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Friday, January 16, 2009

कथापाठ पर विमर्श हुआ और कथाजगत को नया गौरव मिला




१५ जनवरी २००९ की शाम ५ बजे गाँधी शांति प्रतिष्ठान सभागार में इंटरनेट पर हिन्दी भाषा, साहित्य, कला और तकनीक के लिए समर्पित संस्था हिन्द-युग्म ने 'कथापाठः एक विमर्श' का आयोजन किया जिसकी अध्यक्षता हिन्दी के प्रसिद्ध कहानीकार असग़र वजाहत ने की।

कार्यक्रम की शुरूआत करते हुए हिन्द-युग्म के निखिल आनंद गिरि अपना सौभाग्य बताया और कहा कि पूरा हिन्द-युग्म परिवार आज गदगद है कि हमारे प्रयासों को सराहने के लिए साहित्य जगत के पुरोधा आज हमारे छोटे से दरबार में उपस्थित हैं।
कथापाठ करते गौरव सोलंकी


इस कार्यक्रम में लंदन से पधारे वरिष्ठ कहानीकार तथा अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी संस्था कथा (यू॰के॰) के महासचिव तेजेन्द्र शर्मा और हिन्दी कहानी में नया नाम गौरव सोलंकी का कहानीपाठ हुआ।

हरियाणा के वरिष्ठ साहित्यकार और कार्यक्रम के संचालक डॉ॰ श्याम सखा 'श्याम' ने कहानी के उद्गम, उद्भव और विकास पर प्रकाश डाला। डॉ॰ श्याम सखा ने अपनी एक कहानी 'महेसर का ताऊ' का भी पाठ किया। संस्था के संस्थापक और प्रधान संपादक शैलेश भारतवासी ने हिन्द-युग्म की गतिविधिओं पर प्रकाश डाला और हर एक को हिन्दी ब्लॉगिंग से जुड़ने की वक़ालत की। शैलेश ने बताया कि इंटरनेट पर आने वाला समय किसी भाषा की लिपि न होकर ऑडियो-वीडियो के विभिन्न रूपों में होगा। इसलिए हम हिन्दी वालों को भी उस तरह के कंटेंट की ओर ध्यान देना चाहिए। इसीलिए हमारी कोशिश है कि हिन्द-युग्म पुरानी-नई हर तरह के साहित्य, संगीत, जानकारियों को ऑडियो और वीडियो के रूप में वेबसाइट पर डालें।



तेजेन्द्र शर्मा ने अपनी प्रसिद्ध कहानी 'पासपोर्ट का रंग' का पाठ किया वहीं गौरव सोलंकी ने अपने ख़ास अंदाज़ वाली दो छोटी-छोटी कहानियों 'डर के आगे' और 'तुम्हारी बाँहों में मछलियाँ क्यों नहीं हैं' का पाठ किया। बानगी देखिए-

मैं जानता हूं कि उसे पता है। उसे लगता है कि बैंक बन्द हो गया है। वह नहीं जाती। मैं घड़ी को पुचकारता हूँ। फिर मैं उसे एक महल की कहानी सुनाने लगता हूं। वह कहती है कि उसे क्रिकेट मैच की कहानी सुननी है। मैं कहता हूं कि मुझे फ़िल्म देखनी है। वह पूछती है, “कौनसी?” मुझे नाम बताने में शर्म आती है। वह नाम बोलती है तो मैं हाँ भर देता हूं। मेरे गाल लाल हो गए हैं।

युवा कथाकार अभिषेक कश्यप ने 'युवा कहानी और नये प्रयोग' पर बोलते हुए कहा कि नये कहानीकार भाषा और शब्द-चयन को लेकर बहुत सहज हैं, लेकिन इनको वह पहचान नहीं मिल सकी हैं, जिसकी ये हक़दार हैं। नामी साहित्यिक पत्रिकाओं के सम्पादकों को इस तरह की भी कहानियों को प्रकाशित कर इनका प्रोत्साहन करना चाहिए। कार्यक्रम के अध्यक्ष और मुख्य वक्ता असग़र वजाहत ने गौरव सोलंकी की कहानियों की तुलना शशांक, बलराम, मधुसूदन आनंद जैसे बड़े कहानीकारों की कहानियों से की। असग़र वजाहत ने तेजेन्द्र शर्मा को एक संपूर्ण कथाकार बताया। युवा कथाकार अजय नावरिया ने कथापाठ की इस परम्परा के निर्वहन के लिए तेजेन्द्र शर्मा की प्रसंशा की और कहा कि कहानी लिखने का कोई ककहरा नहीं है। तेजेन्द्र की कहानियाँ एक नया अनुभव देती हैं, जो अन्य प्रवासी कथाकारों की नॉस्टेलजिया से आगे निकलकर वास्तविकता की धरातल पर चलती हैं।

आलोचना के इस समय को उन्होंने महत्तम समापवर्तक की जगह लघुत्तम समापवर्त्य बताया और कहा कि बड़े आलोचक की आलोचना कर देने मात्र से रचना बड़ी नहीं होती, बल्कि वो कहानी या रचना बड़ी होती है जो पाठक या श्रोता के मन हो छूये।

कथाकार असग़र वजाहत ने हिन्द-युग्म की प्रसंशा करते हुए कहा कि- "विश्व हिन्दी सम्मेलन के आयोजन में कम से कम १२ करोड़ का खर्च होता है, जिससे कोई निष्कर्ष नहीं निकलता, हिन्द-युग्म के इस तरह के छोटे-छोटे आयोजन कई मामलों में उनसे अधिक महत्वपूर्ण हैं जो स्वयं के खर्च से हिन्दी के लिए कुछ सार्थक प्रयास कर रहे हैं।

हिन्दी को लेकर हम इतने चिंतिंत क्यों हैं?-इस बात का जवाब देते हुए वजाहत ने कहा कि हिन्दी सिर्फ हमारी मातृभाषा ही नहीं है, बल्कि दुनिया की दूसरी नं॰ की सबसे बड़ी भाषा है, हम अपनी-अपनी भाषा के प्रमोशन का हठ लेकर न बैठें बल्कि दुनिया की दूसरी बड़ी भाषा के विकास और प्रसार में अपना योगदान दें, क्योंकि कहीं न कहीं यह हमारे सांस्कृतिक विकास से भी जुड़ी है। और सांस्कृतिक विकास कहीं न कहीं हमारे हर तरह के विकास से जुड़ा हुआ है।

कार्यक्रम में उपस्थित सैकड़ों श्रोताओं की भीड़ से यह ज़ाहिर होता है कि तकनीक के जमाने में भी साहित्य का आकर्षण कम नहीं हुआ है।

हिन्द-युग्म की ओर से निखिल आनंद गिरि, प्रेमचंद सहजवाला, भूपेन्द्र राघव, सजीव सारथी, अनुराधा शर्मा, मनुज मेहता, रंजना भाटिया, मनु बेतखल्लुस, नीलम मिश्रा, अभिषेक पाटनी, तपन शर्मा इत्यादि के अलावा प्रवासी संसार के राकेश पाण्डेय, वरिष्ठ पत्रकार अजीत राय, नेशनल बुक ट्रस्ट में संपादक लालित्य ललित, सीएमएस मीडिया लैब के मीडिया-प्रबंधक प्रभाकर सिंह (सपत्नी), आईएएनएस समाचार एजेंसी से गिरीन्द्र, युवा पत्रकार आकांक्षा पारे, पंकज नारायण, साहित्यकार सुभाष नीरव व प्रेम जनमेजय, चोखेरबाली डॉट इन वेबसाइट की मुख्य मॉडरेटर सुजाता तेवतिया, साहित्य शिल्पी ब्लॉग से राजीव रंजन प्रसाद, अजय यादव, मोहिन्दर कुमार, ब्लॉगर विनीत कुमार, राजीव तनेजा (सपत्नी), अविनाश वाचस्पति, सुशील कुमार छोक्कर, पवन चंदन, उमाशंकर, बाल-पत्रिका 'नया-सूरज' के संपादक कवि दीपांकर, सफर (एनजीवो) प्रमुख राकेश सिंह इत्यादि उपस्थित थे।

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11 कविताप्रेमियों का कहना है :

तपन शर्मा Tapan Sharma का कहना है कि -

मैंने पहली बार कल कथापाठ का आनंद लिया..
मुझे पता ही नहीं था कि कहानी सुनना क्या होता है... :-) तेजेंद्र जी ने कल सिखाया...
बहुत अच्छा लगा... श्याम जी और गौरव को तो पढ़ते ही रहते हैं... उनके बारे में क्या कहें...
बहुत अच्छा कार्यक्रम रहा पूरा..

हरकीरत ' हीर' का कहना है कि -

बधाई.....

Divya Narmada का कहना है कि -

ककहरा तो हर विधा का होता है यह बात और है कि कुछ प्रतिभा संपन्न लोग बिना ककहरा पढ़े उस विधा में सुन-गुन कर पारंगत हो जाएँ. विधा का शास्त्र सदियों में सामान्य जन को पारंगत बनाने के सोपान उपलब्ध कराने के लिए होता है. उसे नकारकर प्रतिभा संपन्न भले ही अप्रभावित रह जाएँ किंतु सामान्य लेखकों-पाठकों का नुक्सकं ही होता है. केवल लोकप्रियता से साहित्य हितकर या अमर हो सकता तो वह विपुल साहित्य नष्ट न हो गया होता जो अपने समय में जन-जन की जुबान पर रहा. समय जयी वही होता है जो सनातन सत्यों को समाहित किए होता है. तुलसी, कबीर आदि अपने समय में नहीं समय के बाद लोकप्रिय हुए. अस्तु...
सफल आयोजन की बधाई.

Ria Sharma का कहना है कि -

हिन्दयुग्म जिस सहजता से
सोपान दर सोपान आगे बढ़ रहा है
जल्दी ही अपना एक मुकाम हासिल करेगा
शैलेश जी और समस्त हिन्दयुग्म परिवार को

हार्दिक बधाई !!

Smart Indian का कहना है कि -

हिन्दयुग्म को सफल आयोजन की बधाई!

Nikhil का कहना है कि -

गौरव एगर कल को एक स्थापित कथाकार बनते हैं तो ये हिंदयुग्म की खोज कही जाएगी..

राजीव करूणानिधि का कहना है कि -

हार्दिक बधाई आपको. यू ही हिंदी को आगे बढाते रहिये.

Unknown का कहना है कि -

karyakaram k safal aayojan k liye badhai

is baar to pariksha ki vajah se nahi aa paya...agle karyakarm mei main bhi katha path ka anand lene aaonga

sumit bhardwaj

manu का कहना है कि -

सुमित भाई ,
दोबारा अंग्रेजी में...?
हिन्दी में आओ भाई

कार्यक्रम वाकई ज्ञानवर्धक और मनोरंजक था....बधाई...

Unknown का कहना है कि -

मनु भाई,
मै हमेशा ही हिन्दी मे लिखता हूँ, परीक्षा होने की वजह से मेरे पास लिखने का समय कम था और हिन्दी मे लिखने मे समय ज्यादा लगता है इसलिए ही मैने रोमन मे टिप्पणी करी थी

संगीता पुरी का कहना है कि -

हिन्दयुग्म को सफल आयोजन की बहुत बहुत बधाई!

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