कवि नाज़िम नक़वी ने एक शब्द गढ़ा है 'जानिस्तान' और यह ग़ज़ल भेजी है-
वक़्त के जुज़दान में कैसे रहें
ख़्वाहिशें, इमकान में कैसे रहें
हर इलाक़े में इलाक़ा-वारियत
एक, हिंदुस्तान में कैसे रहें
जान का ख़तरा है हर-हर गाम पर
अपने जानिस्तान में कैसे रहें
तुम तो रहते हो हमारे ध्यान में
हम तुम्हारे ध्यान में कैसे रहें
देखना है आख़री सीटी तलक
खेल के मैदान में कैसे रहें
जुज़दान= वो सिला हुआ कपड़ा जिनमें ग्रंथों को लपेटा जाता है
इमकान= संभावनाएं
इलाक़ा-वारियत= क्षेत्रियता
गाम= गाँव
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12 कविताप्रेमियों का कहना है :
अच्छी-भावपूर्ण रचना. बधाई.
अच्छी-भावपूर्ण रचना. बधाई.
पूरी की पूरी गजल गहरी अर्थवत्ता के शेरों से सजी है.
समस्यायें - "हर इलाक़े में इलाक़ा-वारियत",
चिंतायें - "जान का ख़तरा है हर-हर गाम पर"
कसक - "हम तुम्हारे ध्यान में कैसे रहें"
अस्तित्व की तलाश -"देखना है आख़री सीटी तलक
खेल के मैदान में कैसे रहें"
क्या नहीं है इस गजल में ?
हां, पहले शेर से वाकिफ नहीं हो पा रहा हूं.
आप की कविताए बोलती है कि आप कितने उलझे हुए है. वैसे यदि हुलझे नही, तो जिन्दगी का अहसास नही होता है.
अजीज नाजिम जी,
बल्कि हरदिल अजीज नाजिम जी,
देख कर नाजिम की ये दिलकश ज़मीं;
बोल, बीयाबान में कैसे रहे..
नाजिम जी,,,
हर हर गाम को ,,,
हर इक गाम पढ़ना चाहूंगा,,,
अगर इजाजत हो तो,,,,,,
बाकी आपका गढा जानिस्तान
बहुत प्यारा लगा,,,,,,कभी ज़रुरत लगी तो आपसे मांगने भी aaऊँगा,,,
नै दुनिया जी,
मेरा तो मानना ये ही है के आदमी उलझ कर ही कुछ सुलझा सकता है,,,,,
अगर खुद ही उलझाने से बचा रहा तो क्या सुलझायेगा,,,,,नाजिम की कलम में जो एक सुलझाने की कोशिश मैं महसूस करता हूँ,,,,,वही मुझे इनकी रचनाओं की तरफ खींचती है,,,,,,
sundar rachna .....sundar bhav ke sath....
अभी तक जो प्रतिक्रियाएं पढ़ीं उनके लिये सभी का आभारी हूं... आप सब, और ज़िम्मेदारी का एहसास करा देते हैं... मनु जी आपकी सुख़नवरी का तो जवाब नहीं... सहमत हूं आपसे... लिखने में... पढ़ने में भी, "हर इक गाम" ज़्यादा सटीक है...
नाज़िम
हर इलाक़े में इलाक़ा-वारियत
एक, हिंदुस्तान में कैसे रहें
बहुत सही |
बधाई
अवनीश तिवारी
भावः पुराना है मगर शेर अच्छा है,
तुम तो रहते हो हमारे ध्यान में
हम तुम्हारे ध्यान में कैसे रहें
गजल अच्छी लगी.................. खास तौर पर ये शेर बहुत पसंद आया :
देखना है आख़री सीटी तलक
खेल के मैदान में कैसे रहें
हर हर गाम की जगह हर इक गाम ही पढने में आ रहा है ये बात ठीक है
आपकी एक गजल "अंकल जैसे लोग का तो मैं फैन हो गया हूँ"
हर इलाक़े में इलाक़ा-वारियत
एक, हिंदुस्तान में कैसे रहें।
महत्वपूर्ण प्रश्न है ये।
और ये भी:
जान का ख़तरा है हर-हर गाम पर
अपने जानिस्तान में कैसे रहें
एक गज़ल में भाव जब तलक न हों, फिर चाहे शिल्प कितना भी दुरूस्त क्यों न हो, गज़ल सार्थक नहीं होती।
आपकी यह गज़ल मुकम्मल गज़ल है, शिल्प है तो भाव भी है और वो भी जबरदस्त भाव।
बधाई स्वीकारें\
-विश्व दीपक
बधाई! वाजिब सवाल उठाती हुई एक अच्छी सामयिक ग़ज़ल. शब्द ज़रूरत थोड़े मुश्किल हैं मगर अर्थ देकर आपने उन्हें भी सरल कर दिया है, आइन्दा भी ऐसी और रचनाओं की उम्मीद रहेगी.
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