प्रतियोगिता की 17वीं कविता के रचनाकार तरव अमित श्रीवास्तव पहली बार हिन्द-युग्म की प्रतियोगिता में भाग ले रहे हैं। जौनपुर (यू. पी.) में 6 जुलाई 1978 को जन्मे तरव अमित ने एम॰ ए॰ (हिन्दी साहित्य) की पढ़ाई की है और वर्तमान में उत्तराखंड के अपराध अनुसंधान विभाग (क्राइम ब्रांच) के हल्द्वानी खंड में पुलिस उपाधीक्षक हैं।
रचना- तू क्या जाने
मन अंतस में दर्द भरा,
तू क्या जाने!
हँसता हूँ हो दर्द हरा,
तू क्या जाने!
अन्दर का दावानल जब-जब हिलता है
कांपती है ये क्रूर धरा,
तू क्या जाने!
अब आँखों से बात बताना ठीक नहीं
पानी किसकी आँख मरा,
तू क्या जाने!
संख्याओं का खेल अजब है, तू क्या जाने
कौन जीता है कौन हारा,
तू क्या जाने!
तुझको पाने में और सुभीता होता है
जब जब तुमने स्वांग भरा,
तू क्या जाने!
नयी कोंपलें नव पत्ते आने से डरते
उल्लू से हो वृक्ष हरा,
तू क्या जाने!!
प्रथम चरण मिला स्थान-सातवाँ
द्वितीय चरण मिला स्थान- सत्रहवाँ
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13 कविताप्रेमियों का कहना है :
दर्द की lajawab कविता है .abhar dhanyawad
सुन्दर रचना
हिन्दयुग्म में स्वागत है आपका
behad khubsurat rachana hai... sochon ko behad khubsurat tanaban buna hai aapne ..... :) badhai aap ko
बहुत ही सुन्दर कविता. क्या खूब शुरुआत दी है आपने. आपकी तारीफ के अल्फाज़ नहीं मिल रहे. कम शब्दों में कितना कुछ कह डाला आपने. यह पंक्तियाँ सबसे अच्छी लगी.
मन अंतस में दर्द भरा,
तू क्या जाने!
हँसता हूँ हो दर्द हरा,
तू क्या जाने!
अन्दर का दावानल जब-जब हिलता है
कांपती है ये क्रूर धरा,
तू क्या जाने!
अब आँखों से बात बताना ठीक नहीं
पानी किसकी आँख मरा,
तू क्या जाने!
निस्सन्देह एक संवेदन्शील मन की रचना जिसने क्राईम ब्राँव मे काम करते हुए इन्सान के करूप चेहरे को देखा होगा जो उसे अंदर तक हिला गया एक मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति के लिये अमित जी को शुभकामनायें और आशीर्वाद ही दे सकती हूँ कि उनकी ये संवेदनायें बनी रहें आभार्
अब आँखों से बात बताना ठीक नहीं
पानी किसकी आँख मरा,
तू क्या जाने!
बहुत ही सुन्दर शब्दों में व्यक्त किया आपने इस रचना को बधाई ।
मन अंतस में दर्द भरा,
तू क्या जाने!
हँसता हूँ हो दर्द हरा,
तू क्या जाने!
bahut achchhi rachna badhai!
kavya ke kshitij par ubharte hue is naye suraj ki ozaswi rachna ne man-pran prafullit kar diye. itni umda kriti ke liye aapko koti koti badhai....
achchhaa lagaa hai tujh ko padhnaa...
too kyaa jaane.....???
sunder kavitaa....!!!
badhaaye ho aapko...
बहुत सुंदर रचना है .हर एक पंक्ति मन को छू जाती है खासकर ये पंक्तियां
मन अंतस में दर्द भरा,
तू क्या जाने!
हँसता हूँ हो दर्द हरा,
तू क्या जाने!
अन्दर का दावानल जब-जब हिलता है
कांपती है ये क्रूर धरा,
तू क्या जाने
धन्यवाद
इतनी सुंदर रचना के लिए
अमिता
मन अंतस में दर्द भरा,
तू क्या जाने!
हँसता हूँ हो दर्द हरा,
तू क्या जाने!
बेहतरीन अभिव्यक्ति..
अब आँखों से बात बताना ठीक नहीं
पानी किसकी आँख मरा,
तू क्या जाने!
वाकई खूबसूरत भावांजलि अभिव्यक्त हुई इस कविता में,और मैं तो कहूंगा इसबार्के काव्यपल्लवन में अब तक प्रकाशित सभी कविताएं अदभुत हैं ,चयन व निर्णय काफ़ी कठिन रहा होगा
श्याम सखा श्याम
मन अंतस में दर्द भरा,
तू क्या जाने!
हँसता हूँ हो दर्द हरा,
तू क्या जाने!
bahut sunder suruaat ki hai sahab.
badhayee ke patra hai aap.
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