वीर पराक्रमी सिंह-सम, शार्दूल की आन.
छतिस गुरु छै लघु करें, मात्राएँ गुणगान..
शार्दूल दोहा लिखें, आएगा आनंद.
छतिस गुरु छै लघु मिला, सिद्ध कीजिये छंद..
शार्दूल दोहा में छत्तीस लघु तथा छै गुरु मिलकर कुल ४२ मात्राएँ होती हैं, इस प्रकार के दोहे खड़ी हिंदी में कम ही रचे गए हैं. भोजपुरी, अवधि या बृज में इस प्रकार के दोहे अन्य प्रकारों से कम किन्तु खड़ी हिंदी से अधिक हैं कुछ शार्दूल दोहों का आनंद लीजिये-
शार्दूल ६ गुरु ३६ लघु = ४२ मात्राएँ
१.
जइण रमिय बहुतेण सहु, परिसेसिय बहु गब्बु.
अजकल सिहु णवि जिमि विह्तु, जब्बणु रूठ वि सब्बु. -पवन कवि, १०वीं सदी
२.
अमिय हलाहल रस भरे, स्वेत-स्याम रतनार.
जियत-मरत झुकि-झुकि परत, जिहि चितवत इक बार. -रसलीन
३.
कहत सबै कवि कमल से, मो मत नैन पषानु.
नतरुक कत इन बिय लगत, उपजत बिरह-कृसानु. -बिहारी
४.
जगर-मगर दीपक जलत, स्वर्णिम लगत प्रकाश.
जीवन धन पग-पग चलत, मिळत मिलन की बास. -आचार्य रामदेव लाल 'विभोर'
५.
मन से मिलकर मगन मन, गुपचुप करता बात.
अधर-मधुप हर्षित-तृषित, अधर खिले जलजात.-
सलिल
६.
कण-कण तृण-तृण जोड़कर, 'सलिल' न करना मोह.
निज तन-मन-धन निमिष में, तजकर करते द्रोह.. -सलिल
७.
तन मन वचन नयन 'सलिल', फिर-फिर आकर याद.
पग-पग पर पग रोकते, मत रुकना फरियाद.. -सलिल
शार्दूल दोहा रचकर आप अपनी दोहांकारी को कसौटी पर कसने का अवसर मत गंवाइये.
देखें, किसने कितना सीखा?
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16 कविताप्रेमियों का कहना है :
तन मन वचन नयन 'सलिल', फिर-फिर आकर याद.
पग-पग पर पग रोकते, मत रुकना फरियाद.. -सलिल
... sundar, atisundar !!!
हिन्द युग्म से जुड़ने का फायदा हो रहा है.
अच्छी जानकारी
आचार्य जी शार्दूल दोहा प्रस्तुत है -
नमन करत सब सलिल को
बहुत सघन है ज्ञान
जतन करें हम शिष्यगण
बढ़त गगन तक मान।
सलिल जी आपकी दोहे की कक्षाओं से मुझे धीरे धीरे इस बारे में थोडी बहुत जानकारी हो गई है. जनसाधारण को इस तरह से ज्ञान बांटे के लिए आपको अआप्का और इस ज्ञान को हम तक पहुँचाने के लिए हिन्दयुग्म का आभारी.
और बिहारी जी के दोहे कौन भूल सकता है.
कहत सबै कवि कमल से, मो मत नैन पषानु.
नतरुक कत इन बिय लगत, उपजत बिरह-कृसानु
आचार्य जी
सादर प्रणाम,
एक शार्दूल दोहा की कोशिश मेरे दोहा से भी:
रंग अलग-अलग बिखेरत, पतझर, ग्रीष्म, बसंत
समय-समय बदले छटा, तब भरत हर्ष अनंत.
ज्ञान चेतना को दोहे की पाठशाला बढा रही है .दोहा लिखने के लिए समय निकालूंगी .
सभी पाठको का धन्यवाद तथा टिप्पणीकारों का आभार.
अजित जी!
'करत' तथा 'बढ़त' जैसे क्रियारूप उपयोग किये बिना भी आप इस दोहे को रच सकती हैं.
अगणित नमन अजित को
बहुत सघन है ज्ञान.
जतन करें हम शिष्यगण
दस दिश तक यश-मान।
शामिख फ़राज़ जी!
आपने सटीक तथा सशक्त उदाहरण दिया आभार.
शन्नो जी!
अलग-अलग रंग ले मिले, पतझर, ग्रीष्म, बसंत
समय-समय बदले छटा, जंह-तंह हर्ष अनंत.
आप दोनों को शार्दूल रचने के लिए बधाई. कुछ और शार्दूल रचें तो मुझे उनसे मिलने का अवसर अवश्य दें.
गुरु जी,
मेरे दोहे का रूप संवारने के लिए धन्यबाद!
एक शिष्य से सम्बंधित फ़िक्र वाले कुछ जरूरी सवाल:
मनु जी कहाँ हैं?
कोई रिपोर्ट दर्ज कराई है किसी ने उनकी कहीं पर? या नहीं.
क्या दोहा-जगत से वैराग ले लिया है?
किसी से कोई गुस्ताखी हो गयी है? (क्या मुझसे?)
कक्षा का रास्ता भूल गए हैं क्या? या फिर कुछ और?
सब फ़िक्र के मारे सर खुजा रहे हैं (including गुरु जी).
प्रणाम आचार्य.......
शन्नो जी..
आजकल ज़रा मूड नहीं हो रहा है...
बस आप लोगों को देख देख कर ही खुश होने आ जता हूँ..
आज कल नेट कम समय के लिए मिलता है....और बाकी समय में भी काफी काम होता है...
आप लोगों का स्नेह है बस....
के बिना होम-वर्क के मेरी हाजिरी मान लेते हैं आप ..
:)
बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति आभार्
मनु जी,
आपकी अनुपस्थिति कक्षा में सबको खल रही थी. आपने दर्शन दिये. आभार!
हर पल ही शुभ-शुभ कटे, वैसे ही दिन-रात
मनु से कक्षा में रौनक, बनती है तब बात.
जीवन की हर राह में, हंसते रहिये सदा
मूड बने जब आपका, दें दीद यदा-कदा.
गुरु जी,
प्रणाम
जरा सी कमी सुधारकर फिर से अपना वही शार्दूल दोहा प्रस्तुत कर रही हूँ.
तुहिन कणों में नहाकर, कमल रहे इतराय
मचल-मचल चलती पवन, सबके मन भरमाय.
जीवन की हर राह में, हंसते रहिये सदा
मूड बने जब आपका, दें दीद यदा-कदा
शन्नो जी!
यह तो दोहा नहीं है. इसे भी दोहे में ढालिए.
जीवन की हर राह में, करते रहिये हास.
मूड बने जब आपका, दर्शन दें सायास..
आप दोहा रचने पर उसे बार-बार दोहराएँ या तीन-चार तरह से उलट-फेरकर लिखें तथा सबसे अच्छे को प्रकाशित करें. आपकी प्रतिभा का शिखर ही सार्वजनिक हो. आप इस सारस्वत सागर मंथन से प्राप्त नवरत्नों में से एक हैं. हीरे पर धुल का एक कण भी हो तो आँखों को चुभता है. कृपया, अन्यथा न लें.
आचार्य जी,
भूल हुई बड़ी मुझसे, कर न पाई ध्यान
क्षमा करें गुरुवर मुझे, और मुझे दें ज्ञान.
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