श्याम जी बहुत सुंदर लिखा है आपकी लिखी इन पंक्तियों अगर पढ़ कर समझ भी लिया जाये तो विश्व मैं शांति हो जाये
रोज लड़े हम तुम निकला कोई हल
मौन तुझे पाकर चुप है कोलाहल
कितना अच्छा लिखा है कविता गजल सिर्फ पढने के लिए या मनोरंजन के लिए ही नहीं होती हैं वो तो एक माध्यम भी होती हम सबको जागृत करने के लिए. आपकी लेखनी अपना कार्य कर रही है. बधाई स्वीकार करें .
आप सभी मेरी रचनाओं को इतना स्नेह देते हैं इसके लिये आभारी हूं,युग्म से इत्तर मेरी रचनाएं यहां भी देख सकते हैं http://gazalkbahane.blogspot.com/ हर सप्ताह एक नई गज़ल श्याम सखा श्याम
आप जब भी लिखते हैं पढ़ के आनंद आता है .इस में लिखी बातें मन में गहरे उतर गईं रोज लड़े हम तुम निकला कोई हल .अमिता जी ने सही कहा है मै उनकी बात से सहमत हूँ सादर रचना
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20 कविताप्रेमियों का कहना है :
मौन तुझे पाकर
चुप है कोलाहल
बहुत ही गहरे भावों के साथ सुन्दर पंक्तियां, आभार्
मुबारक हो रक्षाबन्धन का पावन उत्सव ।
भीड़ भरे जग से
दूर कहीं ले चल
मौन तुझे पाकर
चुप है कोलाहल
खुबसुरत भाव ।
बहुत खूब है ये ग़ज़ल
रक्षाबंधन पर शुभकामनाएँ! विश्व-भ्रातृत्व विजयी हो!
गागर में सागर भर दिया .बधाई
गागर में सागर भर दिया .बधाई
भीड़ भरे जग से
दूर कहीं ले चल
मौन तुझे पाकर
चुप है कोलाहल
झेल नहीं पाए
हम अपनो के छल
कितने गहरे हैं
रिश्तों के दलद्ल
लाजवाब शेर !!!
कितनी सुगमता से लिख दी आपने ग़ज़ल श्याम जी !!!
बधाई !!
हिन्दी युग्म के कुछ लेखकों / कवियों की तरह कुछ पाठक भी बेवकूफ हैं |
अर्चना जी क्या यह ग़ज़ल है ,,,,,कौनसी विधा है यह |
इसके नियम तो बताइए ?
फिर एक उदहारण बिना सम्पादन के प्रकाशन | हा हा हा हा ,,,
सुमित हूँ दिल्ली से
हा हा ,,,हाहा हा हा ...
एक कहावत है बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद सुधि पाठकों को बेवकूफ तो कोई बन्दर ही कह सकता है
श्याम सखा श्याम
इस विधा को गजल ही कहते हैं पढाकू...
श्याम जिनेवा से,
भेजे आज गजल,,
सुन एनी-माउस,
चल हट आगे चल..
मैं तो गज़ल पर क्या कह सकती हूँ मगर गहरे भाव मन को छूते हैं बधाई
राहत के दो पल
आंखो से ओझल..
मौन तुझे पाकर
चुप है कोलाहल..
ये पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगी श्याम जी..
सुमित जी.. दिल्ली-६ मूवी में "काला बंदर" के बारे में बताया गया था ... वैसे दिल्ली का "वो" बंदर तो सब पर वार करता था... दिल्ली का ये बंदर इतना डरपोक!!!
अगर ईश्वर में यकीन है तो..
`श्याम' मिलेंगे ही
आज नहीं तो कल...
जन्माष्टमी भी आ रही है... बधाई...
श्याम जी बहुत सुंदर लिखा है आपकी लिखी इन पंक्तियों अगर पढ़ कर समझ भी लिया जाये तो विश्व मैं शांति हो जाये
रोज लड़े हम तुम
निकला कोई हल
मौन तुझे पाकर
चुप है कोलाहल
कितना अच्छा लिखा है कविता गजल सिर्फ पढने के लिए या मनोरंजन के लिए ही नहीं होती हैं वो तो एक माध्यम भी होती हम सबको जागृत करने के लिए.
आपकी लेखनी अपना कार्य कर रही है. बधाई स्वीकार करें .
अमिता
झेल नहीं पाए
हम अपनो के छल
आपने शब्दों से चमत्कार पैदा कर दिया है.
पाठक चमत्कृत रह जाए कविता मैं ऐसा प्रभाव कम लोग ही उत्प्पन कर पाते है.
कितने गहरे हैं
रिश्तों के दलद्ल
ये शब्द यु ही नहीं लि खे जा सकते , इसके लिए जीवन अनुभव आवश्यक है.
बधाई.
आप सभी मेरी रचनाओं को इतना स्नेह देते हैं इसके लिये आभारी हूं,युग्म से इत्तर मेरी रचनाएं यहां भी देख सकते हैं http://gazalkbahane.blogspot.com/
हर सप्ताह एक नई गज़ल
श्याम सखा श्याम
शिल्प की बलिहारी
वर्ना सब बासीपन
- अहसन
श्याम जी
मौन तुझे पाकर
चुप है कोलाहल
आप जब भी लिखते हैं पढ़ के आनंद आता है .इस में लिखी बातें मन में गहरे उतर गईं
रोज लड़े हम तुम
निकला कोई हल
.अमिता जी ने सही कहा है मै उनकी बात से सहमत हूँ
सादर
रचना
बहुत ही बढ़िया.
`श्याम' मिलेंगे ही
आज नहीं तो कल
श्याम जी,
बहुत प्यारी ग़ज़ल है
खास कर
"रोज लड़े हम तुम
निकला कोई हल ? "
येः शेर तो बहुत प्यारा लगा,
छोटी बहर में बड़ी बड़ी बातें. क्या बात है.
लिखते रहिये.
--
Regards
-Deep
@manu ji
waah kya sher kaha hai,
aap hasya kavita try kijiye na.
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