यूनिकवि प्रतियोगिता के मार्च अंक से आज हम अंतिम कविता प्रकाशित कर रहे हैं। 1 नवम्बर 1981 को आगरा में जन्मे इस कविता के रचनाकार आलोक सारस्वत ने आगरा से अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की। इसके उपरांत सन् 2005 में प्रौद्यौगिकी महाविद्यालय (कॉलेज ऑफ़ टेक्नोलॉजी), पंतनगर से बी.टक (संगणक अभियांत्रिकी) की उपाधि प्राप्त की| तदुपरांत 3 वर्ष सूचना प्रोद्योगिकी के क्षेत्र में कार्य किया। वर्तमान में प्रबंधन तकनीक संस्थान (इंस्टीट्यूट ऑफ़ मैनेजमेंट टेक्नोलॉजी), गाजियाबाद में वित्त प्रबंधन की शिक्षा में अध्ययनरत हैं|
रूचि: साहित्य एवं भाषा अध्धयन, उक्ति संग्रह और लेखन, कविता पठन- पाठन, राष्ट्रीय चेतना, संस्कृति और भाषा सम्बंधित विकास कार्य, प्राचीन भारतीय संस्कृति, जीवन दर्शन सम्बंधित ज्ञानार्जन।
कार्य: सामाजिक विषयों से सम्बंधित लेख और चिठ्ठा लेखन, ऑनलाइन समूह के माध्यम से हिंदीप्रेमी विद्वानों को एकजुट करने का प्रयास।
पुरस्कृत कविता- स्वप्नों का सार
देखा है यथार्थ को स्वप्नों की उपासना करते,
मृत स्मृति की बलिवेदी चढ़ते हुए वे जीवंत पल
परिभाषाओं में अर्थ तलाशती उन भावनाओं को
या फिर अथाह सागर की शीतलता में छिपी वह भीषण अनल |
सुना है तुमने अश्रव्य का वो मार्मिक करूण क्रंदन,
या अदृश्य को मूर्त रूपांतरण देती निरंकुश कल्पनाओं का अतिक्रम,
स्वयं को निरंतर प्रतिपादित करता हुआ सत्य,
या नियति का विधान नकारती हुई चेष्टाओं का उपक्रम ?
या अनुभूत किए हैं तुमने कामना के रथ पर आरूढ़ सपने,
और व्यावहारिकता का उपहास करती हुई महत्वाकांक्षाएं
फिर देखा है उन्हीं स्वप्नों को जकडे हुए बेड़ियों में, होते हुए तार तार,
काश कभी समझ सको तुम इस स्पृहा की अनुश्रुति ,
इन मर्दित स्वप्नों का सार !!
प्रथम चरण मिला स्थान- नौवाँ
द्वितीय चरण मिला स्थान- नौवाँ
पुरस्कार- हिजड़ों पर केंद्रित रुथ लोर मलॉय द्वारा लिखित प्रसिद्ध पुस्तक 'Hijaras:: Who We Are' के अनुवाद 'हिजड़े:: कौन हैं हम?' (लेखिका अनीता रवि द्वारा अनूदित) की एक प्रति।
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17 कविताप्रेमियों का कहना है :
bahut sunder......practical thinking
SATYA KO PRADARSHIT AUR PARILAKSHIT KARTI YA KAVITA...
ATHAAH BHAVO SE BAHARI HUI... BADHAAYEE
ARSH
हार्दिक बधाइयॉं।
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TSALIIM
SBAI
इतनी कम उम्र और सपनों में अर्थ ढूँढने की सार्थक कोशिश........
इसे प्रयास नहीं कहते,निष्ठा कहते हैं और निष्ठा को मूर्त रूप मिलता है,
बहुत ही अच्छी रचना,,,,,
स्वप्नों के यदि अर्थ न खोजे,
तो कैसे साकार करोगे?
निराकार को अगर न जाना,
तो कैसे आकार गढोगे?
अभियंता तकनीक साथ ले,
कर प्रयास हर प्रश्न बूझता.
शिल्प-परिश्रम कभी न हारे,
उत्तर खुद ही सदा सूझता.
उम्र न आड़े आती किंचित,
अनुभव भी होता जाता है.
इसीलिये तो हर अभियंता,
कोशिश की जय-जय गाता है.
आलोक,
सर्वप्रथम तो बधाईयाँ।
प्रस्तुत कविता में निम्न पंक्तियाँ बहुअत अच्छी लगी :-
या नियति का विधान नकारती हुई चेष्टाओं का उपक्रम ? बात
आचार्य श्री संजीव सलिल साहब की बात बहुत भली लगी, कि " इसीलिये तो हर अभियंता,
कोशिश की जय-जय गाता है." शायद, मेरे अपने अभियंता होने से दिल और व्यवहार के करीब हैं।
मैं इन सभी लोगों से सहमत हूँ. धन्यबाद.
आलोक
ढेरों बधाइयाँ!!
इतनी गहरी बात शब्दों में पिरोना हर किसी के सामर्थ्य में नहीं.. प्रथम प्रयास के लिए शुभकामनाएं... आगे भी ऐसे रचनायें तुमसे अपेक्षित हैं..
इस कविता की जितनी प्रशंसा की जाए इस मंच पर कम है, विशेष कर कसे बंधे हिंदी के अप्रदूषित शब्दों के प्रयोग के कारण ... इस कविता का कहीं अधिक सम्मान किया जाना चाहिए था
- ahsan
बहुत बहुत बधाई आलोक ...
पिछले करीब एक साल से बोल रहा था मैं तुमसे की अपनी कविता भेजो हिंद युग्म पे !!
मुझे ख़ुशी है तुमने बात मान ली मेरी ...
कविता के बारे मैं पहले भी बोल चुका हूँ , कि इस तरह की कवितओं से निश्चय ही ये मंच , हिंदी और पढने वाले सभी samridh होंगे ..
वैसे भी तुम प्रसून जोशी के कॉलेज के हो ... तो इतनी जिम्मेदारी तो तुम्हे उठानी ही चाहिए ...पता नहीं तुम्हारे यहाँ का कोई और alumnus ये प्रसून जोशी की विरासत को आगे बढा भी रहा है नहीं ...तुम बढा सकते हो !!
सादर
दिव्य प्रकाश दुबे
शन्नो जी की छोटी सी टिपण्णी से और अहसान जी से सहमत हूँ,,,,
वाकई में इस कविता को दसवां पायदान ज्यादा पीछे है,,
आलोक जी,
सर्वप्रथम तो एक सुसंस्कृत ,सुगठित रचना के लिए सैकड़ों बधाईयाँ। आपने स्वप्न और यथार्थ के बीच के द्वंद्व को बड़ी हीं सुंदरता से व्यक्त किया है। शब्दों के चुनाव को देखकर मुझे युग्म के हीं "आलोक शंकर" जी की याद आ गई है। युग्म का सौभाग्य है कि एक आलोक के बाद हमें एक दूसरा आलोक मिल गया है। प्रथम या द्वितीय आना बड़ी बात नहीं है, बड़ी बात है लोगों के दिल में स्थान करना। आपकी कविता भले हीं नौवें पायदान पर है,लेकिन टिप्पणियों ने साबित कर दिया है कि आपकी कविता कितनी प्रशंसनीय है।
नौव पायदान पर आने का एक कारण मुझे जो समझ आता है, वह यह है कि अगर आप एक हीं प्रतियोगिता में गज़ल,छंद-बद्ध कविता, छंद-मुक्त कविता(जिसे कई कथित जानकार अकविता भी कहते हैं), हास्य-कविता और न जाने कौन-कौन-सी कविताओं को आमंत्रित करेंगे तो निर्णायकों की पसंद के अनुसार क्रम ऊपर-नीचे तो हो हीं सकता है। और वैसे भी यहाँ दो चरणों में (तो कभी तीन चरणों में) मूल्यांकन होता है, तो फ़र्क पड़ने की संभावना रहती है।
लेकिन ऎसा नहीं है कि युग्म बस यूनिकवि को हीं सम्मान देता है, युग्म की नज़र में जो भी अच्छे कवि होते हैं, सभी सम्मान पाते हैं। उदाहरण के लिए: एक-दो दिन पहले हीं "अद्भुत" जी को युग्म का सम्मान दिया गया है(युग्म की सदस्यता दी गई है) ।
-विश्व दीपक
बधाई स्वीकारें
सर्वप्रथम, मैं आप सभी लोगों को धन्यवाद देना चाहता हूँ जिन्होंने कविता में व्यक्त भाव को न केवल समझा अपितु अपनी विशेष टिप्पणियों के माध्यम से मेरा उत्साहवर्धन भी किया| किसी भी रचनाकार के लिए पाठकों की प्रशंसा और स्नेह से बढ़ कर कोई प्रोत्साहन नहीं होता और आप सभी के इस सहयोग के लिए मैं आपका आभारी हूँ| निश्चय ही भविष्य में भी मैं हिंद-युग्म के माध्यम से अपनी अच्छी रचनाएँ आपके समक्ष प्रस्तुत करता रहूँगा|
सधन्यवाद,
आपका सहयोगाकांक्षी
आलोक सारस्वत
सब ने सब कुछ कहदिया
अब बचा क्या है कहने को
कविता बहुत सुंदर है
दिल चाहता है ये कहने को
अच्छी कविता
रचना
अलोक जी सर्वप्रथम तो आपको हार्दिक बधाइयाँ .......... और मैं आशा करती हू की वो समझ सके......... इन मर्दित स्वप्नों का सार !!
Good Brother...... really good thoughts and touched to deep reality.
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