फटाफट (25 नई पोस्ट):

Friday, May 01, 2009

खून में ज्वार अब नहीं उठता


पिछले डेढ़ बरस से युवा कवि अरूण मित्तल अद्‍भुत हिन्द-युग्म पर लगातार अपनी उपस्थिति दर्ड करते रहे हैं। कई बार इनकी कविताएँ हिन्द-युग्म ने प्रकाशित भी की। आज से ये स्थाई तौर पर हिन्द-युग्म से जुड़ रहे हैं। आगे से शुक्रवार को अपनी कविताएँ लेकर अपने समक्ष आया करेंगे। आज पढ़िए ये ग़ज़ल-

साथ में जो भी सच के रहता है
आज के दौर में वो तन्हा है

मेरी आँखों में देख वो बोला
तेरा आँसू से कोई रिश्ता है

खून में ज्वार अब नहीं उठता
जिस्म में और कुछ ही बहता है

खुद को देखूं तो किस तरह देखूं
अक्स भी अजनबी सा लगता है

तुम बिछड़ जाओ ये सहूँ कैसे
मैंने दुनिया से तुमको छीना है

लोग भी सोचते हैं अब अक्सर
क्या क्या अद्भुत गजल में कहता है

-अरूण मित्तल अद्‍भुत

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

21 कविताप्रेमियों का कहना है :

Shanno Aggarwal का कहना है कि -

अरुण जी,
बहुत अच्छी लगी मुझे यह आपकी ग़ज़ल.

साथ में जो भी सच के रहता है
आज के दौर में वह तनहा है.

मेरी आँखों में देख वो बोला
तेरा आंसू से कोई रिश्ता है.

वाह! बस क्या कहूं इन लाइनों के बारे में. जिस तरह से कसक को आपने बयां किया है वह तारीफे-काबिल है.

"अर्श" का कहना है कि -

badhaayee achhe khayaalaat ki gazal kahne ke liye.......

arsh

Aastha Institute of Management & Technology का कहना है कि -

मेरी आँखों में देख वो बोला
तेरा आँसू से कोई रिश्ता है

क्या बात है अरुण जी, आंसू पे आपके शेर अनुभूति पर प्रकाशित गजलो में भी पढ़े हैं पर ये शेर तो और भी नया लगा. सच में आपका आंसू से कोई रिश्ता है, एक मुकम्मल गजल के लिए बधाई.

मुकेश कुमार तिवारी का कहना है कि -

अरूण जी,

आज के दौर की बौखलाहट को खूबी से उकेरती हुई गज़ल बहुत कुछ जाती है हौले से। भाग दौड़ से भरे जीवन में जहाँ एक अपने लिये ही वक्त नही मिलता बखूबी तराशा है नक्श देखिये :-

खुद को देखूं तो किस तरह देखूं
अक्स भी अजनबी सा लगता है

बधाईयाँ,

मुकेश कुमार तिवारी

Urmi का कहना है कि -

बहुत बहुत धन्यवाद श्याम जी आपके टिपण्णी और सुझाव के लिए!
मुझे बढ़िया लगा आपने जो पंक्ति लिखा है और मैंने पहले लाइन में उसे जोड़ दिया है ! ऐसे ही सुझाव देते रहिएगा !
बहुत ही शानदार लिखा है आपने!

Unknown का कहना है कि -

अद्भुत जी, अच्छा लगा ........... खास कर ये दो शेर:

मेरी आँखों में देख वो बोला
तेरा आँसू से कोई रिश्ता है

खून में ज्वार अब नहीं उठता
जिस्म में और कुछ ही बहता है

पर एक गुस्ताखी कर रही हूँ माफ़ करना, आखिरी शेर में आपने खुद को बहुत प्रसिद्द और बड़ा शायर घोषित कर लिया

लोग भी सोचते हैं अब अक्सर
क्या क्या अद्भुत गजल में कहता है

Divya Narmada का कहना है कि -

adbhut...

mohammad ahsan का कहना है कि -

मेरे ख़याल से पहले शेर में कहीं कोई तकनीकी गडबडी है. यह बाक़ी श'एरों से ताल मेल नहीं khaata है.
बाकी श'एर पुरअसर हैं , हालांकि श'एरों के अन्दुरूनी ख़याल थोडा बासी jaise हैं

Arun Mittal "Adbhut" का कहना है कि -

अहसन जी,

गजल की बहर है

फाइलातुन मफाइलुन फेलुन (कुल मात्राएँ १७)

आप जरा गिन कर देखिएगा, मेरे हिसाब से सभी मिसरों में बहर का सही पालन हो रहा है,

जहाँ तक ख़याल के बासी होने का सवाल है तो आप शायरी में थोड़े तिलिस्म को छोड़ दिजीये बाकी मैं दावा करता हूँ की एक भी ताजा ख्याल मुझे आप किसी भी शेर या कविता में नहीं पढ़वा पायंगे.... ख्याल से ज्यादा अंदाज़ ए बयां गजल में मायने रखता है . मैं ये नहीं कहता की कोई नायब गजल मैंने कही है .....

आपकी टिपण्णी के लिए शुक्रिया

अरुण अद्भुत

प्रिया का कहना है कि -

jayada samajh nahi hai mujhko ...... par jo bhi likha hain ...man ko bhaya hain

mohammad ahsan का कहना है कि -

अद्भुत जी,
आप ज़रूर सही कह रहे है. लेकिन पता नहीं वह श'एर पढने में क्यूँ खटक रहा है और दूसरों से सुर ताल में अलग दीखता है
मैं ने तो खुद ही कहा कि 'बाक़ी श'एर पुर असर हैं' य'अनी प्रभावशाली हैं

mohammad ahsan का कहना है कि -

अद्भुत जी,
आप ज़रूर सही कह रहे है. लेकिन पता नहीं वह श'एर पढने में क्यूँ खटक रहा है और दूसरों से सुर ताल में अलग दीखता है
मैं ने तो खुद ही कहा कि 'बाक़ी श'एर पुर असर हैं' य'अनी प्रभावशाली हैं

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

यह बात सही है, पढ़ते समय ले में नहीं लगती |

अवनीश तिवारी

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

यह बात सही है, पढ़ते समय लय * में नहीं लगती |

अवनीश तिवारी

Arun Mittal "Adbhut" का कहना है कि -

साथ में जो भी सच के रह ता है
२ १ २ २ १ १ १ १ १ १ २ २

आज के दौर में वो तनहा है
२ १ २ २ १ २ १ १ १ २ २

(फाइलातुन मफाइलुन फेलुन)
पहले मिसरे में भी, तथा के में एक एक मात्र गिरेगी, दूसरे में वो में मात्र गिरेगी अर्थात गुरु होते
हुए भी इनको लघु माना जाएगा.

लय बन रही है जरा पढ़कर देखिये :

साथ में जोभ सच क रह्ता है
आज के दौर में व् तनहा है

आशा है आप समझ पायेंगे

रश्मि प्रभा... का कहना है कि -

खुद को देखूं तो किस तरह देखूं
अक्स भी अजनबी सा लगता है
......
बहुत अच्छी ग़ज़ल.

Unknown का कहना है कि -

saath main jo bhi sach ke rahta h
aaj ke daur main wah tanha h



bahut sach kah gaye aap ek baar phir yaha sach bulvana chahte ho wo bhi sach ka sahara lekar is daur main

Unknown का कहना है कि -

khud ko dekhu to kis tarah dekhu
akks bhi ajnabi sa lagta h


sach main sar ye ser AJNABI ko kahi na kahi chuta h

THIS IS ANIL DON'T CONFUSE VID VIPIN &ANIL BOTH R 1


main abhi itna bada nahi hu ki koi kami nikal sakon


AUR SACH TO YE H MAIN KABHI KOI KAMI NIKALNI BHI NAHI CHAHUNGA

manu का कहना है कि -

कोई अटकाव नहीं लगा मुझे तो पहले शेर में,,,,,,
ये हो सकता है के आप लोगों ने तन्हा के न को ठीक से नहीं पढा होगा

बाकी गजल में ख्यालों पर तो क्या कहूं,,,,,
इस बारे में सबकी अपनी सोच है,,,
और सबकी ही सही है,,,

तपन शर्मा Tapan Sharma का कहना है कि -

बहुत सही शे’र हैं अरूण जी। अपने को व्याकरण नहीं आती पर गज़ल पसंद आई। अब से हर शुक्रवार आपको पढ़ने को मिलेगा, ये जानकर अच्छा लगा।

abhishek का कहना है कि -

मेरी आँखों में देख वो बोला
तेरा आंसू से कोई रिश्ता है.

.... bahut badhiya hai sir .... ye ehsaas ...

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)