दुनिया भर के गम थे
और अकेले हम थे
साथ न कैसे देते
गम भी मेरे गम थे
जख्मो की बस्ती से
गायब क्यों मरहम थे
सपने क्या भंग हुए
दिल दरहम-बरहम थे
टीस बहुत थी सुर में
बस स्वर ही मद्धम थे
आंखे तो गीली थीं
सूखे मन मौसम थे
देख तुम्हे साथ मेरे
यार हुए बेदम थे
श्याम,संवरते कैसे
सब किस्मत के ख़म थे
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15 कविताप्रेमियों का कहना है :
सुंदर रचना व अच्छे भावों का संगम
जख्मो की बस्ती से
गायब क्यों मरहम थे
बहुत ही अच्छा लिखा है।
आंखे तो गीली थीं
सूखे मन मौसम थे ।
बेहतरीन ।
अच्छी ग़ज़ल लगी आप की ..शुद्ध हिंदी और उर्दू दोनों के अल्फाज़ हैं ...लेकिन कहीं कुछ खटक नहीं रहा है ..
श्याम,संवरते कैसे
सब किस्मत के ख़म थे
गूढ बात कह गए हैं इस शेर में।
मज़ा आ गया।
बधाई स्वीकारें।
-विश्व दीपक
waah shyam ji gajab ki rachana lagi
.......aapke isi andaj ke mai kaayal hu
मधुर और छोटी भावपूर्ण रचना के लिए बधाई ..
Waah !!! Bahut hi sundar gazal !!Badhai !!
बढिया कृति, मगर कुछ खटका कि जब साथ वो थे तो फिर क्यों बे-दम थे ?
khoobsoorat koshish hai;behr thori tedhi chuni hai aap ne,lekin khoob nibhaayaii hai
faal-fa'al-faal-fa'al
behtar hota agar yoon hoti
faa'ilaatun-faa'ilun ya aisi koii
श्याम जी आपकी गजलों के कायल तो हम पहले से ही है
आज तो आपने दिल लूट लिया, छोटी बहर में आपने काफिये का इतना सुन्दर प्रयोग किया है की बस क्या कहे, अल्फाज़ कम पड़ रहे हैं गजल की तारीफ के लिए
वाह वाह क्या बात है
वीनस केसरी
बहुत उम्दा गजल
वाह्
श्याम जी क्या खूब बात कही है आपने पहले शेअर में
दुनिया भर के गम थे
और अकेले हम थे
lajawab
दुनिया भर के गम थे
और अकेले हम थे
इतने साथियों गमों के रहते आप अकेले कहां रह पाए श्याम जी
सुन्दर गज़ल बधाई
शिखा
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