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Monday, June 08, 2009

घरौंदा


बड़ी जद्दोजहद के बाद
बनाया था एक घरौंदा
फिर कल्पना की उसके
घर बनने की
बनने लगा महल,
तब तक मौसम साफ था
न हवा, न बादल,
न कोई भविष्यवाणी
मौसम वालों की
पत्तियां भी दम साधे बैठी थी
अपनी-अपनी शाखों की पांखों में
तभी चली हवा
बदला मौसम
आई आंधी
महल धूल के रेशे बन
उड़ने लगा
मौसम के पंख लगा
आसमान में ।
बिखरने लगा हमारा वजूद
और हम ।
सुबह होने तक
शेष न था कुछ
न घर, न महल, न सपना
न कहीं कोई खंडहर ।
हमारे पंजे
धंसे थे रेत में
और आंखें किरकिरा रही थीं
तब तक हमें मालूम न था
कि बालू की नीव पर
रेत के घरौंदे सिर्फ बच्चों के खेल में
बनाए जाते हैं ।

यूनिकवि- दिबेन

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10 कविताप्रेमियों का कहना है :

रश्मि प्रभा... का कहना है कि -

बहुत ही गूढ़ और सार्थक रचना, बहुत ही बढिया ........

निर्मला कपिला का कहना है कि -

बहुत ही सुन्दर और यथार्थ सत्य बहुत बहुत बधाई

Manju Gupta का कहना है कि -

रेत के घरौंदे सिर्फ बच्चों के खेल में
बनाए जाते हैं ।
Uparyukt panktiya haqeekat hai.
Kalpanao ne to gharonda bana diya lekin pratikoolta ne saath nahi diya!
bhavatmak kavita ke liye badhayi.

Manju Gupta.

मुकेश कुमार तिवारी का कहना है कि -

दिबेन जी,

बहुत ही अच्छी भावों वाली कविता जो हिदायत भी देती है कि बिना ठोस नींव के निर्माण नही हो सकता या टिक नही सकता।

और इस प्रतीक के माध्यम से बहुत कुछ सिखाया जा सकता है या सीखा जा सकता है।

अच्छी और सार्थक रचना के लिये बधाईयाँ।

सादर,

मुकेश कुमार तिवारी

डा.संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी का कहना है कि -

सुबह होने तक
शेष न था कुछ
न घर, न महल, न सपना
न कहीं कोई खंडहर ।
हमारे पंजे
धंसे थे रेत में
और आंखें किरकिरा रही थीं
तब तक हमें मालूम न था
कि बालू की नीव पर
रेत के घरौंदे सिर्फ बच्चों के खेल में
बनाए जाते हैं ।
ठीक ही है,स्वार्थ मे डूबकर कल्पनाओ मे रेत के घरोंदे ही तो बनाते रहते है हम

mohammad ahsan का कहना है कि -

ret, gharonda, aandhi, wajood ka bikharna........
darjano sal se saikadon kavitaaen inhi baasi vichaaron ke ird gird ghoomti hui.
-ahsan

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

मोहम्मद अहसन से सहमत हुआ जा सकता है।

Shamikh Faraz का कहना है कि -

अनुपम रचना

और आंखें किरकिरा रही थीं
तब तक हमें मालूम न था
कि बालू की नीव पर
रेत के घरौंदे सिर्फ बच्चों के खेल में
बनाए जाते हैं ।

Ambarish Srivastava का कहना है कि -

हमारे पंजे
धंसे थे रेत में
और आंखें किरकिरा रही थीं
तब तक हमें मालूम न था
कि बालू की नीव पर
रेत के घरौंदे सिर्फ बच्चों के खेल में
बनाए जाते हैं ।

सच का सच्चा अहसास !
बधाई |

Unknown का कहना है कि -

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