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Saturday, January 17, 2009

*****मन की लागी आग तो ,वो ही सके बुझाय


मनवा जब समझा नहीं,प्रीत प्रेम का राग
संबंधों घोड़े चढ़ा था,तभी बैरी दिमाग
१२
मन की हारे हार है,सभी रहे समझाय
समझा,समझा सब थके,मनवा समझे नाय

१३
मन की लागी आग तो ,वो ही सके बुझाय
जिसके मन् में,दोस्तो , प्रीत अगन लग जाय
१४
प्रीतम के द्वारे खड़ा,मनवा हुआ अधीर
इतनी देर लगा रहे,क्या सौतन है सीर
१५
मन औरत ,मन मरद भी,मन बालक नादान
नाहक मन के व्याकरण,ढूंढ़े सकल जहान
१६
मन तुलसी मीरा भया,मनवा हुआ कबीर
द्रोपदी के श्याम-सखा,पूरो म्हारो चीर
१७
अंगरलियां जब मन करे,महक उठे तब गात
सहवास तो है दोस्तो,बस तन की सौगात
१८
मन की मन से जब हुई,थी यारो तकरार
टूट गये रिश्ते सभी,सब् बैठे लाचार
१९
मन की राह अनेक हैं, मन के नगर हजार
मन का चालक एक है,प्यार,प्यार बस प्यार
२०
मन के भीतर बैठकर, मन की सुन नादान
मन के भीतर ही बसें,गीता और कुरान

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6 कविताप्रेमियों का कहना है :

निर्मला कपिला का कहना है कि -

रचना तो सुन्दर है हीआपके ब्लोग्ज़ भी बहुत आकर्शक हैं

Unknown का कहना है कि -

vaah..
maan k uper itne saare dohe padhkar maan sheetal ho gya...ab exam ki preparation karte hue bhi maan idher-udher nahi bahagega.

sumit bhardwaj

आलोक साहिल का कहना है कि -

LAAJWAAB..........
alok singh "sahil"

तपन शर्मा Tapan Sharma का कहना है कि -

सुंदर दोहे

manu का कहना है कि -

पहले और सातवें के अलावा बाकी के दोहे अच्छे हैं ...
बधाई ..श्याम जी...

Unknown का कहना है कि -

bahoot sundar kriti hai

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