फरवरी माह की प्रतियोगिता से छठवीं रचना के तौर पर हम भोजपुरी के प्रसिद्ध युवाकवि मनोज भावुक की रचना प्रकाशित कर रहे हैं। मनोज भावुक की एक रचना जोकि बसंत के ऊपर थी, आप पढ़ चुके हैं।
पुरस्कृत कविता- सबसे बड़का शाप गरीबी
सबसे बड़का शाप गरीबी
सबसे बड़का पाप गरीबी
डँसे उम्र भर, डेग-डेग पर
बन के करइत साँप गरीबी
हीत-मीत के दर्शन दुर्लभ
जब से लेलस छाप गरीबी
साधू के भी चोर बनावे
हरे पुन्य-प्रताप गरीबी
जन्म कर्ज में, मृत्यु कर्ज में
अइसन चँपलस चाँप गरीबी
सुन्दर, स्वस्थ,सपूत अमीरी
जर्जर बूढ़ा बाप गरीबी
जे अलाय बा ओकरा घर में
पहुँचे अपने आप गरीबी
सूप पटकला से ना भागी
रोग, दलिद्दर, पाप, गरीबी
ज्ञान भरल श्रम के लाठी से
भागी अपने आप गरीबी
शब्दार्थ- बड़का- बड़ा वाला, करइत साँप- करैत साँप, बहुत जहरीला सर्प, हीत-मीत- हितैषी और मित्रगण,
जब से लेलस- जब से लिया, जब से अपने गिरफ्त में लिया, अइसन चँपलस चाँप गरीबी- गरीबी ने ऐसी चाँप कसी
जे- जो, अलाय- आलसी, बा- है, ओकरा- उसके, सूप- लड़की की बनी विशेष प्रकार की परात, बर्तन, पटकला से- पटकने से, दलिद्दर- दरिद्र,
प्रथम चरण मिला स्थान- द्वितीय
द्वितीय चरण मिला स्थान- छठवाँ
पुरस्कार- कवयित्री निर्मला कपिला के कविता-संग्रह 'सुबह से पहले' की एक प्रति
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8 कविताप्रेमियों का कहना है :
सूप पटकला से ना भागी
रोग, दलिद्दर, पाप, गरीबी
ज्ञान भरल श्रम के लाठी से
भागी अपने आप गरीबी
Bahut achchi kavita ke sath ek ahchca aur sachcha sandesh.
इस कविता की जितनी प्रशंसा की जाए, कम है
ahsan
एक दम सही कहा है,,
आपकी पहले वाली रचना भी बेहद शानदार थी,,,,,
बहुत ही ख़ूबसूरत रवानी लिए हुए,,,
सीधी और सरल भाषा में प्रभावी और जरूरी अभिव्यक्ति.
निश्चय ही इन पंक्तियों में जीवन के प्रति एक सार्थक दृष्टिकोण मिल जाता है -
"ज्ञान भरल श्रम के लाठी से
भागी अपने आप गरीबी "
सधे शब्दों में अपना सन्देश पहुचाती कविता | अनुकूल सशब्द चयन | भोजपुरी ने इसके भावों को विस्तार दिया | बधाई |
सादर,
विनय के जोशी
bahut bhubsurat yaar
“सूप पटकला से ना भागी
रोग, दलिद्दर, पाप, गरीबी
ज्ञान भरल श्रम के लाठी से
भागी अपने आप गरीबी” भावुक जी बड़ी गहरी बात कह गए हैं आप इस कविता में. शायद भावुकता के कारण या भूलवश शब्दार्थ में “लकड़ी की परांत” की जगह “लड़की की...” छप गया है. इस सुन्दर कविता के लिए आप बधाई के पत्र हैं. अश्विनी कुमार रॉय
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