जमीं नम हो जाए जो जल लिख दूँ।
नक़ाब हट जाए तो ग़ज़ल लिख दूँ।
फलक पे चाँद आफताब रहे न रहे
उजाला हो जाए जो फ़ज़ल लिख दूँ।
पेशानी पे पैबस्त हो जाए शिकन
गर फिजां में महज़ मसल लिख दूँ।
ताबेदारी में खड़े रहीं दसों दिशाएँ
बस ये देर कि मैं अमल लिख दूँ।
झूमने लग जाए ये धरती भी सुरेश
महके फिजां जो मैं अजल लिख दूँ।
शब्दार्थ= पेशानी- मस्तक, ललाट, माथा, ताबेदारी- सेवा, नौकरी, अजल- सूखा, बिना जल
--यूनिकवि सुरेश तिवारी
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
48 कविताप्रेमियों का कहना है :
suresh jee ko ek achhi gazal ke liye dhero badhaayee..bahot hi badhiya gazal kahi hai inhone .... hindi yougm se meri aagrah hai ke jis kisi bhi lekhak ki kavita, gazal ya koi rachanaa hindi yougm pe chhape kripya unka mail id jarur de taaki unse contct kiya jaa sake.... unki kavitavo aur rachaanaawo ko lekar agar koi shanka ho to...??
aabhaar
arsh
बहुत खूब...बहुत खूब...
koshish kar ke bhi is ghazal ki t'areef nahi kar pa raha huun. misre bebehr, mukhtalif ash'aar be tawaazan, aesthtics ghaaeb.... waghairah waghairah.
kya waastav mein 'ajal' shabd est'emaal hota hai. 'nirjal' to suna tha!!!
डॉ. सुरेश तिवारी जी,
यदि आपका कोई ई-मेल आई.डी. हो तो कृपा करके दीजियेगा, मुझे भी और अर्श जी को भी।
रचना अच्छी है, और पढने का लुत्फ देती है, एक पाठक और रसिक और क्या चाहता है।
वैसे, अह्सान भाई, की बारीकी को अगर आत्मसात कर लिया जाये तो चार चाँद लग जायें।
शुभकामनाओं के साथ, सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
गज़ल बढिया है।कुछ शेर जबर्दस्त हैं। विशेषकर:
जमीं नम हो जाए जो जल लिख दूँ।
नक़ाब हट जाए तो ग़ज़ल लिख दूँ।
यूनिकवि से ऎसी हीं रचना की उम्मीद थी।
मैं भी अहसन साहब से इत्तेफ़ाक रखता हूँ। आज तक मैंने "अजल" शब्द नहीं सुना और सुना भी है तो अजल= कयामत,किस्मत, मौत के अर्थ में हीं सुना है। कृप्या हमारी इस दुविधा पर प्रकाश डालेंगे।
-विश्व दीपक
यदि गजल की तरह देखा जाए तो तीसरे और चौथे शे'र मे काफिया बिगडा है
क्योकि पहले शे'र मे जल और गजल कौ कारण काफिया जल बन गया था
वैसे पढने मे रचना बहुत अच्छी है
सुमित भारद्वाज
काफिये और बहर का तो प्रश्न है ही साथ साथ मुझे तो कुछ अर्थ भी पल्ले नहीं पड़ रहा गजल में लोग काफिया मिलाकर और बहर सही लाकर समझते हैं की उन्होंने मुकम्मल गजल कही है, चाहे वो कोई भी हो
सुरेश जी,
मेरी बात को अन्यथा न ले उस भीड़ में मैं भी हूँ और बहुत से तथाकथित बड़े शायर भी हैं. गजल इनसे ऊपर कहीं है
प्रस्तुत रचना मुझे प्रभावित नहीं कर पा रही
काफिये पर जो सुमित जी ने कहा वो भी मुझे ठीक लग रहा है जरा ध्यान दे ........और हाँ सच ये है की गलतियों के साथ गजले लिखना कोई उपलब्धि नहीं है एक सही शेर भी अगर कहा जाए तो वो उपलब्धि है
आशा है मेरी प्रतिक्रिया को सकारात्मक दृष्टिकोण से समझा जाएगा
अरुण अद्भुत
विश्व दीपक तन्हा जी,
जिस शेर की आप तारीफ कर रहे हैं उसमे दो फाड़ होने का दोष है इसे शेर नहीं कहा जा सकता
जमीं नम हो जाए जो जल लिख दूँ।
नक़ाब हट जाए तो ग़ज़ल लिख दूँ।
दोनों पंक्तियाँ अलग अलग अर्थ दे रही हैं ............
नक़ाब हट जाए तो ग़ज़ल लिख दूँ।
sahi baat yeh hai ki yeh misra bada bazaaru type ka lagta hai
Friends ,
Keep it up !
कुछ ऐसी सकारात्मक बहस की तलाश रहती है मुझे |
इससे बहुत कुछ सुधार होने के आसार रहते हैं | बस संयमित रूप से आलोचना होनी चाहिए |
सभी को बधाई |
अवनीश तिवारी
अजल शब्द शब्दकोष में मिला मुझे और उसका अर्थ है "जल हीन " |
अवनीश तिवारी
लिखता हूँ यूं तो रोज़ आज़ाद नज़्म मैं
तुम अगर कहो तो आज मैं ग़ज़ल लिखूँ
लिखने को लिख रहा हूँ तब्सिरा ए जिंदगी
दिल कह रहा है मगर किस्सा ए अजल लिखूँ
महफ़िल उजाड़ गयी दिल उखड गया
अब किस रूह ओ जां के लिए ग़ज़ल लिखूँ
दर्द ए जिगर कब से है क्या कहूँ भला
हर रुक़'ए में अज़ रोज़ ए अज़ल लिखूँ
जब भी लिखूँ मैं अपना किस्सा ए मुख्त्सर
करम लिखूँ उसी का, उसी का फज़ल लिखूँ
अजल - मौत
रुक़'ए - पत्र
मुख्त्सर - संक्षिप्त
az roz eazal- since the day of inception of world
कृपया 'उजाड़' के स्थान पर 'उजड़' पढें
अद्भुत जी!
आपने जब जिक्र किया तो मेरे पल्ले पड़ा कि "दो फाड़" क्या होता है। चलिए तो अब मैं समझ गया हूँ और मेरे अनुसार अगर "नक़ाब हट जाए तो ग़ज़ल लिख दूँ" की जगह "नक़ाब हट जाए जो ग़ज़ल लिख दूँ" हो तो यह दोष खत्म हो जाएगा। आप क्या कहते हैं?
अहसन साहब, किसी की भी पंक्ति को बाजारू कहना आप जैसे लेखक और पाठक को शोभा नहीं देता। मालूम होता है कि आप बस अपनी हीं रचना को चाहते हैं तभी तो एक रचना को बाजारू कहकर आपने अपनी रचना चिपका दी। आपसे स्वस्थ प्रतिक्रिया की अपेक्षा रहती है और उम्मीद करता हूँ कि आप स्वस्थ प्रतिक्रिया का अर्थ जानते होंगे। मेरी बात का बुरा लगा तो माफ़ कीजियेगा।
-विश्व दीपक
मैं विश्व दीपक की टिप्पणी से इत्तेफ़ाक रखता हूँ। पूरी ग़ज़ल इसी भाव को ढो रही है। जिस शे'र की तारीफ़ हो रही है, वह शे'र अपने अर्थ को नहीं समझा पा रहा है।
बाकी शे'र यह बताना चाह रहे हैं कि मेरी कलम में बहुत ताकत है। जैसे-
फलक पे चाँद आफताब रहे न रहे
उजाला हो जाए जो फ़ज़ल लिख दूँ।
इसका मतलब है कि आसमान में सूरज-चंद्रमा भले गायब हों, मैं बस फ़ज़ल (कृपा, मेहरबानी) लिख दूँ तो उजाला हो जायेगा।
ताबेदारी में खड़े रहीं दसों दिशाएँ
बस ये देर कि मैं अमल लिख दूँ।
दसों दिशाएँ सेवा के लिए, नौकरी के लिए खड़ी हो जाएँ, बस मैं "अमल" (ध्यान दो) लिख दूँ।
लेकिन पहले शे'र में यह भाव उभर कर नहीं आ रहा है।
जहाँ तक अजल शब्द की बात है तो 'अजल' संस्कृत भाषा का शब्द है। जिसका अर्थ 'बिना जल का' होता है। कविता के साथ शब्दार्थ भी दिया हुआ था, लेकिन उसे बहुत कम लोगों ने पढ़ा। हिन्दी/संस्कृत में संज्ञाओं से पहले 'अ' उपसर्ग जोड़कर विशेषण बना लेते हैं।
'अज़ल' अरबी भाषा का शब्द है। कृपया ध्यान दें इस शब्द के 'ज' व्यंजन में नुक़ता लगा है।
यद्यपि पाठकों को कविता के भाव नहीं समझ में आये तो इसे कुछ हद तक कवि की असफलता कहीं जायेगी। बाकी विचार तो कवि को खुद आकर देना चाहिए।
जमीं नम हो जाए जो जल लिख दूँ।
नक़ाब हट जाए तो ग़ज़ल लिख दूँ।
to both the a
isme ek paathak ke tur par mai kahna chaahungi ki ,likhne waale ki kafiyat kabhi aisi nahi hoti ki use kuch bhi kaha diya jaay .isme kuch bhi baajaaro nahi hai ,aapki lekhni saynmit nahi hai .
aap ki aalochna ya sameekhsha ka tareeka katai swasth nahi hai
तन्हा जी,
माफ़ी चाहूँगा, आपने मिसरे को तो सुधर दिया, पर मेरे कहने का मतलब है कि इस शेर कि दोनों पंक्तिया अपने आप में सम्पूर्ण हैं अगर अर्थ कि दृष्टि से देखा जाए तो. ऐसा किसी शेर में नहीं होना चाहिए. अर्थात एक शेर का अर्थ स्पस्ट होने के लिए दोनों पंक्तियों को योगदान आवश्यक है . वो दोनों मिलकर एक बात कहती हैं अर्थात एक शेर एक मुकम्मल बात कहता है जैसे:
दिल को कुछ इस तरह वो जलाने लगे
जब भी नज़रें मिली मुस्कुराने लगे
अक्सर मतले में शायर ये गलती कर बैठते हैं .....
अज़ल का अर्थ (नुक्ता लगने के बाद) मौत ही होता है जितना मुझे पता है मेरा एक शेर भी है :
जिन्दगी को ही कहाँ कब हम समझ पाए
तुम बताओ फिर अज़ल को कौन समझेगा
अरुण अद्भुत
i take back the word 'bazaaru' but
नक़ाब हट जाए तो ग़ज़ल लिख दूँ।
यह कहाँ से बहुत सुरिचपूर्ण है!!!
तनहा साहेब,
जब लोगों की कविताओं की खुल के तारीफ़ की तो आप ने कुछ नहीं कहा. आज एक खराब ग़ज़ल को खराब कह देने पर इतना शोर. आखिर आप सब इस खराब ग़ज़ल को क्यूँ defend करने में लगे हैं. क्यूँ नहीं मान लेते की यह अच्छी ग़ज़ल नहीं है. सिर्फ इस लिए की उन्हें यूनी कवि की उपाधि मिली है अपनी कुछ पंक्तियाँ केवल इस लिए लिखीं की इस आसान ज़मीन पर बहुत अच्छी ग़ज़ल कही जा सकती थी. मैं तो वैसे भी ग़ज़ल नहीं लिखता हूँ
वैसे भी रवाएती तौर पर उर्दू में ग़ज़ल 'कही' जाती है, 'लिखी' नहीं जाती है
कैसे बताऊँ मैं तुझे बारीकियां ग़ज़ल की मैं
मैं कहूँ कहो ग़ज़ल, वो कहे मैं लिखूँ ग़ज़ल
ahsan ji ,
aap naqaab ko galat tareeke se le rahe hain ,is naqaab ko parda bhi kah sakte hai
pardanasheen ko beparda n kar doon to akbar .......
logon ne is geet ko itna saraaha tha ,yahaan par bhi kuch yahi bhaav hain iske alaawa kuch bhi nahi .isme suruchipurn kya aur kyoun nahi hai ,humaari samajh se pare hai
भारतवासी जी,
अजल का अर्थ मृत्यु होता है
अजल भी सुनकर जिन्हें झूमती है
वो नगमे जिंदिगी के गा रहा ऊन
-फिराक
अज़ल (azal) का अर्थ होता है सृष्टि का प्रारंभ . उर्दू वाले अक्सर रोज़ ए अज़ल बोलते हैं यानि प्रारम्भिक दिन से.
ये तो रोज़ ए अज़ल से तै था........
-शहरयार की एक नज़्म से
नीलम जी,
किसी फ़िल्मी गाने में शब्द की लोकप्रियता कम से कम मेरे लिए तो कसौटी नहीं है ,नकाब नकाब ही है और आम पाठक उस को उसी तरेह समझता है, किसी स्त्री के चेहरे से नकाब हट जाने पर कवि जी ग़ज़ल लिखें गे. वाह क्या स्त्री का कोई और रूप नहीं है, यानि वोह सिर्फ जिस्म है.
शुभेच्छु
अहसन
adbhut ji,
aap ko bhi ajal aur azal ka farq nahi m'aloom hai lekin waah aap ne sh'er keh daalaa.
ahsan
अरे बाबा,,,,,
यहाँ तो हमारे आने से पहले ही हल्ला हो रखा है,,,,,,,,,कई लोगों ने तो कवि का मेल आई , दी, भी माग रखा है,,,,,,,,,
असल में अजल ,,,,,और अज़ल,,, दोनों ही शब्द होते हैं,,,,,,
अजल आया है संस्कृत से,,,,,और अज़ल उर्दू या फ़ारसी का शब्द है,,,,,,
इस ग़ज़ल के मिजाज को देखते हुए या तो दोनों ही और या फिर उर्दू वाला अज़ल सूट कर रहा है,,,
जिसके दोनों मतलब अहसान जी ने कहे हैं ,,,,,एक दम सही,,,,,,
रूह तहरीर में गीता की है नाजां कब से,
तेरे अहसास की गर्मी से पिघल जायेगी,
वो जो सालिम रही है "रोजे अज़ल" से अब तक,
बस तेरे एक तगाफुल से ही कट जायेगी........
ऐसा ही कुछ कहा था ...
ये मेरा शे'र जो मुझे ये बहस देखते हुए याद आ गया,,,,
इसमें रोजे अज़ल ,,,,का मतलब है,,,,स्रष्टी का आरम्भ,,,,,,
तो ये अजल ,,,,,,के बजाय यहाँ पर अज़ल ज्यादा सही होता,,,,,,
नकाब हट जाए "तो" ग़जल लिख दूं,,,,,
नकाब हट जाए "जो" ग़जल लिख दूं,,,
ये तो लगाने से कलम का दंभ ख़त्म हो रहा है जो के बाकी के शेरोन में है,,,,
यानि नकाब हटने पर ग़जल लिखी जायेगी ,,,,,,,,
नहीं ,
पूरे ग़ज़ल को देखते हुए ये कहा जाना चाहिए,,,,,,,
के ग़ज़ल लिख दूं तो ,,,,,,,,,,,,,,नकाब हट जायेगी,,,,,,,,,,,
पर ये शे'र कोई बाजारू नहीं लगा कहीं से भी,,,,,,
और अगर बाज़ार ही आज हमारे बीच आ बैठा है,,,,, हमारी जरूरत है,,,,,
तो फिर क्या बाजारू और क्या घरेलू,,,,,,,,
जमाखोरों की नीती जेब पर भरी रही तो,
जो खुद बिक जाने की हद तक खरीदारी रही तो,
इस हाल में और क्या आएगा,,,,,,,,,,,
सवेरे-शाम बस खिचडी ख्यालों की पकेगी,
अगर फल से भी महंगी अब के tarkaree रही तो,,
यहाँ 'अजल' का मतलब सूखा ही है (बिना जल का)। लेखक अपनी कलम की ताकत बता रहा है। वह कह रहा है कि मेरी कलम में इतनी ताक़त है कि 'अजल' भी लिखूँगा तब भी फ़िज़ा महकने लगेगी।
अब तो सुरेश जी को ही शंका निवारण हेतु आना होगा
अहसान जी धन्यवाद
चार साल पहले मैंने कहा था ये शेर, गुस्ताखी माफ़ हो जब ये शेर मैंने कहा था तब से अब तक ध्यान नहीं रहा कि वो अजल था या अज़ल फिर भी अब तो पूरे विश्लेषण के आधार पर तीन अजल/अज़ल हो गए हैं
पहला संस्कृत वाला (अजल) जिसका अर्थ है बिना जल का
दूसरा उर्दू वाला (अजल) जिसका अर्थ है मृत्यु
तीसरा उर्दू वाला (अज़ल, इसमें नुक्ता लगा है) जिसका अर्थ है सृष्टि का प्रारंभ
मैं इस बात से मार खा गया कि नुक्ता वाला अज़ल ही होगा जो मैंने प्रयोग किया था, हिंदी के लोग उर्दू में ऐसी गलतियाँ करते हैं मुझे कुछ और सीखने को मिला
अहसान जी धन्यवाद
अजल आर्थर जल-हीन, बिन पानी सब सून...जल ही जीवन है... जल नहीं तो जीवन नहीं अर्थात मौत...इसे एक कहें या दो संस्कृत का कहें..हिन्दी का ... या उर्दू का.. अपनी अपनी सोच... एक शब्द से एक से अधिक अर्थ ध्वनित होना हिन्दी पिंगल के अनुसार कविता का गुण / विशेषता / अलंकार है. शेष-अशेष.
imaadari se bataaen ham sab ne jiiwan mein kitni baar 'ajal' ( bina paani, nirjal) shabd ka prayog kiya hai. y'ani ab kavita likhne aur samajhne ke liye shabdkosh saamne rakhna pade ga.
अहसन साहब!
आपने जब मेरा नाम उद्धृत कर हीं दिया है तो मुझे कहना पड़ेगा कि मैं प्रतिक्रिया या टिप्पणी के खिलाफ़ नहीं हूँ,आदतन आप हर रचना को बुरा हीं कहते हैं,निस्संदेह कहिए..खुलेआम कहिए...यह मंच आपको रोकेगा नहीं,लेकिन बुराई करने की भी एक अदा होती है,जो शायर/लेखक/कवि को चोट न पहुँचाए। इसलिए लिखा था कि स्वस्थ प्रतिक्रिया होनी चाहिए। अब आप जिद्द लेकर हीं बैठ जाएँगे और किसी की भी सुनने को राज़ी नहीं होंगे तो आपका भगवान हीं मालिक है।
धन्यवाद,
विश्व दीपक
mujhe to azal ka matlab bhi nahin pata tha... agar koi azal likhe tab bhi dictionary kholni padegi.. :-)...
jo bhi ho.. naye shabd to seekhne ko mile..
तपन, अपने को अकेला और असहाय ना समझो इस शेर, ग़ज़ल और confuse करने वाले लोगों के बीच इस दुनिया में. जब भी बहुत difficult उर्दू के words का सामना हो जाता है तो वहीँ हाथ-पाँव ठंडे पड़ जाते हैं मेरे भी. अब शायद आप बेहतर महसूस कर रहे होगे.
ahsan bhaai ,
naqaab hatna ,aur gazal ka ho jaana kaha se yah dikhaata hai ,ki aurat ko jism maana jana jaroori hai .khuda ki niyamat hai wo bhi ,aur sundar cheej to kavita aur gazal ki bastu rahe hain n jaane kab se ,sundar prakriti ,dharti ,maa ,mahbooba,beti , vishay kuch bhi koi bhi ho sakta hai .
aap n samjhe hain n samjhenge kisi ki baat.
ab jyaada gussa mat dilaayiye
Varna kya kar loge neelam jee maine to dar ke maare apna naam bhi nahi diya ................ kahin aap mujh par hi baras pado.... ha hahahahah
तन्हा साहेब,
जब कविताओं की तारीफ की तो आप ने नोटिस नहीं लिया, जब एक खराब कविता को खराब कह रहा हूँ और कई लोग भी दोष पा रहे हैं तो आप उसे हर तरेह से defend करने में लगे है,, आखिर क्यूँ? क्या यह मंच सिर्फ अच्छा -अच्छा बोलने के लिए है कि किसी को किसी कीमत पर ठेस न पहुंचे
नीलम जी,
आप से म'अफी चाहता हूँ, आप को तकलीफ पहुंचाने का कोई इरादा न था ,न है. बात सिर्फ़ इतनी सी है कि वह नकाब वाला श'एर सस्ती लोकप्रियता वाला लगता है. ताली बजवाने वाला. शब्द बाजारू मैं ने पहले ही वापस ले लिया था.
तन्हा साहब,
आप को उधृत कर रहा हूँ
"यह मंच आपको रोकेगा नहीं,लेकिन बुराई करने की भी एक अदा होती है,जो शायर/लेखक/कवि को चोट न पहुँचाए। इसलिए लिखा था कि स्वस्थ प्रतिक्रिया होनी चाहिए। अब आप जिद्द लेकर हीं बैठ जाएँगे और किसी की भी सुनने को राज़ी नहीं होंगे तो आपका भगवान हीं मालिक है।"
१- आखिर आप ने मंच की धमकी दे ही दी !!कोई बात नहीं, मुझे अपनी सीमाएं म'अलूम हैं, यह मंच मैं नहीं रन करता हूँ, यह भी म'अलूम है, मुझे ब्लाक भी किया जा सकता है, यह भी म'अलूम है. इन सीमाओं के बाद भी कविता के साथ ईमानदारी नहीं छोडूँ गा.
२- स्वस्थ प्रतिक्रिया क्या होनी चाहिए, अब आप से सीखना पड़े गा.! अगर अंग्रेजी में कहें ,goodie- goodie खेलना ही स्वस्थ प्रतिक्रिया है तो आप ठीक कह रहे हैं.
३- " आप का भगवान् ही मालिक है" , इस प्रकार की भाषावाली मैं आप के लिए भी प्रयोग कर सकता हूँ लेकिन नहीं करूं गा. कविता का कट्टर समालोचक ज़रूर हूँ लेकिन कुछ शिष्टाचार अभी अपने लिए बच्चा रखा है, कविता तो आती जाती रहे गी, यह बचा रहे.
शुभेच्छु
अहसन
ताली बजवाने वाला
ahsan bhaai ,ab yah taali bajwaane waali kaun si upma laaye hain aap
kis shaayar ko waah waahi nahi pasand hum bhi to sune (wo aap to hargij nahi )jyada door jaane ki jaroorat nahi hai ,apni puruskrit kavita ke ek comment me aapki khud ki pritikriya hai
hawa bahi waali kavita me
अरे,,,,३६ कमेंट,,,,!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
!!!!!!!!!!!!!!
और ये मेरा ३७ वाँ,,,,,,,,
इतना ग़दर तो नंबर वन यूनिकवि में भी नहीं हुआ था,,,,,,,,:::::))))
अहसान भाई,
इस मंच की ये बड़ी खासियत है के ये किसी को ब्लोक नहीं करता,,,,,
यहाँ आप शौक से अपनी बात रख सकते हैं,,,,,किसी भी साफ़ सुथरे तेवर में,,,,जैसा की आप रखते हैं,,,,,आप का सदा ही स्वागत है,,,,,भले ही आपकी बात से मैं सहमत हूँ या न हूँ,,,,पर ये गारंटी है के इस मंच पर आप जैसे सभ्य व्यक्ति को कभी भी ब्लाक नहीं किया जाएगा,,,,,
मैं फिर आपकी नकाब वाली बात को बाजारू ,,,,,या सस्ता कहने पर सहमत नहीं हूँ,,,,,
आपने जो अजल और अज़ल की बात कही ,,,,,,वो हर लिहाज से दुरूस्त है,,,,,
एक बार आपने कहा था के रचना का उम्र से क्या ताल्लुक,,,,???
खुली प्रतियोगिता है,,,,,
जी हाँ,
खुली प्रतियोगिता में बेशक कोई ताल्लुक नहीं होता पर,,,,
कमेंट में होता है,,,,,,,
जैसे मुझे वो कमेंट के रचना के साथ तस्वीर का क्या मतलब है,,,,,अगर आज से बीस साल पहले मिला होता तो,,,,,,
मैं या तो कलम छोड़ चुका होता या,,,,,,ब्रश,,,,,
कमेंट करने वाले का कुछ भी नहीं जाता,,,,,,,
और हमारा सब कुछ चला जाता,,,,,,,,
ye 37 waa hi comment ho,,,,,,
मनु साहब,
टिप्पणी आप ही आमंत्रित कर रहे है.
कविता और फोटोग्राफी अलग अलग विधाएं है.
१- ग़ज़ल चूंकि किसी एक थीम पर नहीं होती इस लिए चित्र असंगत हो जाता है
२- कविता पढ़ कर उठे भावों के आधार पर चित्र बनाना या चित्र देख कर उठी कल्पना के आधार पर कविता लिखना तो समझ में आता है किन्तु कविता के समर्थन या सपोर्ट या मजबूती के रूप में चित्र भी प्रस्तुत करना कविता की ही कमजोरी कही जाए गी. अगर यह कविता किसी प्रतियोगिता का भी भाग है तो यह निर्णायकों को प्रभावित करने का अनुचित प्रयास भी हो गा.
रही बात वर्तमान बहस की तो इतना ही कहूँ गा की मोमिन का एक मशहूर श'एर है
' इश्क को दिल में जगह दे मोमिन
इल्म से शाएरी नहीं आती'
कविता लिखने के लिए शब्द कोष नहीं भाव और भावनाएं चाहिए, भाव हों गे तो शब्द अपने आप आ जाएं गे
शुभेच्छु
-अहसन
kaafi cheezon ka dhyaan dekar likhi gai hai...
dil tab kagaz par utarta hai jab shabdon ki bandishen khatam ho jaati hai.
नक़ाब हट जाए तो ग़ज़ल लिख दूँ।
this is the best line
---------Anupama
अभी तक चल रहा है प्रोग्राम,,,,
या रब न वो समझे हैं न समझेंगे मेरी बात,
दे और दिल उनको जो न दे मुझको जुबां और,,,,,,
क्या कहा है चचा ग़ालिब ने,,,
क्या कहा है,,,!!!!!
main sach kahuun gi aur haar jaaun gi
wo jhoot bole ga aur lajawaab kar dega
-- parwin shakir
( shaaed sh'er mein ek-aadh lafz idhar udhar ho rahe hai. sahi sh'er b'ad mein likh duun ga.
जमीं नम हो जाए जो जल लिख दूँ।
नक़ाब हट जाए तो ग़ज़ल लिख दूँ।
फलक पे चाँद आफताब रहे न रहे
उजाला हो जाए जो फ़ज़ल लिख दूँ।
बहुत खूब,पता चल गया आप को लिखने मे महारत हाँसिल हैं,
बहुत सुंदर लिखा..
arł do ziemi, spоjгzał. Była owe zardzewiała, święta mіtenka, philippeherlin.blogspot.tw w któгej tkwiły w dаlszуm ciągu wysсhnięte palce tаkże
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एक ग़ज़ल है
सरकती जाए है रुख से नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता.....
अहसान भाई क्या ये बाज़ारू है???
सब के सब अज़ल पर अटक गए
कोई बताएगा
पैबस्त की अर्थ क्या होता है
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)