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Tuesday, August 04, 2009

दोहा गाथा सनातन: 28 व्याल भाल कवि का रखे, ऊंचा


व्याल भाल कवि का रखे, ऊँचा ''सलिल'' सदैव।
जो रच पाता है इसे, कीर्ति उसे दें दैव॥

चालिस लघु गुरु चार ले, रचिए दोहा डूब।
व्याल नाम से पुकारें, रसानंद हो खूब॥

व्याल दोहा सूत्र: ४ गुरु + ४० लघु = ४४

चार गुरु मात्राओं और ४० लघु मात्राओं के संयोजन से बने दोहे को लघु दोहा कहते हैं.

१.
तिरसठ बनकर चलत यदि, पग-पग मिलत असीस।
दर-दर पर ठोकर सहत, बन-बन कर छत्तीस। । -आचार्य रामदेव लाल 'विभोर'

२.
कुंडल-दुति दमकति परति, इमि नँद सुवन कपोल।
नील गगन जनु नखत गन, बहु रँग करत किलोल।। -श्याम रसमयी

३.
चमक-दमक, चुप-मुखर रह, गरज-बरस नभ-नाथ।
थकित-श्रमित, असफल-भ्रमित, धरा न लगती हाथ।। -सलिल

४.
नटवर गिरिधर हरि किशन, मुदित मगन रसराज।
विहँस-विहँस कर-कमल पग, कमल पखारें आज।। -सलिल

५.
दरद हरन कर सकल विधि, नरम नरमदा मात।'
सलिल' विमल भव तर सके, प्रमुदित अविकल गात।। -सलिल

६.
पल-पल निशि-दिन सुमिर मन, नटवर गिरिधर नाम।
तन-मन-धन जड़ जगत यह, 'सलिल' न आते काम॥

७।कलियुग में हर जन भ्रमित, बदल रहे नर- नार।
करम-धरम नहिं मन बसत, बदलत रहत बिचार।।-शन्नो

शन्नो जी के उक्त दोहा क्र. ७ में तीसरे पद में मूलतः 'ना' का प्रयोग किया गया है और यह अहिवर दोहा है किन्तु 'ना' के स्थान पर 'नहिं' का प्रयोग करने पर एक गुरु मात्रा घाट जाती है और यही दोहा 'व्याल' हो जाता है.

व्याल दोहे के चार चरणों में चार गुरु मात्राओं में से दो पदांत में होती है, शेष दो कहीं भी रखी जा सकती हैं. चालीस लघु अक्षरों का प्रयोग कर कुछ सार्थक कहना सहज नहीं है. उक्त उदाहरणों को देखकर पाठक प्रयास करें.
*****************************

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41 कविताप्रेमियों का कहना है :

Shanno Aggarwal का कहना है कि -

गुरुदेव
सादर प्रणाम,

आपका बहुत आभार की आपने मेरे एक अहिवर दोहे में एक मात्रा को घटा कर उसे व्याल दोहे में परिवर्तित कर दिया. धन्यबाद. अब मेरी भी व्याल दोहे पर दो कोशिशें:
१.
करि-करि कठिन परिश्रम तब, रचत कविजन व्याल
घटत-घटत अनवरत फिर, मिले ताल पर ताल.
२.
विचलित मन भटकत फिरत, हर पल मचलत आस
जीवन यह बहुतय विकट, हर दिन एक वनवास.

Shanno Aggarwal का कहना है कि -

मनु जी, आपको भी बहुत-बहुत धन्यबाद.......(हौसला बढ़ाने के लिये और हाजिरी लगाने के लिये)

Shanno Aggarwal का कहना है कि -

लेकिन मनु जी यह आपने .....mouse ji किसे कहा है जी? कहीं मैं...मुझे तो.....नहीं, नहीं.....और फिर यह डाकू आदि की बातें. यह सब दोहे की कक्षा २७ में कैसी गड़बड़ कर दी थी आपने? आप ठीक तो हैं ना? चिंता का विषय है. लगता है वोह comment was meant for somebody else और धोखे से इस कक्षा में आ गया. वैसे आप अपनी सफाई दे सकते हैं.

manu का कहना है कि -

Anonymous का कहना है कि -
आचार्य जी तो गुणी हैं ,गुण बांट रहे हैं ,मगर युग्म हैडर पर करगिल विजय ????
क्या चोर या बदमाश को घर से निकाल बाहर करना विजय कहलाता है अगर आप भाजपाई नहीं है तो ?

July 29, 2009 12:11 पम


शन्नो जी....
इन्हें कहा था....
आप को और माउस .....तौबा-तौबा....आप को तो दोहा-कक्षा-नायिका बनाया है आचार्य ने..
मुझे आप से और आचार्य से पिटाई थोड़े खानी है जी...ऐसा वैसा कुछ बोल कर...
:::))
आपके साथ साथ सभी को रक्षा बंधन की हार्दिक शुभकामनायें..अनाम जी को भी...
:)
आज फिर वो आपके स्वादिष्ट आलू-पूरी याद आ रहे हैं..

manu का कहना है कि -

और हाँ...
मैं इस कक्षा में ऐसी गलती पर हमेशा ध्यान रखता हूँ...
के कहीं और का कमेन्ट यहाँ पर ना आ जाए..
:)

एक बार पुनः बधाई....

अजित गुप्ता का कोना का कहना है कि -

दोहे के माध्‍यम से हम हमेशा गुरु गम्‍भीर बात कहते हें, लेकिन आज में एक हल्‍का-फुल्‍का दोहा लिख रही हूँ दड़ियल अड़ियल सब कहत

चुटियल गुरु गम्‍भीर

भजन करत कर नहिं रुकत

खुजली करत अधीर।

Divya Narmada का कहना है कि -

रक्षा बंधन के दोहे:

चित-पट दो पर एक है, दोनों का अस्तित्व.

भाई-बहिन अद्वैत का, लिए द्वैत में तत्व..

***

दो तन पर मन एक हैं, सुख-दुःख भी हैं एक.

यह फिसले तो वह 'सलिल', सार्थक हो बन टेक..

***

यह सलिला है वह सलिल, नेह नर्मदा धार.

इसकी नौका पार हो, पा उसकी पतवार..

***

यह उसकी रक्षा करे, वह इस पर दे जान.

'सलिल' स्नेह' को स्नेह दे, कर दे जान निसार..

***

शन्नो पूजा निर्मला, अजित दिशा मिल साथ.

संगीता मंजू सदा, रहें उठाये माथ.

****

दोहा राखी बाँधिए, हिन्दयुग्म के हाथ.

सब को दोहा सिद्ध हो, विनय 'सलिल' की नाथ..

***

राखी की साखी यही, संबंधों का मूल.

'सलिल' स्नेह-विश्वास है, शंका कर निर्मूल..

***

Shanno Aggarwal का कहना है कि -

धन्यबाद मनु जी, अब जाकर (हा..हा..) जान में जान आई है और डर दूर हुआ जब आपका explaination पढ़ा. मैं भी सोच रही थी की......यह सब माजरा क्या है? मनु जी तो एक चींटी का भी मन दुखाने वाले प्राणी नहीं लगते हैं. चलिए इसी बहाने आपने दुबारा हाजिरी लगाने का कष्ट किया और आशा है की आगे भी करते रहेंगें.
आपको और आपके परिवार को भी रक्षा-बंधन के दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं. और हाँ, मेरे पतिदेव का नाम अनाम नहीं है मनु जी, उनका नाम है.....मोहन.

और साथ में यह भी अच्छा लगा पढ़कर की:

सादा भोजन याद है, ना था कोई राज
बना रही हूँ फिर वही, आलू-पूरी आज.

भला लगा यह जानकर, दिया आपने मान
अब तो दूरी बहुत है, अति दूर मेहमान.

Shanno Aggarwal का कहना है कि -

गुरु जी,
प्रणाम

रखें हम संबंध मधुर, बाँटें सदा प्यार
हिन्द-युग्म के साथ में, बहे 'सलिल' की धार.

राखी-बंधन का दिवस, राखी बंधती हाथ
पावन बंधन का रहे, युग-युग तक यह साथ.

आपको, आपके परिवार को, पूरी कक्षा और सारी हिन्द-युग्म की टीम को रक्षा-बंधन दिवस पर बहुत शुभकामनाएँ.

Divya Narmada का कहना है कि -

चालिस लघु सँग चार गुरु, दोहा नामित व्याल.

सच्चा दोहाचार्य वह, जो रच दे तत्काल..

******

मोहन जी कृपया करें, राम-राम स्वीकार.
शन्नो जी क्यों कर रहीं, हम पर अत्याचार?
आलू-पूरी पा रहे, मनु जी! हम बेहाल.
आप सिफारिश कीजिये, मिले हमें भी माल.
आधा-आधा बाँट लें, हम दोनों तत्काल.
पेट न भरे प्रणाम से, शन्नो जी फिलहाल.

******

शन्नो जी ! - अजित जी!

व्याल दोहा-दरबार में दमदार उपस्थिति दर्ज करने हेतु बधाई.
१.
करि-करि कठिन परिश्रम तब, रचत कविजन व्याल
घटत-घटत अनवरत फिर, मिले ताल पर ताल.
२.
विचलित मन भटकत फिरत, हर पल मचलत आस
जीवन यह बहुतय विकट, हर दिन एक वनवास.

शन्नो जी!

परिश्रम में ५ मात्राएँ होंगी क्योकि 'श्र' में मिश्रित 'श' तथा 'र' की ध्वनियों को गुरु माना जाता है.

दूसरे दोहे में 'एक' को उर्दू की तरह 'इक' पढ़ने पर ११ मात्राएँ होती हैं पर हिंदी में यह प्रचलित नहीं है.

दोनों दोहों पर कुछ और काम कर सुधार लें, मैं इसलिए नहीं सुधार रहा कि अब आप सुधार करने में समर्थ हैं.

अजित जी!

दोहा शिल्प की दृष्टि से ठीक है. 'दाढ़ी' से 'दडियल' नहीं 'दढियल' बनेगा.

दोहों के २३ प्रकार पूर्ण होने पर सभी सहभागी हर रस के दोहे लिखकर लायें तो अच्छा होगा.

हर रस के दोहे हमने शायद पाठ ७ में उद्धृत किये थे.

******

Shanno Aggarwal का कहना है कि -

अजित जी,
आपको भी इतने सुंदर दोहे लिखने की व राखी-दिवस की बहुत-बहुत बधाई.

Shanno Aggarwal का कहना है कि -

Sorry! गुरु जी,

दोनों दोहों में तत्काल सुधार करके भेज रही हूँ:
१.
करत-करत अनगिन जतन, रचत कविजन व्याल
घटत-घटत अनवरत फिर, मिले ताल पर ताल.
२.
विचलित मन भटकत फिरत, हर पल मचलत आस
जीवन यह बहुतय विकट, कटत नहीं वनवास.

Shanno Aggarwal का कहना है कि -
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Shanno Aggarwal का कहना है कि -

गुरु जी, आप भी क्या?

पढ़ दोहा अति मुदित मैं, हँस-हँस बेहाल
आलू-पूरी खान को, है यह गहरी चाल.

अवसर जब आये तभी, जी भर जीमें माल
तब तक को रखें अपना, हाल तनिक संभाल.

Shanno Aggarwal का कहना है कि -

सादर अभिनन्दन!

वही पहले वाला दोहा एक नये रूप में:

अवसर जब आये तभी, जी भर जीमें माल
तब तक पेट प्रणाम से, आप भरें फिलहाल.

Manju Gupta का कहना है कि -

व्याल दोहा की जानकारी मिली .बधाई .

Riya Sharma का कहना है कि -

आचार्य सलिल जी को प्रणाम !!

विद्यार्थी भी होनहार होते जा रहें है ..

बहुत खूब !!

manu का कहना है कि -

हे राम..
शन्नो जी मैं मोहन जी की नहीं..
बिना नाम से कमेन्ट देने वाले अनाम की बात कर रहा हूँ..
और अब आलू-पूरी के दोहे बंद कीजिये..मुंह में पानी आ रहा है.....
अभी ही खाए हैं पर वो...
यू.पी . वाला टेस्ट नहीं आया...
::)

manu का कहना है कि -

आलू-पूरी की नहीं है चूहे की बात
शन्नो जी , जो युग्म पर , बैठा लेकर घात..

Shanno Aggarwal का कहना है कि -

मनु जी मैं क्या कहूं अब, नहीं रहा कुछ सूझ
आपके कमेन्ट मुझे, करें बहुत कन्फयूज़.

चक्कर बातों का चला, चूहा रहा अनाम
धोखे से पतिदेव का, उगलवा लिया नाम.

दोहे की कक्षा होगी, अब कितनी बदनाम
चले आप चुपचाप फिर, कहकर बस 'हे राम'.

काहे नहीं पचा सके, आलू-पूरी बात
चूहे से कैसे बढ़ी, मोहन तक यह बात.

Divya Narmada का कहना है कि -

शन्नो जी ने हाजिरी, पूरी पायी आज.
मोहन जी को साथ ले, करतीं दोहा-काज..

पच न सके गुपचुप यहाँ, आलू-पूरी माल.
नहीं अकेले गलेगी, 'सलिल' किसी की दाल..

दोहा कक्षा समूची, देख रहे रही है राह.
सब को जी भर खिलायें, तब हो पूरी चाह..

शन्नो जी को समर्पित, पढें गीत ज्योनार.
पढें और प्रतिक्रिया दें ले-लेकर चटखार..

पूज्य मातुश्री का रचा, गीत आपको भेंट.
नित जीमें ज्योनार हों कभी न किंचित लेट..

ज्योनार गीत

-- स्व. शांति देवी वर्मा (मेरी माँ)

''जनक अंगना में होती ज्योनार

जनक अंगना में होती ज्योनार,
जीमें बराती ले-ले चटखार...

चांदी की थाली में भोजन परोसा,
गरम-गरम लाये व्यंजन हजार.
जनक अंगना में होती ज्योनार...

आसन सजाया, पंखा झलत हैं,
गुलाब जल छिडकें चाकर हजार.
जनक अंगना में होती ज्योनार...

पूडी कचौडी पापड़ बिजौरा,
बूंदी-रायता में जीरा बघार.
जनक अंगना में होती ज्योनार...

आलू बता गोभी सेम टमाटर,
गरम मसाला, राई की झार.
जनक अंगना में होती ज्योनार...

पलक मेथी सरसों कटहल,
कुंदरू करोंदा परोसें बार-बार.
जनक अंगना में होती ज्योनार...

कैथा पोदीना धनिया की चटनी,
आम नीबू मिर्ची सूरन अचार.
जनक अंगना में होती ज्योनार...

दही-बड़ा, काजू, किशमिश चिरौंजी,
केसर गुलाब जल, मुंह में आए लार.
जनक अंगना में होती ज्योनार...

लड्डू इमरती पैदा बालूशाही,
बर्फी रसगुल्ला,थल का सिंगार.
जनक अंगना में होती ज्योनार...

संतरा अंगूर आम लीची लुकात,
जामुन जाम नाशपाती फल हैं अपार.
जनक अंगना में होती ज्योनार...

श्री खंड खीर स्वादिष्ट खाएं कैसे?
पेट भरा,'और लें' होती मनुहार.
जनक अंगना में होती ज्योनार...

भुखमरे आए पेटू बाराती,
ठूंसे पसेरियों, गारी गायें नार.
जनक अंगना में होती ज्योनार...

'समधी तिहारी भागी लुगाई,
ले गओ भगा के बाको बांको यार.'
जनक अंगना में होती ज्योनार...

कोकिल कंठी गारी गायें,
सुन के बाराती दिल बैठे हार.
जनक अंगना में होती ज्योनार...

लोंग इलायची सौंफ सुपारी,
पान बनारसी रचे मजेदार.
जनक अंगना में होती ज्योनार...

'शान्ति' देवगण भेष बदलकर,
जीमें पंगत, करे जुहार.
जनक अंगना में होती ज्योनार...''

***********

सदा का कहना है कि -

पल-पल निशि-दिन सुमिर मन, नटवर गिरिधर नाम।
तन-मन-धन जड़ जगत यह, 'सलिल' न आते काम॥

बहुत ही सुन्‍दर दोहे आभार्

Shanno Aggarwal का कहना है कि -

गुरु जी,
सादर अभिनन्दन!

इतना सुंदर गीत! और इतने सही समय पर! एक तरह से तो यह ईश्वर की कृपा है मुझपर.

अब पता लगा आपकी प्रतिभा के पीछे माँ का कितना हाथ है.
उसकी ममता और उसकी यादों से जीवन में सदा साथ है.

अब यह हैं मेरे बिचार:

'जनक-अंगना में होती ज्योनार'
माँ आपको मेरा नमन बार-बार.

कैसी बनी है यह शादी की रीत
पूरी न हो बिन गाये कुछ गीत.

बेटे ने शादी पे पाया आशीर्वाद
जीवन में सदा रहेगा यह याद.

पूरी, कचौरी, मिठाई भी बनेगी
फूलों से सारी जगह भी सजेगी.

आँखों में बेटे का सपना सजेगा
आपका यह गीत आशीर्वाद लगेगा.

धन्यबाद.

Shanno Aggarwal का कहना है कि -

गुरु जी,

मोहन अपना नाम सुन, दिये जरा मुसकाय
और भी कुछ क्या हुआ, मैं ना सकी बताय.

दोहों से उनकी नहीं, बिलकुल भी पहचान
कब, क्या लिखती हूँ मैं, इससे हैं अनजान.

पेड़, पौधों में उनकी, अद्भुत सी है लगन
घंटे वहां कई बिता, लगे हैं बहुत मगन.

इधर-उधर खोद मिट्टी, अक्सर रहें व्यस्त
पौधे जमा उखाड़ के, करते मुझको त्रस्त.

करके घर का काम मैं, हो जाती हूँ पस्त
गाने डाउनलोड कर, वह रहते हैं मस्त.

कंप्यूटर पर भी वह, समय बहुत बिताते
पर दोहों के ज्ञान में, मन न तनिक लगाते.

फिल्मो के शौकीन हैं, सुनते हैं संगीत
इस जनम के बंधन में, हम दोनों हैं मीत.

Shanno Aggarwal का कहना है कि -

मनु जी,

आपने मुझे comment लिखते समय उसमे 'अनाम' शब्द का जिक्र किया और मैं ग़लतफ़हमी का शिकार हो गयी. आगे से I have to be very careful about your comments before jumping to any conclusions in future. AH!! Seriously, it's not a matter of ha..ha.. as I was completely taken aback when I learnt what you meant. I am still trying to recover from that nasty jolt. HA..HA..HA......

मोहन पर:

मोहन जी चूहे नहीं, न वह अकल के मंद
पर दोहे ना लिख सकें, और न कोई छंद.

रहते चुम्बक की तरह, गार्डन से चिपके
पौधों संग खुश लगते, फूल जैसे खिलके.

पर छिड़ती है यदि कभी, कैसी कोई बात
वह नहीं जानें लेना, कभी किसी से मात.

अजित गुप्ता का कोना का कहना है कि -

शन्‍नो जी, रक्षाबंधन पर्व पर हमारा प्रेम का धागा स्‍वीकार करें। खीर बचाकर रखे और आलू-पूरी मनुजी को परोस दें। लीजिए दो दोहे प्रस्‍तुत हैं -
ऱ्क्षा बंधन पर्व पर
, सबको मिलती खीर

आलू पूरी बन रहे
, शन्‍नो हुए अधीर।

जीमण की ज्‍योनार में, अम्‍मा के पकवान

समधी बैठा जीमता, समधन देती मान।

Shanno Aggarwal का कहना है कि -

अरे वाह! वाह! अजित जी, आप भी कमाल हैं. इतने प्यारे दोहे रचे हैं. धन्यबाद.

मेरी भी सुनिये:

धागे को मजबूत करें, और मिलें गले हम
आलू-पूरी ने किया, सबकी नाक में दम.

मनु जी ने किया मेंशन, दिया मुझे टेंशन
अब खीर भी टपक पड़ी, करें आप मेंशन.

लार टपक रही सबकी, एक ही इंटेंशन
आलू, पूरी, खीर से, फैला इंफेक्शन.

और मनु जी,

दिल्ली का आटा भूल, करिये आप बिचार
यू पी से मंगवाइये, आटा अगली बार.

Shanno Aggarwal का कहना है कि -

दोहे की कक्षा होगी, अब कितनी बदनाम
चले आप चुपचाप फिर, कहकर बस 'हे राम'.

कंप्यूटर पर भी वह, समय बहुत बिताते
पर दोहों के ज्ञान में, मन न तनिक लगाते.

रहते चुम्बक की तरह, गार्डन से चिपके
पौधों संग खुश लगते, फूल जैसे खिलके.

सॉरी guru जी!

हिंदी translation service beech-beech में thupp हो रही है. लगता है आप और galtiyan भी nikaal lenge पर ooper के कुछ dohon में sudhaar की jaroorat थी. तो वोह dohe फिर से likhe हैं parivartan karke. आप krupya neeche देखिये:

दोहे की कक्षा होगी, अब कितनी बदनाम
आप फिर से खिसक लिये, कहकर बस 'हे राम'.

कंप्यूटर पर भी वह, बिताते बहुत समय
पर दोहों के ज्ञान में, मन उनका ना रमय.

पौधों के संसार में, वोह जाते हैं रम
फिर न छू पाये उन्हें, कोई ख़ुशी या गम.

Shanno Aggarwal का कहना है कि -

छुट्टी पर गये हैं वह, या फिर साधा मौन
गुरु जी को क्या हुआ, मुझे बताये कौन.

या फिर लगा रहे हैं, आलू-पूरी भोग
देकर अपनी हाजिरी, कहाँ गये सब लोग.

या फिर गुरुदेव शायद, मुझसे हैं नाराज़.
कक्षा में भी ना हलचल, कैसा है यह राज़.

Pooja Anil का कहना है कि -

प्रणाम गुरुवर,
कक्षा में देर से आने के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ, इसके लिए कोई भी दंड स्वीकार्य है. वैसे कक्षा की सारी गतिविधियाँ देख कर माहौल का पता चल चुका है, सभी आलू पूरी, खीर खाने के आनंद में मग्न दिख रहे हैं, और उस पर रक्षा बंधन का त्यौहार और आदरणीय माताजी का ज्योनार............. देर से आने का मलाल तो जा ही रहा है उल्टे हम भी इस आनंद सागर में गोते लगा रहे हैं.

अजित जी और शन्नो जी को व्याल दोहा साध लेने पर हार्दिक बधाई. शन्नो जी तो अपनी सारी बातें अब दोहों के माध्यम से करने लगी हैं, उनका एक दोहा देख कर हमारा मन हुआ उसमें कुछ उलटफेर करने का , शन्नो जी आप बुरा मत मानियेगा , please .

संगणक यन्त्र पर बीते, उनके सुबहो-शाम ,
दोहा नाम सुनते ही, बंद कर लेते कान.

(आपके इस दोहे से हमने यह छेड़खानी की है :), और ऐसा इसलिए कि आपके दोहे की प्रत्येक पंक्ति के अंत में मात्राएँ गुरु -लघु नहीं दिखी , तो हमें समझ नहीं आया :(
कंप्यूटर पर भी वह, बिताते बहुत समय
पर दोहों के ज्ञान में, मन उनका ना रमय. )

गुरूजी, अब एक व्याल दोहा रचने का प्रयास किया है, आपकी कृपादृष्टि का अनुग्रही है -

थिरक थिरक मटकन लगे , चपल लड़कपन प्रान ,
तरल गरल मन रम रहा, विस्मृत तन-मन भान.

संगणक यन्त्र - कंप्यूटर
तरल गरल - शराब इत्यादि पेय

सादर
पूजा अनिल

Shanno Aggarwal का कहना है कि -

अरे वाह पूजा जी, आपको कक्षा में देख कर जितनी ख़ुशी हुई उतनी ही आपके दोहा ज्ञान से भी. दोहा में सुधार करने का अति धन्यबाद. ऐसा लगता है की आप दोहा-ज्ञान गंगा में गहरा गोता लगा के आई हैं. बहुत अच्छा लगा. मेरे मूर्खता वाले दोहों के लिए क्षमा करियेगा. अब no more of that rubbish.
और आपको हिंदी भाषा के बहुत कठिन शब्दों का भी इतना ज्ञान है. वाह! आज कंप्यूटर का भी हिंदी में नाम जाना. आगे भी ऐसे ही शब्दों से अवगत कराती रहियेगा. आपका लिखा दोहा बहुत ही सुंदर है.

Shanno Aggarwal का कहना है कि -

हे भगवान!
कैसी-कैसी मिस्टेक हो रही हैं मुझसे. गुरु जी के कोप का कारन तो अब बन ही चुकी हूँ इसमें तो कोई शंका ही नहीं. अब दम साधे बैठी हूँ तगड़ी डांट खाने के लिये. अच्छा होगा की मैं कुछ दिनों के लिये गायब हो जाऊं इस कक्षा से ताकि गुरु जी का गुस्सा ठंडा हो जाये. या उससे भी अच्छा होगा यदि गुरु जी की निगाह मेरी गलतियों पर पड़े ही ना. देखो क्या होता है अब? अजित जी, मनु जी, पूजा जी अब आप लोग गुरु जी की कक्षा का काम संभालिये. मुझे मेरे हाल पर छोड़ दीजिये.

हम तो हैं आफत के मारे
दिन में दिखने लगे हैं तारे
जाती हूँ मैं अब एक किनारे
अब कक्षा है सबके सहारे.

वन्देमातरम!

दिव्य नर्मदा divya narmada का कहना है कि -
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दिव्य नर्मदा divya narmada का कहना है कि -

पूजा जी की वापिसी, है खुशियों का दौर.

'अहिवर' रचकर आपने, गौरव पाया और..

नव रत्नों में आपका, हरदम हुआ शुमार.

गर्वित होता आप पर, यह दोहा दरबार..

शन्नो पूजा अजित से बनी त्रिवेणी नव्य.

सदा दिशा निर्मला मिल, रच दें दोहे दिव्य.

अम्बरीश अवनीश मनु, करते रहें प्रयास.

दोहानन्द मिले सतत अनायास-सायास..

दोहे शुद्ध अजित रचें, लिए ध्वजा निज हाथ.

'सलिल' गर्व कक्षा करे, ऊँचा रख निज माथ. .

गुरुजी गुरु घंटाल हैं, खोज रहे हैं माल.

जो जीमण ज्योनार दे, उसको कहें कमाल..

******************************

थिरक थिरक मटकन लगे , चपल लड़कपन प्रान ,
१११ १११ ११११ १२ १११ १११११ २१
तरल गरल मन रम रहा, विस्मृत तन-मन भान.
१११ १११ ११ ११ १२ २११ ११ ११ २१
५ गुरु + ३८ लघु = अहिवर

Shanno Aggarwal का कहना है कि -

वन्देमातरम!!

गुरु देव आये वापस, पड़ी जान में जान
काफी देर को जैसे, निकल गये थे प्रान.

लेकिन अब तक न भूले, अपने गुरु घंटाल
रिशवत में हैं मांगते, फिर खाने को माल.

आलू-पूरी का करें, अपना बंद अलाप
अब तो रसगुल्ले और, लड्डू खायें आप.

वहाँ होती तो खाते, माल आप भरपूर
दूर बहुत हूँ इसी से, हूँ इतनी मजबूर.

भारत आने पर जभी, अवसर लगता हाथ
आलू-पूरी, खीर भी, हम खायेंगे साथ.

Divya Narmada का कहना है कि -

गुरु भूले तो किस तरह, चला सकेगा काम.
छात्र शीश चढ़ जायेंगे, होगा काम तमाम.
होगा काम तमाम न काम तमाम करेंगे.
आलू-पूरी, लड्डू- पेड़ा, खुद गटकेंगे.
कहे 'सलिल' कविराय न गफलत बिलकुल करना.
शन्नो जी के द्वार लगाये रहना धरना.

Divya Narmada का कहना है कि -

मनु जी की लघु टिप्पणी, करती दीर्घ कमाल.
अर्थ अनर्थ करा रहा, नित ही खूब धमाल..
नित ही खूब धमाल, रचें दोहा खा पूरी.
शन्नो जी की कलई खुली है अभी अधूरी.
चीन्ह-चीन्ह कर रेवड़ी आप रही हैं बाँट.
ऊपर से सबको रहीं मोनिटर बन डांट.

अजित गुप्ता का कोना का कहना है कि -

आचार्य जी

अपनी धृष्‍टता के लिए क्षमा मांगते हुए लिख रही हूँ कि मुझे आपके द्वारा लिखी गयी दोनों कुण्‍डलियों की अन्तिम पंक्ति में भूल दिखायी दे रही है या फिर यह भी कोई प्रकार है। जैसे - प्रथम कुण्‍डली में प्रथम पंक्ति है गुरु भूले तो किस तरह और अन्तिम शब्‍द हैं लगाए रहना धरना। इसी प्रकार दूसरी कुण्‍डली में भी दोनों प्रारम्‍भ और अन्‍त के शब्‍दों में अन्‍तर है। आपने बताया था कि कुण्‍डली में प्रारम्‍भ और अन्‍त के शब्‍द एक होने चाहिए। पुन: क्षमा के साथ।

Shanno Aggarwal का कहना है कि -

हे राम! Help!

कक्षा के बिगड़ रहे हैं, हर दिन ही हालात
ना माने कोई यहाँ, मानीटर की बात.

गुरु जी ना अब खींचते, किसी छात्र के कान
मनमानी करते सभी, सब के सब शैतान.

मनु जी चिनगारी लगा, कहीं हो गये गोल
चिल्ला रहे गुरु जी अब, पीट-पीट कर ढोल.

अब जिद किये बिन उन्हें, नहीं आ रहा चैन
सारी कक्षा भड़काकर, किया मुझे बेचैन.

Shamikh Faraz का कहना है कि -

सलिल जी को बधाई.

yanmaneee का कहना है कि -

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