है जो आज से २००० साल पहले था ??
पहले ग़ज़ल गायिकी पक्के रागों में ही हुआ करती थी....हलके रागों में ग़ज़ल सुनना ही पाप था.....गाने की तो कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था... और तब ग़ज़ल गाना हर किसी के बस की बात नहीं थी....लेकिन जगजीत सिंह को ग़ज़ल गायक के रूप में स्वीकारा गया और खूब स्वीकारा गया..... इस बदलाव पर ऊँगली क्यूँ नहीं उठती....अगर किसी ने जरा सी तबदीली लाने की कोशिश की है......फिर इसमें इतना हंगामा क्यूँ ???
सभी विधाएं बदल रहीं हैं.....पहले लोग मुक्तक रचनाओ को रचना ही नहीं मानते थे ...अब सभी मानते हैं......
और हमारे-आपके नहीं चाहने से क्या होता है ....बदलाव आ रहा है ....हम माने की न माने...
आपने एक बात यह भी सही कही कि कितने लोग हैं जिन्हें ग़ज़ल की समझ है ? ग़ज़ल की समझ नहीं रखने वाले पूरे विश्व में ९०% होंगे अगर उन्होंने ने स्वीकार कर लिया की यह ग़ज़ल है तो फिर १०% क्या करेंगे ?
हम तो दिल से गाते हैं और गाते वक्त कोई खटका नहीं लगा.....सुनने वालों को भी कोई खटका नहीं लगा .....जिसने भी सुना दिल से सुना और दिल से मान लिया की हमने ग़ज़ल ही गाई......
अब मनु जी ने ग़ज़ल लिखी या नहीं...ये मनु जी जाने या आप लोग जाने.......
हम तो सिर्फ इतना जानते हैं कि..... इससे हम जैसों को कोई फर्क ही नहीं पड़ता.....हमें सिर्फ इससे मतलब है....कि एक बात कही गयी और वो दिल को छू गयी बस....
'अदा'
अरुण जी,
अगर आपने संतुलित भोजन से ग़ज़ल की तुलना की है तो आजकल/हमेशा से भी fast food भी खाया जाता रहा है हर जगह. कभी-कभी उसे खाना अच्छा लगता है, बुरी बात नहीं है. और संतुलित भोजन कुछ बार miss कर जाओ तो इतना भी हर्ज़ नहीं. इसी तरह ग़ज़ल के बारे में भी कभी-कभी इतनी मीन-मेख rules को लेकर नहीं होनी चाहिये की उसका जबरदस्ती रूप बदरंग कर दिया जाए. खासतौर से जब की majority उसे appreciate कर रही हो. In my view Sometimes critics should be a little lenient about these rules and let the readers enjoy what they are offered, without a lot of fuss. So long as a writer is not novice in this field. It has been a long trial and must be a very traumatic experience for the writer. Let's not always be so strict about rules. Though you are right about them. As for me, I know nothing much but simply enjoy reading gazals if they appeal to me. And there must be many more people like me out there who think the same as I do. Please don't take me wrong in any way as I respect you as you have so much knowledge in this field.
शन्नो जी,
हम आपका समर्थन करते हैं....
संतुलित भोजन के दर्शन अब दुर्लभ हो गए हैं ....और अब french-fries तो भोजन कि गिनती में भी आ गया है....मनु जी पर कोर्ट-मार्शल अब बंद किया जाए आप सबसे यही अनुरोध है....एक अच्छी ग़ज़ल लिखने की ये सजा कुछ ज्यादा नहीं है.....????
एक अच्छी गजल.............????????????????
ये अच्छी तो है... बहुत अच्छी है........... पर गजल नहीं है (क्योंकि बिना दुरुस्त काफियों के गजल नहीं हो सकती ) ............... मेरे पास आप सभी के सवालों के पुख्ता जवाब हैं पर टाइप करते करते थक चुका हूँ... इसलिए अब मैं कुछ नहीं कहना चाहता ................. मनु जी को फ़ोन करके बता दूंगा, वक्त मिला तो कभी युग्म पर भी लिखूंगा
आप सबका स्नेह मिला धन्यवाद
अरुण अद्भुत
सोचता हूँ, आज मनु जी से बात नहीं हुई होती तो ग़ज़ल की इस अद्भुत कक्षा से वंचित ही रह जाता मैं तो....
सब पढ़ा, देखा, समझा...मनु जी की ग़ज़ल फिर भी भायी, बहुत भायी।
उस्ताद लोगों को भी "सामने" और "बने" के काफ़िये वाले मतले के संग ’झुनझुने’ का प्रयोग करते देखा है और "अदा" व " बुरा" के काफ़िये वाले मतले के साथ ’जगह’ को प्रयोग करते हुये देखा है, महज इसलिये कि "जगह" को "जगाः" पढ़ सकते है।
काफ़िये पे कुछ शक सा उभरा जब गालिब की ये ग़ज़ल सुनी "आह को चाहिये एक उम्र असर होने तक / कौन जीता है तेरी जुल्फ़ के सर होने तक" तो ग़ज़ल के शेष अशआरों को काफ़िये "बसर" , "कसर" आदि लेकर आने चाहिये, लेकिन क्या ऐसा हुआ है क्या इस ग़ज़ल में?
सतपाल जी, मुफ़लिस जी, अरूण जी को सादर प्रणाम...कृपया इस अदने से छात्र का शक दूर करें।
अदा जी,
सही कहा आपने. बेचारे मनु जी! I suppose he has had enough of all this fuss and must be reeling with confusion.
वहाई नाव नदिया में किनारे छू भी ना पायी
न छोड़ा लहरों ने उसको भंवर में खिंचती ही आयी.
और अरुण जी,
you are tired???? Aren't we all????
Now Goodnight all !
गौतम जी,
बड़ी देर कर दी हुज़ूर आते-आते
लेकिन आप आये देर से पर दुरुस्त आये
अब देखते हैं इस WWF का क्या होने वाला है
वैसे तो मैं फासलों से गुज़र जाता हूँ, लेकिन आज खुद को रोक नहीं पाया हूँ
मनु जी आपकी GAZAL बहुत शानदार बनी है
अरुण जी की ग़ज़ल भी पढ़ी सिर्फ mathematics ही थी भावः पक्ष गायब था
फायदा क्या ऐसी ग़ज़ल का जो कहीं कोई असर ही न छोड़े और उसे तो ग़ज़ल का खिताब दे दें. क्योंकि वो बहर, मतला, मक्ता, काफिया, रदीफ़ की खानापूरी कर रही है और भावः पक्ष शून्य हो
और एक ये ग़ज़ल जिसे सबने सराहा ग़ज़ल नहीं है
भाई वाह जवाब नहीं !!!!!!
ये क्या हो रहा है ????????
ghazal kisne banai?
aur ghazal ka gyan kin kin ko hai...
...to iska matlab jinko ghazal likhni nhai aati wo isko padhna likhna chor dein.
blog jagat main kabse ek 'Raj takhckrey' ki kami pad rahi thi.
arun ji aapka dhanyavaad.
बाप रे ऽऽऽ वो चीज़ जो बारिश की बूँदों की तरह ऐसे बरसती है कि हर तरफ सोंधापन आ जाये, वो चीज़ धूप की तरह ऐसे बिखरती है कि हर तरफ ताज़गी आ जाये..उसे ले कर इतने झंझावत....! मन तो कह रहा है कि ऐलान कर दूँ कि जो मैं गज़ल जैसा लिखती हूँ, वो गज़ल नही है...! आप उसका कुछ भी नाम दे लें या ना दें..!
लिखना ना लिखना किस के वश में होता है ??? क्या लिखना है क्या नही ये भी ?? शायद उस साम्राज्य से के दिग्गज मुझे आज ही निकाल देंगे अपने उस राज्य से जिसमें मैं अभी नागरिकता भी नही पा सकी थी...! मगर इतनी बहस देख कर तो मन ही अजीब हो गया...!
एक एक शेर उम्दा... भाव भरा...! मनु जी आप इसे गज़ल का नाम दे ही क्यों रहे है ?? कुछ और नई विधा कह दीजिये इसे, जिसमें हम भी आप के साथ आ सकें....!!!!
"मनु जी आप इसे गज़ल का नाम दे ही क्यों रहे है ?? कुछ और नई विधा कह दीजिये इसे"
मनु जी मुझे भी यही लगता है की आप ये सलाह मान लीजिये वैसे मुझे काफिये के प्रश्न का उत्तर तो मिल गया है........... मैं तीन दिन से कुछ विद्वान शायरों के साथ इस विषय पर गहन चर्चा में हूँ, दुःख की बात ये है की ५५ में से एक भी कमेन्ट किसी बड़े या मंझे शायर का नहीं लग रहा (एक दो कमेन्ट करने वालों को छोड़कर).
"अरुण जी की ग़ज़ल भी पढ़ी सिर्फ mathematics ही थी भावः पक्ष गायब था"
रमन जी, कृपया मुझे मेरी वो गजल बताएं जिसमे भाव पक्ष शून्य लग रहा है .... मैं भी पढना चाहूँगा ...... भाव पक्ष शून्य तो नहीं होना चाहिए, हाँ ये बात मैं स्वीकार करता हूँ की मेरे अशआर में वो गहराई नहीं है जो मनु जी, और श्याम जी के अशआर में है,
गजल के व्याकरण के बारे में बात बहुत गहरी और विस्तृत हैं इस प्रकार युग्म पर प्रतिक्रियाओं के माध्यम से करना मुश्किल है ...
सादर
अरुण मित्तल अद्भुत
कंचन जी,
मनु जी की ग़ज़ल, ग़ज़ल है और ग़ज़ल ही रहेगी
जब ५५ में से ५० ने मान लिया है तो फिर सोचना क्या है
इसे और कोई नाम नहीं दिया जाएगा
बहुमत का ज़माना है
अरुण जी,
ले दे के एक ही ग़ज़ल आपके पोस्ट पर है आप खुद ही पढ़ लीजिये
मुझे तो कुछ शेर बे-बहर भी लगे
हो सकता है आपने कोई बड़ी ज़बरदस्त चीज़ लिखी हो लेकिन हम जैसे लोग ही पढेंगे
वो नहीं देखेंगे के यह मीटर में है या नहीं सिर्फ देखेंगे भावः कैसा है
आप खुद कहते हैं कि ग़ज़ल के लिए सारे नियमों का पालन होना चाहिए और भावः पक्ष भी होना चाहिए
आपकी ग़ज़ल में वो है नहीं फिर इसे भी ग़ज़ल कि दुनिया से खारिज होना चाहिए
जैसा कि गौतम जी ने बताया, जब मियाँ ग़ालिब से 'जिगर' 'खबर' 'सहर' का इस्तेमाल किया है तो फिर आप क्यों परेशान हैं ????????
"आह को चाहिये एक उम्र असर होने तक / कौन जीता है तेरी जुल्फ़ के सर होने तक"
आप कहेंगे ये ग़ज़ल नहीं है
who cares ? आप क्या सोचते हैं
दुनिया लिए ये बेहतरीन ग़ज़ल थी, है और रहेगी
मेरे घर लाइट नहीं है इसलिए मैं कैफे से भेज रहा हूँ यह कमेन्ट
अब मामला ख़त्म होना चाहिए नहीं तो मनु जी के पोस्ट पर १०० कमेन्ट हो ही जायेंगे
RAMAN M.
रमन जी,
मेरे ब्लॉग पर निम्न गजल है जरा बताइए कितने शेर और कहाँ से बहर से खारिज हैं
कुछ उसकी हिम्मत का डर
कुछ जग की सीरत का डर
कभी कभी नफ़रत का डर
और कभी उल्फत का डर
मुफलिस को बाज़ारों में
हर शय की कीमत का डर
सबसे ज्यादा होता है
इंसा को इज्ज़त का डर
नीड़ बनाने वालों को
दुनिया की आदत का डर
'अद्भुत' को सबसे ज्यादा
ख़ुद अपनी फितरत का डर
ठीक है अगर आप मनु जी की प्रस्तुत रचना को गजल मानते हैं तो ये मुकम्मल गजल नहीं है, इसमें काफिये दुरुस्त नहीं हैं..........
गजल का व्याकरण बहुमत से सिद्ध नहीं होता, नियम तो नियम ही होता है
गालिब की गजल के जिस मतले की आपने और गौतम जी ने बात की है उस के विषय में मैं अभी चर्चा कर रहा हूँ...... और हाँ गलती तो गलती है चाहे वो गालिब करे या मीर, दुनिया का बड़े से बड़ा शायर भी गलती कर सकता है, तो क्या उसे मानकर हम भी गलतियाँ करने लगे.
अगर दोहे और चौपाई के नियम की बात करें तो........ गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी गलतियाँ की हैं (जैसा मैंने छपा हुआ पढ़ा है, हो सकता है वो गलतियाँ प्रकाशक ने की हों.)
वैसे मनु जी के सभी शेरों अलग अलग कर दिया जाए तो वो मुकम्मल शेर बन रहे हैं, परन्तु ये सभी एक गजल के शेर नहीं हो सकते.
सादर
अरुण मित्तल अद्भुत
अरुण जी,
जल्दी में पढ़ा तो लगा था दो शेर हैं मीटर से बाहर, अभी बैठ का देखा तो एक तो ये है ही लीजिये :
कभी कभी नफ़रत का डर
और कभी उल्फत का डर
आप लिख रहे हैं २२२२२२२, जबकि इस शेर का पहला मिसरा १२१२२२२२ पर जा रहा है,
भले ही इसमें भी १४ मात्राएँ पूरी हो रही हैं मगर ये बहर का दोष है, और मेरा मानना है के काफिये के दोष में खींचतान करके मामूली बदलाव के बारे में सोचा भी जा सकता है, लेकिन बहर का दोष गजल का सबसे बड़ा दोष होता है. और भावः पक्ष तो शून्य है ही (मेरे लिए)
मेरी मंशा नहीं थी के मैं आपकी गजल में गलती निकालूँ, लेकिन किसी भी आर्टिस्ट के पीछे पड़ने की एक हद होती है और आपने बे-झिझक वो हद पार कर दी है.
एक इंसान जिसने अपनी काबिलियत से इतनी अच्छी चीज़ हम सबके सामने रखी उसका शुक्रिया अदा करने की जगह ऐसा बर्ताव ???? ये बात मुझे सख्त नागवार गुजरी है.
आपको एतराज़ है आप न पढें, आपके अपनी बात कह दी हमने सुन ली उसे मानना नहीं मानना हमारे हाथ में है
आप इसे यही ख़तम करें बस .....
आज ग़ज़ल का इल्म रखने वालों के पास बुत है, रूह नही कुदरत की इसी बेइंसाफी से गुस्सा होकर, जिनके पास रूह है पर बुत नहीं उन पर बरसते रहते है | और जिनके पास रूह है वह एहसासे कमतरी के मारे बगले झांकते रहते है. अरे, इल्म वालों अपनी ताकत रूह जगाने में लगाओ और बिना इल्म वालों फीलिंग्स की बारिश होने दो ये मत देखों कि बरसा पानी नदी नाले झरने झील गंगा जमना समंदर में समाता है , ज़मीं सोंख लेती है या आफताब में झुलस भाप बन उड़ जाता है. फीलिंग्स की बारिश होने दो रूह को जगाये रखो. जिस्म (इल्म) खुद चलकर तुम्हारे पास आयेगा.
ये नसीहत उनके लिए है जिनके पास जिस्म या रूह है. कड़वा सच यह है कि अधिकतर के पास दोनों नहीं है .
अनजाना नंबर ३
...५५ में से एक भी कमेन्ट किसी बड़े या मंझे शायर का नहीं लग रहा (एक दो कमेन्ट करने वालों को छोड़कर)....
...aapki ginti kismein honi chahiye ye bhi aap hi tay kar lijiye (55 or 1-2).
aur jo contemporary bade shayaroon ki list aapne banai hai, usko hum log bhi dekhna chaheinge....
मेरी गिनती तो ५५ में ही होनी चाहिए .......... पीडा तो यही है की लोग अपनी गलती नहीं मानते और न ही उनके तथाकथित शुभचिंतक उन्हें गलती मानने देते हैं. ......... बड़े शायर तो हिन्दयुग्म से दूर ही हैं ...... आप ही बताइए कितने स्थापित शायर हिन्दयुग्म पर अपनी गजल डालते हैं या कमेन्ट करते है ले देकर डॉ श्याम सखा श्याम जी जो शायद हिंद युग्म के सबसे वरिष्ठ, विद्वान् और सक्रिय शायर हैं .......... उनका भी एक भी कमेन्ट इस पोस्ट पर नहीं है मुझे लगता है अगर वो कमेन्ट करते तो अच्छा होता .........
चलिए मैं सूची दे देता हूँ ..........Contemperary बड़े शायरों की ........ (ये ऐसे लोग हैं जिनसे मेरा संपर्क भी है और ये सब गजल में मार्गदर्शन के लिए तैयार भी हैं बस हमें बहस करने और जिद पर अड़ने की अपेक्षा इनसे सीखने की जरूरत है) :
श्री दीक्षित दनकौरी
डॉ कुंवर 'बेचैन'
श्री राजगोपाल सिंह
श्री मंगल 'नसीम'
श्री विपिन सुनेजा 'शायक'
श्री माधव कौशिक
श्री सीमाब सुल्तानपुरी
ये कुछ थोड़े से नाम इसलिए लिख रहा हूँ की सूची बहुत लम्बी है ये सब लोग मेरे आस पास के क्षेत्र में रहते हैं इसलिए इन नामों को सूचित कर रहा हूँ
सादर
अरुण मित्तल 'अद्भुत'
श्री दीक्षित दनकौरी
डॉ कुंवर 'बेचैन'
श्री राजगोपाल सिंह
श्री मंगल 'नसीम'
श्री विपिन सुनेजा 'शायक'
श्री माधव कौशिक
श्री सीमाब सुल्तानपुरी
मगर इनमे से कोई ना तो हमें हीजानते हैं
और ना ही हम .....
इन में से किन्ही को जानते ...
फिर..?
:)
'आप ही बताइए कितने स्थापित शायर हिन्दयुग्म पर अपनी गजल डालते हैं या कमेन्ट करते है ले देकर डॉ श्याम सखा श्याम जी जो शायद हिंद युग्म के सबसे वरिष्ठ, विद्वान् और सक्रिय शायर हैं .......... उनका भी एक भी कमेन्ट इस पोस्ट पर नहीं है मुझे लगता है अगर वो कमेन्ट करते तो अच्छा होता ......... '
आपने ही तो कितनी बार श्याम जी के बेकार भाव-पक्ष के बारे में लिखा है अरुण जी,
हाँ वरिष्ठ हैं..
विद्वान् भी हैं
पर शायर नहीं,
मनु जी बुरा मत मानियेगा, आप अपने आप में मग्न होकर लिखते हैं आपने कभी बाहर झांक कर देखा ही नहीं की शायरी की दुनिया में क्या हो रहा है जो इन शायरों को नहीं जानता वो उस न जानने वाले का कुसूर है ........... न जानने वाले की गलती है .............. मार्गदर्शन करने वाला आपको नहीं ढूंढता ...... आपको ही उसके पास जाना पड़ता है, स्वामी विवेकानंद जी ने भी दर दर भटककर अपना गुरु ढूँढा था .........
रमन जी,
आलोचना का अपना स्थान है ......... परन्तु श्याम जी बहुत अच्छी गजलें हिंद युग्म को भी दी हैं और साहित्य को भी ....... और एक बात ....... कोई भी गजल भाव में कम हो सकती है परन्तु शून्य नहीं.......... ये तभी हो सकता है जब पाठक स्वयं भाव शून्य हो गया हो, आपने मेरी गजल पूर्वग्रह के साथ पढ़ी है इसलिए वो भाव शून्य लग रही है .......... इसमें आपका कोई दोष नहीं क्योंकि ये पूर्वनियोजित आलोचना का हिस्सा है
खैर मेरा विषय बहुत सीधा साधा था ... गजल में काफिये को लेकर.......... उस पर मैं अब भी स्थिर हूँ क्योंकि सिद्धांत भी यही कहता है ....... और बहुत विस्तार में फ़ोन पर मनु जी को बताया भी है ........
सादर
अरुण मित्तल अद्भुत
Dear Arun,
I liked your reasonability. Moreovere i've never said that this is a 'Ghazal'.
The only concerned is that we are noone to decide that who is better and who is not?
you made the list and thanks for making me aware about these writer...
Even you haven't mentioned "shyam ji" in your list. But yes you have your own excuse that the list is long.
Moreover you are right in saying that not much good writer writes in hind yugm Howevever are we aware about kavita kosh?
I believe we are....
and 'manu' ji is there as well,And we know it's not easy to be there.
it's just one example.
You have said one more thing bout ur list that i know these poet 'coz they live near you.
So that's that.
Do you know:
Darvesh Bharti?
Munuvaar Rana?
Dwij?
may be....
and since you, yourself consider yourself 'form one of 55', so, tell me honestly do you have the right to make list?
"can examianer be better than examinee?"
last but by no means least i am quoting your thoughts adjecent to your thoughts. Compare and tell.
"कोई भी गजल भाव में कम हो सकती है परन्तु शून्य नहीं.......... "
&
"na ho ye ghazal...
...na ho koi kavita.
lekin kuch to hai...
'kuch' astitvahin nahi hota...
...kuch shunya nahi hota !!
"
(and netiher me nor you havecopied each other thoughts so I think that we are on same page.)
No personal grudeges at all...
Best Regards.
Darpan Sah
और देर रत फोन पर हमने तो आपसे बात करके बहुत आनंद लिया साहिब,,,
वो बात और के इस कमबख्त काफिये को हम एक दुसरे को नहीं समझा पाए..
:)
और जो आपने मेरा मतलब लिया है के .......
मगर इनमे से कोई ना तो हमें हीजानते हैं
और ना ही हम .....
इन में से किन्ही को जानते ...
फिर..?
:)
वो नहीं था जो आप ने समझा...
ये बड़े लोग मुझ अदने को नहीं जानते हैं..इसलिए ये जो भी बात करेंगे ...सिर्फ और सिर्फ इस काफिये के बारे में करंगे जिसे मैंने अनजाने में लिखा है
कई बार कुछ और भी जानना होता है...
जैसे के मैंने कहा के कोई मेरी ये समस्या सुलझा दे, उसके बाद हमारा उनका मूड आपस में मिलता लगा तो हम उसे ही अपना उस्ताद बना लेंगे.....
काफी कुछ होता है जी.....गजल की उत्पति ज्ञान से नहीं , प्रेम से हुई है
गिनना-गिराना-
वो गलती तो मैं सिर्फ शामिख के पहले कमेन्ट पे ही मान चुका हूँ....
शामिख , जो की इस क्षेत्र में ज्यादा पुराना नहीं है..कोई बहुत बड़ा उस्ताद शायर नहीं है...
हमारा कहना तो सिर्फ और सिर्फ इतना है के आखिर ये काफिया खारिज लग कैसे रहा है...?
मेरा प्रशन आप गुणीजनों से ज्यादा गजल-शास्त्र से है..... ( जो मैंने नहीं पढा है )
उसके वायदे हैं जी लुभाने की शय
कोई तो वजह है ही ना के इसे को आप ने मेरी आवाज से सुनकर सही माना , वो और बात के आपने किसी और का उदाहरण दिया के फलां कहते है के मात्रा कम से कम गिरानी चाहिए...
हर आदमी कुछ न कुछ तो बोलेगा ही,
जैसे ये गजल परफेक्ट नहीं है,,,
ठीक वैसे ही कोई भी इन्सां परफेक्ट नहीं होता
और जब इन्सां ही नहीं होता तो कोई भी उस्ताद कैसे हो सकता है परफेक्ट
हम तो बस यही कह रहे हैं के बिना गजल में परफेक्ट मनु ने अनजाने में एक गजल कह दी है
और सबसे पहले मान भी लिया के ये काफिया गलत है...
तो इस मान लेने भर से मेरे दिल में उठ रहे सवाल ख़त्म नहीं हो जाते.....
जिन हिंदी उर्दू वालों की कल बात चली , वो सिर्फ और सिर्फ अपने भाषा के असीम ज्ञान से मेरी जिज्ञासा थोडी देर के लिए शांत कर सकते हैं..
अभी निकलना है जी ,
शायद ये कमेन्ट अभी अधूरा है,,,
:)
काफी कुछ होता है जी.....गजल की उत्पति ज्ञान से नहीं , प्रेम से हुई है
गिनना-गिराना-
sab baad mein aayaa hai....
ye hotaa hai sawere comment karne kaa nuksaan...
:)
प्यारे अरुण जी,
हम लोग हमेशा आपके तर्कों से घबराते हैं, ये हमने बीसियों दफा कहा है
क्या कारण है के इस सवाल के बाद आप जैसा जानकार सैंकडों रूपये एस.टी.डी. काल्स में बर्बाद कर चुका है
हम ने हमेशा कहा है के आप जरूरत से ज्यादा पढ़ चुके हैं,(फिर भी इस सवाल के लिए और नयी-नयी किताबें किस लिए खरीद रहे हैं )
और हम अपने कमेन्ट किये जा रहे हैं एकदम बे-फिकरी के साथ ..वो भी दिन में...
:)
कुछ नया ढूँढना तो दूर...
फिलहाल जो कुछ जाना है उसे भी एक तरफ रख देने का दिल कर रहा है....
:)
bye
एक लाइन लिखने की बेअदबी हम भी कर ही दे ,
khaskar ke अरुण जी का.....
जिन्होंने हमें समझने की जीतोड़ कोशिश की...
पर नाकामयाब रहे ............हा हा हा हा हा (हिंदी में हसिये)
72 comments jisme se 12 to taqreeban manu ji ke hi honge ,shailesh ji jara dekh kar bataayiye ki ab tak sabse jyaada comments milne waali rachnaaon me ise kan sa sthaan mila hai
नीलम जी,
किसी की हंसी उडाना आपको शोभा नहीं देता, वैसे आप कई बार मेरे लिए स्तरहीन कमेन्ट कर चुकी हैं. ..... खैर मुझे कोई फरक नहीं पड़ता,
यहाँ कामयाबी या नाकामयाबी के लिए कोई प्रतियोगिता नहीं हो रही ये तो एक सकारात्मक वैचारिक बहस है जिसमे हम किसी निर्णय पर पहुँचने की कोशिश कर रहें हैं ........ मैं तो आभारी हूँ रमन जी का जिन्होंने मेरी गलती भी बताई..........
लगभग सबने बौद्धिक टिप्पणियां लिखी हैं, आपने ही एक ऐसी बात लिखी है जिसका कोई सकारात्मक पहलू नहीं है ..... सिर्फ आपकी टिप्पणी ने मुझे आहत किया किया है
अगर आपके पास कुछ ढंग का नहीं है कहने के लिए तो कृपया कुछ न कहें
किसी शायर ने क्या खूब लिखा है
ऐसी वैसी बातों से तो अच्छा है ख़मोश रहें
या कुछ ऐसी बात करें जो खामोशी से अच्छी हो
सादर
अरुण मित्तल अद्भुत
अई हो दादा.....!!!!@@@$$$*****%%%%%
इ का..........होवता हो.....
इ सब अखनियो तक चलता.....
सब लोगन के गोड़ पड़ तानी हो.....
अब इ पानीपत --हल्दीघाटी से तनी बाहर निकलल जावे..
हम अतना मन से इ 'गज़लवा' गैनी है....अरे कोई तो सुने......
जे बा कि न हम तो थक गैनी भाई......
इ अजल-ग़ज़ल के definationwa से.....
हे भग्वाआआआआन !!!!!!!!!!!
इ रहा हमरा ७४ वाँ टिपण्णी.....
हम हईं 'अदा' देवतानी सदा
अदा जी,
आप अपनी गायिकी की अदा के बारे में कोई चिंता ना करिवे का. हमका आपका गाना बड़ा ही भला और नीका लगा. अहि लड़ाई-झगड़ा में ना पड़ी, अपना भेजा न खराब करिवे का. सब मामला शांति हुइ जयिवे जब सब थकि जईहैं.
शन्नो जी,
इ पूरा episodwa में बहुत देरी बाद आपका मुंह से एगो मीठ बात सुनने को मिला है...
शुरू-शुरू में बहुते अच्छी बात हुई है....लेकिन उकरा बाद तो बस बम्बारिये हुआ है ...
बस आपका मुंह में 'घीउ और गुड़' पड़े....... नहीं तो इ पोस्टवा पर इ लगता रहा कि हम ग़ज़ल का नहीं बोफोर्स का बात पढतानी...
ग़ज़ल न हुआ जी का जंजाल होई गया है जी.....
अब तो हमहूँ अपना माथा पीटे मा लग गए हैं भाई ...
जो मैं ऐसा जानती 'ग़ज़ल' गाये दुःख होय
नगर ढिंढोरा पीटती 'ग़ज़ल' गाओ मत कोय
शन्नो जी आप धीरज बंधाये हैं बहुत बहुत शुक्रिया आपका...दिल से कह रहे हैं
हाँ, हाँ..... अदा जी, हम पूरे मन से सच कहिवे. कैसे समझाई आपको? का कोई संदेह है आपके मन में हमरे कमेन्ट के बारे में? ऐसा ना सोचे का. हमार मन दुखिवे. और आपके मुंह में भी 'घी सक्कर' (वैसे घी न उपलब्ध हो तो butter और सक्कर की जगह sugar भी चल सकती है). सक्कर और बटर की टक्कर तो हर जगह हो ही रही है इस ज़माने में जैसा की आप जानती ही हैं.
और.....अदा जी, बुरा ना माने का पर आप तो वहुतय बड़ी छिपी रुस्तम हैं जी .....गायिकी के अलावा आप दोहा लेखन कब से करने लगीं जी?
जो मैं ऐसा जानती 'ग़ज़ल' गाये दुःख होय
नगर ढिंढोरा पीटती 'ग़ज़ल' गाओ मत कोय
नयी छात्रा होने के कारन केवल मात्रा ही गिनिवे का, लेकिन भाव-शून्य नहीं है.
एक बात और कान खोल कर सुनि लेवे का की अपना माथा-ऊथा ना पीटें. मामला सीरियस नहीं बनयिवे का.
बहुत बहुत शुक्रिया आपका भी ...
हम दिल से ही कह रहे हैं ..
श्याम साब को प्रणाम,
हिंदी-युग्म पे सत्संग ढ़ूंढ़ता हूँ। कुछ व्यस्तता बढ़ गयी कि नेट पर ज्यादा वक्त नहीं दे पाता और इसी चक्कर में अभी तक "कोई फायदा नहीं" शुरू नहीं कर पाया हूँ। जल्द ही करूँगा। उधर हिंदी-युग्म पे मनु जी की भी एक ग़ज़ल पर बहस जारी है, जिसमें आपको भी miss किया जा रहा है। आप जाकर कुछ कहें, प्लीज। काफ़ियों पे विवाद छिड़ा है जिसमें मैंने भी एक सवाल उठाया है ग़ालिब की एक ग़ज़ल को लेकर।
आपका ही
-गौतम
प्रिय दोस्तो गौतम राजरिषी ने यह मेल भेजी तो मैं अपने अनुभव व कुछ किताबों में वर्णित काफ़िया संबण्धी बाते यहां दे रहा हूं
सजा़मुतवाज़िन---
‘शायरी में ऐसे काफ़िये [तुकान्त ] गलत माने जाते हैं जिनके अन्त्यानुप्रास नहीं मिलते,जैसे अन्जाम के साथ ईमान या कलम के साथ कसक उस आधार पर प्रिय मनु की इस रचना के काफ़िये सही नहीं हैं-सहजवाला जी के अ-अ का जवाब अरुण मित्त्ल ने सहज ढंग से दे ही दिया है,हां कुछ लोगों ने टिप्पणी में उस्तादी उग्र-भाव दिखलाएं हैं जो ठीक नहीं हैं क्योंकि समय के साथ -अनेक बार हर नियम सामाजिक.राजनैतिक या धार्मिक बदले हैं हमारे शास्त्रों में तो कहा गया है कि धर्म-देश-काल व परिस्थिति से निर्धारित होता है-गज़ल को धर्म मानने वाले भी यह जानते होंगे कि,कह्ते,लिखते या घटकर,हटकर,कटकर काफ़िये कभी इस लिये अमान्य थे कि इन की सर्जरी करने पर-कहते कह+ते या हटकर हट+कर होने से कह व हट भी सार्थक अर्थ देते हैं ओ कभी अमान्य था -आज हिन्दी ही नहीं उर्दू वालों ने भी इसे मान्य मान लिया है ,इसी तरह ईता दोष भी अब मान्य हो गया है ,तो हो सकता है कि कल को मनु का प्रयोग भी मान्य हो जाए पर आजतक तो यह अमान्य ही है ,मेरी जानकारी की सीमा में
गज़ल नियम टूटने या तोड़े जाने के कुछ और उदाहरण-
आम तौर पर हम्सभी यह सुनते पढते आए हैं कि गज़ल में केवल हिन्दी शब्दों की मात्रा गिर सकती है अरबी-फ़ारसी शब्दों की नहीं
देखें मीर तकी मीर के कुछ शे‘र
दिल की आबादी की इस फ़द है खराबी कि न पूछ
जाना जाता है कि इस राह से लश्कर निकला
व्ज्न है
फ़ाइलातुन,फ़इलातुन,फ़इलातुन,फ़ेलुन या फ़ेलान
अब यहां आबादी -फ़ारसी शब्द है जिसकी मात्रा गिर रही है,
वो खेंच के शमशीरे-सितम रह गया जो मीर
खूंरेज़ी का यां कोई सजावार न पाया
वज्न
मफ़ऊल, मफ़ाईल,मफ़ाईल,फ़ऊलुन या मफ़ाईल
खूंरेज़ी जो फ़ारसी शब्द है की मात्रा गिराकर ही बह्र पर ठीक उतरेगा,
उस शोख से हमें भी अब यारी हो गई है
शर्म अँखड़ियों में जिसके अय्यारी हो गई है
मफ़ऊल,फ़ाइलातुन,मफ़ऊल,फ़ाइलातुन
यारी और अय्यारी- फ़ारसी दोनो की मात्राएं गिर रहीं हैं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज साहिब का शे‘र देखें
तूने देखी है वो पेशानी वो रूख्सार वो होंट
जिन्दगी जिनके तसव्वुर में लुटा दी हमने
फ़ाइलातुन,फ़इलातुन,फ़इलातुन,फ़ेलुन या फ़ेलान
पेशानी - फ़ारसी
बशीर बद्र
मैं तो एक कागजी फ़ूल था जो तमाम खूशबू से भर गया
मैं कहां था मुझको खबर नहीं मुझे कौन छूकर गुजर गया
मुत्फ़ाइलुन-चार बार
कागजी -अरबी ,खुश्बू -फ़ारसी दोने की मात्राएं गिर रही हैं
मुहम्म्द अलवी
जिन्दगी और मौत का चलता रहा सिलसिला
होते रहे रोजो-शब काम बराबर तेरे
मुफ़तइलुन,फ़ाइलुन,मुफ़तइलुन,फ़ाइलुन
जिन्दगी की मात्रा गिर रही है मगर और उसके बाद आने से अलिफ़-वस्ल हो गया अत: लय भंग न हुई
यहां दो बाते हैं एक तो इन फ़ारसी -अरबी शब्दों की मात्रा गिरने से लय भंग नही हो रही और लय गज़ल का पहला अंग है,दूसरे ये लोग उस्ताद शाइर थे इन्होने जो किया जायज हो गया आशा करें कि अपना मनु भी कभी उस्ताद शाइर के पद तक पहुंच जाए
श्याम सखा श्याम
dosto kisi ne sbase jyaada KMENTS KI BAT KI kuch log khamakh kkhud v doston ya voshyam ji ki TPNI me khe gaye such ke anusar -le-de ko kment manate hai ,yhan bhee swal uthha
to
dekhe
manu-12-13
arun mital-8-9
shnon -7
samikh fraz-6
ada-5-6
neela-4
sahj vala-muflis-3.3=6
any 3
3-3=9
shyam v any 5-6- 2=12
ada- 6 nelam
kul 78
asal men keval 13-14 kment aaye hain gazal pr baki gazal par nhin bhdas- bakwas hetu
ऐसी वैसी बातों से तो अच्छा है ख़मोश रहें
या कुछ ऐसी बात करें जो खामोशी से अच्छी हो
arun ji ,sirf ek hi line bolenge kyounki aapne to itaaa bada sher patak diya hai hmaare matthe par .
but humko kahe kaafir allah ki marji hai ,
Anonymous2-ji ki tippnion ke hm shukragujaar hain ,he has healthy spirit to critise .aap apna naam bhi bata hi dijiye
Sabhi Mitron ko namaskaar,
Manu ji ki (Ghazal) jo ki nahi hai wo padhi..bhaaw behad khoobsurat hai. Jab shuru se comments padhne shuru kiye to laga ki ek healthy behas chal rahi hai par jaise jaise aage badhta gaya baat karne ka saleeka badalta gaya kuch logon ka.
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Arun Ji ki do baaton se sehmat hun ki manu ji ki rachna mein kaafiya nahi hai aur ghazal jab kahi jaati hai to niyam manne zaroori hai. Aur yahaan par mere sabhi mitron ne jo udaaharan diye hain bade shaayaron ke sher pade hain wah sabhi behr mein hain aur agar unki ghazal padhi jaaye to kaafiya bhi durust hai.
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Arun ji ne jo apni ghazal yahan post ki hai jisme unhone poocha hai ki kaunse sher behr se khaariz hain....
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कभी कभी नफ़रत का डर
और कभी उल्फत का डर
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नीड़ बनाने वालों को
दुनिया की आदत का डर
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in dono ke liye main puktaa taur par keh sakta hun ki yeh behr me nahi hain.
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Pehle manu ji kaafiye ki baat ko bahut hi sehaj bhaaw se sunte hue apnaaya par baad mein wah bhi khud ko defend karne lage. Main Manu ji se yeh hi kehna chahunga ki "Experiments" apni jagah sahi hain lekin agar kisi ka chehra Amitabh bachchan se milta hai to wo amitabh nahi ho jayega..rahega duplicate hi...kyunki Amitabh apne aap ko prove kar chuke hain aur ek benchmark set kar chuke hain. Ghazal ghazal hi rahegi apne niyamon ke saath kafiye ke saath. Meri aapse darkhwast hai ki in baaton ko grahn kijiye isse aapki shaayri me sudhaar aur nikhaar aayega. aapke bhaaw behad sundar hain aur manjusha ji ki awaaz to bahut hi khoob..aap dono ko badhai.
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--Gaurav Sharma 'Lams'
मैं मनु जी के सपोर्ट में चचा ग़ालिब का एक शेर पेश करने जा रहा था:
बाजीचा-ए-अत्फ़ाल है दुनिया मेरे आगे,
होता है शबो-रोज़ तमाशा मेरे आगे।
लेकिन तभी सतपाल जी की एक टिप्पणी पर मेरी नज़र गई, जिसमें लिखा था कि "आ" को काफ़िया मानते हैं "अ" को नहीं। और फिर मैं पशोपेश में पड़ गया। मुझे लगा कि मुझे तो आजतक काफ़िये का ज्ञान था हीं नहीं। वैसे शायद मैने "अ" को काफ़िया मानकर आजतक कई सारी गज़लें(जिसे बाकी लोग गज़ल नहीं मानते) लिखी हैं। अब समझ आया कि लोगों ने मेरा गज़ल लिखना क्यों बंद करवा दिया। खैर छोड़िये.. लेकिन मुझे यह लगता है कि गज़ल एक ऐसी चीज है, एक ऐसी विधा है, जिसमें एक उस्ताद दूसरे उस्ताद की कही बातों को नहीं मानता। अब चचा ग़ालिब की लिखी गज़लों को तो लोग बुरा कहने से रहे क्योंकि उस हाल में इंस्टीच्युशन पर हीं सवाल खड़े हो जाएँगे,लेकिन उनके अलावा आज तक कोई ऐसा शायर नहीं हुआ (लोगों ने नीरज की गज़लों को भी नहीं छोड़ा है) जिसकी गज़लों में किसी न खामी न निकाली हो। यह सब मैं इसलिए नहीं कह रहा कि मुझे मनु जी की रचना गज़ल लगती है या फिर मैं उनकी पैरवी करने आया हूँ। मैं बस यह चाहता हूँ कि कोई एक सर्वमान्य पुस्तक या उस्ताद हो जिसकी बातों को कोई काटे नहीं या फिर कोई ऐसा शायर हो(चचा ग़ालिब को छोड़कर) जिसकी गज़लों को कोई खारिज़ न करे।
जहाँ तक इस रचना की बात है, तो जहाँ इतने बड़े बड़े गज़लों के जानकार हों वहाँ मेरा कुछ कहने का मतलब नहीं बनता, लेकिन चूँकि इस गज़ल(आप इसे जो भी कहे) में छुपे भाव मुझे पसंद आए, इसलिए अपने आप को यहाँ टिप्पणी देने से रोक नहीं सका। स्वप्न मंजुषा जी की आवाज़ और संतोष जी की धुन गज़ल को एक अलग हीं स्थान देती है।
मैं अब भी कह रहा हूँ कि मुझे गज़लों का कोई ज्ञान नहीं है, इसलिए मेरी टिप्पणी का गलत अर्थ न निकाल जाए, यही दरख्वास्त है सबसे।
आपका-
विश्व दीपक
bahut comments mile hain manu ji. mubarak ho.
तन्हा जी,
मेरा शेर लिखना तो safe है ना? मुझे तो ग़ज़ल लिखना ही नहीं आता, बस शेर लिखने को मन उतावला रहता है.
अगर कहें तो शेर लिखना भी बंद कर दूँ
तमन्ना का क्या है खुद व खुद घुट जायेगी.
शुक्रिया.
बधाई--kis baat kee
गज़ल पर कुल ११ कमेन्ट ्वह भी उनके जिनकी बड़ाई लेखक उनके ब्लाग पर करता है,बाकी कमेन्ट पर कमेन्ट यानि अपने मुंह मियां मिठ्ठू
सुमीत
क्षमा कीजियेगा
ये कमेन्ट किसी और घटिया सी पत्रिका ११ कमेंट्स वाली पोस्ट के लिए था,
यहाँ के लिए नहीं , मैं एक बार फिर से हाथ जोड़कर माफ़ी माँगता हूँ ,
आशा है शैलेश जी माफ़ करेंगे
सादर
सुमित
यह सब मनु और शामिख का मिला जुला खेल था जो मनु को इतनी कमेन्ट मिले. मनु को हिन्दयुग्म पर कोई नहीं जनता इसलिए उसने शमिख के साथ मिलकर यह सब किया है. इसका सुबूत यह है की सबसे पहले शमिख ने मनु की ग़ज़ल (वैसे यह ग़ज़ल है ही नहीं.) पर काफिये की बात कही और फिर माफ़ी मांग ली. इससे दोनों को नाम मिला है. और कुछ भी नहीं. मैं दोनों की असलियत जनता हूँ. यह ठीक वैसे ही है जैसे कोई मूवी किसी अश्लील सीन के कारन नाम कमाती है. मुझे आशा है ही हिन्दयुग्म के सुधि पाठक इसकी असलियत अब मेरे इस कमेन्ट के बाद समझ जायेंगे और इन दोनों बहरुपियो मनु और शमिख से होशियार हो जायेंगे.
सबका का शुबचिंतक
मनु और शमिख अगर तुमने मेरे इस कमेन्ट पर किसी बात का उत्तर दिया तो मैं तुम दोनों की साडी असलियत हिन्दयुग्म के दुसरे सदस्यों के सामने खोल दूंगा और यह भी बता दूंगा की कैसे तुम दोनों ने मिलकर इस ग़ज़ल को (जो ग़ज़ल कहने लायक ही नहीं है.) सफलता दिलाई और सब तुम पर थू थू करेंगे.
हहहह्हाह्ह्छा
तुमारा शुभचिंतक.
Hindyugm a place where one can learn how to creat a politics. One creates gazal another sings and a new person makes a comment on it that gazal has no kafiya. All others jump in this war and the person who makes comment for kafia takes back his comment and feels aplogitic. All the other make comment on kafia and no one on gazal. What is this? This is a grear great and best politics on gazal made by two genios politians of hinduygm on hindyugm.
Manu & shamikh both of u can be a good ministers but not poets.This is true
ये दिया मनु ने उत्तर...
मनु को हिन्दयुग्म पर कोई नहीं जनता इसलिए उसने शमिख के साथ मिलकर यह सब किया है.
आप तो मनु को जानते ही होंगे...जो सारी पोल-पट्टी खोलने की धमकी दे रहे हैं...
:)
हे सबके शुभचिंतक,,,
हे निराकार,,,
आप स्वयम भी तो एक बात को ३-३ कमेंट्स में कह रहे हैं...
:)
अद्भुत आनंद का अनुभव हो रहा है आप को यूं कमेन्ट करते देख कर...
:)
:)
दिलबरी की बातें सारी कब किताबों में मिलें.?
क्यूं हमें तौलें वो जिनके दिल में ही मीजां नहीं....
आदरणीय मनु जी,
आज आपकी ग़ज़लों की एक लम्बी फेहरिस्त 'कविता-कोष' में देख कर बहुत ख़ुशी हुई
आपकी ग़ज़लों का इतने प्रतिष्ठित साईट पर स्थान मिलना अपने आप में बहुत बड़ी उपलब्धि है, सोचा बधाई देता चलूँ
मैं तो वैसे भी आपकी लेखनी का कायल हूँ.
एक बार फिर बहुत-बहुत बधाई आपको.
@ any mouse ji,
aap kaun hain jo manu ji ke baare mein mujh se bhi jyaadaa jaante hain..?
ab to manu ji ne aapki baat kaa jawab de bhi diyaa hai...ab to khol do pol patti...!
bas bhai...i am a novice in this field.but i decide to never attempt anything like ghazal.itni bahas.....?matlab ghazal nahi koi maths ka formula ho gayee.tauba bhai aisi jaankari se...ham to khuli kavita likh lenge.
कहने को कुछ बचा है क्या मेरे लिए?फिलहाल मैं कोई कमेन्ट नही करूंगी .बेहद प्यारी गजल है.आज रात बैठ क्र सारे कमेंट्स पढूंगी.गजल सुनूंगी फिर कुछ बोलूंगी.क्या करू? भई ऐसिच हूँ मैं तो
और मेरा शेर इतने प्यारे शे'र कह लेता है वाओ !मुझे नही मालूम था.मिल तो सही पूरी रात बैठ कर तुम्हारी गजले न सुनी तो देख लेना.अब आ जाओ उमा और बच्चों के साथ मनु!
कहने को कुछ बचा है क्या मेरे लिए?फिलहाल मैं कोई कमेन्ट नही करूंगी .बेहद प्यारी गजल है.आज रात बैठ क्र सारे कमेंट्स पढूंगी.गजल सुनूंगी फिर कुछ बोलूंगी.क्या करू? भई ऐसिच हूँ मैं तो
और मेरा शेर इतने प्यारे शे'र कह लेता है वाओ !मुझे नही मालूम था.मिल तो सही पूरी रात बैठ कर तुम्हारी गजले न सुनी तो देख लेना.अब आ जाओ उमा और बच्चों के साथ मनु!
anonymous ji
समझ में नही आता जब आप अपनी जगह एकदम सही हैं तो डरते किस से हैं?खरा बोलने वाले हैं तो मनु भी खरा सुनने का दिल रखता है.आपको इस तरह अपनी पहचान नही छुपानी चाहिए.हम तो बेबाक बोलने वालो की कद्र करते हैं.
zzzzz2018.6.2
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